1.

"...पालना करने के समय कल्याणकारी भावना वा वृति रख कर कोई भी आत्मा की पालना करो तो कैसी भी अपकारी आत्मा पर अपनी पालना से उनको उपकारी बना सकते हो। कैसी भी पतित आत्मा को, पतित-पावन के वृति से पावन बना सकते हैं। अगर उनका पतितपना देखेंगे तो नहीं हो सकेगा। जैसे माँ कब बच्चे की कमजोरियों को वा कमियों को नहीं देखती है, उनको ठीक करने का ही रहता है। तो यह पालना करने का कर्त्तव्य इस रूप में सदा स्थित रहने से यथार्थ चल सकता है। जैसे माँ में दो विशेष शक्तियाँ सहन करनी की और समाने की होती हैं। वैसे ही हर आत्मा की पालना करने समय भी यह दोनों शक्तियाँ यूज करें तो सफलता ज़रूर हो। लेकिन अपने को जगत्-माता वा जगत्-पिता के रूप में स्थित रह करेंगे तो। अगर भाई बहन का रूप देखेंगे तो उसमें संकल्प आ सकता है। लेकिन मॉं-बाप के समान समझो। मॉं-बाप बच्चे का कितना सहन करते हैं, अन्दर समाते हैं तब उनकी पालना कर उसको योग्य बना सकते हैं।"

 

 

Ref:-

1972/12.03.1972
सफ़लता का आधार - संग्रह और संग्राम करने की शक्ति