यह वन्डरफुल पढ़ाई बेहद का बाप पढ़ाते हैं, बाप और उनकी पढ़ाई में कोई भी संशय नहीं आना चाहिए
यह भी बच्चे समझते हैं कि यह पढ़ाई वन्डरफुल है। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बाप के सिवाए कोई बता न सके, इसलिए उनको बेहद का बाप कहा जाता है।
- इतनी बेहद की पढ़ाई, बेहद के बाप के सिवाए तो कोई पढ़ा न सके।
- यहाँ तुम जिसको पतित-पावन, दु:ख हर्ता सुख कर्ता कहते हो, वह बाप अब सम्मुख पढ़ा रहे हैं। सम्मुख होने बिगर राजयोग की पढ़ाई कैसे पढ़ायें? बाप कहते हैं तुम स्वीट बच्चों को यहाँ पढ़ाने आता हूँ। पढ़ाने लिए इनमें प्रवेश करता हूँ।
मैं जो पढ़ाता हूँ यह है अविनाशी पढ़ाई। जो जितना पढ़ेंगे वह व्यर्थ नहीं जायेगा।
- सूर्यवंशी बनना ही है। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी जो पास्ट हो गये वह फिर बनेंगे। वह मर्तबा मिलता ही है पढ़ाई से। बाप की पढ़ाई बिगर यह मर्तबा मिल न सके।
- देह-अभिमान छोड़ अपने को आत्मा समझना - यह है ऊंची पढ़ाई। उस पढ़ाई में भी जो सबजेक्ट डिफीकल्ट होती है, उसमें फेल होते हैं।
इस पढ़ाई से ही हमें सतोप्रधान बनना है।
3.00 | याद...
तुम बच्चों को निरन्तर याद की यात्रा में रहने की श्रीमत क्यों मिली है?
याद भूली और माया ने विकर्म कराया इसलिए ख़बरदार रहना है।
अब बाप तो बाप ही है। फिर पावन बनाने के लिए याद की यात्रा सिखलाते हैं।
खबरदार नहीं रहेंगे, याद नहीं करेंगे तो फिर और ही विकर्म करा देंगे। फिर कुछ न कुछ चमाट लगती रहेगी।
4.00 | चाहिए...
बाप और उनकी पढ़ाई में कोई भी संशय नहीं आना चाहिए, पहला निश्चय चाहिए कि हमें पढ़ाने वाला कौन
अब यह तो निश्चय रहना चाहिए बरोबर बाप के बिगर कोई इतनी नॉलेज दे नहीं सकता। पहले तो यह निश्चय बुद्धि चाहिए।
आत्मा को यह ज्ञान मिलता है, हमारा यह बाबा है। यह बहुत पक्का निश्चय बच्चों को होना चाहिए। बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए।
यह पढ़ाई सिवाए बाप के और कोई पढ़ा न सके। बाप हमको पढ़ाते हैं और जो टीचर्स हैं वह ऑर्डनरी मनुष्य हैं।
पढ़ाने लिए इनमें प्रवेश करता हूँ। बरोबर भगवानुवाच भी है, तो जरूर उनको शरीर चाहिए। न सिर्फ मुख परन्तु सारा शरीर चाहिए।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों, मैं कल्प-कल्प पुरूषोत्तम संगमयुगे साधारण तन में आता हूँ। बहुत गरीब भी नहीं, तो बहुत साहूकार भी नहीं, साधारण है। यह तो तुम बच्चों को निश्चय होना चाहिए - वह हमारा बाबा है, हम आत्मा हैं।
कोई से भी पूछो शिव जयन्ती कब से मनाई जा रही है? तो कहेंगे परमपरा से। वह भी कब से? कोई डेट तो चाहिए ना। ड्रामा तो अनादि है। परन्तु एक्टिविटी जो ड्रामा में होती है, उनकी तिथि-तारीख तो चाहिए ना। यह तो कोई भी जानते नहीं।
5.00 | माया...
माया दुश्मन अभी भी तुम्हारे पीछे है, जिसने तुमको गिराया है।
याद भूली और माया ने विकर्म कराया इसलिए ख़बरदार रहना है।
कहते हैं - बच्चे, माया के त़ूफान आयेंगे, दीवे को बुझा देंगे। शमा पर परवाने कोई तो जल मरते हैं, कोई फेरी पहन चले जाते हैं। वही बात अभी प्रैक्टिकल में चल रही है।
जो कुछ पास्ट हुआ तुम फिर ऐसे ही करेंगे। भले चले गये, ऐसे मत समझना स्वर्ग में नहीं आयेंगे, परवाने बने, आशिक हुए फिर माया ने हरा दिया, तो पद भी कम पायेंगे।