24.01.1970

"...जैसे डॉक्टर कोई भी बीमारी वाले पेशेंट के आगे जायेगा तो भी उनको असर नहीं होगा।

वैसे ही अपनी स्मृति रखकर सर्विस करनी है।

यह अपने में शक्ति रखो कि हमें वातावरण को बनाना है ना कि वातावरण हमको बनावे।..."


21.01.1971

"...अब यह दृश्य बहुत जल्दी सामने आयेगा।

डाक्टर लोग भी कोई को इस बीमारी की दवाई नहीं दे सकेंगे।

तब आप लोगों के पास यह औषधि लेने के लिए आयेंगे।

धीर-धीरे यह आवाज़ फैलेगा कि सुख-शान्ति का अनुभव ब्रह्माकुमारियों के पास मिलेगा।

भटकते-भटकते असली द्वार पर अनेकानेक आत्मायें आकर पहुँचेंगी।

तो ऐसे अनेक आत्माओं को सन्तुष्ट करने के लिए स्वयं अपने हर कर्म से सन्तुष्ट हो?

सन्तुष्ट आत्मायें ही अन्य को सन्तुष्ट कर सकती हैं।

अब ऐसी सर्विस करने के लिए अपने को तैयार करो। ..."


05.03.1971

"...जैसे कमज़ोर शरीर पर बीमारी जल्दी आ जाती है, वैसे ‘कोशिश’ शब्द कहना भी आत्मा की कमज़ोरी है।

माया समझती है कि यह हमारा ग्राहक है तो आ जाती है।

निश्चय की विजय है।

जैसे सारे दिन की जो स्मृति रहती है वैसे ही स्वप्न आते हैं।

यदि सारे दिन में शक्तिरूप की स्मृति रहेगी तो कमज़ोरी स्वप्न में भी नहीं आयेगी। ..."


27.07.1971

"...अगर नॉलेजफुल हो तो प्रकृति के विघ्न से वह बच सकता है।

अगर नॉलेजफुल नहीं तो प्रकृति की जो भिन्न-भिन्न छोटी-छोटी चीज़ें दु:ख के वा बीमारी के निमित्त बनती हैं उनके अधीन बन जाते हैं।

कारण क्या होगा?

पहचान वा नॉलेज की कमी।

तो जैसे-जैसे याद की शक्ति अर्थात् साइलेन्स की शक्ति अपने में भरती जायेगी तो पहले से ही मालूम पड़ेगा कि आज कुछ होने वाला है।

और दिन-प्रतिदिन जो अनन्य महारथी अटेन्शन और चेकिंग में रहते हैं, वह यह अनुभव करते जा रहे हैं।

बुखार भी आने वाला होता है तो पहले से ही उसकी निशानियाँ दिखाई पड़ती हैं।

तो इसमें भी अगर नॉलेजफुल हैं तो जो पेपर आने वाला है उसकी कोई निशानियाँ ज़रूर होती हैं।

लेकिन परखने की शक्ति पावरफुल हो तो कभी हार नहीं हो सकती।

ज्योतिषी भी अपने ज्योतिष की नॉलेज से, ग्रहों की नॉलेज से आने वाली आपदाओं को जानते हैं।

आपकी नॉलेज के आगे तो वह नॉलेज कुछ भी नहीं है।

तुच्छ कहेंगे।

तो जब तुच्छ नॉलेज वाले एडवान्स को जान सकते हैं अपनी नॉलेज की पावर से, तो क्या इतनी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ नॉलेज से मास्टर नॉलेजफुल यह नहीं जान सकते?

नहीं जान सकते तो इसका कारण यह है कि बुद्धि रूपी नेत्र क्लीयर नहीं है।

और क्लीयर न होने का कारण क्या?

केयरफुल नहीं।

केयरफुल न होने के कारण नॉलेजफुल नहीं।

नॉलेजफुल न होने कारण पावरफुल नहीं।

पावरफुल न होने के कारण जो विजय की प्राप्ति होनी चाहिए वह नहीं होती।

तो अपने नेत्र को क्लीयर रखना मुश्किल बात है क्या? ..."


