28.06.1977

"...एकान्त में जाकर

इन्वेन्शन निकालते है ना!

चारों ओर के वायब्रेशन से

परे चले जाते तो

यहाँ भी स्वयं को

आकर्षण से परे जाना पड़े।

 

 

ऐसे भी कई होते जिन्हें

एकान्त पसन्द आता,

संगठन में रहना, हंसना, बोलना

ज्यादा पसन्द नहीं आता,

लेकिन यह हुआ

बाहर मुखता में आना।

 

 

अभी अपने को एकान्त वासी बनाओ

अर्थात् सर्व आकर्षण के वायब्रेशन से

अन्तर्मुख बनो।

 

 

अब समय ऐसा आ रहा है जो

यही अभ्यास काम में आएगा।

 

अगर बाहर के आकर्षण के

वशीभूत होने का

अभ्यास होगा तो

समय पर धोखा दे देगा।

 

 

सरकमस्टन्सेस (परिस्थितियां)

ऐसे आयेंगे जो

इस अभ्यास के सिवाए

और कोई आधार ही

नहीं दिखाई देगा।

एकान्तवासी अर्थात्

अनुभवी मूर्त्त। ..."


 

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