1.00 | में...

  • "...बाप और उनकी पढ़ाई में कोई भी संशय नहीं आना चाहिए
    • तुम बच्चों को निरन्तर याद की यात्रा में रहने की श्रीमत क्यों मिली है?
    • यह है पतित दुनिया। पावन दुनिया में ले जाते हैं बाप। वहाँ थोड़ेही कहेंगे बाबा आओ, पावन दुनिया में ले चलो।
    • निश्चय भी आत्मा को बुद्धि में होता है।
    • आत्मा को यह ज्ञान मिलता है, हमारा यह बाबा है।
    • आत्मा में ही सब संस्कार हैं।
    • बाबा आया हुआ है, हमको ऐसा पढ़ाते हैं, कर्म सिखलाते हैं जो हम इस दुनिया में अभी आयेंगे नहीं। वह मनुष्य तो समझते हैं इस दुनिया में आना है। तुम ऐसे नहीं समझते हो।
    • तुम यह अमरकथा सुन अमरपुरी में जाते हो।
    • खुद कहते हैं - मीठे-मीठे रूहानी बच्चों, मैं कल्प-कल्प पुरूषोत्तम संगमयुगे साधारण तन में आता हूँ।
    • ड्रामा तो अनादि है। परन्तु एक्टिविटी जो ड्रामा में होती है, उनकी तिथि-तारीख तो चाहिए ना।
    • अब कलियुग चल रहा है। यह भी बहुत थोड़े जानते हैं। तुम्हारी बुद्धि में सब ख्यालात रहते हैं।
    • शमा तो है फिर उस पर कोई तो परवाने एकदम फिदा हो जाते हैं। कोई फेरी पहन चले जाते हैं। शुरू में शमा पर बहुत परवाने आशिक हो पड़े। ड्रामा प्लैन अनुसार भट्ठी बननी थी।
    • बाप हमको पढ़ाते हैं। इस निश्चय में पक्के रहो, भूल न जाओ।
    • यह भी समझते हो, सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी सब शान्तिधाम में रहते हैं।
    • यह नॉलेज भी बाप ही सुनाते हैं और कोई सुना न सके। किसकी बुद्धि में बैठ न सके। इस शरीर में पढ़ाने वाला वह निराकार शिवबाबा विराजमान है।
    • कथा भी सत्यनारायण की सुनते हैं। गरुड़ पुराण में सब ऐसी बातें हैं जो मनुष्यों को सुनाते हैं। बाप कहते हैं यह विषय वैतरणी नदी रौरव नर्क है। बाप भी कहते हैं इस कलियुग अन्त में राहू की दशा सब पर बैठी है। सतयुग में बृहस्पति की दशा भारत पर थी। यह बेहद की बात है। यह कोई शास्त्रों आदि में नहीं है।
    • यह मैगज़ीन आदि भी उन्हें समझ में आयेगी जो पहले कुछ न कुछ समझे हुए होंगे। मैगज़ीन पढ़ने से वह फिर जास्ती समझने के लिए भागेंगे।
    • उझाये हुए दीपक में बाप आकर ज्ञान घृत डाल रहे हैं। शमा पर परवाने कोई तो जल मरते हैं, कोई फेरी पहन चले जाते हैं। वही बात अभी प्रैक्टिकल में चल रही है। जो कुछ पास्ट हुआ तुम फिर ऐसे ही करेंगे। भले चले गये, ऐसे मत समझना स्वर्ग में नहीं आयेंगे, परवाने बने, आशिक हुए फिर माया ने हरा दिया, तो पद भी कम पायेंगे। नम्बरवार तो होते ही हैं।
    • और सतसंगों में कोई की भी बुद्धि में नहीं होगा। तुम्हारी बुद्धि में है। यह भी जानते हो वह आत्मा देखने में नहीं आती। वह तो अव्यक्त चीज़ है।
    • उस पढ़ाई में भी जो सबजेक्ट डिफीकल्ट होती है, उसमें फेल होते हैं। यह सब्जेक्ट तो बहुत सहज है, परन्तु कइयों को डिफीकल्ट फील होती है। ड्रामा अनुसार तुमको पढ़ाता हूँ। थैंक्स तो भक्ति मार्ग में देते हैं। टीचर कहेंगे स्टूडेन्ट अच्छी रीति पढ़ते हैं तो हमारा नाम बाला होगा। स्टूडेन्ट को थैंक्स दी जाती है।
    • स्वयं ज्ञान सागर निराकार बाप टीचर बन हमें पढ़ा रहे हैं। इस पढ़ाई से ही हमें सतोप्रधान बनना है।
    • आत्मा रूपी दीपक में रोज़ ज्ञान का घृत डालना है।
    • सदा एक बाप के स्नेह में समाई हुई सहयोगी सो सहजयोगी आत्मा भव
    • जिन बच्चों का बाप से अति स्नेह है, वह स्नेही आत्मा सदा बाप के श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी होगी बाप के स्नेह में समाई हुई सहयोगी आत्मा कभी माया की सहयोगी नहीं हो सकती।
    • हर संकल्प में बाबा और सेवा रहती इसलिए नींद भी करेंगे तो उसमें बड़ा आराम मिलेगा, शान्ति और शक्ति मिलेगी। नींद, नींद नहीं होगी, जैसे कमाई करके खुशी में लेटे हैं, इतना परिवर्तन हो जाता है।
    • प्रेम के आंसू दिल की डिब्बी में मोती बन जाते हैं।..."

