13-03-2019 प्रात:मुरली "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - जितना समय मिले अन्तर्मुखी रहने का पुरूषार्थ करो, बाहरमुखता में न आओ, तब ही पाप कटेंगे''

प्रश्नः-

चढ़ती कला का पुरूषार्थ क्या है जो बाप हर बच्चे को सिखलाते हैं?

उत्तर:-

1. बच्चे चढ़ती कला में जाना है तो बुद्धियोग एक बाप से लगाओ। फलाना ऐसा है, यह ऐसा करता है, इसमें यह अवगुण हैं - इन बातों में जाने की दरकार नहीं। अवगुण देखने से मुँह मोड़ लो।

2. कभी भी पढ़ाई से रूठना नहीं। मुरली में जो अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स हैं, उन्हें धारण करते रहो, तब ही चढ़ती कला हो सकती है।

 

ओम् शान्ति। अभी यह है ज्ञान का क्लास और सवेरे योग का क्लास। योग कौन-सा? यह बहुत अच्छी रीति समझाना है क्योंकि बहुत मनुष्य हठयोग में फँसे हुए हैं। जो हठयोग मनुष्य सिखलाते हैं। यह है राजयोग, जो परमात्मा सिखलाते हैं क्योंकि राजा तो कोई है नहीं जो राजयोग सिखलावे। यह लक्ष्मी-नारायण भगवती-भगवान् हैं, राजयोग सीखे तब तो भविष्य में भगवती-भगवान् बनें। यह है ही पुरूषोत्तम संगमयुग की समझानी। इसको कहा जाता है पुरूषोत्तम। पुरानी और नई दुनिया का बीच। पुराने मनुष्य और नये देवतायें। इस समय सभी मनुष्य पुराने हैं। नई दुनिया में नई आत्मायें, देवतायें होते हैं। वहाँ मनुष्य नहीं कहेंगे। भल हैं मनुष्य परन्तु दैवीगुणों वाले हैं, इसलिए देवी-देवता कहा जाता है। पवित्र भी रहते हैं। बाप बच्चों को समझाते हैं काम महाशत्रु है। यह रावण का पहला-पहला भूत है। कोई बहुत क्रोध करते हैं तो कहा जाता है - भौं-भौं क्यों करते हो! यह दो विकार बड़े शत्रु हैं। लोभ-मोह के लिए भौं-भौं नहीं कहेंगे। मनुष्यों में साइन्स घमण्ड के कारण क्रोध कितना है - यह भी बहुत नुकसानकारक है। काम का भूत आदि, मध्य, अन्त दु:ख देने वाला है। एक-दो पर काम कटारी चलाते हैं। यह सब बातें समझकर फिर औरों को समझानी हैं। तुम्हारे सिवाए बाप से वर्सा लेने का सच्चा रास्ता तो कोई बतला न सके। तुम बच्चे ही बता सकते हो। बेहद के बाप से इतना बड़ा वर्सा कैसे मिलता है! जो किसको समझा नहीं सकते तो जरूर पढ़ाई पर ध्यान नहीं है। बुद्धियोग कहाँ भटकता है। युद्ध का मैदान है ना। ऐसे कोई मत समझे - सहज बात है। मन के तूफान वा विकल्प ढेर के ढेर न चाहते हुए भी आयेंगे, इसमें मूँझना नहीं है। योगबल से ही माया भागेगी, इसमें पुरूषार्थ बहुत है। धन्धेधोरी में कितने थक जाते हैं क्योंकि देह-अभिमान में रहते हैं। देह-अभिमान के कारण बहुत बातचीत करनी पड़ती है। बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो। देही-अभिमानी बनने से जो बाप समझाते हैं वही औरों को समझायेंगे। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। बाप ही शिक्षा देंगे कि बच्चे बाहरमुखी नहीं होना चाहिए। अन्तर्मुखी होना है। भल कहाँ बाहरमुखी होना भी पड़े, फिर भी जितनी फुर्सत मिले कोशिश कर अन्तर्मुखी होना चाहिए, तब ही पाप कटेंगे। नहीं तो न पाप कटेंगे, न ऊंच पद पायेंगे। जन्म-जन्मान्तर के पाप सिर पर हैं। सबसे जास्ती पाप ब्राह्मणों के हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं। जो बहुत ऊंच बनते हैं, वही बिल्कुल नीच भी बनते हैं। जो