Antim

18.01.1969 अव्यक्त बापदादा

"...बच्चों की बुद्धि में यह घूमता रहे कि अब हमारी क्या स्टेज है।

जो अन्तिम स्टेज धारण करनी है वह लक्ष्य पहले से ही बुद्धि में रखेंगे तो पुरूषार्थ तेज चलेगा।

विनाश के समय की जो सीन दिखाई उसमें आप बच्चों की अडोल अवस्था रहे।..."

 

 

 


02.02.1969 अव्यक्त बापदादा

"...जो अन्तिम कर्मातीत अवस्था का अनुभव था वह ड्रामा प्रमाण और होता।

लेकिन था ही ऐसे इसलिए थोड़े ही सामने थे।

सामने होते भी जैसे सामने नहीं थे।

स्नेह तो वतन में भी है और रहेगा। ..."

 

 

 


13.03.1969 अव्यक्त बापदादा

"...जितना शक्ति स्वरूप उतना ही प्रेम स्वरूप।

अभी तक दोनों नहीं हैं।

कभी प्रेम की लहर में कभी शक्ति रूप में स्थित रहते हो।

दोनों ही साथ और समान रहे।

यह है शक्तिपन की अन्तिम सम्पूर्णता की निशानी।..."

 

 

 

 

 

20.03.1969 अव्यक्त बापदादा

"...गुणों को ही धारण करना है।

तो उनके अन्तिम स्थिति और अपने वर्तमान स्थिति में कितना फर्क समझते हो?

उसके लिए कितना समय चाहिए।

साकार का सबूत तो इन आँखों से देखा।

उनके हर गुण हर कर्म को अपने कर्म और वाणी से भेंट करो तो मालूम पड़ जायेगा।..."

 

 

 


18.05.1969 अव्यक्त बापदादा

"...अन्तिम नारा भी भारत माता शक्ति अवतार का गायन है।

गोपी माता थोड़ेही कहते हैं।

अब शक्ति रूप का पार्ट है।

गोपीकाओं का रूप साकार में था।

अब अव्यक्त रूप से शक्ति का पार्ट है।

हरेक जब अपने शक्तिरूप में स्थित होंगे तो इतने सभी की शक्ति मिलाकर कमाल कर दिखायेगी।

यादगार रूप में अन्तिम चित्र कौन सा दिखाया हुआ है?

पहाड़ को अंगुली देने का।

अंगुली, यह शक्ति की देनी है।

इससे ही कलियुगी पहाड़ खत्म होगा।

इसमें हरेक की अंगुली की दरकार है।

अभी वह अंगुली पुरी रीति नहीं है।

उठाते जरूर हैं परन्तु कोई की कभी सीधी कोई की कभी टेढ़ी हो जाती है।

जब पूरी अंगुली होगी तब प्रभाव निकलेगा।..."

 

 

 

 

17.07.1969 अव्यक्त बापदादा

"...अपने को मेहमान समझना।

अगर मेहमन समझेंगे तो फिर जो अन्तिम सम्पूर्ण स्थिति का वर्णन है वह इस मेहमान बनने से होगा।

अपने को मेहमान समझेंगे तो फिर व्यक्त में होते हुए भी अव्यक्त में रहेंगे।

मेहमान का किसके साथ भी लगाव नहीं होता है।

हम इस शरीर में भी मेहमान हैं।

इस पुरानी दुनिया में भी मेहमान है।

जब शरीर में ही मेहमान हैं तो शरीर से भी क्या लगन रखें।

सिर्फ थोड़े समय के लिए यह शरीर काम में लाना है।..."

 

 

 

 

"...दाता के बच्चे तो सभी देने वाले ठहरे।

आप सभी के एक सेकेण्ड की दृष्टि के, अमूल्य बोल के भी प्यासे रहेंगे।

ऐसा अन्तिम दृश्य अपने सामने रख पुरुषार्थ करो।

ऐसा न हो कि दर पर आयी हुई कोई भूखी आत्मा खाली हाथ जाये।

साकार में क्या करके दिखाया?

कोई भी आत्मा असन्तुष्ट होकर न जाये।

भल कैसी भी आत्मा हो लेकिन सन्तुष्ट होकर जाये।

तो ऐसी बातें सोचनी चाहिए।..."

