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10-06-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

"मीठे बच्चे - अवगुणों को निकालने का पूरा पुरूषार्थ करो, जिस गुण की कमी है उसका पोतामेल रखो, गुणों का दान करो तो गुणवान बन जायेंगे''

प्रश्नः-

गुणवान बनने के लिए कौन-सी पहली-पहली श्रीमत मिली हुई है?

उत्तर:-

मीठे बच्चे - गुणवान बनना है तो -

1. किसी की भी देह को मत देखो। अपने का आत्मा समझो। एक बाप से सुनो, एक बाप को देखो। मनुष्य मत को नहीं देखो।

2. देह-अभिमान के वश ऐसी कोई एक्टिविटी न हो जिससे बाप का वा ब्राह्मण कुल का नाम बदनाम हो। उल्टी चलन वाले गुणवान नहीं बन सकते। उन्हें कुल कंलकित कहा जाता है।

ओम् शान्ति। (बापदादा के हाथ में मोतिये के फूल थे) बाबा साक्षात्कार कराते हैं, ऐसा खुशबूदार फूल बनने का है। बच्चे जानते हैं हम फूल बने थे जरूर। गुलाब के फूल, मोतिये के फूल भी बने थे अथवा हीरे भी बने थे, अब फिर बन रहे हैं। यह हैं सच्चे, आगे तो थे झूठे। झूठ ही झूठ, सच की रत्ती भी नहीं। अभी तुम सच्चे बनते हो तो फिर सच्चे में सब गुण भी चाहिए। जितने जिसमें गुण हैं, उतना औरों को भी दान दे आपसमान बना सकते हैं इसलिए बाप बच्चों को कहते रहते हैं - बच्चे, पोतामेल रखो, अपने गुणों का। हमारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं? दैवी गुणों में क्या कमी है? रात को रोज़ अपना पोतामेल निकालो। दुनिया के मनुष्यों की तो बात ही अलग है। तुम अभी मनुष्य तो नहीं हो ना। तुम हो ब्राह्मण। भल मनुष्य तो सब मनुष्य ही हैं। परन्तु हर एक के गुणों में, चलन में फ़र्क पड़ता है। माया के राज्य में भी कोई-कोई मनुष्य बहुत अच्छे गुणवान होते हैं परन्तु बाप को नहीं जानते। बड़े रिलीजस माइन्डेड, नर्म दिल होते हैं। दुनिया में तो मनुष्यों के गुणों की वैराइटी है। और जब देवता बनते हैं तो दैवी गुण तो सबमें हैं। बाकी पढ़ाई के कारण मर्तबे कम हो पड़ते हैं। एक तो पढ़ना है, दूसरा अवगुणों को निकालना है। यह तो बच्चे जानते हैं हम सारी दुनिया से न्यारे हैं। यहाँ यह जैसे एक ही ब्राह्मण कुल बैठा हुआ है। शुद्र कुल में है मनुष्य मत। ब्राह्मण कुल में है ईश्वरीय मत। पहले-पहले तुमको बाप का परिचय देना है, तुम बताते हो फलाना आरग्यु करते हैं। बाबा ने समझाया था, लिख दो हम ब्राह्मण अथवा बी.के. हैं ईश्वरीय मत पर तो समझ जायेंगे इनसे ऊंचा तो कोई है नहीं। ऊंच ते ऊंच है भगवान्, तो हम उनके बच्चे भी उनकी मत पर हैं। मनुष्य मत पर हम चलते नहीं, ईश्वरीय मत पर चल हम देवता बनते हैं। मनुष्य मत बिल्कुल छोड़ दी है। फिर तुमसे कोई आरग्यू कर न सके। कोई कहे यह कहाँ से सुना, किसने सिखाया है? तुम कहेंगे हम हैं ईश्वरीय मत पर। प्रेरणा की बात नहीं। बेहद के बाप ईश्वर से हम समझे हुए हैं। बोलो, भक्ति मार्ग के शास्त्र मत पर तो हम बहुत समय चले। अब हमको मिली है ईश्वरीय मत। तुम बच्चों को बाप की ही महिमा करनी है। पहले-पहले बुद्धि में बिठाना है, हम ईश्वरीय मत पर हैं। मनुष्य मत पर हम चलते नहीं, सुनते नहीं। ईश्वर ने