ShivBaba

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1971

18.01.1971

"...अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर आवाज़ में आओ तो आवाज़ से परे स्थिति का अनुभव करा सकते हो। एक सेकेण्ड की अव्यक्त स्थिति का अनुभव आत्मा को अविनाशी सम्बन्ध में जोड़ सकता है। ऐसा अटूट सम्बन्ध जुड़ जाता है जो माया भी उस अनुभवी आत्मा को हिला नहीं सकती। ..."

 


21.01.1971/01
"...शक्ति भरने वाले जो रचयिता हैं उनकी रचना भी शक्तिशाली होने के कारण पुरूषार्थ में कब कैसे, कब कैसे डगमग नहीं होंगे। अगर स्टूडेन्ट डगमग होते हैं तो उससे परख सकते हैं कि शक्ति भरने की युक्ति नहीं है। समीप लाना यही विशेषता है। शक्तिशाली बनाना जो माया से मुकाबला कर लें। यह ऐड कर देना। विघ्न आवे भी लेकिन ज्यादा समय न चले। आया और गया - यह है शक्ति रूप की निशानी। ..."

 

 

 

21.01.1971/02

"...अलंकारी संहारकारी मूर्त अपने को समझकर चलते चलो। जब यह स्मृति में रहेगा कि मैं संहार मूर्त हूँ तो वे माया के वश कभी नहीं होंगे। सदैव यह चेक करना है कि अलंकार सभी ठीक रीति से धारण किये हुए हैं! कोई भी अलंकार अगर धारण नहीं किये हुए हैं तो विजयी नहीं बन सकते हैं।..."

 

 


21.01.1971/03
"...अलौकिक जन्म का हर कर्म सर्विस प्रति हो। जितना सर्विस करेंगे उतना भविष्य ऊंचा। जितना अपने को सर्विस में बिजी रखेंगे उतना माया के वार से बच जायेंगे। बुद्धि को एंगेज कर दिया तो कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।..."

 

 


01.02.1971
"...बाप भी अभी आत्माओं के घर में मेहमान बन आये हैं ना। घर बैठे ताज व तख्त की सौगात देने आये हैं। ताज व तख्त को छोड़ कहाँ चले जाते हो, मालूम है?

माया का कोई निवास-स्थान है? आप भी सर्वव्यापी कहते हो वा आप लोगों के सिवाय और सभी जगह है? आपने 63 जन्मों में कितनी बार माया को ठिकाना दिया होगा! उसका परिणाम भी कितनी बार देखा होगा। जो बहुत बार के अनुभवी फिर भी वह बात करें तो क्या कहेंगे? जैसे दिखाते हैं ना ताज वा तख्त छोड़ जंगल में चले जाते हैं तो यहाँ भी कांटों के जंगल में चले जाते हो। कहाँ तख्त, कहाँ काटों का जंगल। ..."

 

 


01.03.1971
"...कोई भी प्रकार की आसक्ति है तो वहां ही माया भी आ सकती है। आसक्ति होने के कारण माया आ सकती है। अगर अनासक्त हो जाओ तो माया आ नहीं सकती। जब आसक्ति खत्म हो जाती है तब शक्तिस्वरूप बन सकते हैं। अपनी देह में वा सम्बन्धों में, कोई भी पदार्थ में, कहाँ भी अगर आसक्ति है तो माया भी आ सकती है और शक्ति नहीं बन सकते। इसलिए शक्तिरूप बनने के लिए आसक्ति को अनासक्ति में बदली करो।..."

 

 


05.03.1971
"...कभी भी माया से हार नहीं खाना। लाइट का गोला बनकर जाना। लाइट नॉलेज को भी कहते हैं और ‘लाइट माइट’ भी है।
‘कोशिश’ शब्द कमज़ोरी का है। जहाँ कमज़ोरी होती है वहाँ पहले माया तैयार होती है। जैसे कमज़ोर शरीर पर बीमारी जल्दी आ जाती है, वैसे ‘कोशिश’ शब्द कहना भी आत्मा की कमज़ोरी है। माया समझती है कि यह हमारा ग्राहक है तो आ जाती है। निश्चय की विजय है। जैसे सारे दिन की जो स्मृति रहती है वैसे ही स्वप्न आते हैं। यदि सारे दिन में शक्तिरूप की स्मृति रहेगी तो कमज़ोरी स्वप्न में भी नहीं आयेगी। ..."

 


11.03.1971/01
"...माया बहुत आकर्षण करने के रूप रचती है। इसलिए न चाहते हुए भी पीठ करने के बजाय आकर्षण में आ जाते हैं। उसी आकर्षण में पुरूषार्थ को भूल, आगे बढ़ने को भूल रूक भी जाते हैं; तो क्या होगा? मंजिल पर पहुँचने में देरी हो जायेगी।

कुमारों की भट्ठी है ना। तो कुमारों को यह खिलौना सामने रखना चाहिए। माया की तरफ मुँह कर लेते हैं। माया की तरफ मुँह करने से जो परीक्षायें माया की तरफ से आती हैं, उनका सामना नहीं कर सकते हैं। अगर उस तरफ मुँह न करो तो माया की परिस्थितियों को मुँह दे सको अर्थात् सामना कर सको। ..."

 

 


11.03.1971/02
"...यह जो ग्रुप है वह पूरा माया से इनोसेन्ट और ज्ञान से सेन्ट बनकर जाना। जैसे सतयुगी आत्मायें जब यहाँ आती हैं तो विकारों की बातों की नॉलेज से इनोसेन्ट होती हैं। देखा है ना। अपना याद आता है कि जब हम आत्मायें सतयुग में थीं तो क्या थीं? माया की नॉलेज से इनोसेन्ट थीं - याद आता है? अपने वह संस्कार स्मृति में आते हैं वा सुना हुआ है इसलिए समझते हो? जैसे अपने इस जन्म में

बचपन की बातें स्पष्ट स्मृति में आती हैं, वैसे ही जो कल के आपके संस्कार थे वह कल के संस्कार आज के जीवन में संस्कारों के समान स्पष्ट स्मृति में आते हैं वा स्मृति में लाना पड़ता है? जो समझते हैं कि हमारे सतयुगी संस्कार ऐसे ही मुझे स्पष्ट स्मृति में आते हैं जैसे इस जीवन के बचपन के संस्कार स्पष्ट स्मृति में आते हैं, वह हाथ उठाओ। यह स्पष्ट स्मृति में आना चाहिए।..."

 

 


25.03.1971
"...स्नेही और सहयोगी बनने वाले ग्रुप के लिये सलोगन है - ‘अधिकारी बनेंगे और अधीनता को मिटायेंगे’। कभी अधीन नहीं बनना - चाहे संकल्पों के, चाहे माया के। और भी कोई रूपों के अधीन नहीं बनना। इस शरीर के भी अधिकारी बनकर चलना और माया से भी अधिकारी बन उसको अपने अधीन करना है।...ज्ञानमानसरोवर में नहाकर फरिश्ता बनकर निकलना है। जब फरिश्ता बन गया तो फरिश्ते अर्थात् प्रकाशमय काया। इस देह की स्मृति से भी परे। उनके पांव अर्थात् बुद्धि इस पांच तत्व के आकर्षण से ऊंची अर्थात् परे होती है। ऐसे फरिश्तों को माया व मायावी टच नहीं कर सकेंगे। तो ऐसे बनकर जाना जो न कोई मायावी मनुष्य, न माया टच कर सके। "

 

 


09.04.1971
"...कोई ईश्वरीय रूप से माया अपना साथी बनाने की कोशिश करे तो? देखना, अपने वायदों को याद रखना। नारे जो गाये हैं -’’एक हैं, एक के रहेंगे, एक की ही मत पर चलेंगे’’- यह सदैव पक्का रखना। ईश्वरीय रूप से माया ऐसा सामने आयेगी जो उनको परखने की बहुत आवश्यकता पड़ेगी। परखने की शक्ति धारण कर जा रही हो? सदैव यह अविनाशी रखना। अब रिजल्ट देखेंगे। अल्पकाल की रिजल्ट नहीं

दिखानी है। सदाकाल और सम्पूर्ण रिजल्ट दिखानी है। जो वायदे किये हैं इस ग्रुप ने, हिम्मत भी रखी है परन्तु उन वायदों से हटाने में माया मजबूर करे तो फिर क्या करेंगे? वायदे तो बहुत अच्छे किये हैं। लेकिन समझो कोई मजबूर कर देते हैं तो फिर क्या करेंगे? जो खुद ही मजबूर हो जायेगा वह फिर लड़ाई क्या करेगा।..."