 

 

 

 

 

16.10.1969 अव्यक्त बापदादा

"...फाइनल पेपर अनेक प्रकार के भयानक और न चाहते हुए भी अपने तरफ आकर्षित करने वाली परिस्थितियों के बीच होंगे।

उनकी भेट में जो आजकल की परिस्थितियाँ है वह कुछ नहीं है।

जो अन्तिम परिस्थिति आने वाली है, उन परिस्थितियों के बीच पेपर होना है।

इसकी तैयारी पहले से करनी है।

इसलिए जब अपने को देखो कि बहुत बिजी हूँ, बुद्धि बहुत स्थूल कार्य में बिजी है, चारों ओर सरकमस्टान्सेज अपने तरफ खैंचने वाली है तो ऐसे समय पर यह अभ्यास करो।

तब मालूम पड़ेगा कहाँ तक हम ड्रिल कर सकते है।

यह भी बात बहुत आवश्यक है।

इसी ड्रिल में रहते रहेंगे तो सफलता को पायेंगे। ..."

 

 

 

 

20.12.1969 अव्यक्त बापदादा

"...ईश्वरीय स्नेह और शक्ति से वारिस बनते हैं, तो वारिस बनाने है।

यह फर्स्ट स्टेज का पुरुषार्थ है।

वाणी से किसी को पानी नहीं कर सकते लेकिन स्नेह और शक्ति से एक सेकेण्ड में स्वाहा करा सकते है।

यह भी अन्त में मार्क्स मिलते हैं।

वारिस कितने बनाये प्रजा कितनी बनाई।

वारिस भी किस वैराइटी और प्रजा भी किस वैराइटी की और कितने समय में बने। फाइनल पेपर आज सुना रहे हैं।

किस-किस क्वेश्चन पर मार्क्स मिलते है एक तो यह क्वेश्चन अन्तिम रिजल्ट में होगा दूसरा सुनाया अन्त तक सर्विस का शो।

और तीसरी बात थी आदि से अन्त तक जो अवस्था चलती आई है उसमें कितना बारी फेल हुए है, पूरा पोतामेल एनाउन्स होगा।

कितने बारी विजयी बने और कितने बारी फेल हुए और विजय प्राप्त की तो कितने समय में?

कोई भी समस्या को सामना करने में कितना समय लगा?

उनकी भी मार्क्स मिलेगी।

तो सारे जीवन की सर्विस और स्वस्थिति और अन्त तक सर्विस का सबूत यह तीन बातें देखी जाती हैं।..."

 


 

1970
26.03.1970 अव्यक्त बापदादा

"...संकल्प करना, प्लान्स बनाना फिर उसपर चलना, अब वह दिन नहीं।

अब पढाई कहाँ तक पहुंची है?

अब तो अन्तिम स्टेज पर है। ..."

 

 

 

 

 

"...नज़र में ऐसे दिखाना है जो उनको नज़र आप लोगों की बदली हुयी नज़रों को ही देखें।

तो अब वह पुरानी नज़र नहीं, पुरानी वृत्ति नहीं।

तब अन्तिम नगाड़ा बजेगा।

यह संगठन कॉमन नहीं है, यह संगठन कमाल का है।

इस संगठन से ऐसा स्वरुप बनकर निकलना है जो सभी को साक्षात् बापदादा के ही बोल महसूस हों।

बापदादा के संस्कार सभी के संस्कारों में देखने में आयें।

अपने संस्कार नहीं।

सभी संस्कारों को मिटाकर कौन से संस्कार भरने हैं?

बापदादा के।..."

 

 

 

 

 

 

"...यह मैं और मेरा तुम और तेरा यह चार शब्द हैं इनको मिटाना है।

इन चार शब्दों ने ही सम्पूर्णता से दूर किया है।

इन चार शब्दों को सम्पूर्ण मिटाना है।

साकार के अन्तिम बोल चेक किये, हर बात में क्या सुना?

बाबा-बाबा।

सर्विस में सफलता न होने की करेक्शन भी कौन सी बात में थी?

समझाते थे हर बात में बाबा-बाबा कहकर बोलो तो किसको भी तीर लग जायेगा। ..."

 

 

 

 

 

02.04.1970 अव्यक्त बापदादा

"...अब बापदादा ऐसा मास्टर सर्वशक्तिमान बनाने की पढ़ाई पढ़ा रहे हैं, जो किसके भी सूरत में उसकी स्थिति और संकल्प स्पष्ट समझ सको।

शक भी न रहे।

स्पष्ट मालूम पड़ जाये।

यह है अंतिम पढ़ाई की स्टेज।

साकार रूप में थोड़ी सी झलक अंत में दिखाई।

जो साकार रूप में साथ थे उन्होंने कई ऐसी बातें नोट की हैं।

ऐसी ही स्थिति नंबरवार सभी बच्चों की होनी है।

जब ऐसी स्थिति होती जाएगी तब अन्तिम स्वरुप और भविष्य स्वरुप आप सभी की सूरत से सभी को स्पष्ट दिखने में आएगा। ..."

