1.00 क्रोध...

1.01 क्रोध का भूत ...

 

  • लौकिक में भी बाप को 5-7 बच्चे होते हैं तो उनमें से एक दो कपूत निकल पड़ते हैं।
  • इस बाप को कितने बच्चे हैं, तो कितने कपूत और सपूत होंगे।
  • कोई में काम की, कोई में क्रोध की प्रवेशता होगी।
  • घर में किसी एक को भी क्रोध होता है तो लड़ाई हो जाती है, क्रोधी घर को बड़ा दु:खी कर देता है।
  • यहाँ भी कोई में क्रोध का भूत है तो शिवबाबा का निंदक ठहरा ना।
  • बाप का नाम बदनाम कर देते हैं अर्थात् अपनी तकदीर को लकीर लगा देते हैं।
  • क्रोध बहुत बड़ा भारी दुश्मन है, जहाँ क्रोध, कलह-क्लेष होती है उनको नर्क कहा जाता है।
  • कहते हैं क्रोध घर के मटके का पानी भी सुखा देता है।
  • तो बाप समझाते हैं जिनमें क्रोध है उनको श्रीमत मिलती है कि क्रोध से किसको दु:खी मत करो, नहीं तो तकदीर में लकीर लग जायेगी।
  • बाबा कहते हैं मैं तुमको श्रृंगार करता हूँ कि ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनो फिर विकार मिट्टी में गिरा देते हैं।
  • क्रोध की धूल तंग करती रहती है, क्रोधी बहुत होते हैं।
  • हिंसा भी क्रोध है ना।
  • क्रोध के बिगर चढ़ाई कर न सकें।
  • प्रापर्टी का हिस्सा न मिला, गुस्सा लगा तो भाई को भी मार देते हैं।
  • यह लड़ाई क्रोध से शुरू होती है।
  • बाप समझाते हैं लाडले बच्चे क्रोध नहीं करो, नहीं तो तकदीर को लकीर लग जायेगी और जो साथी होंगे उनकी तकदीर को भी लकीर लग जायेगी।
  • क्रोध में आकर कहते तुम अगर हमारे घर में आये तो मार डालूँगा।
  • क्रोधी का मुँह देखना भी पाप हो जाता है।
  • हियर नो ईविल... क्रोधी का मुँह भी नहीं देखना चाहिए।
  • लोभ मोह भी कम नहीं है।
  • बच्चू बादशाह है काम, पीरू वजीर है क्रोध।
  • यह दोनों बड़े डाकू हैं।
  • क्रोध बड़ा गन्दा डाकू है।..."

- साकार मुरली - 25.02.2022

 

11.07.1971 "...रोब को भी अहंकार वा क्रोध की वंशावली कहेंगे। इसलिए रोब नहीं दिखाना है, लेकिन रूहाब में जरूर रहना है। जितना-जितना रहमदिल के साथ रूहाब में रहेंगे तो फिर रोब खत्म हो ही जायेगा। कोई कैसी भी आत्मा हो, रोब दिलाने वाला भी हो, तो रूहाब और रहमदिल बनने से रोब में कभी नहीं आयेंगे।..."

 

 

11.07.1971 "... कैसा भी कोई क्रोधी आदमी सामना करने वाला वा कोई इन्सल्ट करने वाला, गाली देने वाला हो, लेकिन जब कल्याण की भावना हर आत्मा प्रति रहती है तो रोब बदलकर रहम हो जायेगा।..."

 

25.08.1971 "...हर आत्मा के गुण और श्रेष्ठ कर्त्तव्य की महिमा करते रहो। 1. मेहमान, 2. महान् अन्तर और 3. महिमा। यह तीन बातें चलती रहें तो जो 7 कमियां हैं वह समाप्त हो जाएं। मेहमान न समझने के कारण कोई भी रूप वा रंगत में अट्रेक्शन और अटेन्शन जाता है। महान् अन्तर को सामने रखने से कभी भी देह-अहंकार वा क्रोध का अंश वा वंश नहीं रह सकता। तीसरी बात - बाप की वा हर आत्मा के गुणों की महिमा वा कर्त्तव्य की महिमा करते रहने से किसी द्वारा किसी बात की फीलिंग नहीं आ सकती। और सदैव गुणों और कर्त्तव्यों की महिमा करने से याद की यात्रा, असन्तुष्टता भी निरन्तर वा सहज याद में परिवर्तन हो जायेगी।..."