 

 


15.04.1971
"...संस्कारों को पलटना तो है लेकिन अविनाशी की छाप लगाओ। जैसे गवर्नमेंट की
मुहर लगती है ना, सील करते हैं जो कोई खोल नहीं सकता। ऐसी सील लगाओ जो माया आधा कल्प के लिए फिर खोल ही न सके। तो अविनाशी संस्कार बनाने का तीव्र पुरूषार्थ करना है। ..."

 

 


18.04.1971
"... मन्सा में अपने संस्कारों से युद्ध भी बहुत चलती है। तो माया को मारने की हिंसा करते हो ना। युद्ध होते हुए भी इसको आहिंसा क्यों कहते हैं? क्योंकि इस युद्ध का परिणाम सुख और शान्ति का निकलता है। हिंसा अर्थात् जिससे दु:ख-अशान्ति की प्राप्ति हो। लेकिन इससे शान्ति और सुख की वा कल्याण की प्राप्ति होती है, इसलिए इसको हिंसा नहीं कहते हैं। तो डबल अहिंसक ठहरे।..."

 

 


19.04.1971
"...संस्कारों को कितना भी खत्म करते हैं लेकिन जेब-खर्च माफिक कुछ-न-कुछ किनारे रखते ज़रूर हैं। यह है मुख्य संस्कार। यहाँ भट्ठी में जानते भी हैं और चलने की हिम्मत भी धारण करते हैं लेकिन फिर भी माया पिरवी पर्श की रीति से कहाँ-न-कहाँ किनारे में रह जाती है। समझा? तो इस भट्ठी में सभी त्याग करके

जाना। ..."

 

 

 

29.04.1971
"...कभी भी माया के अधीन यानी वश होकर पुरूषार्थ में अलबेलापन नहीं लाना। नहीं तो आप समझेंगे हमको सर्टिफिकेट है लेकिन माया वा रावण सर्टिफिकेट चुरा लेती है। जैसे आजकल के डाकू वा पाकेट काटने वाले ऐसा युक्ति से काम करते हैं जो बाहर से कुछ भी पता नहीं पड़ता है, अन्दर खाली हो जाता है। इसी प्रकार अगर पुरूषार्थ में अलबेलापन लाया तो रावण अन्दर ही अन्दर सर्टिफिकेट चुरा लेगा और आप स्टेट्स पा नहीं सकेंगे। इसलिए अटेन्शन! ..."

 

06.05.1971
"...बाप की बड़ाई करने से क्या होगा? लड़ाई बन्द। माया से लड़-लड़ कर थक गये हो ना। जब बाप की बड़ाई करेंगे तो लड़ाई से थकेंगे नहीं, लेकिन बाप के गुण गाते खुशी में रहने से लड़ाई भी एक खेल मिसल दिखाई पड़ेगी। खेल में हर्ष होता है ना। तो जो लड़ाई को खेल समझते, ऐसी स्थिति में रहने वालों की निशानी क्या होगी? हर्ष। सदा हर्षित रहने वाले को माया कभी भी किसी भी रूप से आकर्षित नहीं कर सकती। तो माया की आकर्षण से बचने के लिए एक तो सदैव अपनी शान में रहो,
दूसरा माया को खेल समझ सदैव खेल में हर्षित रहो। ..."

 

 


20.05.1971/01
"...एक संकल्प भी किसके प्रति न हो, जो भी संकल्प उठता है उसमें बाप के प्रति कुर्बान का, वारी जाने का रहस्य भरा हुआ हो। ऐसी चेकिंग करते रहो तो फिर माया सामना करने का साहस रख सकेगी? सामना करने का साहस नहीं रखेगी, लेकिन बार-बार नमस्कार कर विदाई लेगी। ..."

 

 


20.05.1971/02
"...जब तक यह सदैव सजे-सजाये रहने की आदत पड़ जाये तब तक बार-बार अपने को देखना और बनाना पड़ता है। जब दो-चार बार देख लिया कि जब माया किसी भी प्रकार से, किस भी रीति से मेरे श्रृंगार को बिगाड़ नहीं सकती, फिर बार-बार देखने की ज़रूरत ही नहीं। फिर तो अपना साक्षात्कार दूसरों के द्वारा भी आपको होता रहेगा। ..."

 

 

 


24.05.1971
"...माया की अपोज़ीशन क्यों होती है? अपोजीशन का निवारण बहुत सहज है।

अपोज़ीशन से सिर्फ ‘अ’ शब्द निकाल दो। तो क्या हो जायेगा? पोजीशन में ठहरने से अपोज़ीशन होगा? अगर अपने पोज़ीशन पर स्थित है तो माया की अपोज़ीशन नहीं होगी। सिर्फ एक शब्द कट कर देना है। अपने पोज़ीशन में ठहरना - यही याद की यात्रा है। जो हूँ, जिसका हूँ उसमें स्थित होना - यही याद की यात्रा है।...सदैव उस नशे में रहने से अचल, अडोल बन जायेंगे। फिर माया संकल्प रूप में भी हिला नहीं सकती। ऐसे अचल बन जायेंगे। ...शक्ति की कमी के कारण माया से हार खाते

हैं। जब सर्वशक्तिवान बाप की स्मृति में रहते हैं तो सर्वशक्तिवान के बच्चे होने के कारण सफलता तो जन्म्सिद्ध अधिकार हो गया। हर सेकेण्ड में सफलता समाई हुई होनी चाहिए। असफलता के दिन समाप्त। अब सफलता हमारा नारा है - यह स्मृति

में रखो। बहुत सहज सरल रास्ता है, जो सेकेण्ड में अपने को नकली से असली बना सकते हो? इतना सरल मार्ग कब मिलेगा? कभी भी नहीं। माया के अधीन क्यों बनते हो? क्योंकि आलमाइटी अथॉरिटी के बच्चे हैं, यह भूल जाते हो। आजकल छोटी-मोटी अथॉरिटी रखने वाले कितनी खुमारी में रहते हैं! तो आलमाइटी अथॉरिटी वाले कितनी खुमारी में रहने चाहिए?..."

 

 


30.05.1971
"...आप सूर्यवंशी हो, वो सूर्यवंशी राज्य करने वाले क्या थे? कैसे राज्य किया और किस शक्ति के आधार पर से ऐसा राज्य किया? वह स्मृति और साथ-साथ अब संगमयुग के ईश्वरीय कुल की स्मृति। अगर यह दोनों ही स्मृति बुद्धि में आ जाती हैं तो फिर समर्थी आ जाती है। जिस समर्थी से फिर माया का सामना करना सरल हो जाता है। सिर्फ स्मृति के आधार से। तो हर कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए क्या साधन हुआ? स्मृति से अपने में पहले समर्थी को लाओ। फिर कार्य करो।

...जैसे आप लोगों ने राजा का चित्र दिखाया है - पहले दो ताज वाले थे, फिर रावण पीछे से उसका ताज उतार रहा है। ऐसे अब भी होता है क्या? माया पीछे से ही मर्तबे से उतार देती है क्या! अब तो माया विदाई लेने के लिए, सत्कार करने के लिए आयेगी। उस रूप से अभी नहीं आनी चाहिए। अब तो विदा लेगी। जैसे आप लोग ड्रामा दिखाते हो - कलियुग विदाई लेकर जा रहा है। तो वह प्रैक्टिकल में आप सभी के पास माया विदाई लेने आती, न कि वार करने के लिए। अभी माया के वार से तो सभी निकल चुके हैं ना। अगर अभी भी माया का वार होता रहेगा तो फिर अपना अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कब करेंगे? वह तो अभी करना है ना। राज्य-भाग्य का तो भविष्य में अनुभव करेंगे, लेकिन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव तो अभी करना है ना। माया के वार होने से यह अनुभव नहीं कर पाते। बाप के बच्चे बनकर वर्तमान अतीन्द्रिय सुख का पूरा अनुभव प्राप्त न किया तो क्या किया।... जिस दिन मनन में मस्त होंगे उस दिन माया भी सामना नहीं करेगी, क्योंकि आप बिज़ी हो ना। ...आप भी मनन में अथवा अर्न्तमुखी रहने से देह-अभिमान की सीट को छोड़ देते हो, फिर माया लौट जायेगी, क्योंकि आप अर्न्तमुखी अर्थात् अन्डरग्राउण्ड हो। ..."

