1.

विश्व में सबसे हाइएस्ट ऊंचे ते ऊंचे श्रेष्ठ आत्मायें आप बच्चों के सिवाए और कोई है?

 

2.

सारे कल्प में चक्र लगाकर देखो तो सबसे ऊंचे मर्तबे वाले और कोई नज़र आते हैं?

 

03.

राज्य अधिकारी स्वरूप में भी आपसे ऊंचे राज्य अधिकारी बने हैं?

 

04.

पूजन और गायन में देखो जितनी पूजा विधिपूर्वक आप आत्माओं की होती है उससे ज्यादा और किसी की है?

 

05.

वण्डरफुल राज़ ड्रामा का कितना श्रेष्ठ है जो आप स्वयं चैतन्य स्वरूप में, इस समय अपने पूज्य स्वरूप को नॉलेज के द्वारा जानते भी हो और देखते भी हो।

 

06.

आपके जड़ चित्र पूज्य रूप में हैं। जड़ रूप में भी हो और चैतन्य रूप में भी हो।

 

07.

राज्य के हिसाब से भी सारे कल्प में निर्विघ्न, अखण्ड-अटल राज्य एक आप आत्माओं का ही चलता है।

 

08.

राज्य में भी हाइएस्ट, पूज्य रूप में भी हाइएस्ट और अब संगम पर परमात्म वर्से के अधिकारी, परमात्म मिलन के अधिकारी, परमात्म प्यार के अधिकारी, परमात्म परिवार की आत्मायें और कोई बनती हैं?

 

09.

वर्सा लेकर सम्पन्न बन बाप के साथ-साथ अपने घर में भी चलने वाले हैं।

 

10.

बापदादा कहते हैं जहाँ भी होंगे - याद में होंगे, बाप के साथ होंगे।

 

11.

साकार में या आकार में साथ होंगे तो कुछ नहीं होगा। साकार में कहानी सुनाई है ना। बिल्ली के पूंगरे भट्ठी में होते हुए भी सेफ रहे ना!

 

12.

साथ में कम्बाइन्ड होंगे, एक सेकेण्ड भी अकेले नहीं होंगे तो सेफ रहेंगे।

 

13.

कभी-कभी कामकाज या सेवा में अकेले अनुभव करते हो?

 

14.

सिर्फ जब सेवा में, कर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते हो ना तो साथ भी भूल जाते हो

 

15.

व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ्तार बहुत तीव्र है

 

16.

जब सर्वशक्तिवान साथ का ऑफर कर रहा है तो ऐसी ऑफर सारे कल्प में मिलेगी?

 

17.

आप सोचो सारे दिन में किसी से भी पूछें कि बाप याद रहता है या बाप की याद भूलती है?

 

18.

याद रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहता है या मर्ज रहता है?

 

19.

इमर्ज रूप में याद क्यों नहीं रखते?

 

20.

चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होगा लेकिन नाता तो यही रहेगा ना!

 

21.

जब नेचुरल रूप में रहते हो तो भूलता नहीं है लेकिन मर्ज रहता है इसलिए बापदादा कहते हैं - बार-बार चेक करो कि साथ का अनुभव मर्ज रूप में है या इमर्ज रूप में?

 

22.

फिर भी मधुबन में पहुँच जाते हैं। बापदादा जानते हैं, देखते हैं, कई बच्चों को कलियुगी सरकमस्टांश होने के कारण टिकेट लेना भी मुश्किल है

 

23.

प्यार में पहुँच जाते हैं लेकिन सरकमस्टांश तो दिनप्रतिदिन बढ़ते ही जाते हैं।

 

24.

कभी-कभी बच्चे अनुभव करते हैं कि अगर चलते-चलते मन्सा में भी अपवित्रता अर्थात् वेस्ट वा निगेटिव, परचिंतन के संकल्प चलते हैं तो कितना भी योग पॉवरफुल चाहते हैं

 

25.

जरा भी अंशमात्र संकल्प में भी किसी प्रकार की अपवित्रता है तो जहाँ अपवित्रता का अंश है वहाँ पवित्र बाप की याद जो है, जैसा है वैसे नहीं आ सकती।

 

26.

कुछ समय पहले बापदादा सिर्फ कर्म में अपवित्रता के लिए इशारा देते थे लेकिन अभी समय सम्पूर्णता के समीप आ रहा है इसलिए मन्सा में भी अपवित्रता का अंश धोखा दे देगा।

 

27.

कुछ याद और कुछ बाहर के साधनों वा खुशी के आधार पर है, दिल के आधार पर नहीं लेकिन दिमाग के आधार पर सेवा करते हैं तो सेवा का प्रत्यक्ष फल उन्हों को भी मिलता है; क्योंकि बाप दाता है और वह उसी में ही खुश रहते हैं कि वाह हमको तो फल मिल गया, हमारी अच्छी सेवा है। लेकिन वह मन की सन्तुष्टता सदाकाल नहीं रहती

 

28.

सेवा में भी फाउण्डेशन पवित्रता है।

 

29.

भाव में भी पवित्रता, भावना में भी पवित्रता।

 

30.

एक दो में गुणों का वायब्रेशन फैलाना - यह गुलाबजल डालना है।

 

31.

बापदादा की शुभ आशा क्या है? समय की डेट नहीं देखो। 2 हजार में होगा, 2001 में होगा, 2005 में होगा, यह नहीं सोचो। चलो एवररेडी नहीं भी बनो इसको भी बापदादा छोड़ देते हैं, लेकिन सोचो बहुतकाल के संस्कार तो चाहिए ना!

 

32.

अगर समय आने पर दृढ़ संकल्प किया, तो वह बहुतकाल हुआ या अल्पकाल हुआ? किसमें गिनती होगा? अल्पकाल में होगा ना! तो अविनाशी बाप से वर्सा क्या लिया? अल्पकाल का। यह अच्छा लगता है? नहीं लगता है ना!

 

33.

जितना बहुतकाल का अभ्यास होगा, उतना अन्त में भी धोखा नहीं खायेंगे।

 

34.

अगर किसी के भी बुद्धि में डेट का इन्तजार हो तो इन्तजार नहीं करना, इन्तजाम करो।

 

35.

सिर्फ विश्वराजन तख्त पर बैठ जाए, देखता रहे कहाँ गई मेरी रॉयल फैमिली, इसलिए बापदादा की एक ही शुभ आशा है कि सब बच्चे चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, जो भी अपने को ब्रह्माकुमारी या ब्रह्माकुमार कहलाते हैं, चाहे मधुबन निवासी, चाहे विदेश निवासी, चाहे भारत निवासी - हर एक बच्चा बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनें।

 

36.

बापदादा एक-एक बच्चे के मस्तक में सम्पूर्ण पवित्रता की चमकती हुई मणी देखने चाहते हैं। नयनों में पवित्रता की झलक, पवित्रता के दो नयनों के तारे, रूहानियत से चमकते हुए देखने चाहते हैं। बोल में मधुरता, विशेषता, अमूल्य बोल सुनने चाहते हैं। कर्म में सन्तुष्टता, निर्माणता सदा देखने चाहते हैं। भावना में - सदा शुभ भावना और भाव में सदा आत्मिक भाव, भाई-भाई का भाव।