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Baba's Murlis - June, 2020
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02-06-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम सारे विश्व पर शान्ति का राज्य स्थापन करने वाले बाप के मददगार हो,

अभी तुम्हारे सामने सुख-शान्ति की दुनिया है''

प्रश्नः-

बाप बच्चों को किसलिए पढ़ाते हैं, पढ़ाई का सार क्या है?

उत्तर:-

बाप अपने बच्चों को स्वर्ग का प्रिन्स, विश्व का मालिक बनाने के लिए पढ़ाते हैं, बाप कहते हैं बच्चे पढ़ाई का सार है दुनिया की सब बातों को छोड़ दो, ऐसे कभी नहीं समझो हमारे पास करोड़ हैं, लाख हैं।

कुछ भी हाथ में नहीं आयेगा इसलिए अच्छी रीति पुरूषार्थ करो, पढ़ाई पर ध्यान दो।

गीत:- आखिर वह दिन आया आज...Listen

ओम् शान्ति।

बच्चों ने गीत सुना - आखिर विश्व पर शान्ति का समय आया।

सब कहते हैं विश्व में कैसे शान्ति हो फिर जो ठीक राय देते हैं उन्हों को इनाम देते हैं।

नेहरू भी राय देते थे, शान्ति तो हुई नहीं।

सिर्फ राय देकर गये।

अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि कोई समय सारे विश्व भर में सुख, शान्ति, सम्पत्ति आदि थी।

वह अभी नहीं है।

अब फिर होने वाली है।

चक्र तो फिरेगा ना।

यह तुम संगमयुगी ब्राह्मणों की बुद्धि में है।

तुम जानते हो भारत फिर सोने का बनना है।

भारत को ही गोल्डन स्पैरो (चिड़िया) कहा जाता है।

भल महिमा तो करते हैं परन्तु सिर्फ कहने मात्र।

तुम तो अभी प्रैक्टिकल में पुरूषार्थ कर रहे हो।

जानते हो बाकी थोड़े रोज हैं तो यह सब नर्क के दु:ख की बातें भूल जाती हैं।

तुम्हारी बुद्धि में अब सुख की दुनिया सामने खड़ी है।

जैसे आगे विलायत से आते थे तो समझते थे अभी बाकी थोड़ा समय है पहुँचने में क्योंकि आगे विलायत से आने में बहुत टाइम लगता था।

अभी तो एरोप्लेन में जल्दी पहुँच जाते हैं।

अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि अब हमारे सुख के दिन आने हैं, जिसके लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं। बाबा ने पुरूषार्थ भी बहुत सहज बताया है।

ड्रामा अनुसार कल्प पहले मुआफिफक, यह सरटेन है।

तुम देवता थे, देवताओं के कितने ढेर के ढेर मन्दिर बन रहे हैं।

बच्चे जानते हैं यह मन्दिर आदि बनाकर क्या करेंगे!

बाकी दिन कितने हैं! तुम बच्चे नॉलेज की अथॉरिटी हो।

कहा भी जाता है परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान आलमाइटी अथॉरिटी है।

तुम ज्ञान की अथॉरिटी हो।

वह है भक्ति की अथॉरिटी। बाप को कहा जाता है आलमाइटी अथॉरिटी।

तुम बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बन रहे हो।

तुमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है।

जानते हो हम पुरूषार्थ कर रहे हैं बाप से वर्सा पाने का।

जो भक्ति की अथॉरिटी हैं वो सबको भक्ति ही सुनाते हैं।

तुम ज्ञान की अथॉरिटी हो तो ज्ञान ही सुनाते हो।

सतयुग में भक्ति होती ही नहीं।

पुजारी एक भी होता नहीं, पूज्य ही पूज्य हैं।

आधाकल्प हैं पूज्य, आधाकल्प हैं पुजारी।

भारतवासियों के लिए ही है पूज्य थे तो स्वर्ग था।

अभी भारत पुजारी नर्क है।

तुम बच्चे अब प्रैक्टिकल लाइफ बना रहे हो।

नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार सबको समझाते रहते हो और वृद्धि को पाते रहते हो।

ड्रामा में पहले से ही नूंध है।

ड्रामा तुमको पुरूषार्थ कराते रहते हैं, तुम करते रहते हो।

जानते हो ड्रामा में हमारा अविनाशी पार्ट है, दुनिया इन बातों को क्या जानें।

हमारा ही ड्रामा में पार्ट है।

जो कहेगा वही समझेगा ना कि कैसे हमारा इस ड्रामा में पार्ट है।

यह सृष्टि चक्र फिरता ही रहता है।

यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी तुम्हारे सिवाए और कोई को मालूम नहीं है।

