गीत:- बचपन के दिन भुला न देना......
यह गीत है खास बच्चों के लिए।
भल है गीत फिल्मी परन्तु कुछ गीत हैं ही तुम्हारे लिए।
जो सपूत बच्चे हैं उन्हों को गीत सुनते समय उसका अर्थ अपने दिल में ले आना पड़ता है।
बाप समझाते हैं मेरे लाडले बच्चे, क्योंकि तुम बच्चे बने हो।
जब बच्चा बनें तब तो बाप के वर्से की भी याद रहे।
बच्चे ही नहीं बनें तो याद करना पड़ेगा।
बच्चों को स्मृति रहती है हम भविष्य में बाबा का वर्सा लेंगे।
यह है ही राजयोग, प्रजा योग नहीं।
हम भविष्य में प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे।
हम उनके बच्चे हैं बाकी जो भी मित्र-सम्बन्धी आदि हैं उन सबको भुलाना पड़ता है।
एक बिगर दूसरा कोई याद न पड़े।
देह भी याद न पड़े।
देह-अभिमान को तोड़ देही-अभिमानी बनना है।
देह-अभिमान में आने से ही अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्प उल्टे गिरा देते हैं।
याद करने की प्रैक्टिस करते रहेंगे तो सदैव हर्षित मुख खिले हुए फूल रहेंगे।
याद को भूलने से फूल मुरझा जाता है।
हिम्मते बच्चे मददे बाप।
बच्चे ही नहीं बनें तो बाप मदद किस बात की करेंगे?
क्योंकि उनका माई बाप फिर है रावण माया, तो उनसे मदद मिलेगी गिरने की।
तो यह गीत सारा तुम बच्चों पर बना हुआ है-बचपन के दिन भुला न देना.....।
बाप को याद करना है, याद नहीं किया तो जो आज हंसे कल फिर रोते रहेंगे।
याद करने से सदैव हर्षित मुख रहेंगे।
तुम बच्चे जानते हो एक ही गीता शास्त्र है, जिसमें कुछ-कुछ अक्षर ठीक हैं।
लिखा है कि युद्ध के मैदान में मरेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे।
परन्तु इसमें हिंसक युद्ध की तो बात ही नहीं है।
तुम बच्चों को बाप से शक्ति लेकर माया पर जीत पानी है।
तो जरूर बाप को याद करना पड़े तब ही तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
उन्होंने फिर स्थूल हथियार आदि बैठ दिखाये हैं।
ज्ञान कटारी, ज्ञान बाण अक्षर सुना है तो स्थूल रूप में हथियार दे दिये हैं।
वास्तव में हैं यह ज्ञान की बातें।
बाकी इतनी भुजायें आदि तो कोई को होती नहीं।
तो यह है युद्ध का मैदान।
योग में रह शक्ति लेकर विकारों पर जीत पानी है।
बाप को याद करने से वर्सा याद आयेगा।
वारिस ही वर्सा लेते हैं।
वारिस नहीं बनते तो फिर प्रजा बन पड़ते हैं।
यह है ही राजयोग, प्रजा योग नहीं।
यह समझानी बाप के सिवाए कोई दे न सके।
बाप कहते हैं मुझे इस साधारण तन का आधार ले आना पड़ता है।
प्रकृति का आधार लेने बिगर तुम बच्चों को राजयोग कैसे सिखलाऊं?