 

 

 

11.06.1971
"...माया संकल्पों के रूप में भी अपने संग का रंग लगाने की कोशिश करती है। तो इस व्यर्थ संकल्पों के वा माया की आकर्षण के संकल्पों में कभी फेल नहीं होना। और फिर स्थूल संबंधी का संग, उसमें न सिर्फ परिवार का सम्बन्ध होता है लेकिन परिवार के साथ-साथ और भी कोई सम्बन्ध का संग। सहेली का संग भी सम्बन्ध का संग है। तो कोई भी सम्बन्धी के संग में नहीं आना। कोई के वाणी के संगदोष में भी नहीं आना। वाणी द्वारा भी उलटा संग का रंग लग जाता है। इससे भी अपने को बचाना। और फिर अन्न का संगदोष भी है। अगर कभी भी किसके भी समस्या अनुसार वा कोई सम्बन्धी के स्नेह के वश भी अन्नदोष में आ गई तो यह अन्न भी अपने मन को संग के रंग में लगा देता है। इसलिए इससे भी अपने को बचाते रहना। कर्म का संग भी होता है। इसलिए इससे भी अपने को बचाते रहना। तब ‘पास विद् ऑनर’ बनेंगी। संगदोष के पेपर में पास हो गई तो समझो समीप आ सकती हो। अगर संगदोष में आ गई तो दूर हो जायेंगी। फिर न निराकारी वतन में, न अभी संगमयुग में, न भविष्य में पास रह सकेंगी। एक संगदोष तीनों लोकों में दूर हटा देता है। एक संगदोष से बचने से तीनों लोकों में, तीनों कालों में बाप के समीप रहने का भाग्य प्राप्त कर सकती हो। ...अगर शक्ति-स्वरूप का कवच धारण करेंगी तो शक्ति रूप बन जायेंगी। फिर माया का कोई तीर लग नहीं सकेगा।... "

 

 

22.06.1971
"...माया आयेगी जरूर लेकिन अब की स्टेज अनुसार, समय अनुसार विदाई लेने अर्थ आनी चाहिए, न कि ऐसे रूप में आये। नमस्कार करने आये। अभी चलने की तैयारी नहीं करनी है? कुछ समय नमस्कार देखेंगे वा चल पड़ेंगे?..."

 

 


24.06.1971
"...वह अन्डरग्राउन्ड इन्वेन्शन करते हैं वैसे ही आप भी जितना अन्डरग्राउन्ड अर्थात् अन्तर्मुखी रहेंगे उतना ही नई-नई इन्वेन्शन वा योजनायें निकाल सकेंगे। अन्डरग्राउन्ड रहने से एक तो वायुमण्डल से बचाव हो जायेगा; दूसरा - एकान्त प्राप्त होने के कारण मनन शक्ति भी बढ़ती है; तीसरा - कोई भी माया के विघ्नों से

सेफ्टी का साधन बन जाता है। अपने को सदैव अन्डरग्राउन्ड अर्थात् अन्तर्मुखी बनाने की कोशिश करनी चाहिए।..."

 

 


11.07.1971
"...जैसे रेखाओं से लोग जान लेते हैं कि यह क्या-क्या अपना भाग्य बना सकते हैं।

तो अगर अटेन्शन कम रहता है तो चेहर पर टेन्शन की रेखाएं दिखाई पड़ती हैं। उस माया के नॉलेजफुल जान लेते हैं, वह भी कम नहीं। आप लोग अपने आपको भी कभी अलबेले होने कारण परख न सको लेकिन वह लोग इस बात में आप लोगों से तेज हैं।..."

 


19.07.1971
"...क्या आप माया को घेराव नहीं डाल सकते। पाण्डव सेना घेराव नहीं डाल सकती?

एक दो के शुभचिन्तक, सहयोगी बनते रहें तो माया की हिम्मत नहीं जो आपके घेराव के अन्दर आ सके। यह है सहयोग की शक्ति। यह संगठन है सहयोग की शक्ति का। यह संगठन के सहयोग की शक्ति का प्रत्यक्ष रूप दिखाना।..."

 

 


27.07.1971
"...माया सामना तो करेगी - लेकिन किस-किस रूपों में करेगी यह भी जानते हो कि नहीं? मास्टर नॉलेजफुल बनकर जा रहे हो ना। मास्टर नॉलेजफुल को तो इनएडवांस सभी मालूम पड़ ही जाता है। जैसे साइन्स वाले अपने यन्त्रों द्वारा जो भी कोई घटना जैसेकि तूफान वा बारिश का आना वा धरती का हिलना आदि पहले से ही जान लेते हैं तो क्या आप सभी भी मास्टर नॉलेजफुल बनने से इनएडवान्स अपनी

बुद्धि-बल द्वारा नहीं जान सकते हो? दिन-प्रतिदिन जितना-जितना अपनी स्मृति की समर्थी में आते जायेंगे अर्थात् अपनी आत्मा रूपी नेत्र को पावरफुल बनाते जायेंगे, क्लीयर बनाते जायेंगे उतना-उतना कोई भी अगर विघ्न आने वाला होगा तो पहले से ही यह महसूसता आयेगी कि आज कोई पेपर होने वाला है। और जितना-जितना इनएडवान्स मालूम पड़ता जायेगा तो पहले से ही होशियार होने के कारण विघ्नों में सफलता पा लेंगे। ...एक तो अपनी बुद्धि रूपी नेत्र को क्लीयर और केयरफुल रखना

और इनएडवान्स नॉलेजफुल होकर परखने का वरदान लेकर जाना है जिससे कभी भी माया से हार नहीं खायेंगे। जिसकी माया से हार नहीं होती उनके ऊपर सुनने वाले और देखने वाले बलिहार जाते हैं। ...माया बड़ी तेज़ है। उनकी कैचिंग पावर कोई कम नहीं है। जैसे गवर्नमेन्ट आफिसर्स को ज़रा भी कुछ प्राप्त होता है तो उसी पर वह पकड़ लेते हैं। ज़रा निशानी भी किनारे कर दी तो माया किस-न-किस रीति से पकड़ लेगी।..."

 

 


28.07.1971
"...मन्सा संकल्प - यह तो ब्रह्माकुमार बनने के बाद ही माया आती है। शूद्रकुमार के पास माया आती है क्या? आप मूंझते क्यों हो? बोलो कि - ‘‘मरजीवा बने हैं। मरजीवा बनने बाद माया को चैलेन्ज किया है, इसलिए माया आती है। उनसे लड़कर हम विजयी बनते हैं।’’ ऐसे क्यों नहीं कहते हो। महावीर हो तो अपना नशा तो कायम रखो ना। जब अपने को ब्रह्माकुमार समझेंगे तो फिर यह जो सेकेण्ड सीढ़ी है ‘कर्मेन्द्रियों का आकर्षण’, उससे भी पार हो जायेंगे।...जितना फ्री रहते हो उतना ही माया चान्स लेती है। अगर स्थूल और सूक्ष्म - दोनों ही रूप से अपने को सदैव बिज़ी रखो तो माया को चान्स नहीं मिलेगा। जिस दिन स्थूल कार्य भी रूचि से करते हो उस दिन की चेकिंग करो तो माया नहीं आयेगी, अगर देवता होकर किया

तो। अगर मनुष्य होकर किया, फिर तो चान्स दिया। लेकिन सेवाधारी हो और देवता बन अपनी रूचि, उमंग से अपने को बिज़ी रखकर देखो तो कभी माया नहीं आवेगी।

खुशी रहेगी। खुशी के कारण माया साहस नहीं रखती सामना करने का। तो बिज़ी रखने की प्रैक्टिस करो।..."

 

 


20.08.1971
"...हम सभी आत्माओं से हीरो पार्टधारी आत्मायें, श्रेष्ठ आत्माएं हैं। और दूसरा पोजीशन है ईश्वरीय सन्तान ब्रह्माकुमार-कुमारीपन का। यह दोनों पोजिशन स्मृति में रहें तो कर्म और संकल्प दोनों ही श्रेष्ठ हो जायेंगे। श्रेष्ठ आत्मा अथवा हीरो अपने को समझने से ऐसा कोई व्यवहार नहीं करेंगे जो ईश्वरीय मर्यादाओं के वा ब्राह्मण कुल की मर्यादा के विपरीत हो। इसलिए यह दोनों पोजिशन स्मृति में होंगी तो माया की अपोजिशन खत्म हो जायेगी। इसलिए डबल पोजिशन भी सदैव स्मृति में रखो।..."

 

 


19.08.1971
"... माया भी परीक्षा लेने के लिए नई-नई बातें सामने लायेगी। इसलिए अच्छी तरह से मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर त्रिकालदर्शी बनकर जा रहे हो, तो दूर से ही माया के वार को पहचान कर खत्म कर दो, ऐसे मास्टर सर्वशक्तिमान् बने हो? ‘‘क्या, क्यों’’ की भाषा खत्म की? ‘‘क्या करें, कैसे करें’’ - यह खत्म। सिर्फ तीन मास का पेपर नहीं, अभी तो अन्त तक का वायदा करना है। यह तो गैरन्टेड माल हो गया ना। ..."

