"...खाता Khata
Chat khata
29.10.1970
"...जो चीज़ बाप को प्रिय नहीं वह बच्चों को प्रिय क्यों? आज तक जो कमज़ोरी, कमियाँ,

निर्बलता, कोमलता रही हुई है वह सभी पुराने खाते आज से समाप्त करना, यही

दीपमाला मनाना है। ..."

21.01.1971
"...अपने को आधारमूर्त समझेंगे तो बहुतों का उद्धार कर सकेंगे। जो ऐसी सर्विस करते हैं

वह उस खाते में, जैसे बैंक में भिन्न-भिन्न खाते होते हैं, जो जो जिसकी सर्विस करने के

निमित्त बनते हैं वह उस समय ऐसे ही खाते में जमा होते हैं। ..."

15.04.1971
"...जो भी संकल्प उत्पन्न होता है, संकल्प को ही चेक करो। मास्टर त्रिकालदर्शी की

स्टेज पर हूँ? अगर उस स्टेज पर स्थित होकर कर्म करेंगे तो कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं

होगा। विकर्म की तो बात ही नहीं है। अभी विकर्म के खाते से ऊपर आ गये हो। विकल्प

भी खत्म तो विकर्म भी खत्म। अभी है व्यर्थ कर्म और व्यर्थ संकल्प की बात। इन व्यर्थ

को बदलकर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य करना है। इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज। ..."

20.05.1971
"...वरदानीमूर्त बनने के लिए सर्व शक्तियों को अपने में इतना जमा करना पड़े जो दूसरे

को दे सकें। इतना जमा का खाता है? वा कमाया और खाया, यह रिजल्ट है? एक होता

है कमाया और खाया - दूसरा होता है जमा करना और तीसरा होता है जो इतना भी नहीं

कमा सकते जो स्वयं को भी चला सकें, दूसरे की मदद ले अपने को चलाना पड़ता। तो

तीसरी स्टेज वा दूसरी स्टेज से पार हुए हो? वह है कमाया और खाया। और पहली स्टेज

है जमा करना। तो रोज अपना बैंक बैलेन्स देखते हो? बहुत भिखारी भीख मांगने के लिए

आयेंगे। तो इतना ही जमा करना पड़े जो सभी को दे सको। जमा करना सीखे हो?

कितना जमा किया है, खाते से तो पता लग जाता है ना। अपना खाता देखा है? कई ऐसे

भी होते हैं जो निकाल कर खाते जाते हैं, मालूम नहीं पड़ता है। फिर जब अचानक खाता

देखते हैं तो समझते हैं कि यह क्या हो गया! ऐसे तो यहाँ होंगे ही नहीं। अच्छा।
जमा किये हुए खाते वाले का विशेष गुण वा कर्त्तव्य क्या दिखाई देगा? जिसके पास

खजाना जमा होगा उसकी सूरत से एक तो वर्तमान और भविष्य अर्थात् ईश्वरीय नशा

और नारायणी नशा दिखाई देगा और उनके नयनों वा मस्तक से सर्व आत्माओं को स्पष्ट

अपना नशा दिखाई देगा। यह जमा होने वाले की निशानी दिखाई देगी। उनकी सूरत ही

सर्विसएबल होगी, सूरत ही सर्विस करती रहेगी।..."

18.07.1971
"...रात के समय जब दिन को समाप्त करते हो तो याद-अग्नि से वा स्मृति की शक्ति

से पुराने खाते को समाप्त अथवा खत्म कर देना चाहिए। हिसाब चुक्तू कर देना चाहिए।

जैसे बिज़नेसमैन भी अगर हिसाब-किताब चुक्तू न रखते तो खाता बढ़ जाता और कर्ज़दार

हो जाते हैं। कर्ज़ को मर्ज़ कहते हैं। इसी रीति से अगर सारे दिन के किये हुए कर्मों का

खाता और संकल्पों का खाता भी कुछ हुआ, उसको चुक्तू कर दो। दूसरे दिन के लिए

कुछ कर्ज़ की रीति न रखो। नहीं तो वही मर्ज़ के रूप में बुद्धि को कमज़ोर कर देता है।

रोज़ अपना हिसाब चुक्तू कर नया दिन, नई स्मृति रहे। ऐसे जब अपने कर्मों और

संकल्पों का खाता क्लीयर रखेंगे तब सम्पूर्ण वा सफलतामूर्त बन जायेंगे। अगर अपना ही

हिसाब चुक्तू नहीं कर सकते तो दूसरों के कर्मबन्धन वा दूसरों के हिसाब-किताब को कैसे

चुक्तू करा सकेंगे। इसलिए राज़ रात को अपना रजिस्टर साफ होना चाहिए। जो हुआ वह

योग की अग्नि में भस्म करो।..."

