1.00 | में...

जो पास्ट हुआ - अच्छा वा बुरा, ड्रामा में था।

सारा चक्र पूरा होकर फिर रिपीट होगा। जैसा जो पुरूषार्थ करते, ऐसा पद पाते हैं।

 

यह बात स्मृति में रहे तो किसी भी बात की चिंता वा चिंतन नहीं रहेगा। भक्ति मार्ग में मांग-मांग कर माथा पटक सारी सीढ़ी नीचे उतरते आये हो।

 

ड्रामा में जो कुछ हुआ पास्ट हो गया। उनका विचार नहीं करो।

 

कोई रड़ी मारना वा चिल्लाना नहीं है। अन्दर में सिर्फ बेहद के बाप को याद करना है।

 

मुख्य बात है - यह युर्निवर्सिटी है। इसमें पढ़ने वाले बड़े अच्छे समझदार चाहिए। कच्चे भी डिस्ट्रबेन्स करेंगे क्योंकि बाप की याद में नहीं होंगे तो बुद्धि इधर-उधर भटकती रहेगी। नुकसान कर देंगे। याद में रह नहीं सकेंगे।

 

बाल-बच्चे लायेंगे तो इसमें बच्चों का ही नुकसान है। बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में बाल बच्चों के साथ रहो, यहाँ सिर्फ एक सप्ताह तो क्या 3-4 दिन भी क़ाफी है।

 

ऐसे मत समझो, प्रदर्शनी वा म्यूजियम में सर्विस नहीं होती है। ढेर अनगिनत प्रजा बनती है। बाप है साधारण तन में। पढ़ाते भी साधारण रीति हैं, इसलिए मनुष्यों को जंचता नहीं है।

 

साहूकार को त़ाकत नहीं पढ़ने की। उन्हों की बुद्धि में तो महल माड़ी ही होती है। साहूकार दान ले नहीं सकेंगे। बुद्धि में बैठेगा नहीं।

 

वह अपनी हद की रचना धन-दौलत में ही फँसे रहते हैं। कितना मोस्ट बील्वेड बाबा है, जिसको भक्ति में याद करते थे। जिसे याद किया जाता है वह जरूर कभी आयेगा भी ना।

 

तुमने भक्ति मार्ग में आधाकल्प मांगा ही मांगा है, मिला कुछ भी नहीं। अभी मांगना बन्द करो। उल्टे-सुल्टे कोई प्रश्न पूछे तो बोलो - इन बातों में जाने की दरकार नहीं। टीचर को तो सब मालूम रहता है ना - कितने को आप-समान बनाते हैं, कितना समय याद में रहते हैं?

 

पहले तो बुद्धि में यह याद रखना चाहिए कि यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है।

 

यह भी तुमको समझाया जाता है - तुम फिर कैसे नई दुनिया में आयेंगे। नम्बरवार जो नई दुनिया में आते हैं, उनको ही समझाया जाता है।

 

बाप तो आये ही हैं रास्ता बताने। ड्रामा में मेरा पार्ट ही है सबको पावन बनाने का।

 

जो पास्ट हुआ, अच्छा वा बुरा, ड्रामा में था। चिंतन कोई बात का नहीं करना है।

 

भक्ति मार्ग में तुमने अथाह मांगा है। सभी पैसे ख़लास कर दिये हैं। यह सब ड्रामा में बना हुआ है।

 

जो एक ही श्री श्री है। बाकी श्री श्री तो कोई होते नहीं। आजकल तो श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री सीता-राम भी नाम रखाते हैं। तो बच्चों को यह सब धारण करके खुशी में रहना है।

 

कोई पुलिस आदि में काम करते हैं तो उसमें भी युक्ति से काम निकालना है।

 

एक बाप को कम्पैनियन बनाने वा उसी कम्पन्नी में रहने वाले सम्पूर्ण पवित्र आत्मा भव सम्पूर्ण पवित्र आत्मा वह है जिसके संकल्प और स्वप्न में भी ब्रह्मचर्य की धारणा हो, जो हर कदम में ब्रह्मा बाप के आचरण पर चलने वाला हो।...बाप की कम्पन्नी में ही रहना।

 

किसी के प्रभाव में प्रभावित होने वाले नहीं, ज्ञान का प्रभाव डालने वाले बनो।

 

2.00 | करो...