 

 

 

 

 

05.04.1970 अव्यक्त बापदादा

"...मधुरता भी चाहिए। शक्ति रूप भी चाहिए।

देवियों के चित्र बहुत देखते हैं तो उसमें क्या देखते हैं?

जितना ज्वाला उतनी शीतलता।

कर्त्तव्य ज्वाला का है सूरत शीतलता की है।

यह है अन्तिम स्वरुप।..."

 

 

 

 

 

27.07.1970 अव्यक्त बापदादा

"... अन्तिम स्टेज ऐसी होनी है जिसमें हरेक के मुखड़े में यह सर्व लक्षण प्रसिद्ध रूप में दिखाई पड़ेंगे।

अभी कोई गुप्त है, कोई प्रत्यक्ष है।

कोई गुण विशेष है कोई उनसे कम है।

लेकिन सम्पूर्ण स्टेज में यह सभी लक्षण समान रूप में और प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देंगे।

जिससे सभी की नम्बरवार प्रत्यक्षता होनी है।

जितना-जितना जिसमें प्रत्यक्ष रूप में गुण आते जाते हैं उतनी-उतनी प्रत्यक्षता भी होती जा रही है।..."

 

 

 

 

 

22.10.1970 अव्यक्त बापदादा

"...जहाँ तक अन्तिम स्टेज साकार रूप में देखी, वहाँ तक नॉलेजफुल, जानी जाननहार बने हो?

साकार बाप के समान बनने में अन्तर रहा हुआ है इसलिए फुल नहीं कहते हो।

कहाँ तक फुल बनना है उसका एग्ज़ाम्पुल स्पष्ट है ना?

ज्यादा मास्टर रचयिता के नशे में रहते हो वा रचना के?

किस नशे में ज्यादा समय रहते हो।

आज ये प्रश्न क्यों पूछा?

आज सर्व रत्नों को देख और परख रहे थे कि कहाँ तक फ्लोलेस हैं अर्थात् फुल हैं।

अगर फुल नहीं तो फेल।

तो आज फुल और फेल की रेखा देख रहे थे।

तब प्रश्न पूछा कि फुल बने हो?

जैसे बाप की महिमा है सभी बातों में फुल है ना।

तो बच्चों को भी मास्टर नॉलेजफुल तो बनना ही है।

सिर्फ नॉलेज में नहीं लेकिन मास्टर नॉलेजफुल। ..."

 

 

 

 


"...अभी थोड़े समय के अन्दर धर्मराज का रूप प्रत्यक्ष अनुभव करेंगे।

क्योंकि अब अन्तिम समय है।

अनुभव करेंगे कि इतना समय बाप के रूप में कारण भी सुने, स्नेह भी दिया, रहम भी किया, रियायत भी बहुत की लेकिन अभी यह दिन बहुत थोड़े रह गए हैं।

फिर अनुभव करेंगे कि एक संकल्प के भूल एक का सौगुणा दण्ड कैसे मिलता है।

अभी-अभी किया और अभी-अभी इसका फल व दण्ड प्रत्यक्ष रूप में अनुभव करेंगे अभी वह समय बहुत जल्दी आने वाला है।

इसलिए बापदादा सूचना देते हैं क्योंकि फिर भी बापदादा बच्चों के स्नेही है।..."

 

 

 

 

 

05.11.1970 अव्यक्त बापदादा

"...अपने को अब तक पुरुषार्थी मूर्त समझते हो वा साक्षात् और साक्षात्कार मूर्त भी समझते वा अनुभव करते हो?

वा समझते हो कि यह अन्तिम स्टेज है?

अभी-अभी आपके भक्त आपके सम्मुख आयें तो आपकी सूरत से उनकी किस मूर्त का साक्षात्कार होगा। कौन-सा साक्षात्कार होगा?

साक्षात्कार मूर्त सदैव सम्पूर्ण स्थिति का साक्षात्कार करायेंगे, लेकिन अभी अगर आपके सामने कोई आये तो उन्हें ऐसा साक्षात्कार करा सकेंगे?

ऐसे तो नहीं कि आपके पुरुषार्थ की उतराई और चढ़ाई का उन्हें साक्षात्कार होता रहेगा।

फोटो निकालते समय अगर कोई भी हलचल होती है तो फोटो ठीक निकलेगा?