 

 


03.10.1971
"...जब मास्टर विश्व-निर्माता अपने को समझेंगे तो यह माया के छोटे-छोटे विघ्न बच्चों के खेल समान लगेंगे। जैसे छोटा बच्चा अगर बचपन के अनजानपन में नाक-कान भी पकड़ ले तो जोश आयेगा? क्योंकि समझते हैं - बच्चे निर्दोष, अनजान हैं। उनका कोई दोष दिखाई नहीं पड़ता। ऐसे ही माया भी अगर किसी आत्मा द्वारा समस्या वा विघ्न वा परीक्षा-पेपर बनकर आती है, तो उन आत्माओं

को निर्दोष समझना चाहिए। माया ही आत्मा द्वारा अपना खेल दिखा रही है। तो निर्दोष के ऊपर क्या होता है? तरस, रहम आता है ना। इस रीति से कोई भी आत्मा निमित्त बन जाती है, लेकिन है निर्दोष आत्मा। ...ज़रूर कोई माया की खिंचावट अभी है, इसलिए बुद्धि में कल्प पहले वाली स्मृति स्पष्ट और सरल रूप में नहीं आती है और इसलिए ही विघ्नों को पार करने में मुश्किल अनुभव होता है। मुश्किल है नहीं।..."

 

 


09.10.1971
"...कोई भी आत्मा आप लोगों के पास आती है तो पहले जगत्-माता का स्नेह रूप धारण करते हो, लेकिन जब वह चलना शुरू करता है और माया का सामना करना पड़ता है, तो सामना करने में सहयोगी बनने के लिए शक्ति रूप भी धारण करना पड़े।..."

 

 


18.10.1971
"...आज के दिन इन भिखारी आत्माओं के ऊपर विधाता और वरदाता के बच्चों को तरस पड़ना चाहिए। जिन आत्माओं को ऐसा तरस पड़ता है, उन्हों को ही माया और विश्व की ऐसी आत्माएं नमस्कार करती हैं।..."

 

 


31.10.1971
"...सभी से पावरफुल स्टेज है अपना अनुभव-क्योंकि अनुभवी आत्मा में विल-पावर होती है। अनुभव के विल-पावर से माया की कोई भी पावर का सामना कर सकेंगे। जिसमें विल- पावर होती है वह सहज ही सर्व बातों का, सर्व समस्याओं का सामना भी कर सकते हैं और सर्व आत्माओं को सदा सन्तुष्ट भी कर सकते हैं। ..."

 

 


01.11.1971
"...सदैव यही सोचो कि हम हैं ही सदा बाप के सहयोगी अर्थात् सहज योगी। वियोग क्या होता है - इसका जैसे मालूम ही नहीं। जैसे भविष्य में, ‘माया होती भी है’ - यह मालूम नहीं होगा, वैसे ही अब की स्टेज रहे।..."

 

 

1969

18.01.1969

"...संगठन की शक्ति है तो कोई भी हिला नहीं सकता। देखो, बापदादा ने कहाँ-कहाँ से चुन-चुनकर संगठन बनाया है। तो बच्चे भी जब संगठन में चलेंगे तो माया का वार नहीं होगा।..."

 

 

21.01.1969

"...एक डगमग न होने का दान देना है। दूसरा अवगुण न देखने का दान देना है। अगर सभी बच्चे यह ध्यान दे जबकि संकल्प कर चुके अर्थात् दे चुके। संकल्प की हुई चीज कभी वापस नहीं ली जाती। अगर माया वापस लेने की कोशिश कराये भी तो यदि अपने ऊपर जाँच होगी तो पास हो जायेंगे।..."

 

 

23.01.1969

"...जिसका बाप के साथ स्नेह है वही अन्त तक स्थापना के कार्य में मददगार रहेंगे। इसलिए स्नेही होने की कोशिश करो। कैसी भी माया आवे, मायाजीत बनना। ..."

 

 

02.02.1969

"...अनेक व्यर्थ के चक्करों से बचने के लिए स्वदर्शनचक्र को याद रखना। क्योंकि जैसे-जैसे महारथी बनेंगे वैसे ही माया भी महारथी रूप में आयेगी।..."

 

 

 

07.05.1969

"...अव्यक्त स्थिति को प्राप्त होने के लिये शुरू से लेकर एक स्लोगन सुनाते आते हैं। अगर वह याद रहे तो कभी भी कोई माया के विघ्नों में हार नहीं हो सकती है। ऐसा सर्वोत्तम स्लोगन हरेक को याद है? हर मुरली में भिन्न-भिन्न रूप से वह स्लोगन आता ही है। मनमनाभव, हम बाप की सन्तान हैं, वह तो हैं ही। लेकिन पुरुषार्थ करते-करते जो माया के विघ्न आते हैं उन पर विजय प्राप्त करने के लिए कौन-सा स्लोगन है? "स्वर्ग का स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है"। और संगम के समय बाप का खजाना जन्म सिद्ध अधिकार है। यह स्लोगन भूल गये हो। अधिकार भूल गये हो तो क्या होगा? हम किस-किस चीजों के अधिकारी हैं। वह तो जानते हो। लेकिन हमारे यह सभी चीज़ें जन्म सिद्ध अधिकार हैं। जब अपने को अधिकारी समझेंगे तो माया के अधीन नहीं होंगे।..."

 

 

18.05.1969

"...हर कर्मेन्द्रियों को योगाग्नि में तपाना है तो फिर कोई वार नहीं कर सकेंगे। थोड़ा भी कहाँ ढीलापन हुआ, कोई भी कर्मेन्द्रियाँ ढीली हुई तो फिर प्रवेशता हो सकती है। वह अशुद्ध आत्माएं भी बड़ी पावरफुल होती हैं। वह माया की पावर भी कम नहीं होती। यह बहुत ध्यान रखना है।..."

 

 

 

26.05.1969

"...परखने की जितनी शक्ति होगी उतना ही परीक्षाओं में पास होंगे। परखने की शक्ति कम रखते हो, परख नहीं सकते हो कि यह किस प्रकार का विघ्न है, माया किस रूप में आ रही है और क्यों मेरे सामने यह विघ्न आया है, इससे रिजल्ट क्या है? यह परख कम होने के कारण परीक्षाओं में फेल हो जाते हैं। परख अच्छी होगी वह पास हो सकते हैं। ..."

 

 

06.09.1969

"... जैसे आप लोगों के चित्र में दिखाया है ना कि द्वापर के बाद ताज उतर जाते हैं। तो यह जिम्मेवारी का ताज भी दिया हुआ तो है लेकिन कभी-कभी जानबूझ कर भी उतार देते हैं और माया भी उतार देती है।..."

 

 

26.06.1969

"...विघ्न डालने वाली कौन सी चीज है? (माया) सुनाया था कि विघ्नों का सामना करने के लिये पहले चाहिए परखने की शक्ति। फिर चाहिए निर्णय करने की शक्ति। जब निर्णय करेंगे यह माया है वा अयथार्थ है। फायदा है वा नुकसान? अल्पकाल की प्राप्ति है वा सदाकाल की प्राप्ति है। जब निर्णय करेंगे तो निर्णय के बाद ही सहनशक्ति को धारण कर सकेंगे। पहले परखना और निर्णय करना है।..."

 

 

16.07.1969

"...जब फल निकलता है तो फिर उनकी बहुत सम्भाल करनी पड़ती है। तो आप भी इस फल की बहुत सम्भाल रखना। क्योंकि यह फल बापदादा को ही स्वीकार कराना है। लेकिन यह खबरदारी रखनी है कि बीच में माया रूपी चिडिया फल को जूठा न कर देवे। फल जब पक जाता हैं तो फिर पक्षी उसको खाने की चिड़िया बहुत कोशिश करते हैं तो यह माया भी इस फल को खाने के लिए कोशिश करेगी। लेकिन आप लोगों ने किसके लिए फल पकाया है! तो सम्भाल भी पूरी करनी है। अभी अजुन फल निकला है पूरा पक जायेगा फिर स्वीकार करेंगे। तब तक सम्भाल करनी है।..."

 

 

 

20.10.1969

"...अलौकिक ड्रिल जो जितनी करता है उतना ही तन्दुरुस्त अर्थात् माया की व्याधि नहीं आती और शक्ति स्वरुप भी रहता है। जितना-जितना यह अलौकिक बुद्धि की ड्रिल करते रहेंगे उतना ही जो लक्ष्य है बनने का, वह बन पावेंगे। ड्रिल में जैसे ड्रिल मास्टर कहता है वैसे हाथ-पाँव चलाते है ना। यहाँ भी अगर सभी को कहा जाये एक सेकेण्ड में साकारी से निराकारी बन जाओ तो बन सकेंगे? जैसे स्कूल शरीर के हाथ-पाँव झट डायरेक्शन प्रमाण-ड्रिल में चलाते रहते है, वैसे एक सेकेण्ड में साकारी से निराकारी बनने की प्रैक्टिस है? साकारी से निराकारी बनने में कितना समय लगता है? जबकि अपना ही असली स्वरूप है फिर भी सेकेण्ड में क्यों नहीं स्थित हो सकते?..."

