साथ तुम्हारा प्रभु कितना है प्यारा...


Avyakt Baapdada - 25.12.1969

"...ऐसी भी स्थिति होगी जो

किसके मन में जो संकल्प उठेगा

वह आपके पास

पहले ही पहुँच जायेगा।

 

 

बोलने सुनने की आवश्यकता नहीं।

लेकिन यह तब होगा जब

औरों के संकल्पों को

रीड करने के लिये

अपने संकल्पों के ऊपर

फुल ब्रेक होगी।

 

 

ब्रेक पावरफुल हो।

अगर अपने संकल्पों को

समेट न सकेंगे तो

दूसरों के संकल्पों को

समझ नहीं सकेंगे।

 

 

इसलिये सुनाया था कि

संकल्पों का बिस्तर

बन्द करते चलो।

 

 

जितनी-जितनी संकल्पों को

समेटने की शक्ति होगी

उतना-उतना औरों के

संकल्पों को समझने की

भी शक्ति होगी।

 

 

अपने संकल्पों के विस्तार में

जाने के कारण

अपने को ही नहीं

समझ सकते हो तो

दूसरों को क्या समझेंगे।

 

 

इसलिये यह भी स्टेज

नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार

आती रहेगी,

 

 

 

यह भी सम्पूर्ण स्टेज की परख है।

कहाँ तक सम्पूर्ण स्टेज के

नजदीक आये हैं।

उनकी परख इन बातों से

अपने आप ही करनी है।..."

 

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