 

08.07.1973 "...जैसे हद के सिनेमा में भिन्न-भिन्न नाम से भिन्न-भिन्न खेल होते हैं। समझो नाम ही है-खूनी नाहक खेल-फिर उसमें अगर कोई भयानक व दर्दनाक सीन देखो तो विचलित होंगे क्या? क्योंकि समझते हो कि खेल ही खूनी नाहक का है। पहले से ही ऐसा समझकर फिर उसे देखेंगे। वैसे ही मानों कोई लड़ाई, झगड़े, क्रोधी की स्टोरीज़ हैं तो उसको देखकर हँसेंगे या रोयेंगे? जरूर हँसेंगे ना? क्योंकि जानते हो कि यह एक खेल है। ऐसे ही इस बेहद के खेल का नाम ही है - वैरायटी ड्रामा अर्थात् खेल। तो उसमें वैरायटी संस्कार व वैरायटी स्वभाव व वैरायटी परिस्थितियाँ देखकर कभी विचलित होंगे क्या? या उसे भी साक्षी हो एक-रस स्थिति में स्थित हो देखेंगे? तो अगर यह समझो व याद रखो कि यह एक वैरायटी खेल है तो जो पुरूषार्थ करने में मुश्किल समझते हो, क्या वह सहज नहीं हो जायेगा?..."

 

 

08.07.1974 "...कई बाप-दादा को ज्योतिषी समझ कर क्यू लगाते हैं। क्या हमारी बीमारी मिटेगी? क्या सर्विस में सफलता होगी? क्या मेरा फलाना सम्बन्धी ज्ञान में चलेगा? क्या हमारे गाँव व शहर में सर्विस वृद्धि को पावेगी? क्या व्यवहार में सफलता होगी? यह व्यवहार करूँ या यह व्यवहार छोडूं? बिजनेस करूँ या नौकरी करूँ? क्या मैं महारथी बन सकती हूँ? क्या आप समझते हो, कि मैं बनूँगी? ऐसे-ऐसे गृहस्थ-व्यवहार की छोटी-छोटी बातें, कि क्या मेरी सास का क्रोध कम होगा? मैं बांधेली या बाँधेला हूं, क्या मेरा बन्धन टूटेगा? क्या मैं स्वतन्त्र बनूंगी व बनूंगा अथवा कई यह भी विशेष बातें पूछते हैं कि क्या मैं टोटल सरेण्डर हूंगा? क्या मेरी यह इच्छा पूरी होगी? ऐसे यह भी क्यू होती है।..."

 

 

13.09.1974 "...मुरब्बी बच्चों के रोज के चार्ट की चैकिंग, यह नहीं होनी चाहिए कि किसी पर क्रोध तो नहीं किया या कोई असन्तुष्ट तो नहीं हुआ, ऐसी मोटी-मोटी बातें चैक करना-यह तो घुड़सवार व प्यादों का काम है। मुरब्बी बच्चों का पुरूषार्थ अभी तक इन बातों का नहीं होना चाहिए। अभी का पुरूषार्थ सर्व-शक्तियों के भरने का होना चाहिए। कोई भी एक शक्ति का न होना अर्थात् मुरब्बी बच्चों की लिस्ट से निकलना। ऐसे नहीं कि छ: शक्तियाँ तो मेरे में हैं ही और आठ शक्तियों में से दो नहीं हैं, तो फिर 50% से तो आगे हो गये हैं। इसमें भी खुश नहीं होना है। अष्ट शक्तियाँ तो मुख्य कहा जाता है। लेकिन होनी तो सर्व-शक्तियाँ चाहिए। ..."

 

 

18.06.1977 "...अगर कोई माया का रूप क्रोध के रूप में सामना करने आये तो किस रीति से विजयी बन सकते हो? कौन-कोन सी परिस्थितियों के रूप में माया सहनशक्ति के पेपर ले सकती है? वन इन एडवान्स (One In Advance;पहले से ही) विस्तार से बुद्धि द्वारा सामने लाओ। रीयल पेपर हॉल में जाने के पहले स्वयं का मास्टर बन स्वयं का पेपर लो, तो रीयल इम्तहान में कभी फेल नहीं होंगे। ऐसे एक-एक शक्ति के विस्तार और अभ्यास में जाओ। अभ्यास कम करते हैं, ‘व्यास’ सब बन गए हो, लेकिन अभ्यास नहीं करते हो। ..."

