गीत:- जाग सजनियाँ जाग...
ओम् शान्ति।
भगवानुवाच। यह तो बाप ने समझाया है कि मनुष्य को वा देवताओं को भगवान नहीं कहा जाता क्योंकि इनका साकारी रूप है।
बाकी परमपिता परमात्मा का न आकारी, न साकारी रूप है इसलिए उनको शिव परमात्माए नम: कहा जाता है।
ज्ञान का सागर वह एक ही है।
कोई मनुष्य में ज्ञान हो नहीं सकता।
किसका ज्ञान?
रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान अथवा आत्मा और परमात्मा का यह ज्ञान कोई में नहीं है।
तो बाप आकर जगाते हैं-हे सजनियां, हे भक्तियां जागो।
सभी मेल अथवा फीमेल भक्तियां हैं।
भगवान को याद करते हैं।
सभी ब्राइड्स याद करती हैं एक ब्राइडग्रूम को।
सभी आशिक आत्मायें परमपिता परमात्मा माशूक को याद करती हैं।
सभी सीतायें हैं, राम एक परमपिता परमात्मा है।
राम अक्षर क्यों कहते हैं?
रावणराज्य है ना।
तो उसकी भेंट में रामराज्य कहा जाता है।
राम है बाप, जिसको ईश्वर भी कहते हैं, भगवान भी कहते हैं।
असली नाम उनका है शिव।
तो अब कहते हैं जागो, अब नवयुग आता है।
पुराना खत्म हो रहा है। इस महाभारत लड़ाई के बाद सतयुग स्थापन होता है और इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा।
पुराना कलियुग खत्म हो रहा है इसलिए बाप कहते हैं-बच्चे, कुम्भकरण की नींद छोड़ो।
अब आंख खोलो।
नई दुनिया आती है।
नई दुनिया को स्वर्ग, सतयुग कहा जाता है।
यह है नया रास्ता।
यह घर वा स्वर्ग में जाने का रास्ता कोई भी जानते नहीं हैं।
स्वर्ग अलग है, शान्तिधाम जहाँ आत्मायें रहती हैं, वह अलग है।
अब बाप कहते हैं जागो, तुम रावणराज्य में पतित हो गये हो।
इस समय एक भी पवित्र आत्मा नहीं हो सकती।
पुण्य आत्मा नहीं कहेंगे।
भल मनुष्य दान-पुण्य करते हैं, परन्तु पवित्र आत्मा तो एक भी नहीं है।
यहाँ कलियुग में हैं पतित आत्मायें, सतयुग में हैं पावन आत्मायें, इसलिए कहते हैं-हे शिवबाबा, आकर हमको पावन आत्मा बनाओ।
यह पवित्रता की बात है।
इस समय बाप आकर तुम बच्चों को अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं।
कहते हैं तुम भी औरों को दान देते रहो तो 5 विकारों का ग्रहण छूट जाए।
5 विकारों का दान दो तो दु:ख का ग्रहण छूट जाए।
पवित्र बन सुखधाम में चले जायेंगे।
5 विकारों में नम्बरवन है काम, उसको छोड़ पवित्र बनो।
खुद भी कहते हैं-हे पतित-पावन, हमको पावन बनाओ।
पतित विकारी को कहा जाता है।
यह सुख और दु:ख का खेल भारत के लिए ही है।
बाप भारत में ही आकर साधारण तन में प्रवेश करते हैं फिर इनकी भी बायोग्राफी बैठ सुनाते हैं।
यह हैं सब ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ, प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद।
तुम सबको पवित्र बनने की युक्ति बताते हो।
ब्रह्माकुमार और कुमारियां तुम विकार में जा नहीं सकते हो।
तुम ब्राह्मणों का यह एक ही जन्म है।
देवता वर्ण में तुम 20 जन्म लेते हो, वैश्य, शूद्र वर्ण में 63 जन्म।
ब्राह्मण वर्ण का यह एक अन्तिम जन्म है, जिसमें ही पवित्र बनना है।
बाप कहते हैं पवित्र बनो।
बाप की याद अथवा योगबल से विकर्म भस्म होंगे।
यह एक जन्म पवित्र बनना है।
सतयुग में तो कोई पतित होता नहीं।
अभी यह अन्तिम जन्म पावन बनेंगे तो 21 जन्म पावन रहेंगे।
पावन थे, अब पतित बने हो।
पतित हैं तब तो बुलाते हैं।
पतित किसने बनाया है?
