6.12.1969 | Read Full Murli

बी के भाई-बहनों को कैसी रिद्धि-सिद्धि अवश्य सीखना चाहिए...

"...वह लोग रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करते हैं लेकिन यहाँ योग की रिद्धि-सिद्धि है।

याद की रिद्धि-सिद्धि क्या होती है, वह सीखना है।

जो सिद्धि को प्राप्त होते है उनके संकल्प, शब्द और हर कर्म सिद्ध होता है।

एक संकल्प भी व्यर्थ नहीं उठेगा।

संकल्प वह उठेंगे जो सिद्ध होंगे।

सर्विस-एबुल ( serviceable ) उसको कहा जाता है जिसका एक भी संकल्प बिना सिद्धि के न जाये।

अथवा ऐसा कोई संकल्प न उठना चाहिए जो सिद्ध होने वाला न हो।

आप के एक-एक संकल्प की वैल्यू है।

लेकिन जब अपनी वैल्यू को खुद रखेंगे तब अनेक आत्मायें भी आप रत्नों की वैल्यू को परखेगी।..."

 

 

 

26.01.1970 अव्यक्त बापदादा

"...शरीर में होते हुए भी उपराम अवस्था तक पहुंचना है।

बिलकुल देह और देही अलग महसूस हो।

उसको कहा जाता है याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज।

वा योग की प्रैक्टिकल सिद्धि। ..."

 

 

 


23.03.1970 अव्यक्त बापदादा

"...देवियों का गायन है ना कि वह सभी को सिद्धि प्राप्त कराती हैं।

कोई को भी रिद्धि सिद्धि प्राप्त करनी होती है तो किन्हों से प्राप्त करते हैं?

रिद्धि सिद्धि प्राप्त कराने वाली कौन हैं? देवियाँ।

जब पुरुषार्थ की विधि सम्पूर्ण हो जाती है तब यह सिद्धि भी प्राप्त होती है।

कभी भी सिद्धि को प्राप्त करने के लिए बापदादा के पास नहीं आयेंगे।

देवियों के पास जायेंगे।

देवियाँ स्वयं सिद्धि प्राप्त की हुई हैं।

तब दूसरों को रिद्धि सिद्धि दे सकती हैं।

तुम्हारे पुरुषार्थ की सिद्धि तब होगी जब संस्कारों का मिलन होगा।..."

 

 

 


"...अंतिम सिद्धि का स्वरुप बनकर दिखाना है।

यह संगठन संस्कारों को मिलाने के लिए है।

कोई भी चीज़ को जब मिलाया जाता है तो क्या करना होता है?

संस्कारों को मिलाने के लिए दिलों का मिलन करना पड़ेगा।

दिल के मिलन से संस्कार भी मिलेंगे तो संस्कारों को मिलाने के लिए भुलाना, मिटाना और समाना यह तीनों ही बातें करनी पड़ेंगी।

कुछ मिटाना पड़ेगा, कुछ भुलाना पड़ेगा, कुछ समाना पाएगा – तब यह संस्कार मिल ही जायेंगे।

यह है अंतिम सिद्धि का स्वरुप बनना। ..."

 

 

 

 

 

24.07.1970 अव्यक्त बापदादा

"...शुरू शुरू में अव्यक्त स्थिति का अभ्यास करने के लिए कितना एकांत में बैठ अपना व्यक्तिगत पुरुषार्थ करते थे।

वैसे ही इस फाइनल स्टेज का भी पुरुषार्थ बीच-बीच में समय निकाल करना चाहिए।

यह है फाइनल सिद्धि की स्थिति। ..."

