18-08-19 प्रात:मुरली मधुबन
अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 16-01-85
1.
सदा अपना अलौकिक जन्म, अलौकिक जीवन, अलौकिक बाप, अलौकिक वर्सा याद रहता है?
जैसे बाप अलौकिक है तो वर्सा भी अलौकिक है।
लौकिक बाप हद का वर्सा देता, अलौकिक बाप बेहद का वर्सा देता।
तो सदा अलौकिक बाप और वर्से की स्मृति रहे।
कभी लौकिक जीवन के स्मृति में तो नहीं चले जाते।
मरजीवा बन गये ना।
जैसे शरीर से मरने वाले कभी भी पिछले जन्म को याद नहीं करते, ऐसे अलौकिक जीवन वाले, जन्म वाले, लौकिक जन्म को याद नहीं कर सकते।
अभी तो युग ही बदल गया।
दुनिया कलियुगी है, आप संगमयुगी हो, सब बदल गया।
कभी कलियुग में तो नहीं चले जाते?
यह भी बार्डर है।
बार्डर क्रास किया और दुश्मन के हवाले हो गये।
तो बार्डर क्रास तो नहीं करते?
सदा संगमयुगी अलौकिक जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मा हैं, इसी स्मृति में रहो।
अभी क्या करेंगे?
बड़े से बड़ा बिजनेस मैन बनो।
ऐसा बिजनेस मैन जो एक कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले।
सदा बेहद के बाप के हैं,
तो बेहद की सेवा में,
बेहद के उमंग-उत्साह से आगे बढ़ते रहो।
2.
सदा डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हो?
डबल लाइट स्थिति की निशानी है सदा उड़ती कला।
उड़ती कला वाले कभी भी माया के आकर्षण में नहीं आ सकते।
उड़ती कला वाले सदा विजयी?
उड़ती कला वाले सदा निश्चय बुद्धि निश्चिन्त।
उड़ती कला क्या है?
उड़ती कला अर्थात् ऊंचे से ऊंची स्थिति।
उड़ते हैं तो ऊंचा जाते हैं ना।
ऊंचे ते ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाली ऊंची आत्मायें समझ आगे बढ़ते चलो।
उड़ती कला वाले अर्थात् बुद्धि रूपी पाँव धरनी पर नहीं।
धरनी अर्थात् देह भान से ऊपर।
जो देह भान की धरनी से ऊपर रहते वह सदा फरिश्ते हैं,
जिसका धरनी से कोई रिश्ता नहीं।
देह भान को भी जान लिया, देही-अभिमानी स्थिति को भी जान लिया।
जब दोनों के अन्तर को जान गये तो देह-अभिमान में आ नहीं सकते।
जो अच्छा लगता है वही किया जाता है ना।
तो सदा इसी स्मृति में रहो कि मैं हूँ ही फरिश्ता।
फरिश्ते की स्मृति से सदा उड़ते रहेंगे।
उड़ती कला में चले गये तो नीचे की धरनी आकर्षित नहीं कर सकती है, जैसे स्पेस में जाते हैं तो धरनी आकर्षित नहीं करती, ऐसे फरिश्ता बन गये तो देह रूपी धरनी आकर्षित नहीं कर सकती।
3.
सदा सहयोगी, कर्मयोगी, स्वत: योगी, निरन्तर योगी ऐसी स्थिति का अनुभव करते हो?
जहाँ सहज है वहाँ निरंतर है।
सहज नहीं तो निरन्तर नहीं।
तो निरन्तर योगी हो या अन्तर पड़ जाता है?
योगी अर्थात् सदा याद में मगन रहने वाले।
जब सर्व सम्बन्ध बाप से हो गये तो जहाँ सर्व सम्बन्ध हैं वहाँ याद स्वत: होगी और सर्व सम्बन्ध हैं तो एक की ही याद होगी।
है ही एक तो सदा याद रहेगी ना।
तो सदा सर्व सम्बन्ध से एक बाप दूसरा न कोई।
सर्व सम्बन्ध से एक बाप... यही सहज विधि है, निरन्तर योगी बनने की।
जब दूसरा सम्बन्ध ही नहीं तो याद कहाँ जायेगी।
सर्व सम्बन्धों से सहजयोगी आत्मायें यह सदा स्मृति रखो।
सदा बाप समान हर कदम में स्नेह और शक्ति दोनों का बैलेंस रखने से सफलता स्वत: ही सामने आती है।
सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है।
बिजी रहने के लिए काम तो करना ही है लेकिन एक है मेहनत का काम, दूसरा है खेल के समान।
जब बाप द्वारा शक्तियों का वरदान मिला है तो जहाँ शक्ति है वहाँ सब सहज है।
सिर्फ परिवार और बाप का बैलेंस हो तो स्वत: ही ब्लैसिंग प्राप्त हो जाती है।
जहाँ ब्लैसिंग है वहाँ उड़ती कला है।
न चाहते हुए भी सहज सफलता है।
4.
सदा बाप और वर्सा दोनों की स्मृति रहती है?
