रावण दहन का आध्यात्मिक रहस्य


भारत में हर वर्ष रावण के हजारों पुतले जलाये जाते हैं सभी लोग जानते हैं कि पुतला हमेशा दुश्मन का ही जलाया जाता है और वह भी तब जब दुश्मन जिन्दा हों पुतला जलाने वाले हमेशा यह भी कोशिश करते हैं कि पुतला दुश्मन के घर या दफ्तर आदि के सामने ही जलायें ताकि उसे अपनी गलतियों का अहसास हो। मर जाने के बाद किसी का भी पुतला नहीं जलाया जाता। इस बात से सिद्ध है कि रावण अभी मरा नहीं है। इस प्रकार की भी रस्म है कि रावण का पुतला हर वर्ष पिछले वर्ष की भेंट में कुछ लम्बा बनाया जाता है अर्थात् रावण हर वर्ष बड़ा होता जाता है।

रावण के पुतले के दस सिर...

रावण के पुतले के दस सिर बनाये जाते हैं और उन सिरों के ऊपर एक गधे का सिर भी लगाते हैं। ऐसी मान्यता है कि रावण लंका का राजा था, वह बहुत बड़ा पण्डित विद्वान और वैज्ञानिक भी था। कहा जाता है कि रावण ने विज्ञान की शक्ति से प्रकृति को भी अपने वश में कर लिया था परन्तु इतना सब होते हुए भी उसको नाम राक्षस का ही दिया जाता है। इस बात को रामचरित्रमानस में इस प्रकार हा गया हैः-


काम, क्रोध, मद, लोभ की जिनके घट में खान।
पण्डित हो या मूर्खा दोनों एक समान।।


इसका अर्थ यह है कि मनुष्य चाहे कितना भी बड़ा राजा, पण्डित, विद्वान, वैज्ञानिक क्यों न हो अगर उसके जीवन में काम, क्रोध, मोह, अहंकार रूपी 5 विकार हैं ता वह मूर्ख या राक्षस ही माना जाएगा। इसी बात की निशानी के रूप में रावण के सिर पर गधे का सिर दिखाया जाता है। अतः रावण के ये इस सिर कलियुगी समाज के विकारों से ग्रस्त नर-नारियों के प्रतीक हैं। 5 विकार पुरूष के, 5 विकार स्त्री के, दोनों मिलाकर दस सिरों के रूप में दखाये जाते हैं । विकार मन में संकल्पों के रूप में जागृत होते हैं और मन का निवास आत्मा में, मस्तक के बीच भृकुटी में है। मन अति सूक्ष्म है, उसका चित्र बनाया तो नहीं जा सकता इसलिए चित्रकार ने मस्तक को ही विकारों का रूप देकर दस सिर बनायें हैं।
रावण शब्द पाली भाषा का है जिसका अर्थ है कि रूलाने वाला या दुःख देने वाला। देखा जाए तो पाँच विकार ही मनुष्य के सबसे बडे दुश्मन हैं जो सदा दुःख देते रहते हैं अथवा रूलाते रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि पाँच विकारों का प्रतीक है ही रावण।

सीता के अपहरण का अर्थ...

सीता के अपहरण का अर्थ भी बडा गुह्य है। जब आत्मा जीवन की पवित्र मर्यादाओं की रेखा को अर्थात् लक्ष्य रूपी लक्ष्मण-रंखा को, मृगतृष्ण रूपी सोने के हिरण के लालच में फंसकर पार कर जाती है अर्थात् मर्यादाओं को तोड़ देती है तो पाँच विकारों रूपी रावण की जेल में कैद हो जाती है। ऐसी आत्माओं को सर्वशक्तिवान , मुक्ति दाता, निराकार परमात्मा राम ही रावण की जेल से मुक्त करते हैं। राम शब्द निराकार परमपिता के लिये ही प्रयोग किया गया हैं।

श्रीलंका के इतिहास में रावण...

लंका भारत के दक्षिण में एक टापू है। वहाँ के इतिहास में रावण नाम के किसी राजा का वर्णन नहीं है। अतः लंकावासी, रामायण के साथ लंका के सम्बन्ध को ऐतिहासिक नहीं मानते। वास्तविक अर्थ यह है कि आज पृथ्वी के चारों ओर सागर-ही-सागर है और सारी दुनिया ही लंका यानि रावण राज्य बनी हुई है जिस पर रावण अर्थात् पाँच विकारों का ही साम्राज्य है क्योंकि दुनिया के सभी मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष आदि विकारों के अधीन होकर एक-दूसरे को दुःख देने वाले अर्थात् रूलाने वाले ही हैं। इसी कारण से ही वर्तमान समय सारी दुनिया में दुःख और अशान्ति फैली हुई है। रामचरित्रमानस में उत्तराखण्ड के चालीसवें दोहे में रावण अर्थात् राक्षसों के अवगुणों का वर्णन करते हुए लिखा हैः-