कहा है हियर नो ईविल, सी नो ईविल... मनुष्य मत। आत्मा को देखो, शरीर को नहीं देखो। यह तो पतित शरीर है। इनको क्या देखने का है, इन आंखों से यह नहीं देखो। यह शरीर तो पतित का पतित ही है। यहाँ के यह शरीर तो सुधरने नहीं हैं और ही पुराने होने हैं। दिन-प्रतिदिन सुधरती है आत्मा। आत्मा ही अविनाशी है, इसलिए बाप कहते हैं सी नो ईविल। शरीर को भी नहीं देखना है। देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं, उनको भूल जाना है। आत्मा को देखो, एक परमात्मा बाप से सुनो, इसमें ही मेहनत है। तुम फील करते हो यह बड़ी सब्जेक्ट है। जो होशियार होंगे, उनको पद भी इतना ऊंच मिलेगा। सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिल सकती है। परन्तु अगर पूरा पुरूषार्थ नहीं किया तो फिर सजायें भी बहुत खानी पड़ेंगी। तुम बच्चे अन्धों की लाठी बनते हो बाप का परिचय देने के लिए। आत्मा को देखा नहीं जाता, जाना जाता है। आत्मा कितनी छोटी है। इस आकाश तत्व में देखो मनुष्य कितनी जगह लेते हैं। मनुष्य तो आते जाते रहते हैं ना। आत्मा कहाँ आती जाती है क्या? आत्मा की कितनी छोटी-सी जगह होगी! विचार की बात है। आत्माओं का झुण्ड होगा। शरीर के भेंट में आत्मा कितनी छोटी है, वह कितनी थोड़ी जगह लेगी। तुमको तो रहने के लिए बहुत जगह चाहिए। अभी तुम बच्चे विशाल बुद्धि बने हो। बाप नई बातें समझाते हैं नई दुनिया के लिए और फिर बताने वाला भी नया है। मनुष्य तो सबसे रहम मांगते रहते हैं। अपने में ताकत नहीं है, जो अपने पर रहम करें। तुमको ताकत मिलती है। तुमने बाप से वर्सा लिया है और कोई को रहमदिल नहीं कहा जाता है। मनुष्य को कभी देवता नहीं कह सकते हैं। रहमदिल एक ही बाप है, जो मनुष्य को देवता बनाते हैं इसलिए कहते हैं परमपिता परमात्मा की महिमा अपरमअपार है, उसका पारावार नहीं। अभी तुम जानते हो, उनके रहम का पारावार नहीं है। बाबा जो नई दुनिया बनाते हैं, उसमें सब कुछ नया होता है। मनुष्य, पशु, पक्षी सब सतोप्रधान होते हैं। बाप ने समझाया है तुम ऊंच बनते हो तो तुम्हारा फर्नीचर भी ऐसा ऊंच ते ऊंच गाया हुआ है। बाप को भी कहते हैं ऊंचे ते ऊंचा, जिससे विश्व की बादशाही मिलती है। बाप साफ कहते हैं हम हथेली पर बहिश्त ले आता हूँ। वो लोग हथेली से केसर आदि निकालते हैं, यहाँ तो पढ़ाई की बात है। यह है सच्ची पढ़ाई। तुम समझते हो हम पढ़ रहे हैं। पाठशाला में आये हैं, पाठशालायें तुम बहुत खोलो तो तुम्हारी एक्टिविटी को देखें। कोई फिर उल्टी चलन चलते हैं तो नाम बदनाम करते हैं। देह-अभिमान वाले की एक्टिविटी ही अलग होगी। देखेंगे ऐसी एक्टिविटी है तो फिर जैसे सब पर कलंक लग जाता है। समझते हैं इनकी एक्टिविटी में तो कोई फ़र्क नहीं है तो गोया बाप की निंदा कराई ना। टाइम लगता है। सारा दोष उस पर आ जाता है। मैनर्स बहुत अच्छे चाहिए। तुम्हारे कैरेक्टर्स बदलने में कितना टाइम लगता है। तुम समझते हो कोई-कोई के कैरेक्टर्स बहुत अच्छे फर्स्टक्लास होते हैं। वह दिखाई भी पड़ेंगे। बाबा एक-एक बच्चे को बैठ देखते हैं, इनमें क्या खामी है जो निकलनी चाहिए। एक-एक