- ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चे यह तो जानते हैं कि हम अपनी दैवी राजधानी स्थापन कर रहे हैं, इसमें राजायें भी हैं तो प्रजा भी हैं।
- पुरूषार्थ तो सब करते हैं, जो जास्ती पुरूषार्थ करते हैं, वह जास्ती प्राइज़ लेते हैं।
- यह तो एक कॉमन कायदा है।
- यह कोई नई बात नहीं है।
- इसको दैवी बगीचा कहो वा राजधानी कहो।
- अभी यह है कलियुगी बगीचा अथवा कांटों का जंगल।
- उसमें भी कोई बहुत फल देने वाले झाड़ होते हैं, कोई कम फल देने वाले होते हैं।
- कोई कम रस वाले आम होते, कोई कैसे होते हैं।
- फूलों के, फलों के ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के झाड़ होते हैं।
- वैसे ही तुम बच्चों में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हैं।
- कोई बहुत अच्छा फल देते हैं, कोई हल्का फल देते हैं।
- भिन्न-भिन्न झाड़ होते हैं।
- यह फल देने वाला बगीचा है।
- इस दैवी झाड़ की स्थापना हो रही है अथवा फूलों के बगीचे की स्थापना हो रही है कल्प पहले मिसल।
- आहिस्ते-आहिस्ते मीठे खुशबूदार भी बन रहे हैं - नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
- सब वैराइटी हैं ना।
- बाप के पास भी आते हैं, बाप का मुखड़ा देखने।
- यह तो जरूर समझते हो बाबा हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं।
- यह बच्चों को निश्चय है जरूर।
- बेहद का बाबा हमको बेहद का मालिक बना रहे हैं।
- मालिक बनने में खुशी भी बहुत होती है।
- हद के मालिकपने में दु:ख है, यह खेल ही सुख और दु:ख का बना हुआ है और यह भी भारतवासियों के लिए ही है।
- बच्चों को बाबा कहे पहले अपना घर तो सम्भालो।
- घर पर धनी की नज़र रहती है ना।
- तो बाप भी एक-एक बच्चे को बैठ देखते हैं - इनमें कौन-कौन से गुण हैं और कौन से अवगुण हैं?
- बच्चे खुद भी जानते हैं।
- बाबा अगर कहे कि बच्चे तुम सब अपनी-अपनी खामियां आपेही लिखकर आओ तो झट लिख सकते हैं।
- हम अपने में क्या-क्या खामी समझते हैं?
- कोई न कोई खामी है जरूर।
- सम्पूर्ण तो कोई बने नहीं हैं।
- हाँ, बनना जरूर है।
- कल्प-कल्प बने हैं, इसमें कोई संशय नहीं।
- परन्तु इस समय खामी है।
- वह बतलाने से बाबा उस पर ही समझायेंगे।
- इस समय तो बहुत खामियां हैं।
- मुख्य सब खामियां होती ही हैं देह-अभिमान के कारण।
- वह फिर बहुत हैरान करती हैं।
- अवस्था को आगे बढ़ने नहीं देती, इसलिए अब पूरी रीति पुरूषार्थ करना है।
- यह शरीर भी अभी छोड़कर जाना है।
- दैवीगुण भी यहाँ ही धारण करके जाना है।
- कर्मातीत अवस्था में जाने का अर्थ भी तो बाबा समझा रहे हैं।
- कर्मातीत होकर जाना है तो कोई भी फ्लो न रहे क्योंकि तुम हीरे बनते हो ना।
- हमारे में क्या-क्या फ्लो है!
- यह तो हर एक जानते हैं क्योंकि तुम चैतन्य हो।
- जड़ हीरे में फ्लो होगा तो वह निकाल थोड़ेही सकेंगे।
- तुम तो चैतन्य हो।
- तुम इस फ्लो को निकाल सकते हो।
- तुम कौड़ी से हीरे जैसा बनते हो।
- तुम अपने को अच्छी रीति जानते हो।
- सर्जन पूछते हैं कौन-सा फ्लो है, जो तुमको अटकाता है, आगे बढ़ने नहीं देता है?
