02.02.1969 "...आप बच्चों का जो गीत है कभी भी हाथ और साथ न छूटे, तो बच्चों का भी वायदा है तो बाप का भी वायदा है।
06.07.1969 "...धरत परिये धर्म न छोड़िये। कौन-सा धर्म, कौन-सा धरत?
एक बार वायदा कर लिया, बापदादा को हाथ दे दिया फिर धर्म को नहीं छोड़ना है।..." 18.09.1969/01 "...आप सबका वायदा क्या है? शुरू-शुरू में आप सब-जब आये तो आपका वायदा क्या था? मैं तेरी तो सब कुछ तेरा। पहला वायदा ही यह है। मैं भी तेरी और मेरा सब कुछ भी तेरा। सो फिर भी मेरा कहाँ से आया? तेरे को मेरे से मिला देते हो। इससे क्या सिद्ध हुआ कि पहला वायदा ही भूल जाते हो। पहला-पहला वायदा ही सब यह कहते हैं - जो कहोगे, वो करेंगे, जो खिलायेंगे, जहाँ बिठायेंगे। यह जो वायदा है, वह वायदा याद है? तो बाप तुमको अव्यक्त वतन में बिठाते हैं। तो आप फिर व्यक्त वतन में क्यों आ जाते हो? वायदा तो ठीक नहीं निभाया। वायदा है जहाँ बिठायेंगे वहाँ बैठेंगे। बाप ने तो कहा नहीं है कि व्यक्त वतन में बैठो। व्यक्त में होते अव्यक्त में रहो। पहला-पहला पाठ ही भूल जायेंगे तो फिर ट्रेनिंग क्या करेंगे। ट्रेनिंग में पहला पाठ तो पक्का करवाओ। यह याद रखो कि जो वायदा किया है उसको निभाकर दिखायेंगे।..." 18.09.1969/02 "...जो मनमनाभव होगा उसमें मोह हो सकता है?
03.10.1969 "...जब तक यह वायदा नहीं किया कि जो सोचेंगे, बोलेंगे, जो सुनेंगे, जो करेंगे सो श्रीमत के बिना कुछ नहीं करेंगे।
25.10.1969 "...निश्चय बुद्धि जिन्हों का बाप के साथ अपने में भी पूरा निश्चय है कि जो परिवर्तन लाया है वह सदा कायम रखेंगे। और जो वायदा करके जाते हो वह करके दिखायेंगे। वह है सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि..."
20.12.1969/01 "...आज बापदादा अपने अति स्नेही बच्चों से एक वायदा कराने लिये आये हैं। वायदा करने में तो यह आत्माएं आदि से ही प्रवीण हैं। जैसे शुरू में वायदा करने में कोई देरी नहीं की, कुछ सोचा नहीं। इस रीति से अब भी बापदादा वायदा लेने लिये आये हैं। यूँ तो सारे ड्रामा में अनेक आत्माओं के बीच तुम आत्मायें ही हिम्मतवान प्रसिद्ध हुई हो। जो हिम्मत रख बापदादा के समीप रहे और स्नेह भी लिया। मदद ली भी और की भी। तो उसी संस्कारों को फिर से टेस्ट करने आये हैं। एवररेडी तो सभी हैं ना। वायदा यही है कि अभी से सभी एकता, स्वच्छता, महीनता, मधुरता और मन, वाणी, कर्म में महानता यह 5 बातें एक एक के हर कदम से नजर आवे। ..." 20.12.1969/02 "...शुरू-शुरू का वायदा क्या है वह गीत याद है ना, उसको फिर से साकार रूप में लाना है अर्थात् बुद्धि की लगन एक तुम्हीं से ही है वह साक्षात्कार साकार रूप में सभी को होना चाहिए। ..." |