ऐसे ही हर सेकण्ड ऐसे ही समझो कि हमारा फोटो निकल रहा है।

फोटो निकालते समय सभी प्रकार का ध्यान दिया जाता है वैसे अपने ऊपर सदैव ध्यान रखना है।

एक-एक सेकण्ड इस सर्वोत्तम वा पुरुषोत्तम संगमयुग का ड्रामा रूपी कैमरे में आप सभी का फोटो निकलता जाता है।

जो वही चित्र फिर चरित्र के रूप में गायन होता आएगा।

और अभी के भिन्न-भिन्न स्टेज के चित्र, भिन्न-भिन्न रूप में पूजे जायेंगे।

हर समय यह स्मृति रखो कि अपना चित्र ड्रामा रूपी कैमरे के सामने निकाल रहा हूँ।

अब के एक-एक चित्र एक-एक चरित्र गायन और पूजन योग्य बनने वाले

हैं।..."

 

 

 

 

 

03.12.1970 अव्यक्त बापदादा

"...ब्राह्मणों का अन्तिम स्वरूप क्यों गाया जाता है, मालूम है?

इस स्थिति का वर्णन है इच्छा मात्रम् अविद्या।

अब अपने पूछो इच्छा मात्रम् अविद्या ऐसी स्थिति हम ब्राह्मणों की बनी है?

जब ऐसी स्थिति बनेगी तब जयजयकार और हाहाकार भी होगी।

यह है आप सभी का अन्तिम स्वरुप।..."

 

 

 

 

 

09.12.1970 अव्यक्त बापदादा

"...हरेक के दो नयनों से दो स्वरुप का साक्षात्कार होगा।

कौन-से दो स्वरुप?

सुनाया था कि निराकारी और दिव्यगुणधारी।

फ़रिश्ता रूप और दैवी रूप।

हरेक ऐसे अनुभव करेंगे वा हरेक से ऐसा अनुभव होगा जैसे कि चलता फिरता लाइट हाउस और माईट हाउस हो।

ऐसे अपने स्वरुप का साक्षात्कार होता है?

जब 5000 वर्ष को कैच सकते हो, अनुभव कर सकते हो तो इस अन्तिम स्वरुप का अनुभव नहीं होता है?

अभी जो कुछ कमी रह गयी है वह भरकर ऐसे अनुभवी मूर्त बनकर जायेंगे।

तो देखना कभी कुछ कमी न रह जाये। ..."

 

 

 


26.01.1971

"...बापदादा जब महारथी बच्चों को देखते हैं तो सभी के वर्तमान स्वरूप और इसी जन्म के अन्तिम स्वरूप और दूसरे जन्म के भविष्य स्वरूप तीनों ही सामने आते हैं।

आप लोगों को यह फीलिंग स्पष्ट रूप में आती है कि यह हम बनने वाले हैं, हम ताज व तख्तधारी होंगे?

आगे चल यह भी अनुभव करेंगे।

...बुद्धिबल द्वारा इतना स्पष्ट अनुभव होगा।

अभी दिन प्रतिदिन अपनी सर्विस से अपने सहयोगीपन से और अपने संस्कारों को मिटाने की शक्ति से अपने अन्तिम स्वरूप और भविष्य को जान जायेंगे।..."

 

 

 

 

"...तुम्हारी अन्तिम स्टेज है - साक्षात्कार मूर्त।

जैसा-जैसा साक्षात् मूर्त बनेंगे वैसे ही साक्षात्कारमूर्त बनेंगे।

जब सभी साक्षात् मूर्त बन जायेंगे तो संस्कार भी सभी के साक्षात् मूर्त समान बन जायेंगे। ..."

 

 

 

"...आप लोगों का भी अन्तिम स्टेज का स्वरूप स्पष्ट दिखाई देना चाहिए।

कोई कितना भी अशान्त वा बेचैन घबराया हुआ आवे लेकिन आपकी एक

दृष्टि, स्मृति और वृत्ति की शक्ति उनको बिल्कुल शान्त कर दे।

भले कितना भी कोई व्यक्त भाव में हो लेकिन आप लोगों के सामने आते ही अव्यक्त स्थिति का अनुभव करे।

आप लोगों की दृष्टि किरणों जैसा कार्य करे। ..."