आत्मा शरीर को छोड़ देती है तो फिर कोई बातचीत हो नहीं सकती।
फिर जब शरीर धारण करे, बच्चा थोड़ा बड़ा हो तब बाहर निकले और बुद्धि खुले।
छोटे बच्चे तो होते ही पवित्र हैं, उनमें विकार होते नहीं।
सन्यासी लोग सीढ़ी चढ़कर फिर नीचे उतरते हैं।
अपने जीवन को समझ सकते हैं।
बच्चे तो होते ही पवित्र हैं, इसलिए ही बच्चे और महात्मा एक समान गाये जाते हैं।
तो तुम बच्चे जानते हो यह शरीर छोड़कर हम प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे।
आगे भी हम बने थे, अब फिर बनते हैं।
ऐसे-ऐसे ख्यालात स्टूडेन्टस को रहते हैं।
यह भी उनकी बुद्धि में आयेगा जो बच्चे होंगे और फिर व़फादार, फरमानबरदार हो श्रीमत पर चलते होंगे।
नहीं तो श्रेष्ठ पद पा न सकें।
टीचर तो पढ़ा हुआ ही है।
ऐसे नहीं कि वह पढ़ते हैं फिर पढ़ाते हैं।
नहीं, टीचर तो पढ़ा हुआ ही है।
उनको नॉलेजफुल कहा जाता है।
सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज और कोई नहीं जानते।
पहले तो निश्चय चाहिए वह बाप है।
अगर किसी की तकदीर में नहीं है तो फिर अन्दर में खिटखिट चलती रहेगी।
पता नहीं चल सकेगा।
बाबा ने समझाया है जब तुम बाप की गोद में आयेंगे तो यह विकारों की बीमारी और ही ज़ोर से बाहर निकलेगी।
वैद्य लोग भी कहते हैं-बीमारी उथल खायेगी।
बाप भी कहते हैं तुम बच्चे बनेंगे तो देह-अभिमान की और काम-क्रोध आदि की बीमारी बढ़ेगी। नहीं तो परीक्षा कैसे हो?
कहाँ भी मूँझो तो पूछते रहो।
जब तुम रूसतम बनते हो तब माया खूब पछाड़ती है।
तुम बॉक्सिंग में हो।
बच्चा नहीं बने हैं तो बॉक्सिंग की बात ही नहीं।
वो तो अपने ही संकल्पों-विकल्पों में गोते खाते हैं, न कोई मदद ही मिलती है।
बाबा समझते हैं-मम्मा-बाबा कहते हैं तो बाप का बच्चा बनना पड़े, फिर वह दिल में पक्का हो जाता है कि यह हमारा रूहानी बाप है।
बाकी यह युद्ध का मैदान है, इसमें डरना नहीं है कि पता नहीं तूफान में ठहर सकेंगे वा नहीं?
इसको कमजोर कहा जाता है।
इसमें शेर बनना पड़े।
पुरूषार्थ के लिए अच्छी मत लेनी चाहिए।
बाप से पूछना चाहिए।
बहुत बच्चे अपनी अवस्था लिखकर भेजते हैं।
बाप को ही सर्टिफिकेट देना है।
इनसे भल छिपायें परन्तु शिवबाबा से तो छिप न सके।
बहुत हैं जो छिपाते हैं परन्तु उनसे कुछ भी छिप नहीं सकता।
अच्छे का फल अच्छा, बुरे का फल बुरा होता है।
सतयुग-त्रेता में तो सब अच्छा ही अच्छा होता है।
अच्छा-बुरा, पाप-पुण्य यहाँ होता है।
वहाँ दान-पुण्य भी नहीं किया जाता।
है ही प्रालब्ध।
यहाँ हम टोटल सरेन्डर होते हैं तो बाबा 21 जन्मों के लिए रिटर्न में दे देते हैं।
फालो फादर करना है।
अगर उल्टा काम करेंगे तो नाम भी बाप का बदनाम करेंगे इसलिए शिक्षा भी देनी पड़ती है।
रूप-बसन्त भी सबको बनना है।
हम आत्माओं को बाबा ने पढ़ाया है फिर बरसना भी है।
सच्चे ब्राह्मणों को सच्ची गीता सुनानी है।
और कोई शास्त्रों की बात नहीं।
मुख्य है गीता।
बाकी हैं उनके बाल बच्चे।
उनसे कोई का कल्याण नहीं होता।
मेरे को कोई भी नहीं मिलता।
मैं ही आकर फिर से सहज ज्ञान, सहज योग सिखलाता हूँ।
सर्व शास्त्रमई शिरोमणी गीता है, उस सच्ची गीता द्वारा वर्सा मिलता है।
कृष्ण को भी गीता से वर्सा मिला, गीता का भी बाप जो रचयिता है, वह बैठ वर्सा देते हैं।
बाकी गीता शास्त्र से वर्सा नहीं मिलता।
रचयिता है एक, बाकी हैं उनकी रचना।
पहला नम्बर शास्त्र है गीता तो पीछे जो शास्त्र बनते हैं उनसे भी वर्सा मिल न सके।
वर्सा मिलता ही सम्मुख है।
मुक्ति का वर्सा तो सबको मिलना है, सबको वापिस जाना है।
बाकी स्वर्ग का वर्सा मिलता है पढ़ाई से।
फिर जो जितना पढ़ेगा।
बाप सम्मुख पढ़ाते हैं।
जब तक निश्चय नहीं कि कौन पढ़ाते हैं तो समझेंगे क्या?