 

 

 


"...बिन्दुरूप की सम्पूर्ण सिद्धि की अवस्था को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना पड़े।

अभी जिस रीति चल रहे हैं उस हिसाब से तो सभी यही कहते हैं कि बहुत बिजी रहते हैं, एकांत का समय कम मिलता है, अपने मनन का समय भी कम मिलता है।

लेकिन समय कहाँ से आएगा।

दिन प्रतिदिन सर्विस भी बढती जानी है और समस्याएं भी बढती जानी हैं।

और यह जो संकल्पों की स्पीड है वह भी दिन प्रतिदिन बढ़ेगी।

अभी एक सेकंड में जो दस संकल्प करते हो उसकी डबल ट्रिपल स्पीड हो जाएगी।

जैसे आजकल जनसंख्या का हिसाब निकालते हैं ना कि एक दिन में कितनी वृद्धि होती है।

यहाँ फिर यह संकल्पों की स्पीड तेज़ होगी।

एक तरफ संकल्पों की, दूसरी तरफ ईविल स्पिरिट्स (आत्माओं) की भी वृद्धि होगी।

लेकिन इसके लिए एक विशेष अटेंशन रखना पड़े, जिससे सर्व बातों का सामना कर सकेंगे।

वह यह है कि जो भी बात होती है उसको स्पष्ट समझने के लिए दो शब्द याद रखना है।

एक अंतर और दूसरा मन्त्र।

जो भी बात होती है उसका अंतर करो कि यह यथार्थ है या यथार्थ है।

बापदादा के समान है वा नहीं है।

बाप समान है वा नहीं?

एक तो हर समय अन्तर (भेंट) करके उसका एक सेकंड में नॉट या तो डॉट।

करना नहीं है तो फिर डॉट देंगे, अगर करना है तो करने लग जायेंगे।

तो नॉट और डॉट यह भी स्मृति में रखना है।

अंतर और मन्त्र यह दोनों प्रैक्टिकल में होंगे।

दोनों को भूलेंगे नहीं तो कोई भी समस्या वा कोई भी ईविल स्पिरिट सामना नहीं कर सकेगी।

एक सेकंड में समस्या भस्म हो जाएगी।

ईविल स्पिरिट्स आप के सामने ठहर नहीं सकती हैं।

तो यह पुरुषार्थ करना पड़े। समझा।

(ईविल स्पिरिट्स का रूप कौन सा है?) उनका स्पष्ट रूप है किन्हीं आत्माओं में प्रवेश होना।

लेकिन ईविल स्पिरिट्स का कुछ गुप्त रूप भी होता है।

चलते-चलते कोई में विशेष कोई न कोई बुरा संस्कार बिल्कुल प्रभावशाली रूप में देखने में आएगा।

जिसका इफ़ेक्ट क्या होगा कि उनका दिमाग अभी-अभी एक बात, अभी अभी दूसरी बात।

वह भी फ़ोर्स से कहेंगे।

उनकी स्थिति भी एक ठिकाने टिकी हुई नहीं होगी।

वह अपने को भी परेशान करते हैं, दूसरों को भी परेशान करेंगे। स्पष्ट रूप में जो ईविल स्पिरिट्स आती हैं उसको परख कर और उससे किनारा करना सहज है।

लेकिन आप लोगों के सामने स्पष्ट रूप में कम आएगी।

गुप्त रूप में बहुत आएगी।

जिसको आप लोग साधारण शब्दों में कहते हो कि पता नहीं उनका दिमाग कुछ पागल सा लगता है।

लेकिन उस समय उसमें यह ईविल अर्थात् बुरे संस्कारों का फ़ोर्स इतना हो जाता है जो वह ईविल स्पिरिट्स के समान ही होती है।

जैसे वह बहुत तंग करते हैं वैसे यह भी बहुत तंग करते हैं। यह बहुत होने वाला है।

इसलिए सुना कि अभी समय की बचत, संकल्पों की बचत, अपनी शक्ति की बचत यह योजना बनाकर बीच-बीच में उस बिंदी रूप की स्थिति को बढ़ाओ।

जितना बिंदी रूप की स्थिति होगी उतना कोई भी ईविल स्पिरिट्स वा ईविल संस्कार का फ़ोर्स आप लोगों पर वार नहीं करेगा।

और आप लोगों का शक्तिरूप ही उन्हों को मुक्त करेगा। ..."