रावण की आसुरी मत ने।
सिवाए मेरे तुम बच्चों को रावण राज्य से, दु:ख से कोई भी लिबरेट कर नहीं सकते।
सभी काम चिता पर बैठ भस्म हो पड़े हैं।
मुझे आकर ज्ञान चिता पर बिठाना पड़ता है।
ज्ञान जल डालना पड़ता है। सबकी सद्गति करनी पड़े।
जो अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ते हैं उनकी ही सद्गति होती है।
बाकी सब चले जाते हैं शान्तिधाम में।
सतयुग में सिर्फ देवी-देवतायें हैं, उनको ही सद्गति मिली हुई है।
बाकी सबको गति अथवा मुक्ति मिलती है।
5 हज़ार वर्ष पहले इन देवी-देवताओं का राज्य था।
लाखों वर्ष की बात है नहीं।
अब बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों, मुझ बाप को याद करो।
मन्मनाभव अक्षर तो प्रसिद्ध है।
भगवानुवाच-कोई भी देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता।
आत्मायें तो एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं।
कभी स्त्री, कभी पुरूष बनती हैं।
भगवान कभी भी जन्म-मरण के खेल में नहीं आता।
यह ड्रामा अनुसार नूँध है।
एक जन्म न मिले दूसरे से।
फिर तुम्हारा यह जन्म रिपीट होगा तो यही एक्ट, यही फीचर्स फिर लेंगे।
यह ड्रामा अनादि बना-बनाया है।
यह बदल नहीं सकता।
श्रीकृष्ण को जो शरीर सतयुग में था वह फिर वहाँ मिलेगा।
वह आत्मा तो अभी यहाँ है।
तुम अभी जानते हो हम सो बनेंगे।
यह लक्ष्मी-नारायण के फीचर्स एक्यूरेट नहीं हैं।
बनेंगे फिर भी वही। यह बातें नया कोई समझ न सके।
अच्छी रीति जब किसको समझाओ तब 84 का चक्र जानेंगे और समझेंगे बरोबर हरेक जन्म में नाम, रूप, फीचर्स आदि अलग-अलग होते हैं।
अभी इनके अन्तिम 84 वें जन्म के फीचर्स यह हैं इसलिए नारायण के फीचर्स करीब-करीब ऐसे दिखाये हैं।
नहीं तो मनुष्य समझ न सकें।
तुम बच्चे जानते हो - मम्मा-बाबा ही यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
यहाँ तो 5 तत्व पवित्र हैं नहीं।
यह शरीर सब पतित हैं।
सतयुग में शरीर भी पवित्र होते हैं।
कृष्ण को मोस्ट ब्युटीफुल कहते हैं।
नैचुरल ब्युटी होती है।
यहाँ विलायत में भल गोरे मनुष्य हैं परन्तु उनको देवता थोड़ेही कहेंगे।
दैवीगुण तो नहीं हैं ना।
तो बाप कितना अच्छी रीति बैठ समझाते हैं।
यह है ऊंच ते ऊंच पढ़ाई, जिससे तुम्हारी कितनी ऊंच कमाई होती है।
अनगिनत हीरे जवाहर, धन होता है।
वहाँ तो हीरे जवाहरों के महल थे।
अभी वह सब गुम हो गया है।
तो तुम कितने धनवान बनते हो।
अपरमअपार कमाई है 21 जन्मों के लिए, इसमें बहुत मेहनत चाहिए।
देही-अभिमानी बनना है, हम आत्मा हैं, यह पुराना शरीर छोड़ अब वापस अपने घर जाना है।
बाप अभी लेने लिए आये हैं।
हम आत्मा ने 84 जन्म अब पूरे किये, अब फिर पावन बनना है, बाप को याद करना है।
नहीं तो कयामत का समय है।
सजायें खाकर वापिस चले जायेंगे।
हिसाब-किताब तो सबको चुक्तू करना ही है।
भक्ति मार्ग में काशी कलवट खाते थे तो भी कोई मुक्ति को नहीं पाते।
वह है भक्ति मार्ग, यह है ज्ञान मार्ग।
इसमें जीवघात करने की दरकार नहीं रहती।
वह है जीव-घात।
फिर भी भावना रहती है कि मुक्ति को पावें इसलिए पापों का हिसाब-किताब चुक्तू हो फिर चालू होता है।
अभी तो काशी कलवट का कोई मुश्किल साहस रखते हैं।
बाकी मुक्ति वा जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती।
बाप बिगर जीवनमुक्ति कोई दे ही नहीं सकते।
आत्मायें आती रहती हैं फिर वापस कैसे जायेंगे?
