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प्रश्नः-
इस ज्ञान को सुनने वा धारण करने का अधिकारी कौन हो सकता है?
उत्तर:-
जिसने आलराउण्ड पार्ट बजाया है, जिसने सबसे जास्ती भक्ति की है, वही ज्ञान को धारण करने में बहुत तीखे जायेंगे। ऊंच पद भी वही पायेंगे। तुम बच्चों से कोई कोई पूछते हैं - तुम शास्त्रों को नहीं मानते हो? तो बोलो जितना हमने शास्त्र पढ़े हैं, भक्ति की है, उतना दुनिया में कोई नहीं करता। हमें अब भक्ति का फल मिला है, इसलिए अब भक्ति की दरकार नहीं।
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- ओम् शान्ति।
- बेहद का बाप बेहद के बच्चों को बैठ समझाते हैं, सभी आत्माओं का बाप सभी आत्माओं को समझाते हैं क्योंकि वह सर्व का सद्गति दाता है।
- जो भी आत्मायें हैं, जीव आत्मायें ही कहेंगे।
- शरीर नहीं तो आत्मा देख नहीं सकती।
- भल ड्रामा के प्लैन अनुसार स्वर्ग की स्थापना बाप कर रहे हैं परन्तु बाप कहते हैं मैं स्वर्ग को देखता नहीं हूँ।
- जिन्हों के लिए है वही देख सकते हैं।
- तुमको पढ़ाकर फिर मैं तो कोई शरीर धारण करता ही नहीं हूँ।
- तो बिगर शरीर देख कैसे सकूँगा।
- ऐसे नहीं, जहाँ-तहाँ मौज़ूद हूँ।
- सब कुछ देखते हैं।
- नहीं, बाप सिर्फ देखते हैं तुम बच्चों को, जिनको गुल-गुल (फूल) बनाकर याद की यात्रा सिखलाते हैं।
- ‘योग' अक्षर भक्ति का है।
- ज्ञान देने वाला एक ज्ञान का सागर है, उनको ही सतगुरू कहा जाता है।
- बाकी सब हैं गुरू।
- सच बोलने वाला, सचखण्ड स्थापन करने वाला वही है।
- भारत सचखण्ड था, वहाँ सब देवी-देवता निवास करते थे।
- तुम अभी मनुष्य से देवता बन रहे हो।
- तो बच्चों को समझाते हैं - सच्चे बाप के साथ अन्दर-बाहर सच्चा बनना है।
- पहले तो कदम-कदम पर झूठ ही था,
- वह सब छोड़ना पड़ेगा, अगर स्वर्ग में ऊंच पद पाना चाहते हो तो।
- भल स्वर्ग में तो बहुत जायेंगे परन्तु बाप को जानकर भी विकर्मों को विनाश नहीं किया तो सजायें खाकर हिसाब-किताब चुक्तू करना पड़ेगा,
- फिर पद भी बहुत कम मिलेगा।
- राजधानी स्थापन हो रही है पुरूषोत्तम संगमयुग पर।
- राजधानी न तो सतयुग में स्थापन हो सकती, न कलियुग में क्योंकि बाप सतयुग या कलियुग में नहीं आते हैं।
- इस युग को कहा जाता है पुरूषोत्तम कल्याणकारी युग।
- इसमें ही बाप आकर सबका कल्याण करते हैं।
- कलियुग के बाद सतयुग आना है इसलिए संगमयुग भी जरूर चाहिए।
- बाप ने बताया है यह पतित पुरानी दुनिया है।
- गायन भी है दूर देश का रहने वाला.... तो पराये देश में अपने बच्चे कहाँ से मिलेंगे।
- पराये देश में फिर पराये बच्चे ही मिलते हैं।
- उन्हों को अच्छी रीति समझाते हैं - मैं किसमें प्रवेश करता हूँ।
- अपना भी परिचय देते हैं और जिसमें प्रवेश करता हूँ उनको भी समझाता हूँ कि यह तुम्हारा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
- कितना क्लीयर है।
- अभी तुम यहाँ पुरूषार्थी हो, सम्पूर्ण पवित्र नहीं।
- सम्पूर्ण पवित्र को फरिश्ता कहा जाता है।
- जो पवित्र नहीं उनको पतित ही कहेंगे।
- फरिश्ता बनने के बाद फिर देवता बनते हो।
- सूक्ष्मवतन में तुम सम्पूर्ण फरिश्ता देखते हो, उन्हों को फरिश्ता कहा जाता है।
- तो बाप समझाते हैं - बच्चे, एक अल्फ़ को ही याद करना है।
- अल्फ़ माना बाबा, उनको अल्लाह भी कहते हैं।
- बच्चे समझ गये हैं बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता है।
- स्वर्ग कैसे रचते हैं?