 

 

 

 

11.02.1971

"...यह लोग तो अन्त:वाहक शरीर का अपना अर्थ बताते हैं।

लेकिन यथार्थ अर्थ यही है कि अन्त के समय की जो आप लोगों की कर्मातीत अवस्था की स्थिति है वह जैसे वाहन होता है ना।

कोई न कोई वाहन द्वारा सैर किया जाता है।

कहाँ का कहाँ पहुँच जाते हैं!

वैसे जब कर्मातीत अवस्था बन जाती है तो यह स्थिति होने से एक सेकेण्ड में कहाँ का कहाँ पहुँच सकते हैं।

इसलिए अन्त:वाहक शरीर कहते हैं।

वास्तव में यह अन्तिम स्थिति का गायन है। ...."

 

 

 

 

15.04.1971

"...जैसे महादानियों के पास सदैव भिखारियों की भीड़ लगी हुई होती है, वैसे आप सभी के पास भी भिखारियों की भीड़ लगने वाली है।

आपके पास प्रदर्शनी में जब भीड़ होती है तो फिर क्या करते हो?

क्यू-सिस्टम में शार्ट में सिर्फ संदेश देते हो।

रचना की नॉलेज नहीं दे सकते हो, सिर्फ रचयिता बाप का परिचय और सन्देश दे सकते हो।

वैसे ही जब भिखारियों की भीड़ होगी तो सिर्फ यही सन्देश देंगे।

लेकिन वह एक सेकेण्ड का सन्देश पावरफुल होता है, जो वह सन्देश उन आत्माओं में संस्कार के रूप में समा जाता है।

सर्व धर्म की आत्मायें भी यह भीख मांगने के लिए आयेंगी।

कहते हैं ना कि क्राइस्ट भी बेगर रूप में है।

तो धर्म-पितायें भी आप लोगों के सामने बेगर रूप में आयेंगे।

उनको क्या भिक्षा देंगे?

यही सन्देश।

ऐसा पावरफुल सन्देश होगा जो इसी सन्देश के पावरफुल संस्कारों से धर्म स्थापन करने के निमित्त बनेंगे।

वह संस्कार अविनाशी बन जायेंगे।

क्योंकि आप लोगों के भी अन्तिम सम्पूर्ण स्टेज के समय अविनाशी संस्कार होते हैं।

अभी संस्कार अविनाशी बना रहे हो।

इसलिए अब जिन्हों को सन्देश देते हो और मेहनत करते हो, तो अभी वह सदाकाल के लिए नहीं रहता है।

कुछ समय रहता है फिर ढीले हो जाते हैं।

लेकिन अन्त के समय आप लोगों के संस्कार ही अविनाशी हो जाते हैं।

तो अविनाशी संस्कारों की शक्ति होने के कारण उन्हों को भी ऐसी शिक्षा वा सन्देश देते हो जो उनके संस्कार अविनाशी बन जाते हैं। ..."

 

 

 


08.06.1971

"...कर्त्तव्य के सम्बन्ध में शक्तियों का गायन ज्यादा है।

क्योंकि साकार में अन्तिम कर्त्तव्य की समाप्ति शक्तियों द्वारा है।

इसलिए कर्त्तव्य की स्मृति वा यादगार भी शक्तियों का ज्यादा है।

दिन- प्रतिदिन भविष्य में देवताओं के स्वरूप का पूजन वा यादगार कम होता जायेगा, शक्तियों का पूजन गायन बढ़ता जायेगा।

गायन होते-होते ही प्रत्यक्ष हो जायेंगे। ..."

 

 

 

 

10.06.1971

"...जब कोई भी सर्विस पर जाते हैं तो सदैव ऐसे समझो कि सर्विस के साथ-साथ अपने भी पुराने संस्कारों का अन्तिम- संस्कार करते हैं।

जितना संस्कारों का संस्कार करेंगे उतना ही सत्कार मिलेगा। ..."

 

 

 

 

 

22.06.1971

"...जितना आगे चलते जायेंगे उतना ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कोई मूर्ति के आगे भक्त लोग धूप जलाते हैं वा गुणगान करते हैं, वह प्रैक्टिकल खुशबू

अनुभव करेंगे और उनकी पुकार ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि सम्मुख पुकार।

जैसे दूरबीन द्वारा दूर का दृश्य कितना समीप आ जाता है।

वैसे ही दिव्य स्थिति दूरबीन का कार्य करेगी।

यही शक्तियों की स्मृति की सिद्धि होगी और इस अन्तिम सिद्धि को प्राप्त होने के कारण शक्तियों के भक्त शक्तियों द्वारा रिद्धि-सिद्धि की इच्छा रखते हैं।

जब सिद्धि देखेंगे तब तो संस्कार भरेंगे ना। ..."