ऊंच ते ऊंच कौन है, दुनिया में कोई नहीं जानते हैं।

ऋषि-मुनि आदि भी कहते थे-हम नहीं जानते।

नेती-नेती कहते थे ना।

अभी तुम बच्चे तो जानते हो वह रचता बाप है और हमको पढ़ा रहे हैं।

यह भी बाबा ने बार-बार समझाया है कि यहाँ जब बैठते हो तो देही-अभिमानी होकर बैठो।

एक बाप ही राजयोग सिखाते हैं और वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाते हैं।

बाप कहते हैं मैं कोई थॉट रीडर नहीं हूँ, इतनी बड़ी दुनिया है, इनको क्या बैठ रीड करेंगे।

बाप तो खुद कहते हैं मैं ड्रामा की नूंध अनुसार आता हूँ तुम्हें पावन बनाने।

ड्रामा में मेरा जो पार्ट है वही बजाने आता हूँ।

बाकी मैं कोई थॉट रीड नहीं करता हूँ, बतलाता हूँ मेरा क्या पार्ट है और तुम क्या पार्ट बजा रहे हो।

तुम यह नॉलेज सीखकर दूसरों को सिखला रहे हो।

मेरा पार्ट ही है पतितों को पावन बनाना।

यह भी तुम बच्चे जानते हो, तुम तिथि तारीख आदि सब जानते हो।

दुनिया में कोई थोड़ेही जानते हैं।

तुमको बाप सिखला रहे हैं फिर जब यह चक्र पूरा करेंगे तब फिर बाबा आयेंगे।

उस समय जो सीन चली वह फिर कल्प बाद चलेगी।

एक सेकण्ड न मिले दूसरे से।

यह नाटक फिरता रहता है।

तुम बच्चों को बेहद के नाटक का पता है।

फिर भी तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो।

बाबा कहते हैं तुम सिर्फ याद करो, हमारा बाबा, बाबा है, वही टीचर है, गुरू है।

तुम्हारी बुद्धि उस तरफ चली जानी चाहिए।

आत्मा खुश होती है बाप की महिमा सुनकर।

सब कहते हैं हमारा बाबा, बाबा है, टीचर है, वह सच्चा ही सच्चा है।

पढ़ाई भी सच्ची और पूरी है। उन मनुष्यों की पढ़ाई अधूरी है।

तो तुम बच्चों की बुद्धि में कितनी खुशी होनी चाहिए।

बड़ा इम्तहान पास करने वालों की बुद्धि में जास्ती खुशी रहती है।

तुम कितना ऊंच पढ़ते हो तो कितनी कापारी खुशी होनी चाहिए।

भगवान बाबा, बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं।

तुम्हारे रोमांच खड़े हो जाने चाहिए।

वही एपीसोड रिपीट हो रहा है, सिवाए तुम्हारे किसको पता नहीं है।

कल्प की आयु ही बढ़ा दी है।

तुम्हारी बुद्धि में अब 5 हज़ार वर्ष की सारी स्टोरी चक्र खाती रहती है, जिसको ही स्वदर्शन चक्र कहा जाता है।

बच्चे कहते हैं बाबा तूफान बहुत आते हैं, हम भूल जाते हैं।

बाबा कहते हैं तुम किसको भूल जाते हो?

बाप जो तुमको डबल सिरताज विश्व का मालिक बनाते हैं उनको तुम कैसे भूलते हो!

दूसरे किसको नहीं भूलते हो।

स्त्री, बाल-बच्चे, चाचा, मामा, मित्र-सम्बन्धी आदि सब याद हैं।

बाकी इस बात को तुम भूलते क्यों हो।

तुम्हारी युद्ध इस याद में है, जितना हो सके याद करना है।

बच्चों को अपनी उन्नति के लिए सवेरे-सवेरे उठ बाप की याद में सैर करनी है।

तुम छतों पर वा बाहर ठण्डी हवा में चले जाओ।

यहाँ ही आकर बैठना कोई जरूरी नहीं है।

बाहर भी जा सकते हो, सवेरे के टाइम कोई डर आदि की बात नहीं रहती है।

बाहर में जाकर पैदल करो।

आपस में यही बातें करते रहो, देखें कौन बाबा को जास्ती याद करते हैं, फिर बताना चाहिए कितना समय हमने याद किया।

