वो मेरा बाबा है...


Avyakt Vaani - 31.12.1970

 अमृतवेले से परिवर्तन शक्ति का प्रयोग” 

 

"...आदि समय से

परिवर्तन शक्ति कार्य में लाओ।

 

 

जैसे सृष्टि के आदि में

ब्रह्म से देव-आत्मा

सतोप्रधान आत्मा

पार्ट में आयेगी,

 ऐसे हर रोज़

अमृतवेला आदिकाल है।

 

 

इसलिए

इस आदिकाल के समय उठते ही पहला संकल्प याद में

ब्राह्मण आत्मा पधारे 

बाप से मिलन मनाने के लिए।

 

 

यही समर्थ संकल्प,

 श्रेष्ठ संकल्प,

 श्रेष्ठ बोल,

 श्रेष्ठ कर्म का आधार बन जायेगा।

 

 

पहला परिवर्तन 

मैं कौन!

 तो यही फाउंडेशन

परिवर्तन शक्ति का आधार है।

 

 

इसके बाद 

दूसरा परिवर्तन 

"मैं किसका हूँ

सर्व सम्बन्ध किससे हैं।

सर्व प्राप्तियां किससे हैं!

 

 

पहले देह का परिवर्तन

फिर देह के सम्बन्ध का परिवर्तन

फिर सम्बन्ध के आधार पर प्राप्तियों का परिवर्तन 

इस परिवर्तन को ही

सहज याद कहा जाता है।

 

 

तो आदि में

परिवर्तन शक्ति के आधार पर अधिकारी बन सकते हो।

 

 

अमृतवेले के बाद

अपने देह के कार्यक्रम

करते हुए

कौन-से परिवर्तन की

आवश्यकता है?

 

 

 जिससे निरंतर

सहजयोगी बन जायेंगे।

 

सदा यह संकल्प रखो

कि मैं चैतन्य

सर्वश्रेष्ठ मूर्ति हूँ

और यह मन्दिर है

चैतन्य मूर्ति का

यह देह चैतन्य मन्दिर है।

 

 

मन्दिर को सजा रहे हैं।

इस मन्दिर का अन्दर

स्वयं बापदादा की प्रिय मूर्ति विराजमान है।

 

 

जिस मूर्ति के गुणों की माला

स्वयं बापदादा सिमरण करते हैं।

जिस मूर्ति की महिमा

स्वयं बाप करते हैं।

ऐसी विशेष मूर्ति का

विशेष मन्दिर है।

 

 

जितनी मूर्ति वैल्युएबल होती है मूर्ति के आधार पर

मन्दिर की भी वैल्यू होती है।

 

 

तो परिवर्तन क्या करना है

मेरा शरीर नहीं

लेकिन बापदादा की

वैल्युएबल मूर्ति का

यह मन्दिर है।

 

 

स्वयं ही मूर्ति

स्वयं ही मन्दिर का ट्रस्टी बन मन्दिर को सजाते रहो।

 

 

इस परिवर्तन संकल्प के

आधार पर मेरापन

अर्थात्

देहभान परिवर्तन हो जायेगा।

 

 

इसके बाद 

अपना गोडली स्टूडेन्ट रूप

सदा स्मृति में रहे।

इसमें विशेष परिवर्तन संकल्प कौनसा चाहिए

 

 

जिससे हर सेकण्ड की

पढ़ाई हर अमूल्य बोल की

धरणा से हर सेकण्ड

वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बन जाये।

 

 

इसमें सदा

यह परिवर्तन संकल्प चाहिए कि

मैं साधारण स्टूडेन्ट नहीं,

 साधारण पढ़ाई नहीं लेकिन डायरेक्ट बाप रोज दूरदेश से

हमको पढ़ाने आते हैं।

 

 

भगवान के वर्शन्स

हमारी पढ़ाई है।

श्री-श्री की श्रीमत

हमारी पढ़ाई है।

 

 

जिस पढ़ाई का हर बोल

पद्मों की कमाई

जमा कराने वाला है।

 

 

अगर एक बोल भी

धारण नहीं किया तो

बोल मिस नहीं किया

लेकिन पद्मों की कमाई अनेक जन्मों की श्रेष्ठ प्रालब्ध

वा श्रेष्ठ पद की प्राप्ति

में कमी की।

 

 

ऐसा परिवर्तन संकल्प

 "भगवान् बोल रहे हैं"

हम सुन रहे हैं।

मेरे लिये बाप टीचर बनकर

आये हैं।

 

 

मैं स्पेशल लाडला

स्टूडेन्ट हूँ

इसलिए मेरे लिए आये हैं।

कहाँ से आये हैं,

 कौन आये हैं

और क्या पढ़ा रहे हैं?

 

 

यही परिवर्तन

श्रेष्ठ संकल्प रोज़

क्लास के समय

धारण कर पढ़ाई करो।

 

 

साधारण क्लास नहीं,

सुनाने वाले

व्यक्ति को नहीं देखो।

लेकिन बोलने वाले

बोल किसके हैं

उसको सामने देखो।

 

 

व्यक्त में अव्यक्त बाप

और

निराकारी बाप को देखो।

 

 

तो समझा 

क्या परिवर्तन करना है।"

Enjoy Today's Murli