 

 

06.01.1979 "...जैसे कोई के क्रोध के संस्कार जन्म से होते हैं तो कहते हैं चाहते नहीं हैं, मेरे जन्म के संस्कार हैं, ऐसे यह जन्म के संस्कार स्वत:ही कार्य करते हैं। कभी स्वप्न में भी अपवित्रता के संकल्प नहीं आए इसको कहा जाता है प्यूरिटी की परसनाल्टी वाले। इस परसनाल्टी के कारण ही विश्व की आत्माएं आज तक नमस्कार कर रही हैं। महान आत्माओं को न जानते भी नमस्कार करते हैं, साधारण को नहीं, तो ऐसे महान हो ना।..."

 

 

03.12.1979 "...पाण्डवों में होता है - रौब और क्रोध। पाण्डव निक्रोधी बन गये हैं? क्या समझते हो? पाण्डवों ने इस पर विजय प्राप्त की है? ज़रा भी देहभान व रौब न हो। बिल्कुल ब्रह्माकुमार निर्माणचित्त बन जाए। क्रोध का छोड़ा है कि थोड़ा-थोड़ा शस्त्र की रीति से यूज़ करते हो! जो समझते हैं खत्म हो गया, वह हाथ उठाओ। कोई गाली भी दे, कोई झूठा इल्ज़ाम भी लगाये, लेकिन आपको क्रोध न आये। क्रोध आने की यही दो बातें होती हैं एक जब कोई झूठी बात कहता है, दूसरा ग्लानि करता है। यही दो बातें क्रोध को जन्म देती हैं। ऐसी परिस्थिति में भी क्रोध न आये, ऐसे हो? अपकारी के ऊपर उपकार करना, यही ब्राह्मणों का कर्म है। वह गाली दे आप गले लगाओ, यही है कमाल। इसको कहा जाता है परिवर्तन। गले लगाने वाले को गले लगाना - यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन निन्दा करने वाले को सच्चा मित्र मन से मानो, मुख से नहीं। ऐसे बने हो? जब ऐसा परिवर्तन हो जायेगा तो विश्व के आगे प्रसिद्ध हो जायेगा। जो दुनिया समझती है नहीं हो सकता, वह आप करके दिखाओ। तब कहेंगे - ‘कमाल’।..."

 

 

26.12.1979 "... क्रोधाग्नि के रूप में जो ईश्वरीय सम्पत्ति को जला रहा है, जोश के रूप में सबको बेहोश कर रहा है, यही क्रोध विकार परिवर्तित हो रूहानी जोश वा रूहानी खुमारी के रूप में बेहोश को होश दिलाने वाला बन जायेगा। क्रोध विकार सहन-शक्ति के रूप में परिवर्तित हो आपका एक शस्त्र बन जायेगा। जब क्रोध सहन शक्ति का शस्त्र बन जाता है तो शस्त्र सदैव शस्त्रधारी की सेवा अर्थ होते हैं। यही क्रोध अग्नि, योगाग्नि के रूप में परिवर्तन हो जायेगी जो आपको नहीं जलायेगी लेकिन पापों को जलायेगी। ..."

 

 

09.01.1980 "...ऑपरेशन वाले डॉक्टर, जैसे वह औजारों से ऑपरेशन करते हो वैसे अपने में जो शक्तियाँ हैं, यह शक्तियाँ ही यन्त्र हो जायें, जिन यन्त्रों द्वारा उनकी कमज़ोरियाँ समाप्त हो जायेंगी। जैसे अपने ही थियेटर के यन्त्रों द्वारा ऑपरेशन करते हो, पेशेन्ट के यन्त्र तो नहीं यूज़ करते हो ना, ऐसे अपनी शक्तियों के यन्त्र द्वारा बीमारी को ठीक कर दो, कामी को निष्कामी और क्रोधी को निक्रोधी बना दो। इसके लिए सहनशक्ति का यन्त्र यूज़ करना पड़े। तो ऐसे ऑपरेशन वाले डॉक्टर हो? जैसे उसमें आँख, नाक सबके अलग-अलग स्पेशालिस्ट होते हैं ऐसे यहाँ भी अलग-अलग विशेषतायें हैं। यहाँ भी जितनी कोई डिग्री लेना चाहे तो ले सकता है। जो सर्व विशेषताओं में ऑलराउन्डर हो जाते हैं वे नामीग्रामी हो जाते हैं।..."