28.02.1972

"...जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को जहाँ चाहे मोड़ सकते हो ना।

अगर नहीं मुड़ती तो इसको बीमारी समझती हो।

बुद्धि को भी ऐसे इजी मोड़ सकें।

ऐसे नहीं कि बुद्धि हमको मोड़ ले जाये।

ऐसे सम्पूर्ण स्टेज का यादगार भी गाया हुआ है। ..."


02.04.1972

"...कम्पलेन भी यही करते हैं कि चाहते नहीं हैं लेकिन संस्कार बहुत काल के होने कारण फिर हो जाता।

तो इन मध्यकाल के संस्कारों को पूरी रीति भस्म नहीं किया है।

डाक्टर लोग भी बीमारी के जर्मस (कीटाणु) को पूरी रीति खत्म करने की कोशिश करते हैं।

अगर एक अंश भी रह जाता है तो अंश से वंश पैदा हो जाता।

तो इसी प्रकार मध्यकाल के संस्कार अंश रूप में भी होने कारण आज अंश है, कल वंश हो जाता है।

इसी के वशीभूत होने कारण जो श्रेष्ठ रिजल्ट निकलनी चाहिए वह नहीं निकलती। ..."


14.06.1972

"...वर्तमान समय आत्मा में जो कमज़ोरी की व्याधि है वह कौन-सी है?

व्यर्थ संकल्पों में व्यर्थ समय गंवाने की, यही वर्तमान समय आत्मा की कमज़ोरी है।

इस बीमारी के कारण सदा हेल्दी नहीं रहते।

कब रहते हैं, कब कमज़ोर बन जाते हैं।

सदा हेल्दी रहने का साधन यह है।

समय भी बच जायेगा।

आप प्रैक्टिकल में ऐसे अनुभव करेंगे जैसे साकार में कोई साकार रूप में वेरीफाय कराते।..."


26.06.1972

"...जैसे शरीर को भी कोई बात का इफेक्ट होता है तब बीमारी अर्थात् डिफेक्ट होता है।

जैसे शरीर को मौसम का इफेक्ट हो जाता है वा खान-पान का इफेक्ट होता है तब बीमारी आती है।

तो कोई भी डिफेक्ट न रहे -- इसके लिये माया के इफेक्ट से बचना है।

कोई-न-कोई प्रकार से इफेक्ट आ जाता है इसलिये परफेक्ट नहीं हो सकते।

तो कोशिश यह करनी है - कोई भी प्रकार का इफेक्ट न हो, इफेक्ट-प्रूफ हो जायें।

इसके लिये साधन भी समय-प्रति-समय मिलते रहते हैं।

मन्सा को इफेक्ट से दूर कैसे रखो, वाचा को कोई भी इफेक्ट से दूर कैसे रखो वा कर्मणा में भी इफेक्ट से दूर कैसे रहो - एक एक बात में अनेक प्रकार की युक्तियाँ बताई हुई हैं।

लेकिन इफेक्ट हो जाता है, बाद में वह साधन करने की कोशिश करते हो।

समझदार जो होते हैं वह पहले से ही अटेन्शन रखते हैं।

जैसे गर्मी की सीजन में गर्मी का इफेक्ट न हो, इसका साधन पहले से ही कर लेते; उनको कहेंगे सेन्सीबूल।

अगर समझ कम है तो गर्मी का इफेक्ट हो जाता है।

तो कमल फूल समान सदा इफेक्ट से न्यारा और बाप का प्यारा बनना है।

हरेक को अपने पुरूषार्थ प्रमाण वा अपनी स्थिति प्रमाण भी मालूम होता है कि हमारी आत्मा में विशेष किस बात का इफेक्ट समय-प्रति- समय होता है।

मालूम होते हुये उन साधनों को अपना नहीं सकते।

चाहते हुये भी उस समय जैसे अनजान बन जाते हैं।

जैसे कोई इफेक्ट होता है तो मनुष्य की बुद्धि को डिफेक्ट कर देता है, फिर उस समय बुद्धि काम नहीं करती।

वैसे माया का भी भिन्न-भिन्न रूप से इफेक्ट होने से बेसमझ बन जाते हैं।

इसलिये परफेक्ट बनने में डिफेक्ट रह जाता है।

जैसे अपने शरीर की सम्भाल रखना ज़रूरी है, वैसे आत्मा के प्रति भी पूरी समझ रख चलना चाहिए, तब ही बहुत जल्दी इफेक्ट से परे परफेक्ट हो जावेंगे। ..."