प्रिन्स बनते हैं उनको ही फिर बेगर भी बनना है। ड्रामा को अच्छी रीति समझना है, जो पहले आये हैं वह पिछाड़ी में आयेंगे। जो पहले पावन बनते हैं वही पहले पतित बनते हैं। बाप कहते हैं मैं भी आता ही हूँ इनके बहुत जन्मों के अन्त में, सो भी जब वानप्रस्थ अवस्था है। इस समय छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। बाप के लिए गायन भी है सर्व की सद्गति करने वाले। वह होती ही है पुरूषोत्तम संगमयुग पर। यह पुरूषोत्तम संगमयुग भी याद रखना चाहिए। जैसे मनुष्यों को कलियुग याद है, संगमयुग सिर्फ तुमको याद है। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। बहुतों को तो अपना गोरखधन्धा ही याद रहता है। बाहर से मुँह हटा हुआ हो तो धारणा भी हो जाए। एक कहावत है - अन्तकाल जो स्त्री सिमरे..... जो गीत वा श्लोक अच्छे-अच्छे हैं, जिनका हमारे ज्ञान से कनेक्शन है, वह रखने चाहिए। जैसे छी-छी दुनिया से जाना ही होगा। दूसरा, नैन हीन को राह दिखाओ..... ऐसे-ऐसे गीत अपने पास रखने चाहिए। बनाये तो मनुष्यों ने हैं, जिनको इस संगम का पता ही नहीं है। इस समय सब ज्ञान नैनहीन अन्धे हैं। जब परमात्मा आये तब आकर राह दिखाये। अकेले को तो नहीं दिखायेंगे। यह है उनकी शिव शक्ति सेना। यह शक्ति सेना क्या करती है? श्रीमत पर नई दुनिया की स्थापना। तुम भी राजयोग सीखते हो जो भगवान् के सिवाए कोई सिखला न सके। भगवान् तो निराकार है, उनको तो अपना शरीर है नहीं, बाकी जो भी हैं सब शरीरधारी हैं। ऊंच ते ऊंच तो एक बाप ही है, जो तुमको पढ़ाते हैं। यह तो तुम ही जानो। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं तो तुमको वारनिंग देनी चाहिए। बड़े-बड़े अखबार में डालना चाहिए। मनुष्य जो योग सिखलाते हैं, वह है हठयोग। राजयोग एक परमपिता परमात्मा बाप ही सिखलाते हैं, जिससे मुक्ति-जीवनमुक्ति मिलती है। हठयोग से दोनों नहीं मिलते। वह है हठयोग जो कि परमपरा से चला आता है, पुराना है। यह राजयोग सिर्फ संगमयुग पर बाप सिखलाते हैं। बाबा ने समझाया है जब भाषण करते हो तो टॉपिक्स निकालनी चाहिए। परन्तु ऐसे करते नहीं हैं। श्रीमत पर चलने वाले बहुत थोड़े हैं। पहले भाषण लिखो फिर पक्का करो तो याद आयेगा। तुमको ओरली भाषण करना है। तुमको पढ़कर तो सुनाना नहीं है। विचार सागर मंथन कर भाषण करने की त़ाकत उसमें रहेगी जो अपने को आत्मा समझकर फिर बोलते हैं। हम भाइयों को सुनाते हैं, ऐसे समझने से त़ाकत रहेगी। यह बहुत ऊंची मंज़िल है ना। पान का बीड़ा उठाना मासी का घर नहीं है। जितना तुम रूसतम बनेंगे, उतना माया का वार होगा। अंगद वा महावीर भी रूसतम था, तब कहा रावण भी हमको हिलाकर दिखाये। यह स्थूल बातें नहीं। शास्त्रों में यह दन्त कथायें हैं। यह कान जो परमात्मा बाप का सुनहरी ज्ञान सुनने वाले थे वह दन्त कथायें सुन-सुनकर एकदम पत्थर बन गये हैं। भक्ति मार्ग में माथा भी घिसाया तो पैसा भी गँवाया। सीढ़ी नीचे ही उतरते आये। 