 

 

15.04.1981 "...सदा अपनी श्रेष्ठ तकदीर को स्मृति में रख समर्थ स्वरूप में रहो। ऐसे ही अनुभव करते हो ना! जो बाप के गुण वह हमारे गुण। सदा अपना अनादि असली स्वरूप स्मृति में रहता है ना! माया के नकली स्वरूप के स्वाँग तो नहीं बन जाते हो? जैसे ड्रामा करते हो तो नकली फेस लगा देते हो ना! जैसा गुण जैसा कर्त्तव्य वैसा ही फेस लगा देते हैं। तो नकली स्वरूप पर हँसी आती है ना। ऐसे माया भी नकली गुण और कर्त्तव्य का स्वरूप बना देती है। किसको क्रोधी, किसको लोभी बना देती है। किसको दु:खी, किसको अशान्त। लेकिन असली स्वरूप इन बातों से परे है। तो सदा उसी स्वरूप में स्थित रहो। ..."

 

 

22.10.1981 "...चाहे कोई कैसा भी संस्कार वाला हो लेकिन या दया वा कृपा की भावना वा दृष्टि पत्थर को भी पानी कर सकती है। अपोजीशन वाले अपनी पोजीशन में टिक सकते हैं। स्वभाव के टक्कर खाने वाले ठाकुर बन सकते हैं। क्रोध- अग्नि, योग-ज्वाला बन जायेगी। अनेक जन्मों के कड़े हिसाब-किताब सेकण्ड में समाप्त हो नया सम्बन्ध जुट जायेगा। कितना भी विरोधी है - वह इस विधि से गले मिलने वाले हो जायेंगे। लेकिन इन सबका आधार है -"दया भाव''। दया भाव की आवश्यकता ऐसी परिस्थिति और ऐसे समय में है! समय पर नहीं किया तो क्या मास्टर दया के सागर कहलायेंगे? जिसमें दया भाव होगा वह सदा निराकारी, निर्विकारी और निरअहंकारी होगा।..."

 

 

01.11.1981 "...कई कहते हैं - हमने क्रोध नहीं किया लेकिन मेरे बोलने के संस्कार ही ऐसे हैं। इससे क्या सिद्ध हुआ? अल्पकाल के संस्कार भी स्वत: ही बोल और कर्म कराते रहते हैं। तो सोचो-अनादि,आरिजनल संस्कार आप श्रेष्ठ आत्माओं के कौन से हैं? सदा सम्पन्न और सफलतामूर्त्त। सदा वरदानी और महादानी- तो यह संस्कार स्मृति में रहने से स्वत: ही सर्व के प्रति कृपा-दृष्टि रहती ही है। अल्पकाल के संस्कारों को अनादि संस्कारों से परिवर्तन करो। तो भिन्न-भिन्न प्रकार के विघ्न, अनादि संस्कार इमर्ज होने से सहज समाप्त हो जायेंगे। ..."

 

 

13.11.1981 "...साइलेन्स की शक्ति क्रोध-अग्नि को शीतल कर देती है। साइलेन्स की शक्ति व्यर्थ संकल्पों की हलचल को समाप्त कर सकती है। साइलेन्स की शक्ति ही कैसे भी पुराने संस्कार हों, ऐसे पुराने संस्कार समाप्त कर देती है। साइलेन्स की शक्ति अनेक प्रकार के मानसिक रोग सहज समाप्त कर सकती है। साइलेंन्स की शक्ति, शान्ति के सागर बाप से अनेक आत्माओं का मिलन करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति अनेक जन्मों से भटकती हुई आत्माओं को ठिकाने की अनुभूति करा सकती है। महान आत्मा, धर्मात्मा सब बना देती है। साइलेन्स की शक्ति सेकण्ड में तीनों लोकों की सैर करा सकती है। समझा कितनी महान है? साइलेन्स की शक्ति- कम मेहनत, कम खर्चा बालानशीन करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति- समय के खज़ाने में भी एकानामी करा देती है अर्थात् कम समय में ज्यादा सफलता पा सकते हो। साइलेन्स की शक्ति हाहाकार से जयजयकार करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति सदा आपके गले में सफलता की मालायें पहनायेंगी। जयजयकार भी हो गई, मालायें भी पड़ गई, बाकी क्या रहा? सब कुछ हो गया ना! तो सुना आप कितने महान हो? महान शक्ति को कार्य में कम लगाते हो।..."