- फ्लोलेस तो पिछाड़ी में बनना है।
- वह सब अभी निकालना है।
- अगर फ्लो नहीं निकलता तो हीरे की वैल्यु कम हो जाती है।
- यह भी बड़ा पक्का जौहरी है ना।
- सारी आयु हीरे ही इन आंखों से देखे हैं।
- ऐसा जौहरी कोई होगा नहीं, जिसको इतना हीरों को परखने का शौक हो।
- तुम भी हीरे बन रहे हो।
- जानते हो कोई न कोई फ्लो है जरूर।
- सम्पूर्ण बने नहीं हैं।
- चैतन्य होने कारण तुम पुरूषार्थ से फ्लो निकाल सकते हो।
- हीरे जैसा तो बनना है जरूर।
- सो तब बनेंगे जब पूरा पुरूषार्थ करेंगे।
- बाप कहते हैं तुम्हारी अवस्था ऐसी पक्की हो, जो शरीर छूटने समय अन्त में कोई भी याद न आये।
- यह तो क्लीयर है।
- मित्र-सम्बन्धी आदि सबको भूलना है।
- सम्बन्ध रखना ही है एक बाप से।
- अभी तुम हीरे बन रहे हो।
- यह जवाहरात की दुकान है।
- तुम हर एक जौहरी हो।
- यह बातें दूसरा कोई भी जानता नहीं।
- तुम बच्चे जानते हो - हर एक के दिल में है, हम विश्व के मालिक बन रहे हैं - पुरूषार्थ अनुसार।
- जिन्हों को ऊंच पद मिला है, उन्हों ने जरूर पुरूषार्थ किया है।
- हैं तो तुम्हारे में से ही ना।
- तुम बच्चों को ही इतना पुरूषार्थ करना है इसलिए बाबा एक-एक बच्चे को देखते रहते हैं।
- जैसे फूलों को देखा जाता है ना।
- यह कैसा खुशबूदार फूल है!
- यह कैसा है!
- इनमें बाकी क्या फ्लो है?
- क्योंकि तुम चैतन्य हो।
- चैतन्य हीरे जान सकते हैं ना - हमारे में क्या-क्या खामी है, जो बाप से बुद्धियोग तुड़ाए कहाँ न कहाँ भटकाते हैं।
- बाप तो कहते हैं - बच्चे, मामेकम् याद करो।
- दूसरा कोई याद न आये।
- गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बाप को याद करना है।
- इन्हों की तो भट्ठी बननी थी, जो तैयार हो निकली सर्विस के लिए।
- देखते हैं पुराने-पुराने जो हैं वह अच्छी सर्विस कर रहे हैं।
- थोड़े नये भी एड होते जाते हैं।
- पुरानों की भट्ठी बननी थी।
- भल पुराने हैं तो भी खामियां हैं जरूर।
- हर एक अपने दिल में समझते हैं कि बाबा जो अवस्था बनाने लिए कहते हैं वह अभी बनी नहीं है।
- एम आब्जेक्ट तो बाप समझाते हैं।
- सबसे जास्ती खाद है देह-अभिमान की, तब ही देह की तरफ बुद्धि चली जाती है।
- देह में होते हुए देही-अभिमानी बनना है।
- इन आंखों से देखने वाली चीज़ कोई भी सामने न आये, ऐसी अवस्था जमानी है।
- हमारी बुद्धि में सिवाए एक बाप के और शान्तिधाम के, कोई भी वस्तु याद न आये।
- कुछ भी साथ नहीं ले जाना है।
- पहले-पहले हम नये सम्बन्ध में आये।
- अभी है पुराना सम्बन्ध।
- पुराने सम्बन्ध की जरा भी याद न आये।
- गायन भी है अन्तकाल..... यह अभी की बात है।
- गीत तो कलियुगी मनुष्यों ने बनाये हैं।
- परन्तु वह समझते थोड़ेही हैं।
- मूल बात बाबा समझाते हैं एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये।
- एक बाप की याद से ही तुम्हारे पाप कट जायेंगे और पवित्र हीरे बनेंगे।
- कोई-कोई पत्थर तो बहुत वैल्युबुल होते हैं।
- माणिक भी वैल्युबुल होते हैं।
- बाप अपने से भी बच्चों की वैल्यु ऊंच करते रहते हैं।
- अपनी जांच करनी होती है, बाप कहते हैं अन्तर्मुख हो अपने में देखो - हमारे में क्या खामी है?
- कहाँ तक देह-अभिमान है?