बाकी समय हमारी बुद्धि कहाँ-कहाँ गई।

इसको कहा जाता है-एक-दो में उन्नति को पाना।

नोट करो कितना समय बाप को याद किया।

बाबा की जो प्रैक्टिस है वह बतलाते हैं।

याद में तुम एक घण्टा पैदल करो तो भी टांगे थकेंगी नहीं।

याद से तुम्हारे कितने पाप कट जायेंगे।

चक्र को तो तुम जानते हो, रात-दिन तुमको अब यही बुद्धि में है कि हम अभी घर जाते हैं।

पुरूषार्थ करते हो, कलियुगी मनुष्यों को ज़रा भी पता नहीं है-मुक्ति के लिए कितनी भक्ति करते रहते हैं।

अनेक मतें हैं।

तुम ब्राह्मणों की है ही एक मत, जो ब्राह्मण बनते हैं, उन सबकी है श्रीमत।

तुम बाप की श्रीमत से देवता बनते हो।

देवताओं की कोई श्रीमत नहीं है।

श्रीमत अभी ही तुम ब्राह्मणों को मिलती है।

भगवान है ही निराकार।

जो तुमको राजयोग सिखलाते हैं, जिससे तुम अपना राज्य-भाग्य ले कितना ऊंच विश्व का मालिक बनते हो।

भक्ति मार्ग के वेद-शास्त्र आदि कितने ढेर के ढेर हैं।

परन्तु काम की सिर्फ एक गीता ही है।

भगवान आकर राजयोग सिखलाते हैं।

उनको ही गीता कहा जाता है।

अभी तुम बाप से पढ़ते हो, जिससे स्वर्ग का राज्य पाते हो।

जिसने पढ़ा उसने लिया।

ड्रामा में पार्ट है ना।

ज्ञान सुनाने वाला ज्ञान सागर एक ही बाप है।

वह ड्रामा प्लैन अनुसार कलियुग के अन्त सतयुग के आदि के संगम पर ही आते हैं।

कोई भी बात में मूंझो नहीं।

बाप इसमें आकर पढ़ाते हैं और कोई भी पढ़ा न सके।

यह (दादा) भी आगे कोई से पढ़ा हुआ होता तो और भी बहुत उनसे पढ़े हुए होते।

बाप तो कहते हैं इन गुरूओं आदि सबका उद्धार करने मैं आता हूँ।

अभी तुम बच्चों की एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है।

हम यह बनते हैं, यह है ही नर से नारायण बनने की सत्य कथा।

इनकी फिर भक्ति मार्ग में महिमा चलती है।

भक्ति मार्ग की रसम चलती आती है।

अभी यह रावण राज्य पूरा होना है।

तुम अभी दशहरा आदि में थोड़ेही जायेंगे।

तुम तो समझायेंगे यह क्या करते हैं।

यह तो बेबीज़ का काम है।

बड़े-बड़े आदमी देखने जाते हैं। रावण को कैसे जलाते हैं, यह है कौन, कोई बता न सके। रावणराज्य है ना।

दशहरे आदि में कितनी खुशी मनाते हैं, जिसमें रावण को जलाते आते हैं।

दु:ख भी चला आता है, कुछ भी समझ नहीं है।

अभी तुम समझते हो हम कितने बेसमझ थे।

रावण बेसमझ बना देते हैं।

अभी तुम कहते हो बाबा हम लक्ष्मी-नारायण जरूर बनेंगे।

हम कोई कम पुरूषार्थ थोड़ेही करेंगे।

यह एक ही स्कूल है, पढ़ाई बहुत सहज है।

बुढ़ी बुढ़ी मातायें और कुछ नहीं याद कर सकती तो सिर्फ बाप को याद करें।

मुख से हे राम तो कहते हैं ना।

बाबा यह बहुत सहज बताते हैं तुम आत्मा हो, परमात्मा बाप को याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा।

कहाँ चले जायेंगे?

शान्तिधाम-सुखधाम।

और सब कुछ भूल जाओ।

जो कुछ सुना है, पढ़ा है वह सब भूल कर अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो बाप से वर्सा जरूर मिलेगा।

