Today's Murli | पवित्र मन रखो... |
शिवभगवानुवाच - ब्राह्मण कुलभूषण आत्माओं प्रति 12.01.1984 "...सदा अपने को समझो कि बाप के हैं और सदा ही बाप के रहेंगे।
यह दृढ़ संकल्प सदा ही आगे बढ़ाता रहेगा।
ज्यादा कमज़ोरियों को सोचो नहीं।
कमज़ोरियों को सोचते-सोचते भी और कमज़ोर हो जाते हैं।
मैं बीमार हूँ, बीमार हूँ, कहने से डबल बीमार हो जाते हैं।
मैं इतनी शक्तिशाली नहीं हूँ, मेरा योग इतना अच्छा नहीं है, मेरी सेवा इतनी अच्छी नहीं हैं।
मैं बाबा की प्यारी हूँ वा नहीं हूँ।
पता नहीं आगे चल सकूँगी वा नहीं - यह सोच भी ज्यादा कमज़ोर बनाता है।
पहले माया हल्के रूप में ट्रायल करती है और आप उसको बड़ा रूप कर देते हो तो माया को चाँस मिल जाता है, आपका साथी बनने का।
वह सिर्फ ट्रायल करती है लेकिन उसकी ट्रायल को न जानकर समझते हो कि मैं हूँ ही ऐसी, इसलिए वह भी साथी बन जाती है।
कमज़ोरों की साथी माया है। कभी भी कमज़ोर संकल्पों को बार-बार न वर्णन करो न सोचो।
बार-बार सोचने से भी स्वरूप बन जाते हैं।
सदा यह सोचो कि मैं बाबा का नहीं बनूँगा तो और कौन बनेगा! मैं ही था वा मैं ही थी। मैं ही हूँ। कल्प-कल्प मैं ही बनूँगी - यह संकल्प तन्दरूस्त, मायाजीत बना देंगे।..."
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