अव्यक्त बापदादा 18.01.1969
"...एक बड़ा सुन्दर दरवाजा था जो अचानक खुला - जिन्हों के पास टिकेट थी वह तो दरवाजे के अन्दर चले गये और जिनके पास टिकेट नहीं थी वह बड़े ही पश्चाताप से देख रहे थे।
उस गेट पर लिखा हुआ था - "Swarg Ka Dwar''।
बाबा ने रहस्य सुनाया - कि परमात्मा बाप सभी बच्चों द्वारा सतयुगी नई सृष्टि स्वर्ग में चलने की टिकेट दिला रहे हैं।
परन्तु कई बच्चे सोच रहे हैं कि अब नहीं बाद में ले लेंगे।
लेकिन ऐसे न हो कि यह टिकेट मिलना बन्द हो जाए और स्वर्ग में जाने से वंचित हो जायें। ..."
"...चौथी सीन - स्वर्ग की दिखाई।
स्वर्ग में आत्मायें कैसे छोटे-छोटे बच्चों में प्रवेश हो रही हैं।
तो यह सभी स्टेजेस सीढ़ी के चित्र के रूप में दिखाई।
यह सीढ़ी दिखाने का रहस्य बताते हुए बाबा ने कहा, बच्चों की बुद्धि में यह घूमता रहे कि अब हमारी क्या स्टेज है।
जो अन्तिम स्टेज धारण करनी है वह लक्ष्य पहले से ही बुद्धि में रखेंगे तो पुरूषार्थ तेज चलेगा।..."
अव्यक्त बापदादा 07.05.1969
"..."स्वर्ग का स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है"।
और संगम के समय बाप का खजाना जन्म सिद्ध अधिकार है।
यह सलोगन भूल गये हो।
अधिकार भूल गये हो तो क्या होगा?
हम किस -किस चीजों के अधिकारी हैं।
वह तो जानते हो।
लेकिन हमारे यह सभी चीज़ें जन्म सिद्ध अधिकार हैं।
जब अपने को अधिकारी समझेंगे तो माया के अधीन नहीं होंगे।
अधीन होने से बचने लिये अपने को अधिकारी समझना है।
पहले संगमयुग के सुख के अधिकारी हैं और फिर भविष्य में स्वर्ग के सुखों के अधिकारी हैं।
तो अपना अधिकार भूलो नहीं।..."
अव्यक्त बापदादा 06.07.1969
"...आप सब बच्चों का शुरू से लेकर अन्त तक बाप सेवक है।
सेवा करने लिए सदैव तैयार है।
बाप को कितना फखुर रहता है -हमारे बच्चे सिरमोर हैं, आँखों के सितारे हैं।
जिन्हों के लिए स्वर्ग स्थापन हो रहा है।
उस स्वर्ग के वासी बनाने के लिए तैयार कर रहे हैं।
जो समझते हैं हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे इतना लक्ष्य पकड़कर फिर भी गफलत करते रहते हैं तो इसलिए बापदादा फिर भी सेवा करने आये हैं।..."
अव्यक्त बापदादा - 16.07.1969
"...इन गोपों के परिवर्तन के उत्साह से आपको (कुमारका दादी को) क्या-क्या देखने में आता है?
जैसे आंधी को देखकर मालूम पड़ता है कि वर्षा आने वाली है। इस परिवर्तन के उमंग से आप क्या समझती हो?
परिवर्तन क्या पहचान देता हैं?
इस परिवर्तन का उमंग खास इस बात की पहचान देता है कि अभी प्रत्यक्षता का समय नजदीक है।
पहले प्रत्यक्षाता होगी फिर इस सृष्टि पर स्वर्ग प्रख्यात होगा।
तो यह पहचान देता है प्रत्यक्षता की।
वर्तमान समय देखा जाता है कि हरेक वत्स अपनी-अपनी प्रत्यक्षता प्रत्यक्ष रूप में ला रहे हैं। ..."
अव्यक्त बापदादा 03.10.1969
"...जैसे छापा न लगी चीज की वैल्यू कम होती जाती है।
उसी रीति से आप आत्माओं की भी स्वर्ग में वैल्यू कम हो जायेगी।
तो अपनी राजधानी में समीप आने लिए यह छापा लगाना ही पड़ेगा।..."
अव्यक्त बापदादा25.10.1969
"...देवियों पर बलि चढ़ते है तो शक्तियाँ वा देवियाँ ही बिगर झाटकू स्वीकार नहीं करती है तो क्या बाप-दादा ऐसे को स्वीकार कर सकता है।
अगर यहाँ स्वीकार न किया तो स्वर्ग में ऊँच पद की स्वीकृति नहीं मिलेगी।
इसलिये सुनाया था कि जो सोचना है वही कहना है, जो कहना है वही करना है।
सोचना, कहना, करना तीनों ही एक होना चाहिये।..."
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