की जांच करते हैं। खामियाँ तो सबमें हैं। तो बाप सबको देखते रहते हैं। रिजल्ट देखते रहते हैं। बाप का तो बच्चों पर लव रहता है ना। जानते हैं इनमें यह खामी है, इस कारण यह इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। अगर खामियां नहीं निकली तो बड़ा मुश्किल है। देखने से ही मालूम पड़ जाता है। यह तो जानते हैं अभी टाइम पड़ा है। एक-एक की जांच करते, बाप की नज़र एक-एक के गुणों पर पड़ेगी। पूछेंगे तुम्हारे में कोई अवगुण तो नहीं है? बाबा के आगे तो सच बता देते हैं। कोई-कोई को देह-अभिमान रहता है तो नहीं बताते हैं। बाप तो कहते रहते हैं - आपेही जो करे सो देवता। कहने से करे वह मनुष्य, जो कहने से भी न करे.....। बाबा कहते रहते हैं जो भी खामियां हैं इस जन्म की वह बाप के आगे आपेही बताओ। बाबा तो सबको कह देते हैं खामियां सर्जन को बतानी चाहिए। शरीर की बीमारी नहीं, अन्दर की बीमारी बतानी है। तुम्हारे पास अन्दर में क्या-क्या आसुरी ख्यालात रहते हैं? तो इस पर बाबा समझायेंगे। इस हालत में तुम इतना ऊंच पद नहीं पा सकेंगे, जब तक अवगुण निकलें, अवगुण बहुत निंदा कराते हैं। मनुष्यों को वहम पड़ता है - भगवान् इनको पढ़ाते हैं! भगवान् तो नाम-रूप से न्यारा है, सर्वव्यापी है, वह कैसे इनको पढ़ायेंगे, इनकी चलन कैसी है। यह तो बाप जानते हैं - तुम्हारे गुण कैसे फर्स्टक्लास होने चाहिए। अवगुण छिपा देंगे तो कोई को इतना तीर नहीं लगेगा इसलिए जितना हो सके अपने में अवगुण जो हैं उनको निकालते जाओ। नोट करो, हमारे में यह-यह खामी है तो दिल अन्दर में खायेगी। घाटा पड़ता है तो दिल खाती है। व्यापारी लोग अपना खाता रोज़ निकालते हैं - आज कितना फायदा हुआ, रोज़ का खाता देखते हैं। यह बाप भी कहते हैं रोज़ अपनी चाल देखो। नहीं तो अपना नुकसान कर देंगे। बाप की पत (इज्ज़त) गंवा देंगे। गुरू की निंदा कराने वाले ठौर न पायें। देह-अभिमानी ठौर नहीं पा सकेंगे। देही-अभिमानी अच्छी ठौर पायेंगे। देही-अभिमानी बनने के लिए ही सब पुरूषार्थ करते हैं। दिन-प्रतिदिन सुधरते जाते हैं। देह-अभिमान से जो कर्त्तव्य होते हैं, उनको काटते रहना है। देह-अभिमान से पाप जरूर होता है इसलिए देही-अभिमानी बनते रहो। यह तो समझ सकते हो जन्मते ही राजा कोई होता नहीं। देही-अभिमानी बनने में टाइम तो लगता है ना। यह भी तुम समझते हो, अभी हमको वापिस जाना है। बाबा के पास बच्चे आते हैं। कोई 6 मास बाद आते, कोई 8 मास बाद भी आते हैं तो बाबा देखते हैं इतने समय में क्या उन्नति हुई है? दिन-प्रतिदिन कुछ सुधरते रहते हैं या कुछ दाल में काला है? कोई चलते-चलते पढ़ाई छोड़ देते हैं। बाबा कहते हैं यह क्या, भगवान् तुमको पढ़ाते हैं भगवान भगवती बनाने, ऐसी पढ़ाई तुम छोड़ देते हो! अरे! वर्ल्ड गॉड फादर पढ़ाते हैं, इसमें अबसेन्ट! माया कितनी प्रबल है। फर्स्टक्लास पढ़ाई से तुम्हारा मुख मोड़ देती है। बहुत हैं जो चलते रहते हैं, फिर पढ़ाई को लात मार देते हैं। यह तो तुम समझते हो अब हमारा मुंह है स्वर्ग तरफ, लात है नर्क तरफ। तुम हो संगमयुगी ब्राह्मण। यह पुरानी रावण की दुनिया है। हम