02.02.1969 अव्यक्त बापदादा मधुबन
ऐसी ज्वाला प्रज्जवलित करनी है...

"...अब तो ज्वाला रूप होना है।

आपका ही ज्वाला रूप का यादगार है।

पता है ज्वाला देवी भी है वह कौन है?

यह सभी शक्तियों को ज्वालारूप देवी बनना है।

ऐसी ज्वाला प्रज्जवलित करनी है।

जिस ज्वाला में यह कलियुगी संसार जलकर भस्म हो जायेगा।..."

 

 

 


प्यारे अव्यक्त बापदादा-05.04.1970

लाइट का अर्थ...

"...शक्तियों का मुख्य गुण क्या है?

इस ग्रुप में एक शक्तिपन का पहला गुण निर्भयता और दूसरा विस्तार को एक सेकेंण्ड में समेटने की युक्ति भी सिखाना।

एकता और एकरस।

अनेक संस्कारों को एक संस्कार कैसे बनायें।

यह भी इस भट्ठी में सिखाना है।

कम समय और कम बोल लेकिन सफलता अधिक हो।

यह भी तरीका सिखाना है।

सुनना और स्वरुप बन जाना है।

सुनना अधिक और स्वरुप बनना कम, नहीं।

सुनते जाना और बनते जाना।

अब साक्षात्कार मूर्त्त बनकर जाना, वाचा मूर्ति नहीं।

जो भी आप सभी को देखे तो आकारी और अलंकारी देखे।

सेन्स बहुत है लेकिन अब क्या करना है?

ज्ञान का जो इसेन्स है उसमे रहना है।

सेन्स को इसेन्स में लगा देना है।

तब ही जो बापदादा उम्मीद रखते हैं वह प्रत्यक्ष दिखायेंगे।

इसेन्स को जानते हो ना।

जो इस ज्ञान की आवश्यक बातें हैं वही इसेन्स है।

अगर वह आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी।

अभी कोई-न-कोई आवश्यकताए हैं।

लेकिन आवश्यकताओं को सदा के लिए पूर्ण करने के लिए दो आवश्यक बातें हैं।

जो बताई – आकारी और अलंकारी बनना।

आकारी और अलंकारी बनने के लिए सिर्फ एक शब्द धारण करना है।

वह कौन-सा शब्द है जिसमे आकारी और अलंकारी दोनों आ जायें?

वह एक शब्द है लाइट।

लाइट का अर्थ एक तो ज्योति भी है और लाइट का अर्थ हल्का भी है।

तो हल्कापन और प्रकाशमय भी।

अलंकारी भी और आकारी भी।

ज्योति स्वरुप भी, ज्वाला स्वरुप भी और फिर हल्का, आकारी।

तो एक ही लाइट शब्द में दोनों बातें आ गई ना।

इसमें कर्त्तव्य भी आ जाता है।

कर्त्तव्य क्या है?

लाइट हाउस बनना।

लाइट में स्वरुप भी आ जाता है।

कर्त्तव्य भी आ जाता है। ..."

 

 

 

 

प्यारे अव्यक्त बापदादा-05.04.1970

"...देवियों के चित्र बहुत देखते हैं तो उसमें क्या देखते हैं?

जितना ज्वाला उतनी शीतलता।

कर्त्तव्य ज्वाला का है सूरत शीतलता की है।

यह है अन्तिम स्वरुप।..."

 

 

 

 

प्यारे अव्यक्त बापदादा-17.05.1972

"...जबकि चैलेन्ज करते हो - 4 वर्ष में विनाश की ज्वाला प्रत्यक्ष हो जाएगी,

तो स्थापना में भी ज़रूर बाप की प्रत्यक्षता होगी तब तो कार्य होगा ना।

अच्छा! कमाल यह है जो विस्तार द्वारा बीज को प्रगट करें।

विस्तार में बीज को गुप्त कर देते हैं।

अब तो वृक्ष की अन्तिम स्टेज है ना।

मध्य में गुप्त होता है।

अन्त तक गुप्त नहीं रह सकता।

अति विस्तार के बाद आखरीन बीज ही प्रत्यक्ष होता है ना।

मनुष्य आत्माओं की यह नेचर होती है जो वैराइटी में आकर्षित अधिक होते हैं।

लेकिन आप लोग किसलिए निमित हो?

सभी आत्माओं को वैराइटी वा विस्तार के आकर्षण से अटेन्शन निकालकर बीज तरफ आकर्षित करना। ..."

 

 

 

 

प्यारे अव्यक्त बापदादा-28.01.1974

"...उपरामवृत्ति व ज्वाला रूप के दृढ़ संकल्प से विनाश का कार्य सम्पन्न करो ..."

 

 

 

 

प्यारे अव्यक्त बापदादा- 03.02.1974

"...अब तो इतना बड़ा कार्य करने के लिए खूब तैयारी चाहिए, पता है कि क्या तैयारी चाहिए?

क्या शंकर को कार्य कराना है?

उसको ही तो नहीं देखते हो कि कब शंकर विनाश करावेंगे?

विनाश ज्वाला प्रज्वलित कब और कैसे हुई?

कौन निमित्त बना?

क्या शंकर निमित्त बना या यज्ञ रचने वाले बाप और ब्राह्मण बच्चे निमित्त बने?

जब से स्थापना का कार्य-अर्थ यज्ञ रचा तब से स्थापना के साथ-साथ यज्ञ-कुण्ड से विनाश की ज्वाला भी प्रगट हुई।

तो विनाश को प्रज्जवलित करने वाले कौन हुए?

बाप और आप साथ-साथ है न?

तो जो प्रज्वलित करने वाले हैं तो उन्हों को सम्पन्न भी करना है, न कि शंकर को?

शंकर समान ज्वाला-रूप बन कर प्रज्वलित की हुई विनाश की ज्वाला को सम्पन्न करना है।

जब कोई एक अर्थी को भी जलाते हैं तो जलाने के बाद बीच-बीच में अग्नि को तेज़ किया जाता है, तो यह विनाश ज्वाला कितनी बड़ी अग्नि है।

इनको भी सम्पन्न करने के लिए निमित्त बनी हुई आत्माओं को तेज करने के लिए हिलाना पड़े-कैसे हिलावें?

हाथ से व लाठी से?

संकल्प से इस विनाश ज्वाला को तेज़ करना पड़े,

क्या ऐसा ज्वाला रूप बन, विनाश ज्वाला को तेज़ करने का संकल्प इमर्ज होता है या यह अपना कार्य नहीं समझते हो? ..."