• Avyakt BaapDada 01.01.1986

     

    "...सर्व खज़ानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो?
    • कितने खज़ाने मिले हैं वह जानते हो?
    • गिनती कर सकते हो।
    • अविनाशी हैं और अनगिनत हैं।
    • तो एक एक खज़ाने को स्मृति में लाओ।
    • खज़ाने को स्मृति में लाने से खुशी होगी।
    • जितना खज़ानों की स्मृति में रहेंगे उतना समर्थ बनते जायेंगे और जहाँ समर्थ हैं वहाँ व्यर्थ खत्म हो जाता है।
      • व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, व्यर्थ बोल सब बदल जाता है।
      • ऐसा अनुभव करते हो?
      • परिवर्तन हो गया ना।
      • नई जीवन में आ गये।
  • नई जीवन, नया उमंग, नया उत्साह हर घड़ी नई, हर समय नया।
    • तो हर संकल्प में नया उमंग, नया उत्साह रहे।
    • कल क्या थे आज क्या बन गये!
    • अभी पुराना संकल्प, पुराना संस्कार रहा तो नहीं है!
    • थोड़ा भी नहीं तो सदा इसी उमंग में आगे बढ़ते चलो।
  • जब सब कुछ पा लिया तो भरपूर हो गये ना।
    • भरपूर चीज़ कभी हलचल में नहीं आती।
    • सम्पन्न बनना अर्थात् अचल बनना।
    • तो अपने इस स्वरूप को सामने रखो कि हम खुशी के खज़ाने से भरपूर भण्डार बन गये।
      • जहाँ खुशी है वहाँ सदाकाल के लिए दुख दूर हो गये।
      • जो जितना स्वयं खुश रहेंगे उतना दूसरों को खुश खबरी सुनायेंगे।
      • तो खुश रहो और खुशखबरी सुनाते रहो।..."