17.07.1969
आत्म- अभिमानी बनना,
आत्मभिमानी अर्थात्
अव्यक्त स्थिति।
लेकिन उस स्थिति के लिए
याद क्या रखें?
पुरुषार्थ
क्या करें?
धीरे-धीरे ऐसी स्थिति
सभी की हो जायेगी।
जो किसके अन्दर में जो
बात होगी
वह पहले से ही आप को मालूम पड़ेगा।
इसलिए प्रैक्टिस
करा रहे हैं।
जितना-जितना अव्यक्त स्थिति में
स्थित होंगे,
कोई मुख
से बोले न बोले
लेकिन उनके अन्दर का भाव
पहले से ही जान लेंगे।
ऐसा समय आयेगा।
इसलिए यह Practice कराते हैं।
तो पहली बात
पूछ रहे थे कि
एक अक्षर कौन सा याद रखें?
अपने को मेहमान
समझना।
अगर मेहमान समझेंगे तो
फिर जो अन्तिम सम्पूर्ण स्थिति
का वर्णन है वह
इस मेहमान बनने से होगा।
अपने को मेहमान
समझेंगे तो
फिर व्यक्त में होते हुए भी
अव्यक्त में रहेंगे।
मेहमान
का किसके साथ
भी लगाव नहीं होता है।
हम इस शरीर में भी
मेहमान हैं।
इस पुरानी दुनिया में
भी मेहमान है।
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