 

 

 

 

19.08.1971

"...सभी से बड़े ते बड़ा अन्तिम बन्धन है श्रीमत के साथ अपने ज्ञान-बुद्धि को मिक्स करना अर्थात् अपने को समझदार समझकर श्रीमत को अपनी बुद्धि की कमाल समझकर काम में लगाना।

जिसको कहेंगे ज्ञान-अभिमान अर्थात् बुद्धि का अभिमान।

यह सभी से सूक्ष्म और बड़ा बन्धन है।

इस बन्धन से क्रास किया तो मानो सभी से बड़े ते बड़ा जम्प दिया। ..."

 

 

 

 

09.10.1971

"...अब स्नेह रूप में तो पास हो गये।

अब किसमें पास होना है?

क्योंकि अन्तिम स्वरूप है ही शक्ति का।

कोई भी आत्मा आप लोगों के पास आती है तो पहले जगत्-माता का स्नेह रूप धारण करते हो, लेकिन जब वह चलना शुरू करता है और माया का सामना करना पड़ता है, तो सामना करने में सहयोगी बनने के लिए शक्ति रूप भी धारण करना पड़े।..."

 

 

 


02.02.1972

"...अगर सदा यह स्मृति रहे कि इस तन का किसी भी समय विनाश हो सकता है; तो यह विनाश काल स्मृति में रहने से प्रीत बुद्धि स्वत: हो ही

जायेंगे।

जब विनाश का काल आता है तो अज्ञानी भी बाप को याद करने का प्रयत्न ज़रूर करते हैं लेकिन परिचय के बिना प्रीत जुट नहीं पाती।

अगर यह सदा स्मृति में रखो कि यह अन्तिम घड़ी है, अन्तिम जन्म नहीं अन्तिम घड़ी है, यह याद रहने से और कोई भी याद नहीं आयेगा।..."

 

 

 

 

28.02.1972

"...हम समय को समीप लायेंगे, न कि समय हमको समीप लायेगा - नशा यह होन् चाहिए।

जितना अपने सामने सम्पूर्ण स्टेज समीप होती जावेगी उतनी विश्व की आत्माओं के आगे आपकी अन्तिम कर्मातीत स्टेज का साक्षात्कार स्पष्ट होता जयेगा।

इससे जज कर सकते हो कि साक्षात्कारमूर्त बन विश्व के आगे साक्षात्कार कराने का समय नजदीक है वा नहीं।

समय तो बहुत जल्दी-जल्दी दौड़ लगा रहा है।

10 वर्ष कहते-कहते 24 वर्ष तक पहुँच गये हैं।

समय की रफ़्तार अनुभव से तेज तो अनुभव होती है ना।

इस हिसाब से अपनी सम्पूर्ण स्टेज भी स्पष्ट और समीप होनी चाहिए। ..."

 

 

 

 

03.05.1972

"...सतगुरू का रूप जैसे सद्गुरू है-वैसे सत संकल्प, सत बोल, सत कर्म बनाने वाला है।

फिर चाहे नॉलेज द्वारा वा पुरूषार्थ द्वारा बनावे, चाहे फिर सजा द्वारा बनावे।

सद्गुरू नाज और अलबेलापन देखने वाला नहीं है।

इसलिए अब समय और बाप के रूप को जानो।

ऐसे न हो -- बाप के इस अन्तिम स्वरूप को न जानते हुए अपने बचपन के अलबेलेपन में आकर अपने आपको धोखा दे बैठो।

इसलिए बहुत सावधान रहना है। ..."

 

 

 

 

17.05.1972

"...अब तो वृक्ष की अन्तिम स्टेज है ना।

मध्य में गुप्त होता है।

अन्त तक गुप्त नहीं रह सकता।

अति विस्तार के बाद आखरीन बीज ही प्रत्यक्ष होता है ना।

मनुष्य आत्माओं की यह नेचर होती है जो वैराइटी में आकर्षित अधिक होते हैं।

लेकिन आप लोग किसलिए निमित हो?

सभी आत्माओं को वैराइटी वा विस्तार के आकर्षण से अटेन्शन निकालकर बीज तरफ आकर्षित करना। ..."

 

 

 

 

 

20.05.1972

"...कोई भी आत्मा सामने आवे; साप्ताहिक कोर्स एक सेकेण्ड में किसको दे सकते हो?