       

      2.00 | पढ़ाई...

      • यह वन्डरफुल पढ़ाई बेहद का बाप पढ़ाते हैं, बाप और उनकी पढ़ाई में कोई भी संशय नहीं आना चाहिए यह भी बच्चे समझते हैं कि यह पढ़ाई वन्डरफुल है। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बाप के सिवाए कोई बता न सके, इसलिए उनको बेहद का बाप कहा जाता है।

         

        • इतनी बेहद की पढ़ाई, बेहद के बाप के सिवाए तो कोई पढ़ा न सके।

         

        • यहाँ तुम जिसको पतित-पावन, दु:ख हर्ता सुख कर्ता कहते हो, वह बाप अब सम्मुख पढ़ा रहे हैं। सम्मुख होने बिगर राजयोग की पढ़ाई कैसे पढ़ायें? बाप कहते हैं तुम स्वीट बच्चों को यहाँ पढ़ाने आता हूँ। पढ़ाने लिए इनमें प्रवेश करता हूँ। मैं जो पढ़ाता हूँ यह है अविनाशी पढ़ाई। जो जितना पढ़ेंगे वह व्यर्थ नहीं जायेगा।

         

        • सूर्यवंशी बनना ही है। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी जो पास्ट हो गये वह फिर बनेंगे। वह मर्तबा मिलता ही है पढ़ाई से। बाप की पढ़ाई बिगर यह मर्तबा मिल न सके।

         

        • देह-अभिमान छोड़ अपने को आत्मा समझना - यह है ऊंची पढ़ाई। उस पढ़ाई में भी जो सबजेक्ट डिफीकल्ट होती है, उसमें फेल होते हैं। इस पढ़ाई से ही हमें सतोप्रधान बनना है।

         

        3.00 | याद...

        तुम बच्चों को निरन्तर याद की यात्रा में रहने की श्रीमत क्यों मिली है?

         

        याद भूली और माया ने विकर्म कराया इसलिए ख़बरदार रहना है।

         

        अब बाप तो बाप ही है। फिर पावन बनाने के लिए याद की यात्रा सिखलाते हैं। खबरदार नहीं रहेंगे, याद नहीं करेंगे तो फिर और ही विकर्म करा देंगे। फिर कुछ न कुछ चमाट लगती रहेगी।

         

        4.00 | चाहिए...

        बाप और उनकी पढ़ाई में कोई भी संशय नहीं आना चाहिए, पहला निश्चय चाहिए कि हमें पढ़ाने वाला कौन अब यह तो निश्चय रहना चाहिए बरोबर बाप के बिगर कोई इतनी नॉलेज दे नहीं सकता। पहले तो यह निश्चय बुद्धि चाहिए।

         

        आत्मा को यह ज्ञान मिलता है, हमारा यह बाबा है। यह बहुत पक्का निश्चय बच्चों को होना चाहिए। बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए।

         

        यह पढ़ाई सिवाए बाप के और कोई पढ़ा न सके। बाप हमको पढ़ाते हैं और जो टीचर्स हैं वह ऑर्डनरी मनुष्य हैं। पढ़ाने लिए इनमें प्रवेश करता हूँ। बरोबर भगवानुवाच भी है, तो जरूर उनको शरीर चाहिए। न सिर्फ मुख परन्तु सारा शरीर चाहिए।

         

        मीठे-मीठे रूहानी बच्चों, मैं कल्प-कल्प पुरूषोत्तम संगमयुगे साधारण तन में आता हूँ। बहुत गरीब भी नहीं, तो बहुत साहूकार भी नहीं, साधारण है। यह तो तुम बच्चों को निश्चय होना चाहिए - वह हमारा बाबा है, हम आत्मा हैं।

         

        कोई से भी पूछो शिव जयन्ती कब से मनाई जा रही है? तो कहेंगे परमपरा से। वह भी कब से? कोई डेट तो चाहिए ना। ड्रामा तो अनादि है। परन्तु एक्टिविटी जो ड्रामा में होती है, उनकी तिथि-तारीख तो चाहिए ना। यह तो कोई भी जानते नहीं।

         

        5.00 | माया...

        माया दुश्मन अभी भी तुम्हारे पीछे है, जिसने तुमको गिराया है।

         

        याद भूली और माया ने विकर्म कराया इसलिए ख़बरदार रहना है।

         

        कहते हैं - बच्चे, माया के त़ूफान आयेंगे, दीवे को बुझा देंगे। शमा पर परवाने कोई तो जल मरते हैं, कोई फेरी पहन चले जाते हैं। वही बात अभी प्रैक्टिकल में चल रही है।

         

        जो कुछ पास्ट हुआ तुम फिर ऐसे ही करेंगे। भले चले गये, ऐसे मत समझना स्वर्ग में नहीं आयेंगे, परवाने बने, आशिक हुए फिर माया ने हरा दिया, तो पद भी कम पायेंगे।