 

 

 

13.11.1969

"...बापदादा के जो वैल्यूबल रत्न हैं उन्हो को बापदादा छिपाकर रखते हैं। माया से छिपाते हैं। माया से छिपाकर फिर कहाँ रखते हैं? जितना-जितना जो अमूल्य रत्न होंगे उतना-उतना बापदादा के दिल तख्त पर निवास करेंगे। जब दिल तख्तनशीन बनेंगे तब राज्य के तख्तनशीन बनेंगे। तो संगमयुग का कौन सा तख्त है? तख्त है वा बेगर हो? संगमयुग पर कौनसा तख्त मिलता है। बापदादा के दिल का तख्त। यह सारे जहान के तख्तों से श्रेष्ठ है। कितना भी बड़ा तख्त सतयुग में मिले लेकिन इस तख्त के आगे वह क्या है? इस तख्त पर रहने से माया कुछ नहीं कर सकती। इस पर उतरना चढ़ना नहीं पड़ेगा। इस पर रहने से माया के सर्व बन्धनों से मुक्त रहेंगे। ..."

 

 

 

17.11.1969

"...प्रकृति और माया के अधीन न होकर दोनों को अधीन करना चाहिए। अधीन हो जाने के कारण अपना अधिकार खो लेते है। तो अधीन नहीं होना है, अधीन करना है तब अपना अधिकार प्राप्त करेंगे और जितना अधिकार प्राप्त करेंगे उतना प्रकृति और लोगों द्वारा सत्कार होगा तो सत्कार कराने लिये क्या करना पड़ेगा? अधीनपन छोड़कर अपना अधिकार रखो। अधिकार रखने से अधिकारी बनेंगे। लेकिन अधिकार छोड़ कर के अधीन बन जाते हो। छोटी-छोटी बातों के अधीन बन जाते हो। अपनी ही रचना के अधीन बन जाते हैं। ..."

 

 

 

28.11.1969

"...वामन अर्थात् छोटा। सभी से छोटा रूप किसका है? आत्मा और परमात्मा का, तो बाप ने आकर माया बली, जो बलवान है उससे तीन पैर में सभी कुछ लिया अर्थात् सम्पूर्ण समर्पण बनाया। आप लोगों को भी सम्पूर्ण समर्पण करना है अर्थात् जो भी माया का बल है वह सभी कुछ त्यागना है। माया का बली नहीं बनना है लेकिन ईथरीय शक्ति में बलवान बनना है। ..."

 

 

 

28.11.1969

"...चार शक्तियों को धारण करना है। है तो एक ही ईश्वरीय शक्ति। लेकिन स्पष्ट करने के लिए कहा जाता है। 1 - समेटने की शक्ति अर्थात् शार्ट करने की शक्ति, 2- समाने की शक्ति, 3- सहन करने की शक्ति, 4- सामना करने की शक्ति, लेकिन किसका सामना करना है? बापदादा व दैवी परिवार का नहीं। माया की शक्ति का सामना करने की शक्ति। यह चारों शक्तियाँ धारण करेंगे तो सम्पूर्ण समर्पण को अविनाशी कायम रख सकेंगे।..."

 

 

06.12.1969

"...जितना सरल स्वभाव वाले होंगे उतना माया कम सामना करेगी। वह सभी को प्रिय लगता है। सरल स्वभाव वाले का व्यर्थ संकल्प कभी नहीं चलता। समय व्यर्थ नहीं जाता। व्यर्थ संकल्प न चलने के कारण उनकी बुद्धि विशाल और दूरांदेशी रहती है। इसलिए उनके आगे कोई भी समस्या सामना नहीं कर सकती। ..."

 

1970

 

22.01.1970

"...चलते-चलते पुरुषार्थ में माया का अन्धकार व धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपानेवाले हैं, वह हट जायेंगे। इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना। आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं। वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज़ लेकर देते हैं। तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन सी अनोखी चीज़ देंगे? आज के इस मधुर मिलन के मेले को यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिन्तक और शुभ चिंतन में रहना।..."

 

 

 

23.01.1970

"...सदा ऐसे समझो कि मैं युगल मूर्त हूँ। अगर युगल साथ होगा तो माया आ नहीं सकेगी। युगल मूर्त समझना यही बड़े ते बड़ी युक्ति है। कदम-कदम पर साथ रहने के कारण साहस रहता है। शक्ति रहती है फिर माया आएगी नहीं। ..."

 

 

24.01.1970

"...वबाबा के वरसे का पूरा अधिकारी अपने को समझते हो? जो वर्से के अधिकारी बनते हैं, उन्हों का सर्व के ऊपर अधिकार होता है, वह कोई भी बात के अधीन नहीं होते। अगर अधीन होते हैं देह के, देह के सम्बन्धियों वा देह के कोई भी वस्तुओं से तो ऐसे अधीन होनेवाले अधिकारी नहीं हो सकते। अधिकारी अधीन नहीं होते हैं। सदैव अपने को अधिकारी समझने से कोई भी माया के रूप के अधीन बन्ने से बाख जायेंगे।..."

 

 

 

24.01.1970

"...मैं जगतमाता हूँ और शिवशक्ति हूँ, यह दोनों रूप स्मृति में रखना तब मायाजीत बनेंगे। और विश्व के कल्याण की भावना से कई आत्माओं के कल्याण के निमित्त बनेंगे। ..."

 

 

 

"...मैं शिवशक्ति हूँ। शिवशक्ति सभी कार्य कर सकती है। शक्तियों की शेर पर सवारी दिखाते हैं। किस भी प्रकार माया शेर रूप में आये डरना नहीं है। शिवशक्ति कभी हार नहीं खा सकती। ..."

 

 

"...संकल्प उंच हों और कर्म कमज़ोर हों तो उनको तीव्र पुरुषार्थी नहीं कहेंगे। तीनों की समानता चाहिए। सदैव यह समझना चाहिए। जो कि माया कभी-कभी अपना रूप दिखाती है यह सदैव के लिए विदाई लेने आती है। विदाई के बदले निमंत्रण दे देते हो। सदैव शिवबाबा के साथ हूँ, उनसे अलग होंगे ही नहीं तो फिर कोई क्या करेंगे। कोई बिजी रहता है तो फिर तीसरा डिस्टर्ब नहीं करता है। समझते हैं तंग करने वाला कोई नहीं आये। तो एक बोर्ड लगा देते हैं। आप भी ऐसा बोर्ड लगाओ। तो माया लौट जाएगी। आने का स्थान ही नहीं मिलेगा। कुर्सी खाली होती है तो कोई बैठ जाता है। ..."

 

"...अगर देखना है तो भी एक को, बोलना भी उनसे। ऐसी स्थिति रहने से ही माया जीत बनेंगे। जो माया जीत बनते हैं वह जगतजीत बन जाते हैं।..."

 

"...बाप को सदैव साथ रखेंगे तो माया देखेगी इसके साथ सर्वशक्तिवान बाप है तो वह दूर से ही भाग जाएगी। अकेला देखती है तब हिम्मत रखती है। शिकार करने जब जाते हैं तो कोई भी जानवर वार न करें इसके लिए आ जलाते हैं। वैसे ही याद की अग्नि जली हुई होगी तो माया आ नहीं सकेगी। यह लगन की अग्नि बुझनी नहीं चाहिए। साथ रखने से शक्ति आपे ही आ जाएगी। फिर विजय ही विजय है। ..."

 

 

25.01.1970

"... एक की ही याद में सर्व प्राप्ति हो सकती है और सर्व की याद से कुछ भी प्राप्ति न हो तो कौन-सा सौदा अच्छा? देखभाल कर सौदा किया जाता है या कहने पर किया जाता है? यह भी समझ मिली है कि यह माया सदैव के लिए विदाई लेने थोडा समय मुखड़ा दिखलाती है। अब विदाई लेने आती है, हार खिलने नहीं। छुट्टी लेने आती है। अगर घबराहट आई तो वह कमजोरी कही जाएगी। कमजोरी से फिर माया का वार होता है। अब तो शक्ति मिली है ना। सर्वशक्तिवान के साथ सम्बन्ध है तो उनकी शक्ति के आगे माया की शक्ति क्या हैं? सर्वशक्तिवान के बच्चे हैं, यह नशा नहीं भूलना। भूलने से ही फिर माया वार करती है। बेहोश नहीं होना है। होशियार जो होते हैं, वह होश रखते हैं। आजकल डाकू लोग भी कोई-कोई चीज़ से बेहोश कर देते हैं। तो माया भी ऐसा करती है। जो चतुर होते हैं वह पहले से ही जान लेते कि इनका यह तरीका है इसलिए पहले से ही सावधान रहते हैं। अपने होश को गंवाते नहीं हैं। इस संजीवनी बूटी को सदैव साथ रखना है। ..."

