जरा सोचिए सर्वशक्तिवान शिवबाबा, जिस प्रभु की याद से हमारी जन्म-जन्मान्तर की तकदीर बदल जाती है तो उसकी याद हम क्यों भूल जाते है?...


07.02.2020 - Sakar Murli

01 - अपने को आत्मा समझकर बाप को कितना समय याद किया-इस चार्ट रखने में बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए।

देही-अभिमानी हो बाप को याद करो तब विकर्म विनाश हों।

 

02 - अभी तुम्हें बाप को याद करना पड़े।

बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, यथार्थ रीति मुझे कोई नहीं जानते।

बच्चों में भी नम्बरवार हैं।

बाप को यथार्थ रीति याद करना है।

वह भी इतनी छोटी बिन्दी है, उनमें यह सारा पार्ट भरा हुआ है।

बाप को यथार्थ रीति जानकर याद करना है, अपने को आत्मा समझना है।

 

03 - अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है।

आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो यह सिमरण करना है।

 

04 - सर्व का सद्गति दाता, सर्व का लिबरेटर, पतित-पावन एक बाप गाया हुआ है, उनको याद करते हैं कि हे गॉड फादर रहम करो।

 

05 - मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और तुम विष्णुपुरी के मालिक बन जायेंगे।

 

06 - अब राजयोग कौन सिखलावे?

जो कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश हों।

 

07 - आत्मा को बाबा की स्मृति आई है इसलिए हम बाप को याद करते हैं कि आकर सच्ची-सच्ची कथा सुनाओ नर से नारायण बनने की।

 

08 - अब आत्माओं को बाप कहते हैं मुझे याद करो।

 

09 - अपने को आत्मा समझकर बाप को कितना समय याद किया, इस चार्ट रखने में बड़ी विशालबुद्धि चाहिए।

देही-अभिमानी हो बाप को याद करना पड़े तब विकर्म विनाश हों।

नॉलेज तो बड़ी सहज है, बाकी आत्मा समझ बाप को याद करते अपनी उन्नति करनी है।

यह चार्ट कोई बिरले रखते हैं।

देही-अभिमानी हो बाप की याद में रहने से कभी किसको दु:ख नहीं देंगे।

 

10 - बाप की याद से सब भूत भागेंगे, बड़ी गुप्त मेहनत है।

 

 

26.01.1970

"...जितना ऊपर स्थिति जाएगी, उतना उपराम होते जायेंगे। शरीर में होते हुए भी उपराम अवस्था तक पहुंचना है। बिलकुल देह और देही अलग महसूस हो। उसको कहा जाता है याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज। वा योग की प्रैक्टिकल सिद्धि। बात करते-करते जैसे न्यारापन खींचे।...

"

19.03.1982



“...याद में बहुत फायदे भरे हैं - जितना याद करेंगे उतना शक्ति भरती जायेगी, सहयोग भी प्राप्त होगा। और सेवा भी हो जायेगी।...”

 

09.01.1983


“...योग में बैठने समय बापदादा के गुणों के गीत गाओ। तो खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। खुशी के बिना सिर्फ यह प्रयत्न करते हो कि मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, तो इस मेहनत के कारण दर्द भी फील होता है। खुशी में रहो तो दर्द भी भूल जायेगा।...”


“... ऐसे तपस्वीमूर्त वा त्यागमूर्त बनना है जो

आपके त्याग और तपस्या की शक्ति के आकर्षण दूर से प्रत्यक्ष दिखाई दें।

जैसे स्थूल अग्नि वा प्रकाश अथवा गर्मी दूर से ही दिखाई देती है वा अनुभव होती है।

वैसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही आकर्षण करे।

हर कर्म में त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष दिखाई दे। तब ही सेवा में सफलता पा सकेंगे।

सिर्फ सेवाधारी बनकर सेवा करने से जो सफ़लता चाहते हो, वह नहीं हो पाती है।

लेकिन सेवाधारी बनने के साथ-साथ त्याग और तपस्यामूर्त भी हो तब सेवा का प्रत्यक्षफल दिखाई देगा।...”