19.08.1971
"...स्नेह देना ही भविष्य के लिए जमा करना है। यह भी देखना है कि अपने भविष्य के

खाते में यह स्नेह कितना जमा किया है। ज्ञान देना सरल है, लेकिन विश्व-महाराजन्

बनने के लिए सिर्फ ज्ञान-दाता नहीं बनना है, इसके लिए स्नेह देना अर्थात् सहयोग देना

है। जहाँ स्नेह होगा वहाँ सहयोग अवश्य होगा। ..."

 

11.09.1971
"...अगर संकल्प, समय, शब्द और कर्म - इन चारों में से कोई को भी व्यर्थ गंवाते हो वा

नुकसान के खाते में जाता है तो उसको क्या सम्पूर्ण वफादार कहेंगे? क्योंकि जब से

जन्म लिया अर्थात् फरमानबरदार, आज्ञाकारी बने, ईमानदार बने हैं? एक छोटे से पैसे में

भी ईमानदार होता है। तो जब से जन्म लिया है तब से मन अर्थात् संकल्प, समय और

कर्म जो भी करेंगे वह बाप के ईश्वरीय सेवा अर्थ करेंगे।..."

27.09.1971
"...अगर सदा अपने को विश्व की स्टेज पर विश्व-कल्याण की सेवा अर्थ समझते हो; तो

फिर साधारण स्थिति वा साधारण चलन वा अलबेलापन रहेगा? और कितना समय व्यर्थ

जाने से सफल हो जायेगा, जमा का खाता कितना बढ़ जायेगा! ऐसे कोई के ऊपर बहुत

बड़ी ज़िम्मेवारी होती है तो वह एक-एक सेकेण्ड अपना अमूल्य समझते हैं। अगर एक-दो

मिनिट भी व्यर्थ चला जाए तो उनके लिए वह दो मिनिट भी बहुत बड़ा समय देखने में

आता है। तो सभी से बड़ी ते बड़ी ज़िम्मेवारी आपके ऊपर है। ..."

09.10.1971
"...तो सच्ची दीपावली मनाना। पुराने संस्कार, पुराने संकल्प, पुरानी भाव- नायें, पुराने

स्वभाव सब खत्म कर सम्पूर्णता का, सर्व विशेषताओं का खाता शुरू कर जाना। दीपावली

जब पहले विशेष आत्मायें मनायेंगी तब फिर और मनायेंगे। ..."

18.10.1971
"...दीपावली के दिन अपने प्रति विशेष अटेन्शन रहा? आज के दिन अपने आत्मा के

संस्कारों में सदा के लिए परिवर्तन लाने का विशेष अटेन्शन दिया? जब यादगार रूप में

आज का दिन पुराने खाते खत्म करने की रीति रूप में चलता आ रहा है, वह अवश्य

प्रैक्टिकल रूप में आप आत्माओं ने किया है तब तो यादगार चलता आया है। तो आज के

दिन अपने पुराने संस्कारों का ज़रा भी रहा हुआ खाता खत्म किया? खत्म करने के पहले

अपने खाते को चेक किया जाता है, रिजल्ट निकाली जाती है। ऐसे आप सभी ने अपना

पोतामेल चेक किया? क्या चेक करना है? आज के दिन तक जो भी पुरूषार्थ चला उसकी

रिजल्ट अब तक किन बातों में और किस परसेन्टेज में सफलतामूर्त बने? पहले अपने

मन्सा संकल्पों को, पोतामेल को चेक करो कि - ‘‘अब तक सम्पूर्ण श्रेष्ठ संकल्पों के

पुरूषार्थ में कहाँ तक सफलता आई है? व्यर्थ संकल्पों वा विकल्पों के ऊपर कहाँ तक

विजयी बने हैं और वाणी द्वारा कहाँ तक आत्माओं को बाप का परिचय दे सकते, कितनी

आत्माओं को बाप के स्नेही वा सहयोगी बना सकते हैं? वाचा में कहाँ तक रूहानियत वा

अलौकिकता वा आकर्षण आई है? ऐसे ही कर्मणा द्वारा सदा न्यारे और प्यारे, अलौकिक,

असाधारण कर्म कहाँ तक कर सकते हैं? कर्मों में कहाँ तक कर्मयोगी का, योगयुक्त,

युक्तियुक्त, स्नेहयुक्त रूप लाया है? अपने संस्कारों और स्वरूपों में अर्थात् सूरत में कहाँ

तक बाप समान आकर्षण रूप, स्नेही रूप, सहयोगी रूप बने?’’ ऐसे अपना पोतामेल चेक

करने से अब तक जो कमी वा कमज़ोरी रह गई है उसको समाप्त कर नया खाता शुरू

कर सकेंगे। ऐसा अपना पोतामेल चेक करो।..."

1972 Start