प्राप्ति क्या कर सकेंगे?
फिर भी बाप से सुनते रहते हैं तो ज्ञान का विनाश नहीं होता।
जितना सुख मिलेगा फिर औरों को भी सुख देंगे।
प्रजा बनायेंगे तो फिर खुद राजा बन जायेंगे।
हमारी है स्टूडेन्ट लाइफ।
हंसते-खेलते, ज्ञान की डांस करते हम जाकर प्रिन्स बनेंगे।
स्टूडेन्ट जानते हैं हमको प्रिन्स बनना है तो खुशी का पारा चढ़ेगा।
यह तो प्रिन्स-प्रिन्सेज का कॉलेज है।
वहाँ प्रिन्स-प्रिन्सेज का अलग कॉलेज होता है।
विमानों में चढ़कर जाते हैं।
विमान भी वहाँ के फुल प्रूफ होते हैं, कभी टूट न सकें।
कभी एक्सीडेंट होना ही नहीं है, कोई भी किस्म का।
यह सब समझने की बातें हैं।
एक तो बाप से पूरा बुद्धि-योग रखना पड़े, दूसरा बाप को सभी समाचार देना पड़े कि कौन-कौन कांटों से कलियाँ बने हैं?
बाप से पूरा कनेक्शन रखना पड़े, जो फिर टीचर भी डायरेक्शन देते रहें।
कौन वारिस बन फूल बनने का पुरूषार्थ करते हैं?
कांटों से कली तो बनें फिर फूल तब बनें जब बच्चा बनें।
नहीं तो कली के कली रहेंगे अर्थात् प्रजा में आ जायेंगे।
अब जो जैसा पुरूषार्थ करेगा, ऐसा पद पायेगा।
ऐसे नहीं, एक के दौड़ने से हम उनका पूँछ पकड़ लेंगे।
भारतवासी ऐसे समझते हैं।
परन्तु पूँछ पकड़ने की तो बात ही नहीं, जो करेगा सो पायेगा।
जो पुरूषार्थ करेगा, 21 पीढ़ी उनकी प्रालब्ध बनेगी
। बूढ़े तो जरूर होंगे।
परन्तु अकाले मृत्यु नहीं होती है।
कितना भारी पद है।
बाप समझ जाते हैं इनकी तकदीर खुली है, वारिस बना है।
अभी पुरूषार्थी हैं फिर रिपोर्ट भी करते हैं, बाबा यह-यह विघ्न आते हैं, यह होता है।
हर एक को पोतामेल देना होता है।
इतनी मेहनत और कोई सतसंग में नहीं होती है।
बाबा तो छोटे-छोटे बच्चों को भी सन्देशी बना देते हैं।
लड़ाई में मैसेज ले जाने वाले भी चाहिए ना।
लड़ाई का यह मैदान है।
यहाँ तुम सम्मुख सुनते हो तो बहुत अच्छा लगता है, दिल खुश होती है।
बाहर गये और बगुलों का संग मिला तो खुशी उड़ जाती है।
वहाँ माया की धूल है ना इसलिए पक्का बनना पड़े।
बाबा कितना प्यार से पढ़ाते हैं, कितनी फैसल्टीज़ देते हैं।
ऐसे भी बहुत हैं जो अच्छा-अच्छा कह फिर गुम हो जाते हैं, कोई विरला ही खड़ा हो सकता है।
यहाँ तो ज्ञान का नशा चाहिए।
शराब का भी नशा होता है ना।
कोई देवाला मारा हो और शराब पिया, जोर से नशा चढ़ा तो समझेगा हम राजाओं का राजा हैं।
यहाँ तुम बच्चों को रोज़ ज्ञान अमृत का प्याला मिलता है।
धारण करने लिए दिन-प्रतिदिन प्वाइंट्स ऐसी मिलती रहती हैं जो बुद्धि का ताला ही खुलता जाता है इसलिए मुरली तो कैसे भी पढ़नी है।
जैसे गीता का रोज़ पाठ करते हैं ना।
यहाँ भी रोज़ बाप से पढ़ना पड़े।
पूछना चाहिए मेरी उन्नति नहीं होती है, क्या कारण है?
