1.

यह है मृत्युलोक, उसकी भेंट में अमरलोक भी है।

 

2.

भक्ति मार्ग में दिखाते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई। अब अमरलोक में तो तुम जाते हो।

 

3.

मृत्युलोक में है रावण राज्य, अमरलोक में है राम राज्य।

 

4.

यह 84 जन्मों की पुरानी खाल है। अमरलोक में ऐसे नहीं होता। वहाँ फिर समझते हैं अब शरीर बड़ा, जड़जड़ीभूत हो गया है, इसे छोड़ नया शरीर लेंगे।

 

5.

इस समय के मिसाल फिर भक्ति मार्ग में कॉपी करते हैं, परन्तु सिर्फ कहने मात्र।

 

6.

राखी उत्सव, दशहरा, दीपमाला, होली आदि सब इस समय के हैं। जो भक्ति मार्ग में चले हैं। तो यह बातें सतयुग में होती नहीं।

 

7.

मनुष्य काल पर जीत कैसे पहन सकते हैं? मृत्युलोक से अमरलोक में कैसे जा सकते हैं?

 

8.

रावण राज्य से दैवी राज्य में कैसे जा सकते हैं?

 

9.

जैसे संन्यासियों का अखबार में पड़ता है - आज 125वां यज्ञ रचा है, उसमें यह-यह सुनायेंगे। यहाँ तो बाप कहते हैं - मैं एक ही बार यज्ञ रचता हूँ, जिसमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हो जाती है।

 

10.

सतयुग में हैं ही पवित्र देवतायें। वह राजाई भी करते हैं।

 

11.

आदि सनातन सतयुगी देवी-देवता धर्म की स्थापना कैसे हो रही है, विश्व में शान्ति कैसे स्थापन होती है - आकर समझो।

 

12.

परमपिता परमात्मा के सिवाए विश्व में शान्ति स्थापन करने की राय और कोई दे नहीं सकते।

 

13.

विश्व में शान्ति स्थापन करने की प्राइज़ कैसे और कौन देते हैं, यह भी टॉपिक है।

 

14.

समाचार देहली में आना चाहिए। सबको मालूम पड़ जाए कि सब जगह ऐसा भाषण चला

 

15.

सारी दुनिया में डिसयुनिटी है। रामराज्य का गायन है - शेर गऊ इकट्ठा जल पीते हैं। त्रेता में ऐसा गायन है, तो सतयुग में क्या नहीं होगा!

 

16.

बाकी शास्त्रों में तो अनेक कथायें लिख दी हैं। तुम तो बाप से एक ही कथा सुनते हो। दुनिया में ढेर कथायें बनाते रहते हैं।

 

17.

अब जो बाप समझाते हैं वही बुद्धि में रखो।

 

18.

इतनी सहज बात भी किसकी बुद्धि में नहीं आती है। हम ईश्वरीय सन्तान हैं तो जरूर स्वर्ग के मालिक होने चाहिए

 

19.

बच्चे जो सयाने हैं, समझू हैं, उनकी बुद्धि में आता है - हमको बाप से वर्सा तो जरूर लेना है।

 

20.

बाप नई दुनिया रचते हैं तो जरूर हम भी नई दुनिया में होने चाहिए।

 

21.

एक बाप के तो सब बच्चे हैं। सबका धर्म, सबके रहने का स्थान, आना-जाना सब भिन्न-भिन्न प्रकार का है। कैसे जाकर मूलवतन में निवास करते हैं, यह भी बुद्धि में है। मूलवतन में सिजरा है। सूक्ष्मवतन में सिजरा नहीं दिखा सकते।

 

22.

साक्षात्कार की बातें। यह सब ड्रामा में नूँध है।

 

23.

सूक्ष्मवतन में भी जाते हैं। वहाँ मूवी चलती है। बीच में मूवी का भी ड्रामा बनाया था।

 

24.

बच्चे जानते हैं हम साइलेन्स में कैसे रहते हैं। जैसे वहाँ आत्माओं का सिजरा है, वैसे यहाँ मनुष्यों का है। तो ऐसी-ऐसी बातें बुद्धि में रख तुम भाषण कर सकते हो। फिर भी पढ़ाई में टाइम लगता है।

 

25.

बाप की नज़र भी भृकुटी के बीच में जायेगी। आत्मा तो छोटी बिन्दी है। सुनती भी वही है। तुम बाप को भी भृकुटी के बीच में देखेंगे।

 

26.

बाबा भी यहाँ है तो भाई (ब्रह्मा की आत्मा) भी यहाँ है। ऐसे बुद्धि में रहने से तुम भी जैसे ज्ञान सागर के बच्चे ज्ञान सागर बन जाते हो।

 

27.

गृहस्थ व्यवहार में रहने वालों के लिए यह अवस्था जरा मुश्किल है।..ऐसी अवस्था में बिरला ही कोई रहता है।

 

28.

जैसे पढ़ाई भी एकान्त में झाड़ के नीचे जाकर पढ़ते हैं, वह है स्थूल बात। यह तो प्रैक्टिस करने की बात है।

 

29.

बाबा ने देखा है - ऐसे ब्रह्म में लीन होने का लक्ष्य रखने वाले जब शरीर छोड़ते हैं तो सन्नाटा हो जाता है।

 

30.

बाकी मोक्ष तो कोई पाता नहीं है, न वापिस ही जाते हैं। नाटक में तो सब एक्टर्स चाहिए ना। अन्त में सब आ जाते हैं।

 

31.

इस समय सतयुग की स्थापना हो रही है। कितने करोड़ों मनुष्य हैं। सबको हम सी ऑफ कर फिर अपनी राजधानी में चले जायेंगे। सब वापिस मूलवतन में चले जायेंगे।

 

32.

यह बात तुम्हारी बुद्धि में है कि रूद्र माला रूण्ड माला कैसे बनती है। तुम्हारे में भी जो विशालबुद्धि हैं वही इस बात को समझ सकते हैं।

 

33.

हम रूद्र माला में जाकर रूण्ड माला में आयेंगे।

 

34.

इस संगमयुग को याद करो तो सारी नॉलेज बुद्धि में आ जायेगी।

 

35.

तुम सर्जन भी हो, सर्राफ भी हो, धोबी भी हो। सभी खूबियां (विशेषतायें) तुम्हारे में आ जाती हैं।

 

36.

जो बाप समझाते हैं वही बुद्धि में रखना है, बाकी कुछ भी सुनते हुए न सुनो, देखते हुए न देखो। हियर नो ईविल, सी नो ईविल...

 

37.

ऐसी ईश्वरीय सेवा करने से ईश्वरीय फल के अधिकारी बन गये - इसी नशे में रहो।