- याद की यात्रा और ज्ञान से।
- भक्ति में ज्ञान होता नहीं।
- ज्ञान सिर्फ एक ही बाप देते हैं ब्राह्मणों को।
- ब्राह्मण चोटी हैं ना।
- अभी तुम ब्राह्मण हो फिर बाजोली खेलेंगे।
- ब्राह्मण देवता क्षत्रिय........इसको कहा जाता है विराट रूप।
- विराट रूप कोई ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का नहीं कहेंगे।
- उसमें चोटी ब्राह्मण तो हैं नहीं।
- बाप ब्रह्मा तन में आते हैं - यह तो कोई जानता नहीं।
- ब्राह्मण कुल ही सर्वोत्तम कुल है, जबकि बाप आकर पढ़ाते हैं।
- बाप शूद्रों को तो नहीं पढ़ायेंगे ना।
- ब्राह्मणों को ही पढ़ाते हैं।
- पढ़ाने में भी टाइम लगता है, राजधानी स्थापन होनी है।
- तुम ऊंच ते ऊंच पुरूषोत्तम बनो।
- नई दुनिया कौन रचेगा?
- बाप ही रचेगा।
- यह भूलो मत।
- माया तुमको भुलाती है, उनका तो धन्धा ही यह है।
- ज्ञान में इतना इन्टरफियर नहीं करती है, याद में ही करती है।
- आत्मा में बहुत किचड़ा भरा हुआ है, वह बाप की याद बिगर साफ हो न सके।
- योग अक्षर से बच्चे बहुत मूँझते हैं।
- कहते हैं बाबा हमारा योग नहीं लगता।
- वास्तव में योग अक्षर उन हठयोगियों का है।
- संन्यासी कहते हैं ब्रह्म से योग लगाना है।
- अब ब्रह्म तत्व तो बहुत बड़ा लम्बा-चौड़ा है, जैसे आकाश में स्टॉर्स देखने में आते हैं, वैसे वहाँ भी छोटे-छोटे स्टॉर मिसल आत्मायें हैं।
- वह है आसमान से पार, जहाँ सूर्य चांद की रोशनी नहीं।
- तो देखो कितने छोटे-छोटे रॉकेट तुम हो।
- तब बाबा कहते हैं - पहले-पहले आत्मा का ज्ञान देना चाहिए।
- वह तो एक भगवान् ही दे सकते हैं।
- ऐसे नहीं, सिर्फ भगवान् को नहीं जानते।
- परन्तु आत्मा को भी नहीं जानते।
- इतनी छोटी सी आत्मा में 84 के चक्र का अविनाशी पार्ट भरा हुआ है, इनको ही कुदरत कहा जाता है, और कुछ नहीं कह सकते।
- आत्मा 84 का चक्र लगाती ही रहती है।
- हर 5 हजार वर्ष बाद यह चक्र फिरता ही रहता है।
- यह ड्रामा में नूँध है।
- दुनिया अविनाशी है, कभी विनाश को नहीं पाती।
- वो लोग दिखाते हैं बड़ी प्रलय होती है फिर श्रीकृष्ण अंगूठा चूसता हुआ पीपल के पत्ते पर आता है।
- परन्तु ऐसे कोई होता थोड़ेही है।
- यह तो बेकायदे है।
- महाप्रलय कभी होती नहीं।
- एक धर्म की स्थापना और अनेक धर्मों का विनाश चलता ही रहता है।
- इस समय मुख्य 3 धर्म हैं।
- यह तो आस्पीशियस संगमयुग है।
- पुरानी दुनिया और नई दुनिया में रात-दिन का फ़र्क है।
- कल नई दुनिया थी, आज पुरानी है।
- कल की दुनिया में क्या था - यह तुम समझ सकते हो।
- जो जिस धर्म का है, उस धर्म की ही स्थापना करते हैं।
- वो तो सिर्फ एक आते हैं, बहुत नहीं होते।
- फिर धीरे-धीरे वृद्धि होती है।
- बाप कहते हैं तुम बच्चों को कोई तकल़ीफ नहीं देता हूँ।
- बच्चों को तकल़ीफ कैसे देंगे!
- मोस्ट बील्वेड बाप है ना।
- कहते हैं मैं तुम्हारा सद्गति दाता, दु:ख हर्ता सुख कर्ता हूँ।
- याद भी मुझ एक को करते हैं।
- भक्ति मार्ग में क्या कर दिया है, कितनी गालियां मुझे देते हैं!
