5.

"...रास्ते चलते कोई व्यक्ति वा वैभव को आधार नहीं बनाओ।

जो आधार ही स्वयं विनाशी हैवह अविनाशी प्राप्ति क्या करा सकता। 

एक बल एक भरोसा इस पाठ को सदा पक्का रखो,

 तो बीच भँवर से सहज निकल जायेंगे।

और मंजिल को सदा समीप अनुभव करेंगे।"

 

Ref:- Avyakt Vani, 16.05.1977

4.

"...कोटों में कोऊ को यह लॉटरी मिलती है।

कुछ भी हो,

 क्या भी सामने आये,

 लेकिन रूकना नहीं है,

 हटना नहीं है,

 मंजिल को पाना ही है,

 इस एक बल एक भरोसे के आधार पर अवश्य पहूँचेंगे।

गैरन्टी है। 

दृढ़ संकल्प बच्चों का और पहुँचाना बाप का काम।’..."

 

Ref:- Avyakt Vani, 05.05.1977

3.

"...हर समय स्वयं को चेक करो कि...

समेटने की शक्ति और सामना करने की शक्ति दोनों शक्तियों से सम्पन्न बन गये हो?

समेटने की शक्ति का बहुत समय से कर्त्तव्य में लाने का अभ्यास चाहिए।

लास्ट समय समेटना शुरू नहीं करना।

समेटते ही समय बीत जायेगा।

समेटने का कार्य तो अब सम्पन्न होना चाहिए।

तब एक बलएक भरोसा व निरन्तर तुम्हीं से खाँऊतुम्हीं से बैठूँतुम्हीं से बोलूँ और तुम्हीं से सुनूँ का किया हुआ वायदा निभा सकेंगे।

ऐसे नहीं कि आठ घण्टा तुम्हीं से बोलूँसुनूँ

बाकी समय आत्माओं से बोलूँ व सुनूँ

- यह निरन्तर का वायदा है - इसमें चतुर नहीं बनना।

बाप की दी हुई प्वाइन्ट्स बाप के आगे वकील के रूप में नहीं रखना।..." 

 

Ref:- Avyakt Vani, 02.09.1975

2.

"...अभी सिर्फ एक बल चाहिए,

 जिसकी कमी होने कारण ही माया की प्रवेशता हो जाती है।

वह है सहनशीलता का बल।

अगर सहनशीलता का बल हो तो माया कभी वार कर नहीं सकती।..."

 

Ref:- Avyakt Vani, 05.03.1970

1.

"...अब संगम पर है विजय का तिलक

फिर इस विजय के तिलक से राज तिलक मिलेगा।

इस विजय के तिलक को कोई मिटा नहीं सकते।

ऐसा निश्चय है?

जो विजयी रत्न हैं उनकी हर बात में विजय ही विजय है।

उनकी हार हो नहीं सकती।

हार तो बहुत जन्म खाते रहे।

अब आकर विजयी बनने बाद फिर हार क्यों?

“विजय हमारी ही है” ऐसा एक बल एक भरोसा हो।..."

 

Ref:- Avyakt Vani, 26th Jan. 1970