जो बात बीत गई उसका न तो विचार करो और न रिपीट करो। जो बात बीत गई उसका न तो विचार करो और न रिपीट करो। जो कुछ हुआ पास्ट हो गया। उनका विचार नहीं करो। रिपीट न करो।

 

बाप तो सिर्फ दो अक्षर ही कहते हैं मामेकम् याद करो। 84 के चक्र को याद करो क्योंकि तुमको देवता बनना है अब सिर्फ मुझ पतित-पावन बाप को याद करो, मुझ सुप्रीम आत्मा को याद करो।

 

अभी मांगना बन्द करो। हम आपेही तुमको देता रहता हूँ।

 

उल्टे-सुल्टे कोई प्रश्न पूछे तो बोलो - इन बातों में जाने की दरकार नहीं। तुम पहले बाप को याद करो।

 

कुछ भी मांगने की दरकार नहीं, आशीर्वाद भी नहीं। लिखते हैं बाबा दया करो, कृपा करो।

 

3.00 | याद...

बाप तो सिर्फ दो अक्षर ही कहते हैं मामेकम् याद करो। तुम मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे। बस, याद के लिए कोई डायरेक्शन दिया जाता है क्या! बाप को याद करना है, कोई रड़ी मारना वा चिल्लाना नहीं है। अन्दर में सिर्फ बेहद के बाप को याद करना है।

 

दूसरा डायरेक्शन क्या देते हैं? 84 के चक्र को याद करो क्योंकि तुमको देवता बनना है । बाप की याद में नहीं होंगे तो बुद्धि इधर-उधर भटकती रहेगी। नुकसान कर देंगे। याद में रह नहीं सकेंगे।

 

कितना मोस्ट बील्वेड बाबा है, जिसको भक्ति में याद करते थे। जिसे याद किया जाता है वह जरूर कभी आयेगा भी ना। याद करते ही हैं फिर से रिपीट होने के लिए।

 

अब सिर्फ मुझ पतित-पावन बाप को याद करो, मुझ सुप्रीम आत्मा को याद करो। तुम पहले बाप को याद करो। ... जितना याद करेंगे, दैवीगुण धारण करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे।

 

टीचर को तो सब मालूम रहता है ना - कितने को आप-समान बनाते हैं, कितना समय याद में रहते हैं? पहले तो बुद्धि में यह याद रखना चाहिए कि यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। सबका कल्याण करना है।

 

वापिस ले जाना है। न सिर्फ तुमको परन्तु सारे वर्ल्ड की आत्माओं को याद करते होंगे।

 

4.00 | मांगना...

मांगने से मरना भला। कोई भी चीज़ मांगनी नहीं होती है। शक्ति, आशीर्वाद, कृपा कई बच्चे मांगते रहते हैं।

 

भक्ति मार्ग में मांग-मांग कर माथा पटक सारी सीढ़ी नीचे उतरते आये हो। अभी मांगने की कोई दरकार नहीं। बाप से कुछ भी मांगना नहीं है, इसमें निश्चय चाहिए। अब सिर्फ मुझ पतित-पावन बाप को याद करो, मुझ सुप्रीम आत्मा को याद करो।

 

इसमें कुछ भी मांगने की दरकार नहीं है। तुमने भक्ति मार्ग में आधाकल्प मांगा ही मांगा है, मिला कुछ भी नहीं। अभी मांगना बन्द करो। हम आपेही तुमको देता रहता हूँ।

 

कुछ भी मांगने की दरकार नहीं, आशीर्वाद भी नहीं। लिखते हैं बाबा दया करो, कृपा करो। बाप तो कुछ भी नहीं करेंगे।

 

बाप तो आये ही हैं रास्ता बताने। मांगने की दरकार नहीं। भक्ति मार्ग में तुमने अथाह मांगा है।

 

5.00 | चाहिए...

मुख्य बात है - यह युर्निवर्सिटी है। इसमें पढ़ने वाले बड़े अच्छे समझदार चाहिए। बेहद का बाप पढ़ाते हैं। एकदम दिमाग ही पुर (भरपूर) हो जाना चाहिए।

 

बाप से कुछ भी मांगना नहीं है, इसमें निश्चय चाहिए।

 

धर्मशाला, मन्दिर आदि बनायेंगे तो उस पर बाप का नाम रखेंगे क्योंकि जिससे प्रापर्टी मिली उनके लिए तो जरूर करना चाहिए।

 

पहले तो बुद्धि में यह याद रखना चाहिए कि यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है।

 

कोई भी मन्सा, वाचा, कर्मणा खराब बात नहीं होनी चाहिए।

 

जहाँ तक हो सके प्यार से काम निकालना चाहिए। बाबा का अपना अनुभव है, प्यार से अपना काम निकाल लेते हैं, इसमें बड़ी युक्ति चाहिए।

 

6.00 | नहीं...