 

"...गन्दगी से मछर आदि प्रगट होते हैं इसलिए उनको हटाया जाता है। वैसे ही अपनी कमजोरी से माया के कीड़े पकड़ लेते हैं। कमज़ोरी को आने न दो तो माया आयेगी नहीं। सदैव यह यद् रखो कि सर्वशक्तिवान के साथ हमारा सम्बन्ध है। फिर कमजोरी क्यों? सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे होते भी माया की शक्ति को खलास नहीं मर सकते। एक बात सदैव याद रखो कि बाप मेरा सर्वशक्तिवान है। हम सभी से श्रेष्ठ सूर्यवंशी हैं। हमारे ऊपर माया कैसे वार कर सकती है। अपना बाप, अपना वंश यद् रखेंगे तो माया कुछ भी नहीं कर सकेगी। स्मृति स्वरुप बनना है। ..."

 

 

"...अपने को सूर्यवंशी सितारे समझते हो? सूर्यवंशी सितारों का क्या कर्त्तव्य है? सूर्यवंशी सितारा माया के अधीन हो सकते हैं? सभी मायाजीत बने हो? बने हैं वा बनना है? मायाजीत का टाइटल अपने ऊपर धारण किया है? युगल में भी एक कहते हैं कि मायाजीत बन रहे हैं और एक कहते हैं कि बन गए हैं। एक ही पढाई, एक ही पढ़नेवाला, फिर भी कोई विजयी बन गए हैं, कोई बन रहे हैं, यह फर्क क्यों? अगर अब तक भी त्रुटियाँ रहेंगी तो त्रुटियों वाले त्रेता युग के बन जायेंगे। और जो पुरुषार्थी हैं वह सतयुग के बनेंगे।..."

 

 

 

26.01.1970

"...बीजों में से कोई झट से फल देता है, कोई देरी से फल देता है। वैसे ही यहाँ भी हरेक का अपने समय पर पार्ट है, कोई देरी से फल देता है। वैसे ही यहाँ भी हरेक का अपने समय पर पार्ट है। फ़र्ज़ समझ करेंगे तो माया का मर्ज नहीं लगेगा। नहीं तो वायुमंडल का असर लग सकता है।..."

 

 

"...भूलें क्यों होती हैं? उसकी गहराई में जाना है। अंतर्मुख हो सोचना चाहिए यह भूल क्यों हुई? यह तो माया का रूप है। मैं तो रचयिता बाप का बच्चा हूँ। अपने साथ एकांत में ऐसे-ऐसे बात करो। उभारने की कोशिश करो। कहाँ भी जाना होता है तो अपना यादगार छोड़ना होता है और कुछ ले जाना होता है। तो मधुबन में विशेष कौन सा यादगार छोड़ा? एक-एक आत्मा के पास यह ईश्वरीय स्नेह और सहयोग का यादगार छोड़ना है। जितना एक दो के स्नेही सहयोगी बनते हैं उतना ही माया के विघ्न हटाने में सहयोग मिलता है। सहयोग देना अर्थात् सहयोग लेना। परिवार में आत्मिक स्नेह देना है और माया पर विजय पाने का सहयोग लेना है। ..."

 

 

"...तीव्र पुरुषार्थी के मन के संकल्प में भी हार नहीं हो सकती है। ऐसी स्थिति बनानी है। जो संकल्प में भी माया से हार न हो। इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी। ..."

 

 

 

"...अगर समय प्रमाण युक्ति नहीं आती है तो समझना चाहिए योग बल नहीं है। योगयुक्त है तो मदद भी ज़रूर मिलती है। जो यथार्थ पुरुषार्थी है उनके पुरुषार्थ में इतनी पॉवर रहती है। ज्यादा सोचना भी नहीं चाहिए। अनेक तरफ लगाव है, फिर माया की अग्नि भी लग जाती है। परन्तु लगाव नहीं होना चाहिए। फ़र्ज़ तो निभाना है लेकिन उसमे लगाव न हो। ऐसा पावरफुल रहना है जो औरों के आगे एग्जाम्पल हो। जो एग्जाम्पल बनते हैं वह एग्जामिन में पास होते हैं। एग्जामिन देने लिए एग्जाम्पल बन दिखाओ। जो सभी देखें कि ये कैसे नवीनता में आ गए हैं। ऐसे सर्विसेबुल बनना है जो आप को देख औरों को प्रेरणा मिले। पहले जो शक्तियां निकलीं उन्हों ने इतनी शक्तियों को निकाला। आप शक्तियां फिर सृष्टि को बदलो। इतना आगे जाना है। गीत भी हैं ना हम शक्तियां दुनिया को बदल कर दिखायेंगे। सृष्टि को कौन बदलेंगे? जो पहले खुद बदलेंगे। शक्तियों की सवारी शेर पर दिखाते हैं। कौन सा शेर? यह माया जो शेरनी रूप में सामना करने आती है उनको अपने अधीन कर सवारी बनाना अर्थात् उनकी शक्ति को ख़त्म करना। ऐसी शक्तियां जिनकी शेर पर सवारी दिखाते हैं वही तुम हो ना। वह सभी का ही चित्र है। ऐसी शेरनी शक्तियां कभी माया से घबराती नहीं। लेकिन माया उनसे घबराती है। ऐसे माया जीत बने हो ना। ..."

 

 

 

02.02.1970

"...अपने को सदैव गेस्ट समझो। अगर गेस्ट समझेंगे तो रेस्ट नहीं करेंगे तो वेस्ट नहीं जायेगा। चाहे संकल्प, चाहे समय, यह है सहज तरीका। अच्छा सब फिर समाप्ति के दिन सभी के मस्तक के बल्ब कितने पॉवर के हैं वह देखेंगे। और पावरफुल होंगे तो माया उस पॉवर के आगे आने का साहस नहीं रखेगी। ..."

 

 

 

05.03.1970

"...पहरा देना तो बहुत सहज है। जैसे इस गेट की रखवाली करते हो वैसे माया का जो गेट है, उसकी भी रखवाली करनी है। ऐसे पाण्डव सेना तैयार है जो आसुरी संस्कारों को, आसुरी संकल्पों को भी इस पाण्डव के अन्दर आने न दो? अब पहले अपने अन्दर यह पहरा मज़बूत होगा तब पाण्डव भवन में यह मजबूती ला सकते हैं। ..."

 

 

"...अभी सिर्फ एक बल चाहिए, जिसकी कमी होने कारन ही माया की प्रवेशता हो जाती है। वह है सहनशीलता का बल। अगर सहनशीलता का बल हो तो माया कभी वार कर नहीं सकती। ..."

 

 

 

05.04.1970

"...शक्तिरूप से विजयी और स्नेह रूप से सम्बन्ध में आते हो। अगर शक्ति नहीं होती तो माया पर विजय नहीं पाते हो। इसलिए शक्ति रूप से विजयी और स्नेह रूप से सम्बन्ध भी चाहिए। दोनों चाहिए। बाप को सर्वशक्तिमान और प्यार का सागर भी कहते हैं। तो स्नेह और शक्ति दोनों चाहिए। ..."

 

 

 

21.05.1970

"...बाबा-कहने से माया भाग जाती है। मैं-मैं कहने से माया मार देती है। इसलिए पहले भी सुनाया था कि हर बात में भाषा को बदली करो। बाबा-बाबा की ढाल सदा सदैव अपने साथ रखो। इस ढाल से फिर जो भी विघ्न हैं वह ख़त्म हो जायेंगे। ..."

 

 

 

28.05.1970

"...बापदादा भी हरेक का साहस देख रहे हैं। अब कोई बात का साहस रखा जाता है तो साहस के साथ और कुछ भी करना पड़ता है कई बातें सामना करने लिए आती है। साहस रखा और माया का सामना करना शुरू हो जाता है। इसलिए सामना करने के लिए हिम्मत भी पहले से ही अपने में रखनी है। ...बहुत कड़ा रूप चाहिए। माया का कोई विघ्न सामने आने का साहस न रख सके।"

 

 

 

29.05.1970

"... महारथी उसको कहा जाता है जो सदैव माया पर विजय प्राप्त करे। माया को सदा के लिए विदाई दे दो। विघ्नों को हटाने की पूरी नॉलेज है? सर्वशक्तिमान के बच्चे मास्टर सर्वशक्तिमान हो। तो नॉलेज के आधार पर विघ्न हटाकर सदैव मगन अवस्था रहे। अगर विघ्न हटते नहीं हैं तो ज़रूर शक्ति प्राप्त करने में कमी है। नॉलेज ली है लेकिन उसको समाया नहीं है। नॉलेज को समाना अर्थात् स्वरुप बनना। जब समझ से कर्म होगा तो उसका फल सफलता अवश्य निकलेगी।..."

