1.
बाबा पूछते हैं जब भी कहाँ सभा में भाषण करते हो, तो घड़ी-घड़ी यह पूछते हो कि तुम अपने को आत्मा समझते हो या देह? अपने को आत्मा समझकर यहाँ बैठो।
2.
आत्मा ही पुनर्जन्म में आती है। अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा को याद करो।
3.
निराकार बाप निराकारी बच्चों को कहते हैं - मुझे याद करने से तुम्हारे पाप कट जायेंगे और तुम पावन बन जायेंगे। फिर तुम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पायेंगे। सभी को मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति में आना है जरूर।
4.
आदि सनातन तो है ही देवी-देवता धर्म। फिर आर्य कौन-सा धर्म है? आर्य तो आर्य समाजियों का धर्म होगा। आर्य धर्म तो नाम ही नहीं है। आर्य धर्म किसने स्थापन किया? तुमको वास्तव में गीता को भी नहीं उठाना है।
5.
महिमा भी बाप की करनी है। यह भी तुम तब कह सकेंगे जब तुम खुद बाप को याद करते होंगे। इस बात की बच्चों में कमजोरी है।
6.
तुम बच्चों की दिल में अथाह खुशी रहनी चाहिए। तुमको अन्दरूनी खुशी होगी तो दूसरों को भी समझाने का असर होगा।
7.
पहली मूल बात यही कहना है कि भाईयों और बहनों, अपने को आत्मा समझो। ऐसे और कोई सतसंग में नहीं कहेंगे। वास्तव में सतसंग कोई है नहीं। सत का संग एक ही है। बाकी है कुसंग।
8.
यहाँ है बिल्कुल नई बात। वेदों से तो कोई धर्म स्थापन हुआ ही नहीं है। तो हम वेदों को क्यों उठायें। कोई में भी यह नॉलेज है नहीं।
9.
अब बाप स्वयं कहते हैं आस्तिक बनो, अपने को आत्मा समझो। यह बातें गीता में कुछ हैं। वेदों में हैं नहीं।
10.
बाबा ने कहा है - त्रिमूर्ति गोला बड़ा-बड़ा बनाकर देहली के मुख्य स्थान पर, जहाँ आना-जाना बहुत हो, वहाँ लगा दो। टीन सीट पर हो। सीढ़ी में तो और धर्मों का नहीं आता है। मुख्य यह दो चित्र हैं।
11.
तुम सब आपस में ब्रदर्स हो। जब इस बात को भूलते हो तब तमोप्रधान बन जाते हो।
12.
तुम इतनी मेहनत करते हो फिर भी किसकी बुद्वि में बैठता नहीं है। बच्चे कहते हैं - बाबा, क्या हमारे समझाने में कोई भूल है? बाबा फट से कह देते - हाँ, भूल है। अल़फ को ही नहीं समझा है तो फट से रवाना कर दो।
13.
जब तक बाप को नहीं जाना, तब तक तुम्हारी बुद्वि में कुछ भी बैठेगा नहीं। तुम भी जब देही-अभिमानी अवस्था में नहीं रहते हो तो आंखें क्रिमिनल रहती हैं। सिविल तब बनेंगी जब अपने को आत्मा समझेंगे।
14.
जो बच्चे योग में नहीं रहते वह इतनी सर्विस भी नहीं कर सकते। जौहर नहीं भरता है।
15.
भल बाबा कहते हैं कोटों में कोई निकलेगा, परन्तु जब तुम खुद ही योग में नहीं रहते तो दूसरों को फिर कैसे कहेंगे।
16.
कल्याण तो है ही बाप की याद में।
17.
और कोई सतसंग में ऐसे नहीं कहते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
18.
शादी होती है तो स्त्री का पति के साथ कितना लव होता है। तुम्हारी भी सगाई हुई है, शादी नहीं। वह तो जब विष्णुपुरी में जायेंगे।
19.
सतयुग में भी सगाई होती है। परन्तु वहाँ सगाई कब टूटती नहीं है। अकाले मृत्यु नहीं होती। यह तो यहाँ होती है।
20.
तुम बच्चों को भी गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है।
21.
तुम बच्चे जब योग में बोलेंगे तब किसकी बुद्वि में बैठेगा। ज्ञान तलवार में योग का जौहर चाहिए। पहली मुख्य है एक बात।
22.
बाबा कहते हैं योग में रहकर समझाओ। याद की यात्रा की मेहनत करो। रावण से हारकर विकारी बने हो, अब निर्विकारी बनो।
23.
बच्चे अच्छी तरह कैच नहीं करते हैं, और-और बातों में चले जाते हैं। मुख्य तो बाप का पैगाम दो।
24.
दूसरों को कहे - विकार में नहीं जाओ, खुद जाये, तो जरूर दिल खायेगी। ऐसे भी ठग हैं इसलिए बाबा कहते हैं मूल बात है ही अल्फ।
25.
अन्दरूनी बाप के याद की खुशी में रहकर फिर दूसरों को बाप का परिचय देना है
26.
ब्राह्मण जीवन में वैरायटी अनुभूतियों द्वारा रमणीकता का अनुभव करने वाले सम्पन्न आत्मा भव
जीवन में हर मनुष्य आत्मा की पसन्दी वैराइटी है। तो सारे दिन में भिन्न-भिन्न संबंध, भिन्न-भिन्न स्वरूप का वैराइटी अनुभव करो, तो बहुत रमणीक जीवन का अनुभव करेंगे।
27.
बाप समान अव्यक्त रूपधारी बन प्रकृति के हर दृश्य को देखो तो हलचल में नहीं आयेंगे।
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