बच्चों को बाप से कुछ भी मांगने की दरकार नहीं जैसा जो पुरूषार्थ करते, ऐसा पद पाते हैं।

 

यह बात स्मृति में रहे तो किसी भी बात की चिंता वा चिंतन नहीं रहेगा। बाप का डायरेक्शन है - बच्चे, बीती को चितवो नहीं। मांगने से मरना भला। कोई भी चीज़ मांगनी नहीं होती है। अभी मांगने की कोई दरकार नहीं।

 

बाप कहते हैं डायरेक्शन पर चलो। एक तो कहते हैं बीती को कभी चितवो नहीं। ड्रामा में जो कुछ हुआ पास्ट हो गया। उनका विचार नहीं करो।

 

बाप को याद करना है, कोई रड़ी मारना वा चिल्लाना नहीं है। यह रूहानी बाप की युनिवर्सिटी है, इसमें छोटे बच्चों की दरकार नहीं। यहाँ बच्चों को जो ले आते हैं वह यह नहीं समझते कि यह युनिवर्सिटी है।

 

बाप की याद में नहीं होंगे तो बुद्धि इधर-उधर भटकती रहेगी। याद में रह नहीं सकेंगे। बाल-बच्चे लायेंगे तो इसमें बच्चों का ही नुकसान है। कोई तो जानते ही नहीं कि यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है

 

ऐसे मत समझो, प्रदर्शनी वा म्यूजियम में सर्विस नहीं होती है। ढेर अनगिनत प्रजा बनती है।

 

बाप है साधारण तन में। पढ़ाते भी साधारण रीति हैं, इसलिए मनुष्यों को जंचता नहीं है। साहूकार को त़ाकत नहीं पढ़ने की। साहूकार दान ले नहीं सकेंगे। बुद्धि में बैठेगा नहीं।

 

उन्हों के लिए तो यहाँ ही जैसे स्वर्ग है। कहते हैं हमको दूसरे स्वर्ग की दरकार नहीं। इतने पत्थरबुद्धि हैं जो समझते नहीं हैं - नर्क क्या है?

 

बाप से कुछ भी मांगना नहीं है, इसमें निश्चय चाहिए। इसमें कुछ भी मांगने की दरकार नहीं है। तुमने भक्ति मार्ग में आधाकल्प मांगा ही मांगा है, मिला कुछ भी नहीं।

 

अभी बाप कहते हैं बीती को चितवो नहीं। उल्टी-सुल्टी कोई बात सुनो नहीं। उल्टे-सुल्टे कोई प्रश्न पूछे तो बोलो - इन बातों में जाने की दरकार नहीं।

 

किसको दु:ख नहीं देना है, कोई भी प्रकार का।

 

इसमें कुछ भी मांगने की दरकार नहीं, आशीर्वाद भी नहीं। लिखते हैं बाबा दया करो, कृपा करो। बाप तो कुछ भी नहीं करेंगे।

 

जो पास्ट हुआ, अच्छा वा बुरा, ड्रामा में था। चिंतन कोई बात का नहीं करना है। मांगने की दरकार नहीं। भक्ति मार्ग में तुमने अथाह मांगा है।

 

अभी तो तुमको कुछ भी खर्च करने की दरकार नहीं है। बाप तो दाता है ना। दाता को दरकार नहीं है।

 

जो एक ही श्री श्री है। बाकी श्री श्री तो कोई होते नहीं। स्प्रीचुअल का अर्थ नहीं समझते। रूहानी नॉलेज तो सिवाए एक के कोई दे न सके।

 

तुम जानते हो अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म गाया हुआ है। वहाँ कोई मारपीट होती नहीं।

 

कोई भी मन्सा, वाचा, कर्मणा खराब बात नहीं होनी चाहिए।

 

बाप नहीं होता तो परिवार कहाँ से आता। बाप बीज है, बीज को कभी नहीं भूलना।

 

किसी के प्रभाव में प्रभावित होने वाले नहीं, ज्ञान का प्रभाव डालने वाले बनो।