- बाबा पुरूषार्थ के लिए भिन्न-भिन्न युक्तियां समझाते रहते हैं।
- जितना हो सके एक की याद रहे।
- भल कितने भी प्यारे हों, खूबसूरत बच्चे बहुत लवली हों, तो भी किसकी याद न आये।
- यहाँ की कोई भी चीज़ याद न आये।
- कोई-कोई बच्चे में बहुत मोह रहता है।
- बाप कहते हैं उन सबसे ममत्व मिटाए एक की याद रखो।
- एक लवली बाप से ही योग रखना है।
- उनसे सब कुछ मिल जाता है।
- योग से ही तुम लवली बनते हो।
- लवली आत्मा बनती है।
- बाप लवली प्योर है ना।
- आत्मा को लवली प्योर बनाने के लिए बाप कहते हैं - बच्चे, जितना मुझे याद करेंगे तुम अथाह लवली बनेंगे।
- तुम इतने लवली बनते हो जो तुम देवी-देवताओं की अब तक पूजा हो रही है।
- बहुत लवली बनते हो ना।
- आधाकल्प तुम राज्य करते हो और फिर आधाकल्प तुम ही पूजे जाते हो।
- तुम खुद ही पुजारी बन अपने चित्रों को पूजते हो।
- तुम हो सबसे लवली बनने वाले, परन्तु जब लवली बाप को अच्छी रीति याद करेंगे तब ही लवली बनेंगे।
- सिवाए एक बाप के और कोई याद न आये।
- तो अपनी जांच करो कि बाप को बहुत लव से याद करते हैं?
- बाप की याद में प्रेम के आंसू आ जाएं।
- बाबा मेरा तो आपके सिवाए दूसरा न कोई।
- और कोई की याद न आये, माया के त़ूफान न आयें।
- त़ूफान तो बहुत आते हैं ना।
- अपने ऊपर बहुत जांच रखनी है।
- हमारा लव बाप के सिवाए और कोई तरफ तो नहीं जाता है?
- भल कितनी भी प्यारी चीज़ हो, तो भी एक बाप की ही याद आये।
- तुम सब एक माशूक के आशिक बनते हो।
- आशिक-माशूक जो होते हैं, एक बार एक-दो को देख लिया, बस!
- शादी आदि भी नहीं करते।
- रहते भी अलग हैं।
- परन्तु एक-दो की याद बुद्धि में रहती है।
- अभी तुम जानते हो हम सब आशिक हैं एक माशूक के।
- उस माशूक को तुम भक्ति मार्ग में भी बहुत याद करते थे।
- यहाँ भी तुम्हें बहुत याद करना है, जबकि वह सम्मुख है।
- बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो, इसमें संशय की कोई बात नहीं है।
- भगवान् से मिलने के लिए सब भक्ति करते हैं।
- यहाँ कोई-कोई बच्चे तो बहुत हड्डी सर्विस करते हैं।
- सर्विस के लिए जैसे एकदम तड़फते हैं।
- बहुत मेहनत करते हैं।
- यह भी तुम जानते हो कि बड़े आदमी इतना नहीं समझ सकेंगे।
- परन्तु तुम्हारी मेहनत कोई व्यर्थ नहीं जाती है।
- कोई समझकर लायक बनते हैं, फिर बाबा के आगे आते हैं।
- तुम समझते हो यह लायक है वा नहीं?
- दृष्टि तो उन्हों को तुम बच्चों से मिलती है, श्रृंगार करने वाले तुम बच्चे हो।
- जो भी यहाँ आये हुए हैं, उन सबको तुम बच्चों ने श्रृंगार कराया है।
- बाबा ने तुमको कराया है, तुम फिर औरों को श्रृंगार कराए ले आते हो।
- बाप आ़फरीन देते हैं, जैसा श्रृंगार किया है, ऐसा ही औरों को भी कराते हैं।
- बल्कि अपने से भी औरों को अच्छा करा सकते हैं।
- सबकी अपनी-अपनी तकदीर है ना।
- कोई-कोई समझने वाले समझाने वालों से भी तीखे हो जाते हैं।
- समझते हैं इनसे हम अच्छा समझा सकते हैं।
- समझाने का नशा चढ़ता है तो वह फिर निकल पड़ते हैं।
- बाप-दादा दोनों की दिल पर चढ़ पड़ते हैं।
- बहुत नये-नये हैं, जो पुरानों से भी तीखे हैं।
- कांटों से अच्छा फूल बन पड़े हैं इसलिए बाबा एक-एक को बैठ देखते हैं - इनमें क्या-क्या कमी है?