अर्थात् साप्ताहिक कोर्स से जो भी आत्माओं में आत्मिक-शक्ति वा सम्बन्ध की शक्ति भरने चाहते हो वह एक सेकेण्ड में कोई भी आत्मा में भर सकते हो वा यह अन्तिम स्टेज है?

जैसे कोई भी व्यक्ति दर्पण के सामने खड़े होने से ही एक सेकेण्ड में स्वयं का साक्षात्कार कर लेते हैं, वैसे आपके आत्मिक-स्थिति, शक्ति-रूपी दर्पण के आगे कोई भी आत्मा आवे तो क्या एक सेकेण्ड में स्व-स्वरूप का दर्शन वा साक्षात्कार नहीं कर सकते हैं?

वह स्टेज बाप समान लाइट-हाउस और माइट-हाउस बनने के समीप अनुभव करते हो वा अभी यह स्टेज बहुत दूर है?

जबकि सम्भव समझते हो तो फिर अब तक ना होने का कारण क्या है?

जो सम्भव है, लेकिन प्रैक्टिकल में अब नहीं है तो ज़रूर कोई कारण होगा।

ढीलापन भी क्यों है?

ऐसी स्थिति बनाने के लिए मुख्य कौनसे अटेन्शन की कमी है?

जब साईंस ने भी अनेक कार्य एक सेकेण्ड में सिद्ध कर दिखाये हैं, सिर्फ स्विच ऑन और ऑफ करने की देरी होती है।

तो यहां वह स्थिति क्यों नहीं बन पाती?

मुख्य कौन-सा कारण है?

दर्पण तो हो।

दर्पण के सामने साक्षात्कार होने में कितना टाइम लगता है?

अभी आप स्वयं ही विस्तार में ज्यादा जाते हो।

जो स्वयं ही विस्तार में जाने वाले हैं वह और कोई को सार-रूप में कैसे स्थित कर सकते?

कोई भी बात देखते वा सुनते हो तो बुद्धि को बहुत समय की आदत होने

कारण विस्तार में जाने की कोशिश करते हो।

जो भी देखा वा सुना उसके सार को जानकर और सेकेण्ड में समा देने का वा परिवर्तन करने का अभ्यास कम है।

‘‘क्यों, क्या’’ के विस्तार में ना चाहते भी चले जाते हो।

इसलिए जैसे बीज में शक्ति अधिक होती है, वृक्ष में कम होती है, वृक्ष अर्थात् विस्तार।

कोई भी चीज़ का विस्तार होगा तो शक्ति का भी विस्तार हो जाता।

जैसे सेक्रीन (Saccharine; कोलतार की जीनी) और वैसे मिठास में फर्क

होता है ना।

वह अधिक क्वान्टिटी यूज करनी पड़ेगी।

सेक्रीन कम अन्दाज में मिठास ज्यादा देगी।

इस रीति से कोई भी बात के विस्तार में जाने से समय और संकल्प की शक्ति दोनों ही व्यर्थ चली जाती हैं।

व्यर्थ जाने के कारण वह शक्ति नहीं रहती।

इसलिए ऐसी श्रेष्ठ स्थिति बनाने के लिए सदा यह अभ्यास करो।

कोई भी बात के विस्तार को समाकर सार में स्थित रह सकते हो।

ऐसा अभ्यास करते-करते स्वयं सार-रूप बनने के कारण अन्य आत्माओं को भी एक सेकेण्ड में सारे ज्ञान का सार अनुभव करा सकेंगे।

अनुभवीमूर्त ही अन्य को अनुभव करा सकते हैं। ..."

 

 

 

 

24.06.1972

"...अन्तिम समय का सामना करने के लिए अब तैयार होना है ना?

अगर समय आ जाए तो 50% समानता की प्राप्ति क्या होगी?

एवररेडी अर्थात् सदा अन्तिम समय के लिए अपने को सर्व गुण सम्पन्न बनाने वाला।

सम्पन्न तो होना है ना।

गायन भी है सर्व गुण सम्पन्न बनाने वाला।

सम्पन्न तो होना है ना।

गायन भी है - सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण।

तो एवररेडी अर्थात् सम्पन्न स्टेज।

ऐसा प्रैक्टिकल में हो जो सिर्फ एक कदम उठाने की देरी हो।..."

 

 

 

 

12.07.1972

"...चाहे प्रकृति द्वारा, चाहे लौकिक सम्बन्ध द्वारा, चाहे दैवी परिवार द्वारा कोई भी परीक्षा आवे वा कोई भी परिस्थिति सामने आवे उसमें भी अपने आपको अचल, अटल बना सकेंगे ना।

इतनी हिम्मत समझते हो ना?

