06.01.1990

 

"...मुझ होलीहँस आत्मा की

चारों ही बातों में अर्थात्

तन-मन-दिल और सम्बन्ध में

स्वच्छता है?

 

सम्पूर्ण स्वच्छता वा पवित्रता

- यही इस संगमयुग में

सबका लक्ष्य है ।

 

इसलिए ही आप

ब्राह्मण सो देवताओं को

सम्पूर्ण पवित्र गाया जाता है ।

 

सिर्फ निर्विकारी नहीं कहते

लेकिन

'सम्पूर्ण निर्विकारी '

कहा जाता है ।

 

१६ कला सम्पन्न कहा जाता है ।

 

सिर्फ १६ कला नहीं कहते

लेकिन

उसमें 'संपन्न' ।

 

गायन आपके ही देवता रूप का है

लेकिन बने कब?

 

ब्राह्मण जीवन में

वा देवता जीवन में?

 

बनने का समय

अब संगमयुग' है ।

 

इसलिए चेक करो कि

कहाँ तक अर्थात्

कितने परसेन्ट में

स्वच्छता अर्थात् धारण की है?..."

गीत:- मिलन की लगन में... प्रभु की प्रतिक्षा में सारा भुवन है...


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