 

 

 

 


27.07.1970 अव्यक्त बापदादा

"...अन्तर्मुखी और एकांतवासी यह लक्षण धारण करने जो लक्ष्य रखा है उसकी सहज प्राप्ति हो सकती है।

साधन से सिद्धि होती है ना।..."

 

 

 

 

30.07.1970 अव्यक्त बापदादा

"...महारथियों का अर्थ ही है महानता।

तो महानता सिर्फ संकल्प में नहीं सर्व में महानता। यह है महारथियों की निशानी।

संकल्प को प्रैक्टिकल में लाने के लिए सोच करने में समय नहीं लगता क्योंकि महारथियों के संकल्प भी ऐसे होते हैं जो संकल्प प्रैक्टिकल में संभव हो सकते हैं।

यह करें न करें, कैसे करें क्या होगा यह सोचने की उनको आवश्यकता नहीं है।

संकल्प ही ऐसे उत्पन्न होंगे जो संकल्प उठा और सिद्ध हुआ।

इससे अपनी स्टेज की परख कर सकते हो। फाइनल स्टेज है ही योग की सिद्धि प्राप्त करना।

कर्म की सिद्धि प्राप्त करना।

इसके लिए कौन सी मुख्य पावर धारण करना है, जो यह सिद्ध हो जाएँ।

संकल्प, वाणी, कर्म सभी सिद्ध हो जाएँ, इसके लिए कौन सी पॉवर चाहिए?

सभी जो शक्तियां सुनाई थीं वह तो चाहिए ही लेकिन उनमें भी पहले कंट्रोलिंग पावर विशेष चाहिए।

अगर कंट्रोलिंग पावर नहीं तो व्यर्थ मिक्स होने के कारण सिद्धि प्राप्त नहीं होती।

अगर यथार्थ उत्पत्ति हो संकल्पों की वा यथार्थ वाणी निकले, यथार्थ कर्म हो तो हो नहीं सकता कि सिद्ध न हो।

लेकिन व्यर्थ मिक्स होने कारण सिद्धि प्राप्त नहीं होती।

यथार्थ की सिद्धि होती है।

व्यर्थ की नहीं होती है।

व्यर्थ को कण्ट्रोल किया जाता है, उसके लिए कंट्रोलिंग पावर ज़रूर चाहिए, किसी प्रकार की कमज़ोरी का कारण कंट्रोलिंग पावर की कमी है।

कमज़ोरी क्यों होती है?

अपने संस्कारों को मिटा नहीं सकते।

समझते हुए भी यह संकल्प यथार्थ है वा व्यर्थ है, समझते हुए भी कंट्रोलिंग पावर नहीं है।

जब कण्ट्रोल करें तब उसके बदले में और संस्कार अपने में जमा कर सकेंगे।

कंट्रोलिंग पावर की कमी होने के कारण अपने को ही कण्ट्रोल नहीं कर पाते हैं।

अपनी रचना का रचयिता बनना आता है?

कौन सी रचना रचनी है?

वह यथार्थ रचना रचने में कमी है।

ऐसी रचना रच लेते हैं जो स्वयं ही अपनी रचना से परेशान हो जाते हैं। ..."

 

 

 

 


31.12.1970 अव्यक्त बापदादा

"...साधन निमित्त मात्र हैं, साधना निर्माण का आधार है।

तो साधन को महत्व नहीं दो साधना को महत्व दो।

तो सदा ये समझो कि मैं सिद्धि स्वरुप हूँ न कि साधन स्वरुप।

साधना सिद्धि को प्राप्त कराएगी।

साधनों की आकर्षण में सिद्धि स्वरुप को नहीं भूल जाओ। ..."

 

 

 

 

01.03.1971 अव्यक्त बापदादा

"...अभी जो गायन है कि योगियों को रिद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है, वह कौनसी सिद्धि?