वाया शान्तिधाम, सुखधाम तरफ जायेंगे। बच्चों को यही याद रखना पड़े। टाइम बहुत कम है, कल भी शरीर छूट सकता है। बाप की याद नहीं होगी तो फिर अन्तकाल.... बाप समझाते तो बहुत हैं। यह सब गुप्त बातें हैं। नॉलेज भी गुप्त है। यह भी जानते हैं कल्प पहले जिसने जितना पुरूषार्थ किया है, वही कर रहे हैं। ड्रामा अनुसार बाप भी कल्प पहले मुआफिक समझाते रहते हैं, इसमें फ़र्क नहीं पड़ सकता है। बाप को याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होते जायें। सजा नहीं खानी चाहिए। बाप के सामने सजायें बैठ खायेंगे तो बाप क्या कहेंगे! तुमने साक्षात्कार भी किये हैं, उस समय माफ नहीं कर सकते। इन द्वारा बाप पढ़ाते हैं तो इनका ही साक्षात्कार होगा। इन द्वारा वहाँ भी समझाते रहेंगे - तुमने यह-यह किया फिर उस समय बहुत रोयेंगे, चिल्लायेंगे, अफसोस भी करेंगे। बिगर साक्षात्कार सज़ा दे न सकें। कहेंगे तुमको इतना पढ़ाते थे फिर ऐसे-ऐसे काम किये। तुम भी समझते हो रावण की मत पर हमने कितने पाप किये हैं। पूज्य से पुजारी बन पड़े हैं। बाप को सर्वव्यापी कहते आये। यह तो पहले नम्बर की इनसल्ट है। इसका हिसाब-किताब भी बहुत है। बाप उल्हना देते हैं, तुमने अपने को कैसे चमाट मारी है। भारतवासी ही कितना गिरे हैं। बाप आकर समझाते हैं। अभी तुमको कितनी समझ मिली है। सो भी नम्बरवार समझते हैं, ड्रामा अनुसार। आगे भी ऐसे ही इस समय तक के क्लास की यह रिजल्ट थी। बाप बतायेंगे तो सही ना। तो बच्चे अपनी उन्नति करते रहें। माया ऐसी है जो देही-अभिमानी रहने नहीं देती है। यही बड़ी सब्जेक्ट है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पाप भस्म हो जायें। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) देह-अभिमान में आने से पाप जरूर होते हैं, देह-अभिमानी को ठौर नहीं मिल सकती, इसलिए देही-अभिमानी बनने का पूरा पुरूषार्थ करना है। कोई भी कर्म बाप की निंदा कराने वाला न हो।

2) अन्दर की बीमारियां बाप को सच-सच बतानी हैं, अवगुण छिपाने नहीं हैं। अपनी जांच करनी है कि मेरे में क्या-क्या अवगुण हैं? पढ़ाई से स्वयं को गुणवान बनाना है।

वरदान:-

पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकण्ड में निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने वाले स्व परिवर्तक भव

जब निगेटिव अथवा व्यर्थ संकल्प चलते हैं, तो उसकी गति बहुत फास्ट होती है। फास्ट गति के समय पॉवरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास चाहिए। वैसे भी जब पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले ब्रेक को चेक करते हैं। आप अपनी ऊंची स्थिति बनाने के लिए संकल्पों को सेकण्ड में ब्रेक देने का अभ्यास बढ़ाओ। जब अपने संकल्प वा संस्कार एक सेकण्ड में निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेंगे तब स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होगा।

स्लोगन:-

स्वयं प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति श्रेष्ठ परिवर्तन की शक्ति को कार्य में लाने वाले ही सच्चे कर्मयोगी हैं।