"...अनेक दुनिया के बन्धनों से मुक्त हो।
यहाँ ही जीवनमुक्त स्थिति की प्राप्ति है।
सेवाधारी का अर्थ ही है - बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त।
कितने हद की जिम्मेवारियों से छूटे हुए हो।
और अलौकिक जिम्मेवारी भी बाप की है, इससे भी छूटे हुए हो।
सिर्फ सेवा किया-आगे चलो।
जिम्मेवारी का बोझ नहीं है।
क्या किसी के ऊपर कोई बोझ है?
सेन्टर का बोझ है क्या?
सेन्टर को चलाने का बोझ नहीं है, यह फिकर नहीं रहता है कि जिज्ञासू कैसे आवें (रहता है) तो बोझ हुआ ना!
सफलता भी तब होगी जब यह समझो कि मैं बढ़ाने वाली नहीं हूँ लेकिन बाप की याद से स्वत: बढ़ेगी।
मैं बढ़ाने वाली हूँ, तो बढ़ नहीं सकती।
बाप को बोझ दे देंगे तो बढ़ती रहेगी। ..."