"...हर समय स्वयं को चेक करो कि...
समेटने की शक्ति और सामना करने की शक्ति दोनों शक्तियों से सम्पन्न बन गये हो?
समेटने की शक्ति का बहुत समय से कर्त्तव्य में लाने का अभ्यास चाहिए।
लास्ट समय समेटना शुरू नहीं करना।
समेटते ही समय बीत जायेगा।
समेटने का कार्य तो अब सम्पन्न होना चाहिए।
तब एक बल, एक भरोसा व निरन्तर तुम्हीं से खाँऊ, तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से बोलूँ और तुम्हीं से सुनूँ का किया हुआ वायदा निभा सकेंगे।
ऐसे नहीं कि आठ घण्टा तुम्हीं से बोलूँ, सुनूँ,
बाकी समय आत्माओं से बोलूँ व सुनूँ
- यह निरन्तर का वायदा है - इसमें चतुर नहीं बनना।
बाप की दी हुई प्वाइन्ट्स बाप के आगे वकील के रूप में नहीं रखना।..."