संकल्प की सिद्धि और कर्त्तव्य की विधि।

यह दोनों ही होने से जन्मसिद्ध अधिकार सहज ही पा लेते हो।

संकल्प की सिद्धि कैसे आयेगी, मालूम है?

संकल्पों की सिद्धि न होने का कारण क्या है?

क्योंकि अभी संकल्प व्यर्थ बहुत चलते हैं।

व्यर्थ संकल्प मिक्स होने से समर्थ नहीं बन सकते हो।

जो संकल्प रचते हो उसकी सिद्धि नहीं होती है।

व्यर्थ संकल्पों की सिद्धि तो हो नहीं सकती है ना।

तो संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करने के लिए मुख्य पुरूषार्थ यह है - व्यर्थ संकल्प न रच समर्थ संकल्पों की रचना करो। ..."

 

 

 

"...संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करने के लिए पुरूषार्थ करना पड़े। व्यर्थ रचना बन्द करो।

नहीं तो आजकल व्यर्थ रचना कर उसकी पालना में समय बहुत वेस्ट करते हैं।

तो संकल्पों की सिद्धि और कर्मों की सफलता कम होती है। ..."

 

 

 

 

 

15.04.1971 अव्यक्त बापदादा

"...जो मन्सा के महादानी होंगे उनके संकल्प में इतनी शक्ति होती है जो संकल्प किया उसकी सिद्धि मिली।

तो मन्सा-महादानी संकल्पों की सिद्धि को प्राप्त करने वाला बन जाता है।

जहाँ संकल्प को चाहे वहाँ संकल्पों को टिका सकते हैं।

संकल्प के वश नहीं होंगे लेकिन संकल्प उनके वश होता है।

जो संकल्पों की रचना रचे, वह रच सकता है।

जब संकल्प को विनाश करना चाहे तो विनाश कर सकते हैं।

तो ऐसे महादानी में संकल्पों के रचने, संकल्पों को विनाश करने और संकल्पों की पालना करने की तीनों ही शक्ति होती है।..."

 

 

 

 


30.05.1971 अव्यक्त बापदादा

"...आप भी साधारण स्मृति में तो रहते हो लेकिन पावरफुल स्मृति, जिससे बिल्कुल वह स्वरूप बन जाए और स्वरूप की सिद्धि ‘सफलता’ मिले, वह कितना समय रहती है।

इसकी प्रैक्टिस कर रहे हो ना?

निरन्तर समझो कि हम ईश्वरीय सर्विस पर हैं।

भले कर्मणा सर्विस भी कर रहे हो, फिर भी समझो- मैं ईश्वरीय सर्विस पर हूँ।

भले भोजन बनाते हो, वह है तो स्थूल कार्य लेकिन भोजन में ईश्वरीय संस्कार भरना, भोजन को पावरफुल बनाना, वह तो ईश्वरीय सर्विस हुई ना।

‘जैसा अन्न वैसा’ मन कहा जाता है।

तो भोजन बनाते समय ईश्वरीय स्वरूप होगा तब उस अन्न का असर मन पर होगा।

तो भोजन बनाने का स्थूल कार्य करते भी ईश्वरीय सर्विस पर हो ना!

आप लिखते भी हो - आन गॉडली सर्विस ओनली।

तो उसका भावार्थ क्या हुआ?

हम ईश्वरीय सन्तान सिर्फ और सदैव इसी सर्विस के लिए ही हैं।

भल उसका स्वरूप स्थूल सर्विस का है लेकिन उसमें भी सदैव ईश्वरीय सर्विस में हूँ।

जब तक यह ईश्वरीय जन्म है तब तक हर सेकेण्ड, हर संकल्प, हर कार्य ईश्वरीय सर्विस है। ..."

 

 

 

 

 

08.06.1971 अव्यक्त बापदादा

"...वह लोग कई अभ्यास करते हैं तो उनमें रिद्धि-सिद्धि की करामात आती है। इस प्राप्ति को करामात कहें?

जिस शक्ति के आधार से आप कर्त्तव्य करती हो उसको करामात कहें?

