1.

भक्ति मार्ग में भिन्न-भिन्न नाम से अनेकानेक चित्र बना देते हैं। जैसे कि नेपाल में पारसनाथ को मानते हैं।

 

2.

वास्तव में विष्णु का मन्दिर भी रांग है। विष्णु चतुर्भुज, चार भुजाओं वाला कोई मनुष्य तो होता नहीं।

 

3.

बाप समझाते हैं यह लक्ष्मी-नारायण हैं, जिनको इकट्ठा विष्णु के रूप में दिखाया है।

 

4.

सूक्ष्मवतन में विष्णु को 4 भुजायें दे दी हैं अर्थात् दोनों को मिलाकर चतुर्भुज कर दिया है, बाकी ऐसा कोई होता नहीं है। मन्दिर में जो चतुर्भुज दिखाते हैं - वह है सूक्ष्मवतन का।

 

5.

नेपाल में विष्णु का बड़ा चित्र क्षीर सागर में दिखाते हैं। पूजा के दिनों में थोड़ा दूध डाल देते हैं।

 

6.

भक्ति मार्ग में बहुत धक्के खाते हैं। तुमने भी खाये।

 

7.

भक्ति मार्ग में एक के अनेक चित्र हैं। ज्ञान मार्ग में तो ज्ञान सागर एक ही है।

 

8.

तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है।

 

9.

सतयुग में राजा, रानी, प्रजा सब होते हैं। तुम ज्ञान प्राप्त कर रहे हो, तो जाकर बड़े कुल में जन्म लेंगे।

 

10.

आत्मायें सजायें खाकर वापिस चली जाती हैं। अपने-अपने सेक्शन में जाकर ठहरेंगी।

 

11.

यह बुद्धि में रहना चाहिए कि ऊपर से कैसे आते हैं।

 

12.

माया रूपी ग्राह अच्छे-अच्छे महारथियों को भी हप कर लेती है जीते जी बाप की गोद से मरकर रावण की गोद में चले जाते हैं अर्थात् मर पड़ते हैं।

 

13.

तुम बच्चों की बुद्धि में है ऊंचे ते ऊंच बाप फिर रचना रचते हैं।

 

14.

भल तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो, साक्षात्कार करते हो। वहाँ चतुर्भुज देखते हो।

 

15.

चित्रों में है ना। तो वह बुद्धि में बैठा हुआ है तो जरूर साक्षात्कार होगा।

 

16.

भक्ति मार्ग पूरा होगा तो फिर यह चित्र रहेंगे नहीं। स्वर्ग में यह सब बातें भूल जायेंगी। अब बुद्धि में है कि यह लक्ष्मी-नारायण दो रूप हैं चतुर्भुज के।

 

17.

सिर्फ गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। यह तो रांग है, सबकी ग्लानि कर दी है इसलिए भारत तमोप्रधान बन पड़ा है।

 

18.

जो सतोप्रधान थे, उन्होंने ही 84 जन्म लिए हैं। जन्म-मरण में तो जरूर आना है।

 

19.

जो लक्ष्मी-नारायण थे, उनको ही 84 जन्मों के बाद फिर वह बनना है। तो उनके बहुत जन्मों के अन्त में बाप आकर प्रवेश करते हैं।

 

20.

वह सतोप्रधान विश्व के मालिक बनते हैं। तुम्हारे में पारसनाथ को पूजते हैं, शिव को भी पूजते हैं। जरूर उन्हों को शिव ने ही ऐसा पारसनाथ बनाया होगा।

 

21.

मैं इस साधारण बुढ़े तन में प्रवेश करता हूँ, जो अपने जन्मों को नहीं जानते हैं।

 

22.

स्वर्ग में यह सब बातें भूल जायेंगी। अब बुद्धि में है कि यह लक्ष्मी-नारायण दो रूप हैं चतुर्भुज के। लक्ष्मी-नारायण की पूजा सो चतुर्भुज की पूजा।

 

23.

जो सतोप्रधान थे, उन्होंने ही 84 जन्म लिए हैं। जन्म-मरण में तो जरूर आना है।

 

24.

उनके बहुत जन्मों के अन्त में बाप आकर प्रवेश करते हैं। फिर वह सतोप्रधान विश्व के मालिक बनते हैं। तुम्हारे में पारसनाथ को पूजते हैं, शिव को भी पूजते हैं।

 

25.

भक्ति मार्ग में तुम गाते थे कि आप आयेंगे तो हम एक संग जोड़ेंगे।

 

26.

अपने को देह न समझो। आत्मा अविनाशी है। आत्मा में ही सारा पार्ट नूँधा हुआ है, जो तुम बजाते हो। अब शिवबाबा को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा।

 

27.

देवतायें होते ही हैं सतयुग में।

 

28.

बाबा कहेंगे तुम्हारी तकदीर में नहीं है तो बाप क्या करे।

 

29.

वह तो भक्ति मार्ग में आशीर्वाद करते हैं।

 

30.

कोई मरे हुए से जिंदा हो जाता है तो यह भी भावी ही कहेंगे। वह भी ड्रामा में नूँध है।

 

31.

नेपाल में भी आवाज़ निकलेगा। अभी तुम बच्चों की महिमा का समय है नहीं।

 

32.

बड़े-बड़े जग जायें और सभा में बैठ सुनायें, तो उनके पिछाड़ी ढेर आ जायें।

 

33.

बाबा ने मुरली जो चलाई, एक्यूरेट कल्प-कल्प ऐसे चलाई होगी। ड्रामा में नूँध है। प्रश्न नहीं उठ सकता है - ऐसे क्यों?