बाप कौन और वर्सा क्या मिला है यह स्मृति स्वत: समर्थ बना देती है।
ऐसा अविनाशी वर्सा जो एक जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध बनाने वाला है, ऐसा वर्सा कभी मिला है?
अभी मिला है, सारे कल्प में नहीं। तो सदा बाप और वर्सा इसी स्मृति से आगे बढ़ते चलो।
वर्से को याद करने से सदा खुशी रहेगी और बाप को याद करने से सदा शक्तिशाली रहेंगे।
शक्तिशाली आत्मा सदा मायाजीत रहेगी और खुशी है तो जीवन है।
अगर खुशी नहीं तो जीवन क्या?
जीवन होते भी ना के बराबर है। जीते हुए भी मृत्यु के समान है।
जितना वर्सा याद रहेगा उतनी खुशी रहेगी।
तो सदा खुशी रहती है?
ऐसा वर्सा कोटों में कोई को मिलता है और हमें मिला है।
यह स्मृति कभी भी भूलना नहीं।
जितनी याद उतनी प्राप्ति।
सदा याद और सदा प्राप्ति की खुशी।
कुमारों से -
कुमार जीवन शक्तिशाली जीवन है।
तो ब्रह्माकुमार अर्थात् रूहानी शक्तिशाली, जिस्मानी शक्तिशाली नहीं, रूहानी शक्तिशाली।
कुमार जीवन में जो चाहे वह कर सकते हो।
तो आप सब कुमारों ने अपने इस कुमार जीवन में अपना वर्तमान और भविष्य बना लिया, क्या बनाया?
रूहानी बनाया।
ईश्वरीय जीवन वाले ब्रह्माकुमार बने तो कितने श्रेष्ठ जीवन वाले हो गये।
ऐसी श्रेष्ठ जीवन बन गई जो सदा के लिए दुख से और धोखे से, भटकने से किनारा हो गया।
नहीं तो जिस्मानी शक्ति वाले कुमार भटकते रहते हैं।
लड़ना, झगड़ना दु:ख देना, धोखा देना....यही करते हैं ना।
तो कितनी बातों से बच गये।
जैसे स्वयं बचे हो वैसे औरों को भी बचाने का उमंग आता है।
सदा हमजिन्स को बचाने वाले।
जो शक्तियाँ मिली हैं वह औरों को भी दो।
अखुट शक्तियाँ मिली है ना।
तो सबको शक्तिशाली बनाओ। निमित्त समझकर सेवा करो।
मैं सेवाधारी हूँ, नहीं।
बाबा कराता है मैं निमित्त हूँ।
निमित्त समझकर सेवा करो।
मैं सेवाधारी हूँ नहीं।
बाबा कराता है मैं निमित्त हूँ।
मैं पन वाले नहीं।
जिसमें मैं पन नहीं है वह सच्चे सेवाधारी हैं।
युगलों से - सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हो?
स्व का राज्य अर्थात् सदा अधिकारी।
अधिकारी कभी अधीन नहीं हो सकते।
अधीन हैं तो अधिकार नहीं।
जैसे रात है तो दिन नहीं।
दिन है तो रात नहीं।
ऐसे अधिकारी आत्मायें किसी भी कर्मेन्द्रियों के, व्यक्ति के, वैभव के अधीन नहीं हो सकते।
ऐसे अधिकारी हो?
जब मास्टर सर्वशक्तिवान बन गये तो क्या हुए?
अधिकारी।
तो सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हैं,
इस समर्थ स्मृति से सदा सहज विजयी बनते रहेंगे।
स्वप्न में भी हार का संकल्प मात्र न हो।
इसको कहा जाता है - सदा के विजयी।
माया भाग गई कि भगा रहे हो?
इतना भगाया है जो वापस न आये।
किसको वापस नहीं लाना होता है तो उसको बहुत-बहुत दूर छोड़कर आते हैं।
तो इतना दूर भगाया है।
अच्छा
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में
एक बाप को अपना संसार बनाने वाले
स्वत: और सहजयोगी भव
ब्राह्मण जीवन में सभी बच्चों का वायदा है -
"एक बाप दूसरा न कोई''।
जब संसार ही बाप है, दूसरा कोई है ही नहीं तो स्वत: और सहजयोगी स्थिति सदा रहेगी।
अगर दूसरा कोई है तो मेहनत करनी पड़ती है।
यहाँ बुद्धि न जाए, वहाँ जाए।
लेकिन एक बाप ही सब कुछ है तो बुद्धि कहाँ जा नहीं सकती।
ऐसे सहजयोगी, सहज स्वराज्य अधिकारी बन जाते हैं।
उनके चेहरे पर रूहानियत की चमक एकरस एक जैसी रहती है।
स्लोगन:-
बाप समान अव्यक्त वा विदेही बनना
- यही अव्यक्त पालना का प्रत्यक्ष सबूत है।
आज मास का तीसरा रविवार है। सभी भाई बहिनें संगठित रूप में सायं 6.30 से 7.30 बजे तक प्रकृति सहित सर्व आत्माओं को शान्ति और शक्ति की सकाश देने की सेवा करें।