 

"...सर्वशक्तिमान बाप के बच्चे जो शक्तिमान हैं, उन्हों के आगे माया भी दूर से ही सलाम कर विदाई ले लेती है। वल्लभाचारी लोग अपने शिष्यों को छूने भी नहीं देते हैं। अछूत अगर छू लेता है तो स्नान किया जाता है। यहाँ भी ज्ञान स्नान कर ऐसी शक्ति धारण करो जो अछूत नजदीक न आयें। माया भी क्या है? अछूत।..."

 

 

 

18.06.1970

"...दो घंटे बाप की याद रही तो बाकी समय क्या किया? बाप के स्नेही हो वा माया के? जिससे स्नेह होता है, स्नेह अर्थात् संपर्क। जिससे संपर्क होता है तो उन जैसे संस्कार ज़रूर भरेंगे। संस्कार मिलने के आधार से ही संपर्क होता है ना। तो अगर बाप के स्नेही हो, संपर्क भी है तो संस्कार क्यों नहीं मिलते? फिर बापदादा कहेंगे कि माया के स्नेही हो। अगर दो घंटे बाप के स्नेही और 22 घंटा माया के स्नेही रहते हो तो क्या कहेंगे? सर्विस करते भी स्नेह को, संपर्क को न छोड़ो। सम्पूर्ण स्टेज तो नजदीक रहने की है। एक गीत भी है ना – न वो हम से जुदा होंगे। जब जुदा ही नहीं होंगे तो स्नेह दिल से कैसे निकलेगा। तो होना निरंतर चाहिए।..."

 

 

 

19.06.1970

"...बापदादा से कब विदाई नहीं होती है। माया से विदाई होती है। बापदादा से तो मिलन होता है। ..."

 

 

 

25.06.1970

"...रूलर्स जो होते हैं वह किसके अधीन नहीं होते हैं। अधिकारी होते हैं। वह कब किसके अधीन नहीं हो सकते। तो फिर माया के अधीन कैसे होंगे? अधिकार को भूलने से अधिकारी नहीं समझते। अधिकारी न समझने से अधीन हो जाते हैं। जितना अपने को अधिकारी समझेंगे उतना उदारचित्त ज़रूर बनेंगे। जितना उदार चित्त बनता उतना वह उदाहरण स्वरुप बनता है – अनेकों के लिए। उदारचित्त बनने के लिए अधिकारी बनना पड़े। अधिकारी का अर्थ ही है की अधिकार सदैव याद रहे। तो फिर उदाहरण स्वरुप बनेंगे। जैसे बापदादा उदाहरण रूप बने। वैसे आप सभी भी अनेकों के लिए उदाहरण रूप बनेंगे। उदारचित्त रहने वाला भी उदाहरण भी बनता और अनेकों का सहज ही उद्धार भी कर सकता है। समझा। जब कोई में माया प्रवेश करती है तो पहले किस रूप में माया आती है? (हरेक ने अपना-अपना विचार सुनाया) पहले माया भिन्न-भिन्न रूप से आलस्य ही लाती है। देह अभिमान में भी पहला रूप आलस्य का धारण करती है। उस समय श्रीमत लेकर वेरीफाई कराने का आलस्य करते हैं फिर देह अभिमान बढ़ता जाता है और सभीं बातों में भिन्न-भिन्न रूप से पहले आलस्य रूप आता है। आलस्य, सुस्ती और उदासी ईश्वरीय सम्बन्ध से दूर कर देती है। साकार सम्बन्ध से वा बुद्धि के सम्बन्ध से वा सहयोग लेने के सम्बन्ध से दूर कर देती है। इस सुस्ती आने के बाद फिर विकराल रूप क्या होता है? देह अहंकार में प्रत्यक्ष रूप में आ जाते हैं। पहले छठे विकार से शुरू होते हैं। ज्ञानी तू आत्मा वत्सों में लास्ट नंबर अर्थात् सुस्ती के रूप से शुरू होती है। सुस्ती में फिर कैसे संकल्प उठेंगे। वर्तमान इसी रूप से माया की प्रवेशता होती है। इस पर बहुत ध्यान देना है। इस छठे रूप में माया भिन्न-भिन्न प्रकार से आने की कोशिश करती है। सुस्ती के भी भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। शारीरिक, मानसिक, दोनों सम्बन्ध में भी माया आ सकती है। कई सोचते हैं चलो अब नहीं तो फिर कब यह कर लेंगे। जल्दी क्या पड़ी है। ऐसे-ऐसे बहुत रॉयल रूप से माया आती है। कई यह भी सोचते हैं कि अव्यक्त स्थिति इस पुरुषार्थी जीवन में 6-8 घंटा रहे, यह हो ही कैसे सकता है। यह तो अन्त में होना है। यह भी सुस्ती का रॉयल रूप है। फिर करूँगा, सोचूंगा, देखूंगा यह सब सुस्ती है। अब इसके चेकर बनो। कोई को भी रॉयल रूप में माया पीछे हटती तो नहीं है? प्रवृत्ति की पालना तो करना ही है। लेकिन प्रवृत्ति में रहते वैराग्य वृत्ति में रहना है, यह भूल जाता है। आधी बात याद रहती है, आधी बात छोड़ देते हैं। बहुत सूक्ष्म संकल्पों के रूप में पहले सुस्ती प्रवेश करती है। इसके बाद फिर बड़ा रूप लेती है। अगर उसी समय ही उनको निकाल दें तो ज्यादा सामना न करना पड़े। तो अब यह चेक करना है कि तीव्र पुरुषार्थी बनने में वा हाई जम्प देने में किस रूप में माया सुस्त बनाती है। माया का जो बाहरी रूप है उनको तो चेक करते हो लेकिन इस रूप को चेक करना है। कई यह भी सोचते हैं कि फिक्स सीट्स ही कम है। तो औरों को आगे पुरुषार्थ में देख अपनी बुद्धि में सोच लेते हैं कि इतना आगे हम जा नहीं सकेंगे। इतना ही ठीक है। यह भी सुस्ती का रूप है। तो इन सभी बातों में अपने को चेंज कर लेना है। तब ही लॉ मेकर्स वा पीस मेकर्स बन सकेंगे। वा न्यू वर्ल्ड मेकर्स बन सकेंगे। ..."

 

 

 

02.07.1970

"...कब नहीं लेकिन अब करेंगे। कब शब्द कमज़ोर बोलते हैं। बहादुर शक्तियाँ तो बोलती हैं अब। जैसे स्वयं अविनाशी इम्पैरिशिबुल हैं वैसे ही इस माया में फँस कर विनाश को प्राप्त होना उन्हों के लिए इम्पॉसिबल है। जो इम्पैरिशिबुल हैं उनके लिए माया की कोई भी लहर में लहराना भी इम्पॉसिबल हैं। जो इम्पैरिशिबुल स्थिति में रहते हैं उन्हों के लिए माया के कोई भी स्वरुप से झुकाव में आना इम्पॉसिबल है जैसे बापदादा के लिए इम्पॉसिबल कहेंगे। ..."

 

 

 

06.08.1970

"...इस दुनिया के जो बड़े आदमी हैं वह लोग जब स्पीच करते हैं तो उन्हों के बोलने के शब्द भी फिक्स किये जाते हैं। आप भी बड़े से बड़े आदमी हो ना। तो आपके बोल भी फिक्स होने चाहिए। माया की मिक्स न हो। ..."

 

 

 

06.08.1970

"...जितना स्पष्ट उतना श्रेष्ठ। अगर स्पष्टता में कमी है तो श्रेष्ठता में भी कमी। और कुछ मिक्स नहीं करना है। कोई-कोई मिक्स बहुत करते हैं। इससे क्या होता है? यथार्थ रूप भी अयथार्थ हो जाता है। वही ज्ञान की बातें माया का रूप बन जाती हैं। ..."

 

 

 

"...टीका किसलिए लगाते हैं, मालूम है? टीका सौभाग्य की निशानी है। जो बातें सुनी उन बातों में टिकने की निशानी टीका है। टीका भी मस्तक में टिक जाता है। तो बुद्धि में यह बातें टिक जाएँ इसलिए यह टीका दिया जाता है। और किसलिए है? (कईयों ने अपना विचार सुनाया) बापदादा जो सुनायेंगे वह और है। यह टीका (इंजेक्शन) सदा माया के रोगों से निवृत्त रहने का टीका है। सदा तंदुरुस्त रहने का भी टीका है। एक टीका जो आप सभी ने सुनाया और यह भी है। दोनों टीका लगाने हैं। एक है शक्तिशाली बनने का और दूसरा है सदा सुहाग और भाग्य में स्थित रहने का। दोनों टीका बापदादा लगाते हैं। निशानी एक, राज़ दो हैं। निशानी तो स्थूल होती है लेकिन राज़ दो हैं। इसलिए ऐसे तिलक नहीं लगाना। तिलक लगाना अर्थात् सदाकाल के लिए प्रतिज्ञा करना। यह टीका एक प्रतिज्ञा की निशानी है। ..."

