एक ही याद में रह नहीं सकता,
अनेक तरफ से बुद्धियोग टूटा हुआ हो।
एक तरफ जुटा हुआ हो अर्थात्
एक के सिवाय दूसरा न कोई
- ऐसी स्थिति वाला जो होगा
वह एकान्त प्रिय हो सकता है।
नहीं तो एकान्त में बैठने का प्रयत्न करते हुए भी अनेक तरफ बुद्धि भटकेगी।
एकान्त का आनद अनुभव कर नहीं सकेंगे।
सर्व सम्बन्ध, सर्व रसनाएँ एक से लेने वाला ही एकान्तप्रिय हो सकता है।
जब एक द्वारा सर्व रसनाएँ प्राप्त हो सकती है।
तो अनेक तरफ जाने की आवश्यकता ही क्या?
लेकिन जो एक द्वारा सर्व रसनाओं को लेने के अभ्यासी नहीं होते
वह अनेक तरफ रस लेने की कोशिश करते।
तो फिर एक भी प्राप्ति नहीं होती।
और एक बाप के साथ लगाने से अनेक प्राप्तियाँ होती है।..."