28.09.1969 अव्यक्त बापदादा मधुबन

"...आप समान औरों को अपने से भी ऊंच बनाना है।

कम नहीं।

हम से ऊंचा कोई बने, यह भी तो अपनी ऊंचाई है ना। ..."

 

 

 

 

21.01.1971 अव्यक्त बापदादा मधुबन

"...अलौकिक जन्म का हर कर्म सर्विस प्रति हो।

जितना सर्विस करेंगे उतना भविष्य ऊंचा।..."

 

 

 

 

09.04.1971अव्यक्त बापदादा मधुबन

"... लक्ष्य बहुत ऊंचा है कि हम पाँच तत्वों को भी पावन करने वाले हैं, परिवर्तन में लाने वाले हैं।

वह वायुमण्डल के वश कभी हो सकते हैं?

परिवर्तन करने वाले हो, न कि प्रकृति के आकर्षण में आकर परिवर्तन में आने वाले हो। ..."

 

 

 

 

18.04.1971अव्यक्त बापदादा मधुबन

"...ऐसी महीनता में जाने वाले, सम्पूर्ण स्थिति में स्थित रहने वाले महान् आत्माओं के आगे सभी जरूर सिर झुकायेंगे।

स्थूल सिर झुकायेंगे क्या?

सिर होता है सभी से ऊंचा।

तो सिर झुकाया गोया सारा झुकाया।

तो आजकल जो अपने को ऊंच महान समझते हैं वा अपने कर्त्तव्य को ऊंच महान समझते हैं वह सिर झुकायेंगे अर्थात् महसूस करेंगे कि इस श्रेष्ठ कर्त्तव्य के आगे हम सभी के कर्त्तव्य तो कुछ भी नहीं हैं।..."

 

 

 


06.05.1971अव्यक्त बापदादा मधुबन

"...अगर सदैव अपने को विश्व-परिवर्तन के आधारमूर्त समझो तो हर कर्म ऊंचा होगा।

फिर साथ-साथ उदारचित अर्थात् सर्व आत्माओं के प्रति सदैव कल्याण की भावना वृत्ति-दृष्टि में रहने से हर कर्म श्रेष्ठ होगा।

तो अपना हर कर्म ऐसे करो जो यादगार बनने योग्य हो।..."

 

 

 


22.06.1971अव्यक्त बापदादा मधुबन

"...जैसे कोई का निवास-स्थान ऊंचा होता है, लेकिन कोई कार्य के लिए नीचे उतरते हैं तो नीचे उतरते हुए भी अपना निजी स्थान नहीं भूलते हैं।

ऐसे ही अपनी ऊंची स्थिति अर्थात् असली स्थान को क्यों भूल जाते हो?

ऐसे ही समझकर चलो कि अभी-अभी अल्पकाल के लिए नीचे उतरे हैं कार्य

करने अर्थ, लेकिन सदाकाल की ओरिज़िनल स्थिति वही है।

फिर कितना भी कार्य करेंगे लेकिन कर्मयोगी के समान कर्म करते हुए भी अपनी निज़ी स्थिति और स्थान को भूलेंगे नहीं।

यह स्मृति ही समर्थी दिलाती है।

स्मृति कम है तो समर्थी भी कम है। ..."

 

 

 

 

28.07.1971अव्यक्त बापदादा मधुबन

"...अगर संकल्प, वाचा, कर्मणा - तीनों अलौकिक होंगे तो फिर अपने को इस लोक के निवासी नहीं समझेंगे।

समझेंगे कि इस पृथ्वी पर पांव नहीं हैं अर्थात् बुद्धि का लगाव इस दुनिया में नहीं है।

बुद्धि रूपी पांव देह रूपी धरती से ऊंचा है।

यह खुशी की निशानी है।

जितना-जितना देह के भान की तरफ से बुद्धि ऊपर होगी उतना वह अपने को फरिश्ता महसूस करेगा।

हर कर्त्तव्य करते बाप की याद में उड़ते रहेंगे तो उस अभ्यास का अनुभव होगा। ..."

 

 

 


01.08.1971 अव्यक्त बापदादा मधुबन

"...पहाड़ ऊंचा होता है ना धरती से?

तो पाण्डव धरती अर्थात् नीचे की स्टेज को छोड़कर जब ऊंची स्टेज पर जाते हैं तो अपने पास्ट के वा ईश्वरीय मर्यादाओं के विपरीत जो संस्कार, स्वभाव, संकल्प, कर्म वा शब्द जो भी हैं उसमें अपने को मरजीवा बनाया अर्थात् गल गये।

तो आप भी धरती से ऊंचे चले गये थे ना।

पूरे गल कर आये हो वा कुछ रखकर आये हो?

अपने में 100% निश्चय-बुद्धि हैं तो उनकी कभी हार नहीं हो सकती।

एक चाहिए हिम्मत, दूसरा, फिर हिम्मत के साथ-साथ उल्लास भी चाहिए।

अगर हिम्मत और उल्लास नहीं, तो भी प्रैक्टिकल में शो नहीं हो सकता।

इसलिए दोनों साथ- साथ चाहिए। ..."