(करामात नहीं कहेंगे) करामात समझकर प्रयोग नहीं करते हो लेकिन कर्त्तव्य समझ कर शक्ति का प्रयोग करते हो।

कर्त्तव्य करने का तो फर्ज है।

इस कारण स्वीकार नहीं होता है।

यहाँ करामात की बात नहीं।

इसको श्रीमत का प्रैक्टिकल कर्त्तव्य समझकर चलते हो।

उन मनुष्यों के पास करामात होती है।

आप लोगों की बुद्धि में आयेगी श्रीमत।

तो श्रीमत और करामात में फर्क है।

आप लोगों को शक्तियां प्राप्त होंगी तो स्मृति में आयेगा - श्रीमत द्वारा अथवा इस मत की यह गति प्राप्त हुई।

करामात नहीं लेकिन श्रीमत समझेंगे।

करामात समझ शक्तियों का प्रयोग नहीं करेंगे, कर्त्तव्य समझ शक्तियों का प्रयोग करेंगे।

शक्तियां आनी ज़रूर हैं।

मुख से बोलने की भी ज़रूरत नहीं, संकल्प से कर्त्तव्य सिद्ध कर देंगे।

जैसे मुख द्वारा कर्त्तव्य सिद्ध करने के अभ्यास में भी पहले आप लोगों को ज्यादा बोलना पड़ता था तब सिद्धि मिलती थी।

अभी कम बोलने से भी कर्त्तव्य होता है।

तो जैसे यह अन्तर्यामी वैसे फिर यह प्रैक्टिस हो जायेगी।

आपका संकल्प कर्त्तव्य को पूरा करेगा।

संकल्प से किसको बुला सकेंगे, किसको संकल्प से कार्य की प्रेरणा देंगे।

यह भी शक्तियां है लेकिन उनको कर्त्तव्य समझ प्रयोग करना है।..."

 

 

 

 

 

10.06.1971 अव्यक्त बापदादा

"...जैसे कोई वाणी से वा और तरीके से वश नहीं होते हैं तो मंतर-जंतर करते हैं।

तो जब देखो ऐसी कोई बात सामने आये तो अपने आत्मिक दृष्टि का नेत्र और मन्मनाभव का मन्त्र प्रयोग करना, तो शेर से भैंस बन जायेंगे।

जादू-मंतर तो आता है ना।

यहाँ से ही सभी सिस्टम निकली है।

मंतर चलाना, रिद्धि-सिद्धि भी यहीं से ही निकली है।

अपनी आत्मिक दृष्टि से अपने संकल्पों को भी सिद्ध कर सकते हो।

वह है रिद्धि-सिद्धि और यहाँ विधि से सिद्धि।

शब्दों का अन्तर है।

रिद्धि-सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी।

वह रिद्धि-सिद्धि यूज करते हैं और आप याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि प्राप्त करते हो। ..."

 

 

 

 

 

22.06.1971 अव्यक्त बापदादा

"...जैसे दूरबीन द्वारा दूर का दृश्य कितना समीप आ जाता है।

वैसे ही दिव्य स्थिति दूरबीन का कार्य करेगी।

यही शक्तियों की स्मृति की सिद्धि होगी और इस अन्तिम सिद्धि को प्राप्त होने के कारण शक्तियों के भक्त शक्तियों द्वारा रिद्धि-सिद्धि की इच्छा रखते हैं।

जब सिद्धि देखेंगे तब तो संस्कार भरेंगे ना।

तो ऐसा अपना स्मृति की सिद्धि का स्वरूप सामने आता है?..."