बाप ही आकर सर्व की सद्गति कर वापिस ले जायेंगे।
सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य रहते हैं।
आत्मा तो कभी विनाश नहीं होती है।
आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है।
सतयुग में आयु बड़ी होती है।
दु:ख की बात नहीं।
एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेते हैं।
जैसे सर्प का मिसाल है, उसको मरना नहीं कहा जाता है।
दु:ख की बात नहीं। समझते हैं अब टाइम पूरा हुआ है, इस शरीर को छोड़ दूसरा लेंगे।
तुम बच्चों को इस शरीर से डिटैच होने का अभ्यास यहाँ ही डालना है।
हम आत्मा हैं, अब हमको घर जाना है फिर नई दुनिया में आयेंगे, नई खाल लेंगे, यह अभ्यास डालो।
तुम जानते हो आत्मा 84 शरीर लेती है।
मनुष्यों ने फिर 84 लाख कह दिया है।
बाप के लिए तो फिर अनगिनत ठिक्कर भित्तर में कह देते हैं।
उसको कहा जाता है धर्म की ग्लानि।
मनुष्य स्वच्छ बुद्धि से बिल्कुल तुच्छ बन जाते हैं।
अब बाप तुमको स्वच्छ बुद्धि बनाते हैं।
स्वच्छ बनते हो याद से। बाप कहते हैं अब नवयुग आता है, उसकी निशानी यह महाभारत लड़ाई है।
यह वही मूसलों वाली लड़ाई है, जिसमें अनेक धर्म विनाश, एक धर्म की स्थापना हुई थी, तो जरूर भगवान होगा ना।
कृष्ण यहाँ कैसे आ सके?
ज्ञान का सागर निराकार या कृष्ण?
कृष्ण को यह ज्ञान ही नहीं होगा।
यह ज्ञान ही गुम हो जाता है।
तुम्हारे भी फिर भक्ति मार्ग में चित्र बनेंगे।
तुम पूज्य ही पुजारी बनते हो, कला कम हो जाती है।
आयु भी कम होती जाती है क्योंकि भोगी बन जाते हो।
वहाँ हैं योगी।
ऐसे नहीं कि किसकी याद में योग लगाते हो।
वहाँ है ही पवित्र।
कृष्ण को भी योगेश्वर कहते हैं।
इस समय कृष्ण की आत्मा बाप के साथ योग लगा रही है।
कृष्ण की आत्मा इस समय योगेश्वर है, सतयुग में योगेश्वर नहीं कहेंगे।
वहाँ तो प्रिन्स बनती है।
तो तुम्हारी पिछाड़ी में ऐसी अवस्था रहनी चाहिए जो सिवाए बाप के और कोई शरीर की याद न रहे।
शरीर से और पुरानी दुनिया से ममत्व मिट जाए।
सन्यासी रहते तो पुरानी दुनिया में हैं परन्तु घरबार से ममत्व मिटा देते हैं।
ब्रह्म को ईश्वर समझ उनसे योग लगाते हैं।
अपने को ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी कहते हैं।
समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
बाप कहते हैं यह सब रांग है।
राइट तो मैं हूँ, मुझे ही ट्रूथ कहा जाता है।
तो बाप समझाते हैं याद की यात्रा बड़ी पक्की चाहिए।
ज्ञान तो बड़ा सहज है।
देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है।
बाप कहते हैं किसकी भी देह याद न आये, यह है भूतों की याद, भूत पूजा।
मैं तो अशरीरी हूँ, तुमको याद करना है मुझे।