आकर समझना चाहिए।
आयेंगे भी वह जिनको पूरा निश्चय है कि वह हमारा बाप है।
ऐसा नहीं, पुरूषार्थ कर रहा हूँ-निश्चय बुद्धि होने के लिए।
निश्चय तो एक ही होता है, उसमें परसेन्टेज़ नहीं होती।
बाप एक है, उनसे वर्सा मिलता है।
यहाँ हज़ारों पढ़ते हैं फिर भी कहें निश्चय कैसे करुँ?
उनको कमबख्त कहा जाता है।
बख्तावर वह जो बाप को पहचान और मान ले।
कोई राजा कहे हमारी गोद का बच्चा आकर बनो तो उनकी गोद में जाने से ही निश्चय हो जाता है ना।
ऐसे नहीं कहेंगे कि निश्चय कैसे हो?
यह है ही राजयोग।
बाप तो स्वर्ग का रचयिता है तो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं।
निश्चय नहीं होता है तो तुम्हारी तकदीर में नहीं है, और कोई क्या कर सकते हैं?
नहीं मानते तो फिर तदबीर कैसे हो सके?
वह लंगड़ाता ही चलेगा।
बेहद के बाप से भारतवासियों को कल्प-कल्प स्वर्ग का वर्सा मिलता है।
देवता होते ही स्वर्ग में हैं।
कलियुग में तो राजाई है नहीं।
प्रजा का प्रजा पर राज्य है।
पतित दुनिया है तो उसको पावन दुनिया बाप नहीं करेगा तो कौन करेगा?
तकदीर में नहीं है तो फिर समझते नहीं।
यह तो बिल्कुल सहज समझने की बात है।
लक्ष्मी-नारायण ने यह राजाई की प्रालब्ध कब पाई?
जरूर आगे जन्म के कर्म हैं तब ही प्रालब्ध पाई है।
लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे, अभी नर्क है तो ऐसा श्रेष्ठ कर्म अथवा राजयोग सिवाए बाप के और कोई सिखला न सके।
अभी सबका अन्तिम जन्म है।
बाप राजयोग सिखला रहे हैं।
द्वापर में थोड़ेही राजयोग सिखलायेंगे।
द्वापर के बाद सतयुग थोड़ेही आयेगा।
यहाँ तो बहुत अच्छी रीति समझकर जाते हैं।
बाहर जाने से ही खाली हो जाते हैं जैसे डिब्बी में ठिकरी रह जाती हैं, रत्न निकल जाते।
ज्ञान सुनते-सुनते फिर विकार में गिरा तो खलास।
बुद्धि से ज्ञान रत्नों की सफाई हो जाती है।
ऐसे भी बहुत लिखते हैं-बाबा, मेहनत करते-करते फिर आज गिर गया।
गिरे गोया अपने को और कुल को कलंक लगाया, तकदीर को लकीर लगा दी।
घर में भी बच्चे अगर ऐसा कोई अकर्तव्य करते हैं तो कहते हैं ऐसा बच्चा मुआ (मरा) भला।
तो यह बेहद का बाप कहते हैं कुल कलंकित मत बनो।
यदि विकारों का दान देकर फिर वापिस लिया तो पद भ्रष्ट हो जायेगा।
पुरूषार्थ करना है, जीत पानी है।
चोट लगती है तो फिर खड़े हो जाओ।
घड़ी-घड़ी चोट खाते रहेंगे तो हार खाकर बेहोश हो पड़ेंगे।
बाप समझाते तो बहुत हैं परन्तु कोई ठहरे भी।
माया बड़ी तीखी है।
पवित्रता का प्रण कर लिया, अगर फिर गिरते हैं तो चोट बड़े ज़ोर से लग पड़ती है।
बेड़ा पार होता ही है पवित्रता से।
प्योरिटी थी तो भारत का सितारा चमकता था।
अब तो घोर अन्धियारा है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।