18.01.1969


"...जो ब्रह्मा बाबा ने शुरू-शुरू में देखा था -दूसरा संगठन था

मूलवतन में आत्मायें शमा रूप में थी

तीसरा संगठन -

हम ब्राह्मणों का था।

जो सभी सर्किल रूप में बैठे थे

और बीच में बापदादा थे।"

 


 

19.07.1969
"...पहला पाठ पक्का करना पड़ेगा।

यह आत्मिक दृष्टि की

अवस्था प्रैक्टिकल में

कम रहती है।

 

सर्विस की सफलता ज्यादा निकले,

उसका भी मुख्य साधन

यह है कि

आत्म-स्थिति में रह

सर्विस करनी है।

 

 

पहला पाठ ही पालिश है।

इसकी ही आवश्यकता है।

कब नोट किया है

सारे दिन में

यह आत्मिक दृष्टि,

स्मृति कितनी रहती है?

 


इस स्थिति की परख

अपनी सर्विस की रिजल्ट से

भी देख सकते हो।

यह अवस्था शमाँ है।

शमाँ पर परवाने न चाहते

हुए भी जाते हैं।..."

 



03.10.1969


"...वैसे तो परवाने

शमा के पास जाते हैं लेकिन

यहाँ तो

शमा भी परवानों से मिलती है।

 

 

आपको मालूम है जो

सम्पूर्ण परवाने होते हैं

उनके लक्षण क्या हैं और

परख क्या है?

(हर एक ने सुनाया)

आप सबने सुनाया

वो यथार्थ है।

 

 

मुख्य सार तो यही निकला कि

जो परवाने होंगे वो

एक तो शमा के स्नेही होंगे,

समीप होंगे और सर्व सम्बन्ध,

उस एक के साथ ही होंगे।

तो सर्व सम्बन्ध,

स्नेही, समीप और साहस।

 

 

जो सम्पूर्ण परवाने होते हैं

उनमें यह चारों ही बातें

देखने में आती हैं।

 

 

तो आप सबको

यहाँ भट्टी में किसलिए बुलाया है?

जो यह चार बातें सुनाई

हैं वो चारों ही बातें

अपने सम्पूर्ण परसेन्टेज में

धारण करनी हैं।

एक परसेन्ट भी

कम न होना चाहिए।

 

 

कई बच्चे कहते हम हैं तो

सही लेकिन इतने परसेन्ट।

तो जिनमें

परसेन्ट की कमी हो गई

तो उनको

सम्पूर्ण परवाना नही कहेंगे।

वो परवाना दूसरी क्वालिटी का

कहा जायेगा,

 

जो कि चक्र ही काटने वाले होते हैं।

एक होते हैं शीघ्र एक ही

बार शमा पर फिदा होने वाले,

दूसरे होते हैं - सोच समझ

कर कदम उठाने वाले।

तो जो सोच समझ कर

कदम उठाते रहेंगे उनको

कहेंगे फेरी पहनने वाले।

 

चक्र काटने वाले।

तो दूसरी क्वालिटी वाले

परवाने कई प्रकार के संकल्पों,

विघ्नों और कर्मों में ही

चक्र काटते रहते हैं। ..."

 


 

16.10.1969


"...पूरे परवाने हो ना।

परवाने को शमा बिगर और कुछ

देखने में आता है क्या?

आपकी आखें और क्यों देखती?

जब और कुछ देखते हैं तो

धोखा देती है।

अपने को धोखा न दो।

 

 

इसके लिए परवानों को

सिवाए शमा के और किसी

को नहीं देखना है।

सम्पूर्ण अर्थात् पूरा परवाना हैं। ..."

 


 

25.12.1969


"...अनासक्त होने से ही

रूहानियत आवेगी।

इतने तक अपने को

शमा पर मिटाना है।

मिटाना तो है लेकिन कहाँ तक।

 

यह मेरे संस्कार हैं,

यह मेरे संस्कार शब्द भी

मिट जाये।

मेरे संस्कार फिर कहाँ से आये,

मेरे संस्कारों के

कारण ही यह बातें होती हैं।

इतने तक मिटना है जो कि

नेचर भी बदल जाये।

 

 

जब हरेक की नेचर बदले

तब आप लोगों के

अव्यक्ति पिक्चर्स बनेंगे। ..."

 

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