बाप की याद से ही पाप कट जाते हैं।

कितना सहज है।

कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है सितारा।

तो जरूर इतनी छोटी आत्मा होगी ना।

डॉक्टर लोग बहुत कोशिश करते हैं, आत्मा को देखने की।

परन्तु वह बहुत सूक्ष्म है।

हठ आदि से कोई देख न सके।

बाप भी ऐसे ही बिन्दी है।

कहते हैं-जैसे तुम साधारण हो, हम भी साधारण बन तुमको पढ़ाता हूँ।

किसको क्या पता कि इन्हों को भगवान कैसे पढ़ाते होंगे।

कृष्ण पढ़ाते तो सारे अमेरिका, जापान आदि सब तरफ से आ जाएं।

उनमें इतनी कशिश है।

कृष्ण के साथ प्यार तो सबका है ना।

अभी तो तुम बच्चे जानते हो हम सो बन रहे हैं।

कृष्ण है प्रिन्स, कृष्ण को गोद में लेना चाहते हैं तो पुरूषार्थ करना पड़े, कोई बड़ी बात नहीं है।

बाप अपने बच्चों को स्वर्ग का प्रिन्स, विश्व का मालिक बनाने के लिए पढ़ाते हैं।

बाप कहते हैं - बच्चे, पढ़ाई का सार है - दुनिया की सब बातों को छोड़ दो।

ऐसे कभी नहीं समझो कि हमारे पास करोड़ हैं, लाख हैं।

कुछ भी हाथ में नहीं आयेगा इसलिए अच्छी रीति पुरूषार्थ करो।

बाप के पास आते हैं तो बाप उल्हना देते हैं, 8 मास से आते हो और बाप जिनसे स्वर्ग की बादशाही मिलती है उनसे इतना समय मिले भी नहीं।

कहते बाबा फलाना काम था।

अरे, तुम मर जाते फिर यहाँ कैसे आते!

यह बहाने थोड़ेही चल सकेंगे।

बाप राजयोग सिखा रहे हैं और तुम सीखते नहीं, जिसने बहुत भक्ति की होगी उनको 7 रोज़ तो क्या एक सेकण्ड में भी तीर लग जाए।

सेकण्ड में विश्व का मालिक बन सकते हैं।

यह खुद अनुभवी बैठा है, विनाश देखा, चतुर्भुज रूप देखा, बस समझने लगा ओहो, हम विश्व के मालिक बनते हैं।

साक्षात्कार हुआ, उमंग आया और सब कुछ छोड़ दिया।

यहाँ तुम बच्चों को मालूम पड़ा बाप आये हैं, विश्व की बादशाही देने।

बाप पूछते हैं निश्चय कब हुआ?

तो कहते हैं 8 मास।

बाबा ने समझाया है मूल बात है याद और ज्ञान।

बाकी तो दीदार कोई काम का नहीं।

बाप को पहचान लिया तो फिर पढ़ना शुरू करो तो तुम भी यह बन जायेंगे।

प्वाइंट्स मिलती हैं जो कोई को भी समझा सकते हो।

बहुत मिठास से समझाओ।

शिवबाबा जो पतित-पावन है, कहते हैं मुझे याद करो तो पावन बन पावन दुनिया का मालिक बन जायेंगे।

युक्ति से समझाना है।

तुम चाहते हो ना-गॉड फादर लिबरेट कर स्वीट होम वापिस ले जाए।

अच्छा, अब तुम्हारे ऊपर जो कट (जंक) चढ़ी हुई है उसके लिए बाप कहते हैं मुझे याद करो।

अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सवेरे-सवेरे उठ पैदल करते बाप को याद करो,

आपस में यही मीठी रूहरिहान करो कि देखें कौन कितना समय बाबा को याद करता है,

फिर अपना अनुभव सुनाओ।

2) बाप को पहचान लिया तो फिर कोई बहाना नहीं देना है,

पढ़ाई में लग जाना है, मुरली कभी मिस नहीं करनी है।

वरदान:-

रीयल्टी द्वारा

हर कर्म वा बोल में रायॅल्टी दिखलाने वाले

फर्स्ट डिवीजन के अधिकारी भव

रीयल्टी अर्थात् अपने असली स्वरूप की सदा स्मृति, जिससे स्थूल सूरत में भी रॉयल्टी नज़र आयेगी।

रीयल्टी अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई।

इस स्मृति से हर कर्म वा बोल में रॉयल्टी दिखाई देगी।

जो भी सम्पर्क में आयेगा उन्हें हर कर्म में बाप समान चरित्र अनुभव होंगे, हर बोल में बाप के समान अथॉर्टी और प्राप्ति की अनुभूति होगी।

उनका संग रीयल होने के कारण पारस का काम करेगा।

ऐसी रीयल्टी वाली रॉयल आत्मायें ही फर्स्ट डिवीजन के अधिकारी बनती हैं।

स्लोगन:-

श्रेष्ठ कर्मो का खाता बढ़ाओ तो विकर्मो का खाता समाप्त हो जायेगा।