1.

"... बाप-दादा हरेक की तस्वीर से हरेक की तकदीर और तदबीर देखते है कहाँ तक अपनी तकदीर बनाते है।

आप भी जब किसको देखते हो तो हरेक की तस्वीर से उनकी तदबीर, उनके पुरुषार्थ का जो विशेष गुण है, वही देखना है।

हर एक के पुरुषार्थ में विशेष गुण जरुर होता है।

उस गुण को देखना है।

एक होता है गुण और गुण के साथ-साथ फिर होता है गुणा।

शब्द कितना नजदीक है लेकिन वह क्या, वह क्या।

अगर गुण नहीं देखते हो तो गुणा लग जाता है।

तो हरेक के गुण को देखना है तो गुणा जो लगता है वह खत्म हो जायेगा।"

 

Ref:-

1969/20.10.1969

“बिन्दु और सिन्धु की स्मृति से सम्पूर्णता”

 

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