6.
"...स्व-दर्शन और परदर्शन दोनों चक्कर घूमते रहते हैं।
परदर्शन माया का आह्वान करता है।
स्वदर्शन माया को चैलेन्ज करता है।
परदर्शन की लीला की लहर भी अच्छी तरह से दिखाई देती है।
बेहद के ड्रामा के हर पार्ट के ‘त्रिकालदर्शी’ बनने का लक्ष्य भी देखा।
लेकिन व्यर्थ बातों के त्रिकालदर्शी भी ज्यादा बनते हैं।
पहले भी ऐसे हुआ था, अभी है और यह होता ही रहेगा - ऐसे त्रिकालदर्शी बन गए हैं।
और एक मजे की बात क्या होती है, जो भक्ति में भी आपको कापी की है
, वह कौन सी बात है?
‘मनगढ़ंत कहानियाँ’ - जैसे गणेश वा हनुमान रीयल हैं क्या?
लेकिन कहानी कितनी रमणीक हैं! ऐसे छोटी सी बात का भाव बदल,
मनगढ़ंत भाव भरकर पूरी स्टोरी (Story;कहानी) तैयारी कर लेते हैं।
और सुनने, सुनाने वाले बड़ी रूचि और समय देकर सुनते-सुनाते हैं। ऐसी भी लहर देखी।
बाप-दादा, श्रेष्ठ पद पाने के लिए वा सर्व के स्नेही बनने के लिए सदैव यही
शिक्षा देते हैं कि ‘स्वयं को बदलना है।’
लेकिन स्वयं को बदलने के बजाए, परिस्थितियों को और अन्य आत्माओं
को बदलने का सोचते हैं - यह बदले, तो मैं ठीक हूँगा।
परिस्थिति बदले तो मैं परिवर्तन हूँगा।
सैलवेशन मिले तो परिवर्तित हूँगा।
सहयोग व सहारा मिले तो परिवर्तन हूँगा।
इसकी रिजल्ट क्या होती?
जो किसी भी आधार पर परिवर्तन होता है, उसको जन्म-जन्म प्रालब्ध भी किसी आधार पर ही रहेगी।
उसका कमाई का खाता जिस बात में जितनों का आधार लेते हैं वह
शेयर्स (Shares;हिस्से) में बंट जाता है।
स्वयं का खाता जमा नहीं होता।
इसलिए जमा होने की शक्ति और खुशी से सदा वंचित रहते हैं।
इसलिए सदा लक्ष्य रखो कि स्वयं को परिवर्तन होना है।
मैं स्वयं विश्व की आधार मूर्त्त हूँ, सिवाए बाप के आधार के अल्पकाल के आधार समय पर छोड़ देंगे। ..."