Freedom

13.06.1973

"...अपने को सम्पूर्ण स्वतन्त्र समझते हो?

या कोई बात में परतन्त्र भी हो?

सम्पूर्ण स्वतन्त्र अर्थात् जब चाहो इस देह का आधार लो, जब चाहो इस देह के भान से ऐसे न्यारे हो जाओ जो जरा भी यह देह अपनी तरफ खींच न सके।

ऐसे अपनी देह के भान अर्थात् देह के लगाव से स्वतन्त्र, अपने कोई भी पुराने स्वभाव से भी स्वतन्त्र, स्वभाव से भी बन्धायमान न हो।

अपने संस्कारों से भी स्वतन्त्र।

अपने सर्व लौकिक सम्पर्क वा अलौकिक परिवार के सम्पर्क के बन्धनों से भी स्वतन्त्र।

ऐसे स्वतन्त्र बने हो?

ऐसे को कहा जाता है-’सम्पूर्ण स्वतन्त्र’।..."

 

 

"...ऐसे श्रेष्ठ जन्म, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ जीवन, श्रेष्ठ सेवा में सदा चलने वाले श्रेष्ठ आत्माओं, विश्व-कल्याणकारी आत्माओं और सर्व-बन्धनों से सम्पूर्ण स्वतन्त्र आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार, नमस्ते। ..."

 

 

 

 

 

30.06.1973

"...जो कर्म के भोग के वश हो जाते हैं अर्थात् कर्म के भोग भोगने में अच्छे वा बूरे में कर्म के वशीभूत हो जाते हैं।

आप श्रेष्ठ आत्माएं कर्मातीत अर्थात् कर्म के अधीन नहीं, कर्मों के परतन्त्र नहीं।

स्वतन्त्र हो कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराते हो?

जब कोई भी आप लोगों से पूछते हैं कि क्या सीख रहे हो या क्या सीखने के लिये जाते हो तो क्या उत्तर देते हो?

सहज ज्ञान और राजयोग सीखने जा रहे हैं।

यह तो पक्का है न कि यही सीख रहे हो।

जब सहज ज्ञान कहते हो तो सहज वस्तु को अपनाना और धारण करना सहज है तब तो सहज ज्ञान कहते हो न?

तो सदा ज्ञान स्वरूप बन गये हो?

जब सहज ज्ञान है तो सदा ज्ञान स्वरूप बनना क्या मुश्किल है?

सदा ज्ञान स्वरूप बनना यही ब्राह्मणों का धन्धा है। ..."

 

 

 

 

16.06.1969

"...अपनी वृत्ति-दृष्टि से सर्विस करने में कोई बन्धन नहीं हैं।

जिस बात में स्वतन्त्र हो वह सर्विस करनी चाहिए।..."

 

 

 

 

 

21.01.1971

"...बांधेली स्वतन्त्र रहने वालों से अच्छी हैं।

स्वतन्त्र अलबेले रहते हैं।

बांधेली की लगन अच्छी रहती है।

याद को पावरफुल बनाओ।

याद कम होगी तो शक्ति नहीं मिलेगी।

याद में रहते यह व्यर्थ न सोचो कि सर्विस नहीं करती।

उस समय भी याद में रहो तो कमाई जमा होगी।

यह सोचने से याद की पावर कम होगी।

बन्धन से मुक्त करने के लिए अपनी चलन को चेन्ज करो।..."

 

 

 

 

05.03.1971

"... विघ्न तो आयेंगे लेकिन जब आवश्यक बात समझी जाती है तो उसका प्रबन्ध भी किया जाता है।

जैसे आपकी प्रवृत्ति में कई आवश्यक बातें सामने आती हैं तो प्रबन्ध करते हो ना।

इस रीति अपने को स्वतन्त्र बनाने के लिए भी कोई न कोई प्रबन्ध रखो।..."

 

 

 

"...प्लैन रचना चाहिए कैसे अपने बन्धन को हल्का कर सकती हैं।

कई चतुर होते हैं तो अपने बन्धनों को मुक्त करने के लिए युक्ति रचते हैं।

ऐसे नहीं कि प्रबन्ध मिले तो निकल सकती हूँ।

प्रबन्ध अपने आप करना है।

अपने आप को स्वतन्त्र करना है। दूसरा नहीं करेगा।..."

 

 

 

"...उमंग ढीला होता है तो प्रबन्ध भी नहीं मिलता, मददगार कोई नहीं मिलता।

इसलिए हिम्मतवान बनो तो मददगार भी कोई न कोई बन जायेंगे।

अब देखेंगे कि अपने को स्वतन्त्र बनाने की कितनी शक्ति हरेक ने अपने में भरी है।

मायाजीत तो हो।

लेकिन अपने को स्वतन्त्र बनाने की शक्ति भी बहुत ज़रूरी है।

यह पेपर होगा कि शक्ति कहाँ तक भरी है।

जो प्रवृत्ति में रहते स्वतन्त्र बन मददगार बनेंगी उनको इनाम भी भेजेंगे।..."

 

 

 

 

 

20.05.1972

"...ज्ञानस्वरूप होने के बाद वा मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर सर्वशक्तिवान होने के बाद अगर कोई ऐसा कर्म जो युक्तियुक्त नहीं है वह कर लेते हो, तो इस कर्म का बन्धन अज्ञान काल के कर्मबन्धन से पद्मगुणा ज्यादा है।

इस कारण बन्धन-युक्त आत्मा स्वतन्त्र न होने कारण जो चाहे वह नहीं कर पाती।

महसूस करते हैं कि यह न होना चाहिए, यह होना चाहिए, यह मिट जाए, खुशी का अनुभव हो जाए, हल्कापन आ जाए, सन्तुष्टता का अनुभव हो जाए, सर्विस सक्सेसफुल हो जाए वा दैवी परिवार के समीप और स्नेही बन जाएं।

लेकिन किये हुए कर्मों के बन्धन कारण चाहते हुए भी वह अनुभव नहीं कर पाते हैं।

इस कारण अपने आपसे वा अपने पुरूषार्थ से अनेक आत्माओं को सन्तुष्ट नहीं कर सकते हैं और न रह सकते हैं।

इसलिए इस कर्मों की गुह्य गति को जानकर अर्थात् त्रिकालदर्शा बनकर हर कर्म करो, तब ही कर्मातीत बन सकेंगे।

छोटी गलतियां संकल्प रूप में भी हो जाती हैं, उनका हिसाब-किताब बहुत कड़ा बनता है।

छोटी गलती अब बड़ी समझनी है।..."