यह तो होता ही है,
वह तो सब में हैं!
भले सब में हो लेकिन मैं सेफ हूँ ?
ऐसी शुभ कामना रखो - तब विश्व सेवाधारी बन सकेंगे।
संगठित रूप में एकमत, एकरस स्थिति का अनुभव करा सकेंगे।
अब तक भी पाप का खाता जमा होगा तो चुक्तू कब करेंगे?
अन्य आत्माओं को पुण्य आत्मा बनाने के निमित्त कैसे बनेंगे?
इसलिए अलबेलेपन में भी पाप का खाता बनाना बन्द करो।
सदा पुण्य आत्मा भव का वरदान लो।
अज्ञानी लोग यह सलोगन कहते - बुरा न सुनो, न देखो, न सोचो
- अब बाप कहते व्यर्थ भी न सुनो, न सुनाओ और न सोचो।
सदा शुभ भावना से सोचो, शुभ बोल बोलो, व्यर्थ को भी शुभ-भाव से सुनो
- जैसे साइन्स के साधन बुरी चीज़ को परिवर्तन कर अच्छा बना देते, रूप परिवर्तन कर देते तो आप सदा शुभचिंतक, सर्व आत्माओं के बोल के भाव को परिवर्तन नहीं कर सकते ?
सदा भाव और भावना श्रेष्ठ रखो तो सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
स्वंय का परिवर्तन करो न कि अन्य के परिवर्तन का सोचो।
स्वंय का परिवर्तन ही अन्य का परिवर्तन है।
इसमें पहले मैं, ऐसा सोचो
- इस मरजीवा बनने में ही मज़ा है।
इसी को ही महाबली कहा जाता है।
घबराओ नहीं।
खुशी से मरो- यह मरना तो जीना ही है, यही सच्चा जीयदान है।"