1. तुम्हें याद की यात्रा को भूलना नहीं है। सुबह को जैसे यह प्रैक्टिस करते हो, उसमें वाणी नहीं चलती है क्योंकि वह है निर्वाणधाम में जाने की युक्ति।
2. अभी तो कितनी करोड़ आत्मायें हैं। वहाँ सतयुग में जाकर कुछ लाख बचेंगे।
3. वह एक जब आते हैं तो सबको सुख देकर जाते हैं। फिर सुख में उनको याद करने की दरकार नहीं।
4. यह है वैराइटी धर्मों का झाड़, वैराइटी फीचर का झाड़। सबके फीचर अपने-अपने हैं। फूलों में तुम देखेंगे जैसा-जैसा झाड़ वैसे-वैसे उनके फूल निकलते हैं।
5. इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ में वैराइटी है। उसमें हर एक झाड़ की शोभा अपनी-अपनी होती है। इस झाड़ में अनेक प्रकार की शोभा है।
6. जब वह सतोप्रधान से तमोप्रधान बनते हैं तो वही सुन्दर से श्याम बनते हैं। ऐसे श्याम-सुन्दर और कोई धर्म में नहीं बनते हैं।
7. यह कल्प है 5 हज़ार वर्ष का। इसको वृक्ष कहो या दुनिया कहो, आधा में है भक्ति, जिसको रावण राज्य कहा जाता है।
8. 5 विकारों का राज्य चलता है, काम चिता पर चढ़कर पतित सांवरे बन जाते हैं। रावण सम्प्रदाय वालों की चलन और दैवी सम्प्रदाय वालों की चलन में रात-दिन का फ़र्क है।
9. एक की भक्ति पहले-पहले शुरू करते हैं फिर व्यभिचारी हो जाती है। अन्त में फिर बिल्कुल ही व्यभिचारी बन जाते हैं, तब बाप आकर अव्यभिचारी ज्ञान देते हैं।
10. बाप आकर अव्यभिचारी ज्ञान देते हैं। जिस ज्ञान से सद्गति होती है, इसका जब तक पता नहीं है तो भक्ति के ही घमण्ड में रहते हैं। यह पता नहीं है कि ज्ञान का सागर एक ही परमात्मा है। भक्ति में कितने वेद शास्त्र याद कर जबानी भी सुनाते हैं।
11. हिरण को प्यास लगती है तो वह उस रेत में भागते-भागते फंस जाता है। भक्ति भी ऐसे है, उसमें सब फँस पड़े हैं, उससे निकालने में बच्चों को मेहनत लगती है। विघ्न भी इसमें पड़ते हैं क्योंकि बाप पवित्र बनाते हैं। द्रोपदी ने भी पुकारा। सारी दुनिया में द्रोपदियां और दुर्योधन हैं।
12. तुम हॉस्पिटल में जाकर समझा सकते हो। यहाँ तुम्हारी आयु कितनी कम है, बीमार हो पड़ते हो।
13. मेले-मलाखड़े आदि कितने होते हैं। कुम्भ के मेले में कितने लोग स्नान करने के लिए जाकर इकट्ठे होते हैं परन्तु फायदा कुछ भी नहीं।
14. नदियों में तो किचड़ा पड़ता रहता है। कुएं का पानी तो नेचुरल शुद्ध होता है।
15. भक्ति मार्ग में भी स्वच्छता को पसन्द करते हैं। अब परमात्मा को पुकारते हैं कि आकर हमको स्वच्छ बनाओ।
16. सतयुग में सबका भला होता है। वहाँ सब शान्ति में हैं, एक ही राज्य है। उस समय और सब शान्तिधाम में रहते हैं। अब यह लोग माथा मारते हैं कि विश्व में शान्ति हो।
17. उनसे पूछो - आगे कभी विश्व में शान्ति थी, जो अब फिर मांग रहे हो?
18. वो फिर कह देते हैं अभी कलियुग में 40 हज़ार वर्ष और पड़े हैं। मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं। कहाँ 5 हज़ार वर्ष का सारा कल्प, कहाँ एक कलियुग के ही 40 हज़ार वर्ष बचे हुए बताते हैं!
19. आस्तिक हैं देवतायें, नास्तिक हैं रावण राज्य में। ज्ञान से तुम आस्तिक बनते हो
20. शास्त्रों में लिखा है - सागर ने थालियां भर-भर कर दी। अब ज्ञान सागर तुमको रत्नों की थालियां भरकर देते हैं।
21. बहुत हैं जो फ़ारकती भी दे देते हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है।
22. भक्ति मार्ग में तुम अनेक टीचर्स से अनेक विद्यायें पढ़ते हो।
23. भक्ति में सालिग्राम बनाए पूजा कर फिर ख़लास कर देते हैं।
24. आधाकल्प से जो विषय सागर में पड़े हैं उनसे निकालना मासी का घर नहीं है।
25. आगे चलकर मनुष्यों में वैराग्य भी होगा। जैसे शमशान में वैराग्य आता है, बाहर निकले तो खलास।
26. बाहर जाने से माया माथा मूड़ लेती है। कोटो में कोई निकलता है।
27. कहते हैं बाप की याद भूल जाती है। अरे, अज्ञान काल में कभी ऐसे कहते हैं कि हमको बाप भूल जाता है।
28. इस पुरानी देह के स्वभाव और संस्कार बहुत कड़े हैं जो मायाजीत बनने में बड़ा विघ्न रूप बनते हैं। |