1.
जब तुम आत्मा पावन कर्मातीत बन जायेंगी तब घर में जा सकेंगी
2.
आत्मा को शरीर छोड़ने से बहुत डर लगता है क्योंकि उसका शरीर में ममत्व हो गया है।
3.
एक है ज्ञान, दूसरा है भक्ति। ड्रामा में यह नूँध है।
4.
सतयुग में मरने का डर नहीं रहता है। जानते हैं हमको एक शरीर छोड़ दूसरा शरीर लेना है।
5.
जैसे मनुष्य कहते हैं हम लोग भारत में रहते हैं, घर में रहते हैं, वैसे तुम कहेंगे हम लोग अर्थात् हम आत्मायें वहाँ अपने घर में रहती हैं। वह है आत्माओं का घर
6.
थोड़ी भी बीमारी आदि होती है तो डर लगता है - कहाँ शरीर न छूट जाए। अज्ञान काल में भी डर रहता है।
7.
पतित आत्मायें तो मेरे पास मुक्तिधाम में आ न सकें। वह है ही पवित्र आत्माओं का घर।
8.
आकाश, जल, वायु.... वहाँ, मूलवतन में यह तत्व नहीं हैं।
9.
आत्मा ने यह प्रापर्टी ली हुई है इसलिए शरीर में ममत्व हो गया है। नहीं तो हम आत्मायें वहाँ की रहने वाली हैं।
10.
जब तुम सुख में हो तो 5 तत्वों के शरीर से ममत्व नहीं रहता है। वहाँ तो पवित्र रहते हैं। इतना ममत्व नहीं रहता है शरीर में।
11.
जो अच्छे बुद्धिवान हैं और सर्विस में तत्पर रहते हैं वही अच्छी रीति समझा सकते हैं।
12.
हाँ, लिखकर किसको कल्याण के लिए प्वाइंट्स भेज देते हैं वह और बात है। खुद को तो काम में नहीं आती हैं। कोई तो कागज़ लिखकर फालतू फेंक देते हैं।
13.
यह भी अन्दर में समझ होनी चाहिए कि मैं लिखता हूँ फिर वह काम में आता है।
14.
वहाँ शरीर छूटे तो कोई रोते नहीं। कोई तकलीफ नहीं, बीमारी नहीं। शरीर में ममत्व नहीं।
15.
बाबा कहते हैं मुझे याद करो। यह ज्ञान बुद्धि में है। बाप कहते हैं पवित्र बनकर आना है।
16.
अब फिर मुझे याद करो तो आत्मा पवित्र बन जायेगी फिर यह शरीर धारण करने में भी कोई तकलीफ नहीं होगी। अभी शरीर में मोह है तो डॉक्टर आदि को बुलाते हैं।
17.
पहले तो आत्मा में ताकत होती है, खुशी होती है। कभी डर नहीं रहता।
18.
बाप समझाते हैं यहाँ तुम्हारा शरीर में मोह है। यह मोह निकाल दो।
19.
यहाँ हर चीज़ में दु:ख है। कितना गंद है। स्वर्ग में तो शरीर भी फर्स्टक्लास, महल भी फर्स्टक्लास मिलेंगे।
20.
यह तो चिंतन में आना चाहिए ना। बाप कहते हैं और कुछ नहीं समझते हो, अच्छा बोलो बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे, स्वर्ग में चले जायेंगे। हम तो आत्मा हैं। यह शरीर रूपी दुम बाद में मिला है, इनमें हम क्यों फंसे हैं?
21.
रावण राज्य में दु:ख ही दु:ख है। सतयुग में दु:ख की बात नहीं।
22.
सतयुग में खराब कुछ होता नहीं। यहाँ चिंता लगी है।
23.
अभी तुम समझते हो हम रावण राज्य में बैठे हैं।
24.
जिस पढ़ाई से हम यह पद पाते हैं, यह सब भूल जाता है। स्वर्ग में गये और यह नॉलेज गुम हो जाती है।
25.
तुम आकर सुनते हो तो तुमको झट टच होता है। है सारा गुप्त। बाप सुनाते हैं, देखने में आता है क्या? समझ में आता है, आत्मा को देखा है क्या?
26.
बैठे-बैठे छोटी-छोटी आत्मायें देखने में आती हैं।
27.
अभी तुम जानते हो इतनी छोटी आत्मा में ताकत कितनी है।
28.
आत्मा तो मालिक है, एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती है पार्ट बजाने के लिए।
29.
भल कहते हैं हम बाबा को याद करते हैं परन्तु बाबा कहता है याद करना आता ही नहीं है। पद में भी फ़र्क तो पड़ता है ना।
30.
रावण राज्य में तुम वाम मार्ग में चले जाते हो। जो देवता थे वही फिर वाम मार्ग में गिरते हैं
31.
मुझे जानें तब योगबल से विकर्म विनाश हों। वह तो पिछाड़ी में ही हो सकता है।
32.
भक्ति मार्ग में मनुष्य क्या-क्या करते रहते हैं। बाप जब आकर ज्ञान देते हैं तो फिर भक्ति होती नहीं।
33.
जो यहाँ का सैपलिंग होगा उनकी बुद्धि में बैठेंगी। यह बड़ी महीन बातें हैं, वन्डरफुल ज्ञान है
34.
बहुत थोड़े समझने वाले होते हैं। ड्रामा में नूँध है। उसमें कुछ भी फ़र्क नहीं पड़ सकता।
35.
कोई बिगड़ा हुआ कार्य भी आपकी दृष्टि से, आपके सहयोग से सहज हल होगा। कोई सिद्धि के रूप में आप लोग नहीं कहेंगे कि हाँ यह हो जायेगा।
36.
अव्यक्त स्थिति में स्थित हो मिलन मनाओ तो वरदानों का भण्डार खुल जायेगा।
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