 

 

 

 


04.07.1971 अव्यक्त बापदादा

"...निरन्तर सत्संगी बनो।

आपके पास कोई आते हैं तो आप नियम बताते हो ना कि सदैव सत् का संग रखो।

तो यह अभ्यास अपने को भी निरन्तर करना पड़े।

फिर याद जो मुश्किल लगती है, सोचते हैं - याद कैसे ठहरे; कहाँ ठहरे यह सभी खत्म हो जायेगा।

कर्म की सहज सिद्धि हो जायेगी।

इसमें चाहे निराकार रूप से संग करो, चाहे साकार रूप में करो लेकिन सत् का संग हो।

साकार का संबंध भी सारे कल्प में अविनाशी रहेगा ना।

तो साकारी स्मृति हो वा निराकारी स्मृति हो, लेकिन स्मृति ज़रूर होनी चाहिए।

बापदादा के संग के सिवाय और कोई भी संग बुद्धि में न हो।

फरिश्ता बनने के लिए बाप के साथ जो रिश्ता है वह पक्का होना चाहिए।

अगर अपना रिश्ता पक्का है तो फरिश्ता बन ही जायेंगे।

अभी सिर्फ यह अपने रिश्ते को ठीक करो।

अगर एक के साथ सर्व रिश्ते हैं तो सहज और सदा फरिश्ते हैं। ..."

 

 

 

 

18.07.1971 अव्यक्त बापदादा

"...अपनी स्टेज और स्टेट्स - दोनों की स्मृति सदा रहे तब ही लक्ष्य की सिद्धि पा सकेंगे।

तो विल- पावर और कन्ट्रोलिंग पावर- दोनों के लिए मुख्य क्या याद रखें, जिससे दोनों पावर्स आयें?

इन दोनों पावर्स के पुरूषार्थ का एक-एक शब्द में ही साधन है।

कन्ट्रोलिंग पावर के लिए सदैव महान् अन्तर सामने रहे तो आटोमेटिकली जो श्रेष्ठ होगा उस तरफ बुद्धि जायेगी और जो व्यर्थ महसूस होगा उस तरफ बुद्धि आटोमेटिकली नहीं जायेगी।

जो भी कर्म करते हो तो महान् अन्तर-शुद्ध और अशुद्ध, सत्य और असत्य, स्मृति और विस्मृति में क्या अन्तर है, व्यर्थ और समर्थ संकल्प में क्या अन्तर है, सब बात में अगर महान् अन्तर करते जाओ तो दूसरे तरफ बुद्धि आटोमेटिकली कन्ट्रोल हो जायेगी।

और विल-पावर के लिए है महामन्त्र-अगर महान् अन्तर और महामन्त्र यह दोनों ही याद रहें तो कभी बुद्धि को कन्ट्रोल करने व्ो लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

यह सहज है। पहले चेक करो अर्थात् अन्तर सोचो, फिर कर्म करो।

अन्तर नहीं देखते, अलबेले चलते रहते, इसलिए कन्ट्रोलिंग पावर जो आनी चाहिए वह नहीं आती।

और महामन्त्र से विल-पावर आटोमेटिकली आ जायेगी।

क्योंकि महामन्त्र है ही बाप की याद अर्थात् बाप के साथ, बाप के कर्त्तव्य के साथ, बाप के गुणों के साथ सदैव अपनी बुद्धि को स्थित करना।

तो महामन्त्र बुद्धि में रहने से अर्थात् बुद्धि का कनेक्शन पावर-हाउस से होने के कारण विल-पावर आ जाती है।

तो महामन्त्र और महान् अन्तर-यह दोनों ही याद रहे तो दोनों पावरस सहज आ सकती हैं।

महामन्त्र और महान अन्तर- दोनों स्मृति में रख फिर ज्ञान का नेत्र चलाने से देखो सफलता कितनी होती है।..."

 

 

 


25.08.1971 अव्यक्त बापदादा

"...अगर विधि यथार्थ है तो विधि से सिद्धि अर्थात् सफलता और श्रेष्ठता अवश्य ही दिन- प्रति-दिन वृद्धि को पाते हुए अनुभव करेंगे।

इस परिणाम से अपने पुरूषार्थ की यथार्थ स्थिति को परख सकते हो।

यह सिद्धि विधि को परखने की मुख्य निशानी है।..."