इन आंखों से देखते हुए बुद्धि से बाप को याद करो।
बाप के डायरेक्शन पर चलो तो धर्मराज की सजाओं से छूट जायेंगे।
पावन बनेंगे तो सजायें खत्म हो जायेंगी, बड़ी भारी मंज़िल है।
प्रजा बनना तो बहुत सहज है, उसमें भी साहूकार प्रजा, गरीब प्रजा कौन-कौन बन सकते हैं, सब समझाते हैं।
पिछाड़ी में तुम्हारे बुद्धि का योग रहना चाहिए बाप और घर से।
जैसे एक्टर्स का नाटक में पार्ट पूरा होता है तो बुद्धि घर में चली जाती
है।
यह है बेहद की बात।
वह होती है हद की आमदनी, यह है बेहद की आमदनी।
अच्छे एक्टर्स की आमदनी भी बहुत होती है ना।
तो बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धियोग वहाँ लगाना है।
वह आशिक-माशूक होते हैं एक-दो के।
यहाँ तो सब आशिक हैं एक माशूक के।
उनको ही सब याद करते हैं।
वन्डरफुल मुसाफिर है ना।
इस समय आये हैं सब दु:खों से छुड़ाकर सद्गति में ले जाने लिए।
उनको कहा जाता है सच्चा-सच्चा माशूक।
वह एक-दो के शरीर पर आशिक होते हैं, विकार की बात नहीं।
उसको कहेंगे देह-अभिमान का योग।
वह भूतों की याद हो गई।
मनुष्य को याद करना माना 5 भूतों को, प्रकृति को याद करना।
बाप कहते हैं प्रकृति को भूल मुझे याद करो।
मेहनत है ना और फिर दैवीगुण भी चाहिए।
कोई से बदला लेना, यह भी आसुरी गुण है।
सतयुग में होता ही है एक धर्म, बदले की बात नहीं।
वह है ही अद्वेत देवता धर्म जो शिवबाबा बिगर कोई स्थापन कर न सके।
सूक्ष्मवतनवासी देवताओं को कहेंगे फ़रिश्ते।
इस समय तुम हो ब्राह्मण फिर फ़रिश्ता बनेंगे।
फिर वापिस जायेंगे घर फिर नई दुनिया में आकर दैवी गुण वाले मनुष्य अर्थात् देवता बनेंगे।
अभी शूद्र से ब्राह्मण बनते हो।
प्रजापिता ब्रह्मा का बच्चा न बनें तो वर्सा कैसे लेंगे।
यह प्रजापिता ब्रह्मा और मम्मा, वह फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
अब देखो तुमको जैनी लोग कहते हैं हमारा जैन धर्म सबसे पुराना है।
अब वास्तव में महावीर तो आदि देव ब्रह्मा को ही कहते हैं।
है ब्रह्मा ही, परन्तु कोई जैन मुनि आया तो उसने महावीर नाम रख दिया।
अभी तुम सब महावीर हो ना।
माया पर जीत पा रहे हो।
तुम सब बहादुर बनते हो।
सच्चे-सच्चे महावीर-महावीरनियाँ तुम हो।
तुम्हारा नाम है शिव शक्ति, शेर पर सवारी है और महारथियों की हाथी पर।
फिर भी बाप कहते हैं बड़ी भारी मंजिल है।
एक बाप को याद करना है तो विकर्म विनाश हों, और कोई रास्ता नहीं हैं।
योगबल से तुम विश्व पर राज्य करते हो।
आत्मा कहती है, अब मुझे घर जाना है, यह पुरानी दुनिया है, यह है बेहद का सन्यास।
गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है और चक्र को समझने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।