Hindi...Avyakt BaapDada 19.07.1972

"...फल की इच्छाएं भी भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं, जैसे अपार दु:खों की लिस्ट है।

वैसे फल की इच्छाएं वा जो उसका रेस्पान्स लेने का सूक्ष्म संकल्प  ज़रूर रहता है।

कुछ-ना-कुछ एक-दो परसेन्ट भी होता ज़ज़जरूर है। बिल्कुल निष्काम वृति रहे - ऐसा नहीं होता।

पुरूषार्थ के प्रारब्ध की नॉलेज होते हुए भी उसमें अटैचमैंट ना हो, वह अवस्था बहुत कम है।

मिसाल - आप लोगों ने किन्हों की सेवा की, आठ को समझाया, उसकी रिजल्ट में एक-दो आप की महिमा करते हैं और दूसरे ना महिमा, ना ग्लानि करते हैं, गम्भीरता से चलते हैं।

तो फिर भी देखेंगे - आठ में से आपका अटेन्शन एक-दो परसेन्टेज में उन दो तीन तरफ ज्यादा जावेगा जिन्होंने महिमा की; उसकी गम्भीरता की परख कम होगी, बाहर से जो उसने महिमा की उनको स्वीकार करने के संस्कार प्रत्यक्ष हो जावेंगे।

दूसरे शब्दों में कहते हैं - इनके संस्कार, इनका स्वभाव मिलता है।

फलाने के संस्कार मिलते नहीं हैं, इसलिये दूर रहते हैं।

लेकिन वास्तव में है यह सूक्ष्म फल को स्वीकार करना।..."

 

 

2. Ref:- Sakar Murli 22.12.2022

"...शिवबाबा कहते हैं - मैं निष्काम सेवाधारी हूँ।

मनुष्य निष्कामी हो न सकें।

जो करेगा उसको उनका फल जरूर मिलेगा।

मैं फल नहीं ले सकता हूँ।..."

 

3. Ref:- Avyakt BaapDada 20.05.1974

"...साथी क्यों बनाया जाता है?

सम्पर्क क्यों और किससे रखा जाता है?

आवश्यकता के समय, मुश्किल के समय सहारा अथवा सहयोग के लिए; उदास स्थिति में मन को खुशी में लाने के लिए व दु:ख के समय दु:ख को बांट लेने के लिए साथी बनाया जाता है।

ऐसा सच्चा साथी अथवा ऐसा श्रेष्ठ सम्पर्क जो लक्ष्य रखकर बनाते हो क्या ऐसा साथी मिला?

ऐसा साथी जो निष्काम हो, निष्पक्ष हो, अविनाशी हो व समर्थ हो।

ऐसा सम्पर्क कभी मिला अथवा मिल सकता है क्या?

अविनाशी और सच्चा श्रेष्ठ साथ व संग कौन-सा गाया हुआ है?

पारसनाथ जो लोहे को सच्चा सोना बनावे ऐसा सत्संग अथवा सम्पर्क मिला है या कुछ अप्राप्ति है?

ऐसा मिला है अथवा मिलना है?

मिला है अथवा अभी परख रहे हो?

जब साथ मिल गया तो साथ लेने के बाद कभी-कभी साथी से किनारा क्यों कर लेते हो?

साथ निभाने में नटखट क्यों होते हो?

कभी-कभी रूसने का भी खेल करते हैं।

क्या मज़ा आता है, कि साथी स्वयं मनावे इसलिए यह खेल करते हो अथवा बच्चों में खेल के संस्कार होते ही हैं।

ऐसा समझ इस संस्कार-वश क्या ऐसे- ऐसे खेल करते हो?

यह खेल अच्छा लगता है?

बोलो, अच्छा लगता है, तब तो करते हैं?

लेकिन, इस खेल में गंवाते क्या हो, क्या यह भी जानते हो?

जब तक यह खेल है तो सच्चे साथी का मेल नहीं हो सकता।

तो खेल-खेल में मिलन को गंवा देते हो।

इतने समय की पुकार व शुभ इच्छा-बच्चे और बाप से मिलने की करते आये हो और यह भी जानते हो, कि यह मेल कितने दिन का है-कितने थोड़े समय का है-फिर भी इतने थोड़े समय के मेल को खेल में गंवाते हो।

तो क्या फिर समय मिलेगा?

तो अब यह खेल समाप्त करो। आप अब तो वानप्रस्थी हो।

वानप्रस्थी को इस प्रकार का खेल करना शोभता है क्या?

साक्षी हो देखो, क्या सच्चा साथी, श्रेष्ठ सम्पर्क व संग सदा प्राप्त है?..."

 

English...

1. "...There are different types of desires for the fruit, just like there is a list of limitless sorrows.

In the same way, there is definitely a subtle thought about the desires of the fruit and the response to it.

Something or the other, even one or two percent definitely happens.

It doesn't happen if you have an absolutely selfless attitude.

Having knowledge of the destiny of effort, but not having attachment to it, that stage is very rare.

Example - Whom did you serve, you explained to eight, as a result of that one or two praise you and others neither praise nor defame you, they move with seriousness.

Even then, you will see that out of the eight, your attention will go one or two percent more towards those two or three who glorified; The test of his seriousness will be less, the sanskars of accepting those who have glorified from outside will be revealed.

In other words, it is said - their culture, their nature is found. You don't get the sanskars of so-and-so, that's why they stay away.

But actually it is accepting the subtle fruit...."

 

2.Ref:- Sakar Murli 22.12.2022

"...Shiv Baba says: I am the altruistic Server.

Human beings cannot be altruistic.

Whatever any of them do, they definitely receive the return of it.

I cannot take the fruit of anything..."