 

 

 

06.08.1970

"...जैसे वृक्ष में जो कोमल और छोटे पत्ते निकलते हैं, वह बहुत प्रिय लगते हैं। लेकिन चिड़िया भी कोमल पत्तों को ही खाती है। सिर्फ प्यारे रहना किसके? बापदादा के न कि माया रूपी चिड़ियों के। तो यह भी कोमल पत्ते हैं। कोमल पत्तों को कमाल करनी है। क्या कमाल करनी है? अपने ईश्वरीय चरित्र के ऊपर सर्व को आकर्षित करना है। अपने ऊपर नहीं, चरित्र के ऊपर। ..."

 

 

 

22.10.1970/01

"...शक्ति वा शूरवीरता की सूरत ऐसी दिखाई दे जो कोई भी आसुरी लक्षण वाले हिम्मत न रख सकें। लेकिन अभी तक आसुरी लक्षण के साथ-साथ आसुरी लक्षण वाले कहाँ-कहाँ आकर्षित कर लेते हैं। जिसको रॉयल माया के रूप में आप कहते हो वायुमण्डल ऐसा था। वाइब्रेशन ऐसे थे वा समस्या ऐसी थी इसलिए हार हो गयी। कारण देना गोया अपने को कारागार में दाखिल करना है।..."

 

 

 

22.10.1970/02

"...अभी रूहानियत का समय है। अगर रूहानियत नहीं होगी तो भिन्न-भिन्न प्रकार की माया की रंगत में आ जायेंगे। इसलिए आज बापदादा फिर भी सूचना दे रहे हैं।..."

 

 

 

22.10.1970/03

"... आसुरी मर्यादाओं वा माया से बेपरवाह बनना है न कि ईश्वरीय मर्यादाओं से बेपरवाह बनना है। बेपरवाही का कुछ-कुछ प्रवाह वतन तक पहुँचता है। इसलिए आज बापदादा फिर से याद दिला रहे हैं। सम्पूर्णता को समीप लाना है। समस्याओं को दूर भगाना है और सम्पूर्णता को समीप लाना है। कहाँ सम्पूर्णता के बजाय समस्याओं को बहुत सामने रखते हैं। समस्याओं का सामना करें तो समस्या समाप्त हो जाये। सामना करना नहीं आता है तो एक समस्या से अनेक समस्यायें आ जाती हैं। पैदा हो और वहाँ ही ख़त्म कर दें तो वृद्धि न हो। समस्या को फौरन समाप्त कर देंगे तो फिर वंश पैदा नहीं होगा। अंश रहता है तो वंश होता है। अंश को ही ख़त्म कर देंगे तो वंश कहाँ से आएगा। तो समझा समस्या के बर्थ कण्ट्रोल करना है। ..."

 

 

 

 

22.10.1970/04

"...जैसे सूरत हर्षित रहती है वैसे आत्मा भी सदैव हर्षित रहे। इस नैचुरल गुण को आत्मा में लाना है। सदा हर्षित रहेंगे तो फिर माया की कोई आकर्षण नहीं होगी। यह बाप की गारंटी है। लेकिन वह तब होगा जब सदैव आत्मा को हर्षित रखेंगे। फिर बाप का काम है माया के आकर्षण से दूर रखना। यह गारंटी बाप आप से विशेष कर रहे हैं। क्योंकि जो आदि रत्न होते हैं उन्हों से आदिदेव का विशेष स्नेह होता है। तो आदि को अनादी बनाओ। जब अनादी बन जायेंगे तो फिर माया की आकर्षण नहीं होगी। समस्याएं सामने नहीं आयेंगी। जब बाप का स्नेह स्मृति में रहेगा तो सर्वशक्तिमान के स्नेह के आगे समस्य क्या है। कहाँ वह स्नेह और कहाँ समस्या। वह राई वह पहाड़, इतना फर्क है। तो अनादि रत्न बनने के लिए सर्वशक्तिमान की शक्ति और स्नेह को सदैव साथ रखना है। अपने को अकेला कभी भी नहीं समझो। साथी के बिना जीवन का एक सेकण्ड भी न हो। जो स्नेही साथी होते हैं वह अलग नहीं होते हैं। साथी को साथ न रखने से, अकेला होने से माया जीत लेती है।..."

 

 

 

 

23.10.1970/01

"...अगर बापदादा को सदैव साथी बनाओ तो जहाँ बापदादा साथ है वहाँ माया दूर से मूर्छित हो जाती है। बापदादा को अल्प समय के लिए साथी बनाते हैं इसलिए शक्ति की इतनी प्राप्ति नहीं होती है। सदैव बापदादा साथ हो तो सदैव बापदादा से मिलन मनाने में मगन हों। और जो मगन होता है उसकी लगन और कोई तरफ लग न सकें। शुरू-शुरू में बाप से बच्चों का क्या वायदा हुआ है? तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से रूह को रिझाऊं। यह अपना वायदा भूल जाते हो? अगर सारे दिनचर्या में हर कार्य बाप के साथ करो तो क्या माया डिस्टर्ब कर सकती है? बाप के साथ होंगे तो माया डिस्टर्ब नहीं करेगी। माया का डिस्ट्रकशन हो जायेगा। तो भल बाप के स्नेही बने हो लेकिन साथी नहीं बनाया है। हाथ पकड़ा है साथ नहीं लिया ही इसलिए माया द्वारा घात होता है। गलतियों का कारण है गफलत। गफ़लत गलतियां कराती है।..."

 

 

 

23.10.1970/02

"...समान बनने से ही समीप बनेंगे। जब आप स्वयं ऐसी स्थिति में रहेंगे तो माया क्या करेगी, माया स्वयं ख़त्म हो जाएगी। ..."

 

 

 

30.11.1970

"...सर्वशक्तिमान बाप को सर्व सम्बन्ध से अपना बनाया है। यही मास्टर सर्वशक्तिमान की शक्ति है। तो सर्वशक्तिमान को सर्व सम्बन्ध से अपना बनाया है? जब इतना बड़े से बड़ा प्रत्यक्ष प्रमाण है फिर क्यों नहीं अपने को जानते और मानते हो। यह प्रत्यक्ष प्रमाण सदैव सामने रहे तो मायाजीत बहुत सरल रीति बन सकते हो। ..."

 

 

 

05.12.1970/01

"...पास विद ऑनर अर्थात् संकल्प में भी फेल न हो ऐसे बने हो? कल समाचार सुना था कि जी हाँ का नारा बहुत अच्छा लगाया। ऐसी प्रतिज्ञा करने वाले पास विद ऑनर होने चाहिए। माया को चैलेंज है की प्रतिज्ञा करने वालों का खूब प्रैक्टिकल पेपर ले। सामना करने की शक्ति सदैव अपने में कायम रखना है। जो अष्ट शक्तियां सुनाई थी वह अपने में धारण की हैं। ज्ञानमूर्त, गुणमूर्त दोनों ही बने हो? माया को अच्छी तरह से सदाकाल के लिए विदाई दे चले हो? अपनी स्थूल विदाई के पहले माया को विदाई देनी है। माया भी बड़ी चतुर है। जैसे कोई-कोई जब शरीर छोड़ते हैं तो कभी-कभी साँस छिप जाता है। और समझते हैं कि फलाना मर गया, लेकिन छिपा हुआ सांस कभी-कभी फिर से चलने भी लगता है। वैसे माया अपना अति सूक्ष्म रूप भी धारण करती है। इसलिए अच्छी तरह से जैसे डॉक्टर लोग चेक करते हैं कि कहाँ श्वास छिपा हुआ तो नहीं है। ऐसे तीसरे नेत्र से अच्छी तरह से अपनी चेकिंग करनी है। ..."

 

 

 

05.12.1970/02

"...महाबली के आगे कोई माया का बल चल नहीं सकता। ऐसा निश्चय अपने में धारण करके जा रहे हो ना। रिजल्ट देखेंगे फिर बापदादा ऐसे विजयी रत्नों को एक अलौकिक माला पहनायेगे। ..."

 

 

 

 

09.12.1970

"...सामना माया से करना है न कि दैवी परिवार से। समाना क्या है? अपने पुराने संस्कारों को समाना है। नॉलेजफुल के साथ-साथ पावरफुल भी बनना है तब ही सर्विसएबुल बनेंगे। ..."

 

 

 

 

31.12.1970

"...व्यवहार करते शरीर निर्वाह और आत्म निर्वाह दोनों का बैलेंस हो। नहीं तो व्यवहार माया जाल बन जायेगा। ऐसी जाल जो जितना बढ़ाते जायेंगे उतना फंसते जायेंगे। ..."

माया की छाया से बचना जरा...


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