परीक्षाएं बहुत आनी हैं।

पेपर तो होने ही हैं।

जैसे-जैसे अन्तिम फाइनल रिजल्ट का समय समीप आ रहा है वैसे समय-प्रति-समय प्रैक्टिकल पेपर स्वत: ही होते रहते हैं।

पेपर प्रोग्राम से नहीं लिया जाता।

आटोमेटिकली ड्रामा अनुसार समय प्रति समय हरेक का प्रैक्टिकल पेपर होता रहता है।

तो पेपर में पास होने की हिम्मत अपने में समझते हो?

घबराने वाले तो नहीं हो ना?

अंगद के माफिक ज़रा भी अपने बुद्धियोग को हिलाने वाले नहीं हो? ..."

 

 

 

 

14.07.1972

"...एक द्वारा भी अनेकों को आवाज पहुंचता है।

वह कौन निमित्त बन सकता है?

साधारण जनता को तो सुनाते रहते हो, उनमें से जो बनने वाले हैं

वह अपना यथा शक्ति पुरूषार्थ करते चल रहे हैं।

लेकिन जो आवाज फैलना है वह किन्हों के द्वारा?

शक्तियों का जो अन्तिम गायन है वह क्या इस साधारण जनता के प्रति गायन है?

शक्तियों की शक्ति की प्रत्यक्षता इन साधारण जनता द्वारा होगी?

जो पोलीटिकल लोग हैं उन्हों के द्वारा इतना आवाज नहीं फैल सकता क्योंकि आजकल जो भी नेता बनते हैं, इन सभी की बुराइयां जनता जानती है। ..."

 

 


28.07.1972

"...अभी सुख को अतीन्द्रिय सुख में लाना है।

इसलिये अन्तिम स्टेज का यही गायन है कि अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो।

सुख की अति होने से विशेष अर्थात् दु:ख की लहर के संकल्प का भी अन्त हो जावेगा।

तो अब यह नहीं कहना कि करेंगे, बनेंगे।

बनकर बना रहे हैं।

अब सिर्फ सेवा के लिये ही इस पुरानी दुनिया में बैठे हैं।

नहीं तो जैसे बाबा अव्यक्त बने, वैसे आपको भी साथ ले जाते। लेकिन शक्तियों की जिम्मेवारी, अंतिम कर्त्तव्य का पार्ट नूँधा हुआ है।

सिर्फ इसी पार्ट के लिये बाबा अव्यक्त वतन में और आप व्यक्त में हो।

व्यक्त भाव में फँसी हुई आत्माओं को इस व्यक्त भाव से छुड़ाने का कर्त्तव्य आप आत्माओं का है।

तो जिस कर्त्तव्य के लिये इस स्थूल वतन में अब तक रहे हुये हो, उसी कर्त्तव्य को पालन करने में लग जाओ।

तब तक बाप भी आप सभी का सूक्ष्मवतन में आह्वान कर रहे हैं।

क्योंकि घर तो साथ चलना है ना।

आपके बिना बाप भी अकेला घर में नहीं जा सकता।

इसलिये अब जल्दी- जल्दी इस स्थूल वतन के कर्त्तव्य का पालन करो, फिर साथ घर में चलेंगे वा अपने राज्य में राज्य करेंगे। ..."

 

 

 

 

04.08.1972

"...जैसे बाप भक्तों की भावना को सूक्ष्म रूप से पूर्ण करते हैं, तो क्या वाणी द्वारा सामने जाए करते हैं क्या?

सूक्ष्म मशीनरी है ना।

वैसे ही आप शक्तियों का वा पाण्डवों का प्रैक्टिकल में भक्त आत्माओं को वा ज्ञानी आत्माओं को दोनों बाप का परिचय वा संदेश देने का कार्य अर्थात् सूक्ष्म मशीनरी तेज होने वाली है।

यह अन्तिम सर्विस की रूपरेखा है।

जैसे खुशबुएं चाहे नजदीक वालों को, चाहे दूर वालों को खुशबुएं देने का कर्त्तव्य करते हैं, वैसे ना सिर्फ सम्मुख आने वालों तक लेकिन दूर बैठी हुई आत्माओं तक भी आपकी यह रूहानियत की शक्ति सेवा करेगी।

तभी प्रैक्टिकल रूप में विश्व-कल्याणकारी गाये जावेंगे।..."