84 जन्मों की भी कहानी है ना। जो भी भक्ति की है, नीचे ही उतरे हैं। अब बाप ऊपर चढ़ना सिखलाते हैं। अब तुम्हारी चढ़ती कला है। अगर बुद्धियोग बाप के साथ नहीं लगायेंगे तो जरूर नीचे ही गिरेंगे। बाप को याद करते हो तो ऊपर चढ़ते हो। मेहनत है बहुत, परन्तु बच्चे ग़फलत करते हैं। धन्धे में बाप को और नॉलेज को भूल जाते हैं। माया त़ूफान में लाती है - फलाना ऐसा है, यह करता है, यह ब्राह्मणी ऐसी है, इसमें यह अवगुण है। अरे, इसमें तुम्हारा क्या जाता है! सर्वगुण सम्पन्न तो कोई बना नहीं है। कोई का अवगुण न देख गुण ग्रहण करना है। अवगुण देखो तो मुँह मोड़ लो। मुरली तो मिलती है वह सुनते धारण करते रहो। बुद्धि से समझना है यह बाबा की बात बिल्कुल ठीक है। जो बात ठीक न लगे, छोड़ देनी चाहिए। पढ़ाई से कभी रूठना नहीं चाहिए। ब्राह्मणी से वा पढ़ाई से रूठना गोया बाप से रूठना। ऐसे बहुत बच्चे हैं, जो फिर सेन्टर पर नहीं आते हैं। भल कोई कैसा भी है तुम्हारा काम मुरली से है, मुरली जो सुनाये उनमें से अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स धारण करनी है। किसी से बात करने में मजा नहीं आता तो शान्त करके मुरली सुनकर चले जाना चाहिए। रूठना नहीं चाहिए कि हम यहाँ नहीं आयेंगे। नम्बरवार तो हैं। यह भी अच्छा है जो सुबह को तुम याद में बैठते हो। बाबा आकर सर्च लाइट देते हैं। बाबा अनुभव सुनाते हैं जब बैठते हैं तो जो अनन्य हैं वह बच्चे पहले याद आते हैं। भल विलायत में हैं, कलकत्ते में हैं, तो पहले अनन्य को याद कर सर्चलाइट देते हैं। बच्चे तो भल यहाँ भी बैठे हैं परन्तु बाबा याद उनको करते हैं जो सर्विस करते हैं। जैसे अच्छे बच्चे शरीर छोड़ जाते हैं तो उनकी आत्मा को भी याद करते हैं, बहुत सर्विस करके गये हैं। तो जरूर यहाँ ही नज़दीक कोई घर में होंगे। तो उनको भी बाबा याद कर सर्चलाइट देते हैं। हैं तो सब बाबा के बच्चे। परन्तु कौन-कौन अच्छी सर्विस करते हैं, यह तो सब जानते हैं। बाबा ने कहा - यहाँ सर्चलाइट दो, तो देते हैं। दो इन्जन हैं ना। यह भी इतना ऊंच पद पाते हैं तो जरूर ताकत होगी। भल बाबा कहते हैं हमेशा यही समझो कि शिवबाबा पढ़ाते हैं तो उनकी याद रहनी चाहिए। बाकी यह तो समझते हो यहाँ दो बत्ती हैं। और तो कोई में दो बत्ती नहीं हैं इसलिए यहाँ दो बत्तियों के सम्मुख आते हैं तो अच्छी तरह से रिफ्रेश होते हैं। टाइम भी सवेरे का अच्छा है। स्नान कर छत पर एकान्त में चले जाना चाहिए। बाबा ने इसलिए बड़ी-बड़ी छतें बनाई हैं। पादरी लोग भी एकदम साइलेन्स में जाते हैं, जरूर क्राइस्ट को याद करते होंगे। गॉड को जानते नहीं। अगर गॉड को याद करते होंगे तो शिवलिंग ही बुद्धि में आता होगा। अपनी मस्ती में जाते हैं, तो उनसे गुण उठाना है। दतात्रेय के लिए भी कहते हैं वह सबसे गुण उठाते थे। तुम बच्चे भी नम्बरवार दत्तात्रेय हो। यहाँ एकान्त बहुत अच्छा है। जितनी चाहो कमाई कर सकते हो। बाहर तो गोरखधन्धा याद पड़ेगा। 4 बजे का टाइम भी बहुत अच्छा है। बाहर कहाँ जाने की जरूरत नहीं है। घर में बैठे हो, पहरा भी है। यज्ञ में पहरा भी रखना पड़ता है। यज्ञ के हर वस्तु की सम्भाल रखनी पड़ती है क्योंकि यज्ञ की एक-एक चीज़ बहुत-बहुत वैल्युबुल है, इसलिए सेफ्टी फर्स्ट। यहाँ कोई आयेंगे नहीं। समझते हैं यहाँ जेवर आदि तो कुछ हैं नहीं। यह मन्दिर भी नहीं है। आजकल चोरी सब जगह होती हैं। विलायत में भी पुरानी चीजें चोरी करके ले जाते हैं। जमाना बहुत डर्टी है, काम महाशत्रु है। वह सब कुछ भुला देता है। तो तुम्हारा सवेरे एक क्लास होता है एवरहेल्दी बनने का और फिर यह है एवरवेल्दी बनने का। बाप