ऐसे अधम मनुज खल सतयुग त्रेता नाहि,
द्वापर कछुक बृन्दबहु होंही कलियुग माहि।


भावार्थ है कि रावण जैसे अधम, खल मनुष्य सतयुग और त्रेतायुग में होते ही नही, द्वापरयुग में थोडे कुछ होते हैं और कलियुग में कुछेक थोडे होते हैं और कलियुग में बहुत सारे रावण ही रावण होते हैं अर्थात् कलियुग मे सभी मनुष्य विकारों के अधीन हो जाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि रामायण का इस वृत्तान्त कलियुग के अन्तिम समय का ही है जबकि दुनिया के सभी नर और नारी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के अधीन होकर कर्म भ्रष्ट और धर्म भ्रष्ट बनकर अपने जीवन की पवित्र धारणाओं और मर्यादाओं को छोड देते है और सारे संसार में रावण का ही साम्राज्य हो जाता है। इसको ही रावण राज्य कहते हैं।

रामराज्य में सम्पूर्ण सुख- शान्ति होती थी...

वास्तव में सृष्टि-चक्र में सतयुग और त्रैतायुग को रामराज्य कहा जाता है जिसकी शास्त्रों में बहुत महिमा वर्णन की गई है। कहा जाता है कि रामराज्य में घी-दूध की नदियाँ बहती थी, शेर-बकरी भी एक घाट पर पानी पीते थे, वहाँ न पुलिस होती थी, न फौज, न डाक्टर, न अस्पताल होते थे, न ही वकील, जज और अदालतें होती थी। सभी मनुष्य निर्विकारी और पवित्र होने के कारण वहाँ सम्पूर्ण सुख- शान्ति होती थी।

गाँधी जी का रामराज्य का स्वप्न...

गाँधी जी भी ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा करते थे। रामराज्य की भेंट में द्वापरयुग और कलियुग को रावण राज्य कहते हैं। जहाँ सभी मनुष्य विकारों के अधीन होने के कारण एक-दूसरे को दुःख देते हैं अर्थात् रुलाते रहते हैं। जहाँ हर प्रकार के भौतिक साधन होते हुए भी घर-घर में लडाई-झगडा, कलह-क्लेश और दुःख-अशान्ति फैली होती है और समाज में भ्रष्टाचार, दुराचार, मिलावट, रिश्वतखोरी आदि- आदि बुराईयों का तूफान उमड़ा हुआ होता है। झूठ, कपट, बेईमानी, अत्याचार और दुराचार का बोलबाला होता है। ऐसे ही समय के लिए रामायण में लिखा हैः-


जब-जब होत धर्म की हानि,
बाढे अधम, असुर, अभिमानी।
तब-तब धरे प्रभु मनुष्य शरीरा,
करे असुर संहार, हरे सन्तन पीडा।


अर्थात् जिस समय संसार में अति धर्मग्लानी हो जाती है, मनुष्य अधम और असुर बन जाने हैं तब ही जन्म-मरण से न्यारे, सर्वशक्तिवान, निराकार प्रभु, जिनको विश्व-कल्याणकारी होने के कारण शिव नाम से याद किया जाता है और अति रमणीक और सुख-शान्ति के दाता होने के कारण राम नाम से भी याद किया जाता है फिर से साधारण मनुष्य के शरीर को धारण करते हैं।
यदि गहराई से विचार किया जाए तो स्पष्ट दिखाई देता है कि सृष्टि-चक्र में वर्तमान समय फिर से कलियुग के अन्त का समय आ पहुँचा है और सभी धर्मग्रन्थों में कथित कलियुग अन्त की सभी निशानियाँ भी प्रत्यक्ष दिखाई दे रही हैं। श्रीमद्भगवदगीता में भी इसको धर्मग्लानी का समय कहा गया है। सर्वशक्तिवान , पतित-पावन, निराकार, विश्व-कल्याणकारी परमात्मा शिव जिनको राम शब्द से भी याद किया जाता है, कल्प पूर्व की भाँति फिर से सृष्टि पर अवतरित होकर, प्रजापिता ब्रह्मा के साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करके ईश्वरीय ज्ञान एवं राजयोग की शिक्षा के द्वारा नई सतयुगी सृष्टि की स्थापना करा रहे हैं। संसार में फैले अधर्म के अन्त के लिए ही विश्व में चारों ओर काले बादल मंडरा रहे हैं अर्थात् रावण दहन की तैयारी भी हो रही है।
अतः रावण दहन के वास्तविक अर्थ को समझ कर ईश्वरीय ज्ञान और राजयोग की शिक्षा द्वारा अपने जीवन से काम, क्रोध आदि विकारों को भस्म कर, पवित्र और निर्विकारी बन कर आने वाले रामराज्य में ईश्वरीय सिद्ध अधिकार 2500 वर्षो तक प्राप्त करें। अभी नही तो कभी नहीं।

 

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This article was written by

BK BS Tyagi ji, Delhi, Shakti Nagar who left his physical body in 2019

( He was the laukik father of sister BK Geeta of Navsari, Gujrat )