- कहते हैं गॉड इज वन।
- सृष्टि का चक्र भी एक ही है, ऐसे नहीं, आकाश में कोई दुनिया है।
- आकाश में स्टॉर्स हैं।
- मनुष्य तो समझते हैं एक-एक स्टॉर में सृष्टि है।
- नीचे भी दुनिया है।
- यह सब हैं भक्ति मार्ग की बातें।
- ऊंच ते ऊंच भगवान् एक है।
- कहते भी हैं सारे सृष्टि की आत्मायें तुम्हारे में पिरोई हुई हैं, यह जैसे माला है।
- इनको बेहद की रूद्र माला भी कह सकते हैं।
- सूत्र में बांधी हुई हैं।
- गाते हैं परन्तु समझते कुछ नहीं।
- बाप आकर समझाते हैं - बच्चे, मैं तुमको ज़रा भी तकल़ीफ नहीं देता हूँ।
- यह भी बताया है जिन्होंने पहले-पहले भक्ति की है, वही ज्ञान में तीखे जायेंगे।
- भक्ति जास्ती की है तो फल भी उनको जास्ती मिलना चाहिए।
- कहते हैं भक्ति का फल भगवान् देते हैं, वह है ज्ञान का सागर।
- तो जरूर ज्ञान से ही फल देंगे।
- भक्ति के फल का किसको भी पता नहीं है।
- भक्ति का फल है ज्ञान, जिससे स्वर्ग का वर्सा सुख मिलता है।
- तो फल देते हैं अर्थात् नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाते हैं एक बाप।
- रावण का भी किसको पता नहीं है।
- कहते भी हैं यह पुरानी दुनिया है।
- कब से पुरानी है - वह हिसाब नहीं लगा सकते हैं।
- बाप है मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप।
- सत्य है।
- वह कभी विनाश नहीं होता, इनको उल्टा झाड़ कहते हैं।
- बाप ऊपर में है, आत्मायें बाप को ऊपर देख बुलाती हैं, शरीर तो नहीं बुला सकता।
- आत्मा तो एक शरीर से निकल दूसरे में चली जाती है।
- आत्मा न घटती, न बढ़ती, न कभी मृत्यु को पाती है।
- यह खेल बना हुआ है।
- सारे खेल के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बाप ने बताया है।
- आस्तिक भी बनाया है।
- यह भी बताया कि इन लक्ष्मी-नारायण में यह ज्ञान नहीं है।
- वहाँ तो आस्तिक-नास्तिक का पता ही नहीं रहता है।
- इस समय बाप ही अर्थ समझाते हैं।
- नास्तिक उनको कहा जाता है जो न बाप को, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को, न ड्युरेशन को जानते हैं।
- इस समय तुम आस्तिक बने हो।
- वहाँ यह बातें ही नहीं।
- खेल है ना।
- जो बात एक सेकण्ड में होती वह फिर दूसरे सेकण्ड में नहीं होती।
- ड्रामा में टिक-टिक होती रहती है।
- जो पास्ट हुआ चक्र फिरता जायेगा।
- जैसे बाइसकोप होता है, दो घण्टे या तीन घण्टे बाद फिर वही बाइसकोप हूबहू रिपीट होगा।
- मकान आदि तोड़ डालते हैं फिर देखेंगे बना हुआ है।
- वही हूबहू रिपीट होता है।
- इसमें मूँझने की बात ही नहीं।
- मुख्य बात है आत्माओं का बाप परमात्मा है।
- आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... अलग होती हैं, यहाँ आती हैं पार्ट बजाने।
- तुम पूरे 5 हज़ार वर्ष अलग रहे हो।
- तुम मीठे बच्चों को आलराउण्ड पार्ट मिला है इसलिए तुमको ही समझाते हैं।
- ज्ञान के भी तुम अधिकारी हो।
- सबसे जास्ती भक्ति जिसने की है, ज्ञान में भी वही तीखे जायेंगे, पद भी ऊंच पायेंगे।
- पहले-पहले एक शिवबाबा की भक्ति होती है फिर देवताओं की।
- फिर 5 तत्वों की भी भक्ति करते, व्यभिचारी बन जाते हैं।
- अभी बेहद का बाप तुमको बेहद में ले जाते हैं, वह फिर बेहद के भक्ति के अज्ञान में ले जाते हैं।
- अब बाप तुम बच्चों को समझाते हैं - अपने को आत्मा समझ मुझ एक बाप को याद करो।
- फिर भी यहाँ से बाहर जाने से माया भुला देती है।
- जैसे गर्भ में पश्चाताप करते हैं - हम ऐसे नहीं करेंगे, बाहर आने से भूल जाते हैं।
- यहाँ भी ऐसे है, बाहर जाने से ही भूल जाते हैं।
- यह भूल और अभुल का खेल है।
- अभी तुम बाप के एडाप्टेड बच्चे बने हो।
- शिवबाबा है ना।
- वह है सब आत्माओं का बेहद का बाप।
- बाप कितना दूर से आते हैं।
- उनका घर है परमधाम।
- परमधाम से आयेंगे तो जरूर बच्चों के लिए सौगात ले आयेंगे।
- हथेली पर बहिश्त सौगात में ले आते हैं।
- बाप कहते हैं सेकण्ड में स्वर्ग की बादशाही लो।
- सिर्फ बाप को जानो।
- सभी आत्माओं का बाप तो है ना।
- कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ।
- मैं कैसे आता हूँ - वह भी तुमको समझाता हूँ।
- मुझे रथ तो जरूर चाहिए।
- कौन-सा रथ?