को याद भी करना है तो विचार सागर मंथन भी करना है। बाप को याद करेंगे तो वर्सा भी याद आयेगा। यह युक्ति बहुत सहज है। जैसे बाप बीजरूप है। झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। तुम्हारा भी धन्धा यह है। बीज को याद करने से पवित्र बनेंगे। चक्र को याद करेंगे तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे अर्थात् धन मिलेगा। राजा विक्रम और राजा विकर्माजीत दो संवत मिक्स कर दिये हैं। रावण आया तो विक्रम संवत शुरू हुआ, डेट बदल गई। वह चलता है एक से 2500 वर्ष, फिर चलता है 2500 से 5000 वर्ष तक। हिन्दुओं को तो अपने धर्म का पता नहीं। यह एक ही धर्म है जो असली अपने धर्म को भूल अधर्मी बने हैं। धर्म स्थापक को भी भूले हैं। तुम समझा सकते हो आर्य समाज कब शुरू हुआ। आर्य (सुधरे हुए) सतयुग में थे। अन आर्य अभी हैं। अब बाप आकर तुमको सुधारते हैं। तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है। जो अच्छे पुरूषार्थी हैं वह खुद भी जानते हैं, औरों को भी पुरूषार्थ कराते हैं। बाप है गरीब निवाज। गाँव वालों को सन्देश देना है। 6 चित्र काफी हैं। 84 के चक्र का चित्र बहुत अच्छा है। उस पर अच्छी तरह समझाओ। परन्तु माया इतनी प्रबल है जो सब-कुछ भुला देती है। यहाँ तो दोनों लाइट इकट्ठी हैं। एक बाप की, एक इनकी - दोनों जबरदस्त हैं। परन्तु यह कहते हैं तुम एक ही जबरदस्त लाइट को पकड़ो। सब बच्चे यहाँ भागते हैं। समझते हैं डबल लाइट है। बाप सम्मुख सुनाते हैं। गायन है तुम्हीं से सुनूँ, तुम्ही से बोलूँ... परन्तु ऐसे नहीं, यहाँ बैठ जाना है। 8 रोज़ काफी हैं। अगर बिठा दें तो ढेर हो जायें। ड्रामा अनुसार सब कुछ चलता रहता है। परन्तु तुमको आन्तरिक खुशी बहुत होनी चाहिए। वह खुशी उन्हें होती, जो आपसमान बनाते हैं। प्रजा बनावें तब राजा बनें। पासपोर्ट भी चाहिए। बाबा से कोई पूछे तो बाबा फट से कहते हैं अपने को देखो - मेरे में क्या अवगुण हैं? स्तुति-निंदा सब सहन करना पड़ता है। जो यज्ञ से मिले, उसमें खुश रहना है। यज्ञ के भोजन से तो बहुत लव चाहिए। सन्यासी थाली धोकर पीते हैं क्योंकि उनको भोजन का महत्व है। समय ऐसा आना है जो अनाज भी न मिले। तो सब कुछ सहन करना पड़ता है, तब पास हो सकेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) किसी में भी कोई अवगुण दिखाई दे तो अपना मुँह मोड़ लेना है। पढ़ाई से कभी रूठना नहीं है। दत्तात्रेय मिसल सबसे गुण उठाने हैं।

2) बाहर से बुद्धि निकाल अन्तर्मुखी रहने का अभ्यास करना हैं। धन्धेधोरी में रहते देही-अभिमानी रहना है। बहुत बातचीत में नहीं आना है।

वरदान:-

सुख स्वरूप बन हर आत्मा को सुख देने वाले मास्टर सुखदाता भव

जो बच्चे सदा यथार्थ कर्म करते हैं उन्हें उस कर्म का प्रत्यक्षफल खुशी और शक्ति मिलती है।

उनका दिल सदा खुश रहता है, उन्हें संकल्प मात्र भी दु:ख की लहर नहीं आ सकती।

संगमयुगी ब्राह्मण अर्थात्

दु:ख का नाम निशान नहीं क्योंकि सुखदाता के बच्चे हैं।

ऐसे सुख-दाता के बच्चे स्वयं भी मास्टर सुखदाता होंगे।

वे हर आत्मा को सदा सुख देंगे।

वे कभी न दु:ख देंगे न दु:ख लेंगे।

स्लोगन:-

मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह और सहानुभूति देना - यही रहमदिल आत्मा की निशानी है।