- यह कमी इनमें से निकल जाए तो बहुत अच्छी सर्विस करें।
- बागवान है ना। दिल होता है - उठकर पिछाड़ी में भी जाकर देखूँ क्योंकि पिछाड़ी में भी जाकर बैठते हैं।
- अच्छे-अच्छे महारथियों को तो फ्रन्ट में बैठना चाहिए।
- इसमें किसको धक्का आने की तो बात ही नहीं।
- अगर धक्का आयेगा, रूठेंगे तो अपनी तकदीर से रूठेंगे।
- सामने फूलों को देख-देख अथाह खुशी होती है।
- यह बड़ा अच्छा है, इसमें थोड़ा डिफेक्ट है।
- यह बहुत अच्छा साफ है।
- इनमें अन्दर कोई जंक जमी पड़ी है।
- तो वह सारा किचड़ा निकालना है।
- बाप जैसा लव कोई नहीं करता।
- स्त्री का भी पति में लव रहता है ना।
- पति का इतना नहीं होता।
- वह तो दूसरी-तीसरी स्त्री कर लेते हैं।
- स्त्री का तो पति गया, बस - या हुसैन, या हुसैन करती रहती है।
- पुरूषों के लिए तो एक जुत्ती गई तो और कर लेंगे।
- शरीर को जुत्ती कहा जाता है।
- शिवबाबा का भी लांग बूट है ना।
- अब तुम बच्चे समझते हो हम बाबा को याद करेंगे, फर्स्टक्लास बनेंगे।
- कोई-कोई फैशनेबुल होते हैं तो जुत्तियां भी 4-5 रखते हैं।
- नहीं तो आत्मा की जुत्ती एक है।
- पांव की जुत्ती भी एक होनी चाहिए।
- परन्तु यह एक फैशन पड़ गया है।
- अभी तुम समझते हो बाप से हम क्या वर्सा पाते हैं।
- हम उस पैराडाइज़ के मालिक बन रहे हैं।
- हेविन को कहा ही जाता है वन्डर ऑफ वर्ल्ड।
- जरूर हेविनली गॉड फादर ही हेविन स्थापन करेंगे।
- अब तुम प्रैक्टिकल में श्रीमत पर अपने लिए स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो।
- यहाँ तो कितने बड़े-बड़े महल बनाते हैं।
- यह सब ख़त्म हो जायेंगे।
- तुम वहाँ क्या करेंगे!
- दिल में आना चाहिए, यहाँ तो हमारे पास कुछ भी नहीं है।
- वैसे ही भल बाहर में घर गृहस्थ में रहते हैं - यह भी समझते हैं, सब कुछ बाबा का है, हमारे पास तो कुछ नहीं, हम ट्रस्टी हैं।
- ट्रस्टी कुछ नहीं रखते हैं।
- बाबा ही मालिक है।
- यह सब कुछ बाबा का है।
- घर में रहते भी ऐसे समझो।
- साहूकारों की बुद्धि में तो यह बातें आ न सकें।
- बाबा कहते हैं ट्रस्टी हो रहो।
- कुछ भी करो बाबा को इशारा देते रहो।
- लिखते हैं बाबा मकान बनाऊं?
- बाबा कहेंगे भले बनाओ।
- ट्रस्टी होकर रहो।
- बाप तो बैठा है ना।
- बाप जायेंगे तो सब इकट्ठे जायेंगे अपने घर।
- फिर तुम चले जायेंगे अपनी राजधानी में।
- हमको फिर कल्प-कल्प आना ही है पावन बनाने।
- अपने समय पर आता हूँ। अच्छा!
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
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धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सभी से ममत्व निकाल एक लवली बाप को याद करना है। अन्तर्मुख हो अपनी कमियों की जांच कर निकालना है। वैल्युबुल हीरा बनना है।
2) जैसे बाप ने हम बच्चों को श्रृगांर किया है, ऐसे सबका श्रृगांर करना है। कांटों को फूल बनाने की सेवा में लग जाना है। ट्रस्टी होकर रहना है।
( All Blessings of 2021-22)
ब्राह्मण जीवन में एकव्रता के पाठ द्वारा रूहानी रॉयल्टी में रहने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव
इस ब्राह्मण जीवन में एकव्रता का पाठ पक्का कर प्युरिटी की रॉयल्टी को धारण कर लो तो सारे कल्प में यह रूहानी रॉयल्टी चलती रहेगी। आपके रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की चमक परमधाम में सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है। आदिकाल देवता स्वरूप में भी यह पर्सनैलिटी विशेष रही है, फिर मध्यकाल में भी आपके चित्रों की विधिपूर्वक पूजा होती है। इस संगमयुग पर ब्राह्मण जीवन का आधार प्युरिटी की रॉयल्टी है इसलिए जब तक ब्राह्मण जीवन में जीना है तब तक सम्पूर्ण पवित्र रहना ही है।
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