- कोई महात्मा का तो नहीं ले सकते।
- मनुष्य कहते हैं तुम ब्रह्मा को भगवान, ब्रह्मा को देवता कहते हो।
- अरे, हम कहाँ कहते हैं!
- झाड़ के ऊपर एकदम अन्त में खड़े हैं, जबकि झाड़ सारा तमोप्रधान है।
- ब्रह्मा भी वहाँ खड़ा है तो बहुत जन्मों के अन्त का जन्म हुआ ना।
- बाबा खुद कहते हैं मेरे बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में जब वानप्रस्थ अवस्था होती है तब बाप आये हैं।
- जो आकर धन्धा आदि छुड़ाया।
- साठ वर्ष के बाद मनुष्य भक्ति करते हैं भगवान् से मिलने के लिए।
- बाप कहते हैं तुम सब मनुष्य मत पर थे, अभी बाबा तुम्हें श्रीमत दे रहे हैं।
- शास्त्र लिखने वाले भी मनुष्य हैं।
- देवतायें तो लिखते नहीं, न पढ़ते हैं।
- सतयुग में शास्त्र होते नहीं।
- भक्ति ही नहीं।
- शास्त्रों में सब कर्मकाण्ड लिखा हुआ है।
- यहाँ वह बात है नहीं।
- तुम देखते हो बाबा ज्ञान देते हैं।
- भक्ति मार्ग में तो हमने शास्त्र बहुत पढ़े हैं।
- कोई पूछे तुम वेदों-शास्त्रों आदि को नहीं मानते हो?
- बोलो, जो भी मनुष्य मात्र हैं उनसे ज्यादा हम मानते हैं।
- शुरू से लेकर अव्यभिचारी भक्ति हमने शुरू की है।
- अभी हमको ज्ञान मिला है।
- ज्ञान से सद्गति होती है फिर हम भक्ति को क्या करेंगे।
- बाप कहते हैं - बच्चे, हियर नो ईविल, सी नो ईविल....
- तो बाप कितना सिम्पल रीति समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चे, अपने को आत्मा निश्चय करो।
- मैं आत्मा हूँ, वह कह देते अल्लाह हूँ।
- तुमको शिक्षा मिलती है मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ।
- यही माया घड़ी-घड़ी भुलाती है।
- देह-अभिमानी होने से ही उल्टा काम होता है।
- अब बाप कहते हैं - बच्चे, बाप को भूलो मत।
- टाइम वेस्ट मत करो। अच्छा!
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धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रचयिता और रचना के राज़ को यथार्थ समझ आस्तिक बनना है। ड्रामा के ज्ञान में मूँझना नहीं है। अपनी बुद्धि को हद से निकाल बेहद में ले जाना है।
2) सूक्ष्मवतनवासी फरिश्ता बनने के लिए सम्पूर्ण पवित्र बनना है। आत्मा में जो किचड़ा भरा है, उसे याद के बल से निकाल साफ करना है।

( All Blessings of 2021-22)
ईश्वरीय रस का अनुभव कर एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव
जो बच्चे ईश्वरीय रस का अनुभव कर लेते हैं उनको दुनिया के सब रस फीके लगते हैं। जब है ही एक रस मीठा तो एक ही तरफ अटेन्शन जायेगा ना। सहज ही एक तरफ मन लग जाता है, मेहनत नहीं लगती है। बाप का स्नेह, बाप की मदद, बाप का साथ, बाप द्वारा सर्व प्राप्तियां सहज एकरस स्थिति बना देती हैं। ऐसी एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें ही श्रेष्ठ हैं।

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