"मैं मास्टर सूर्य हूँ"


Avyakt BaapDada - 26.01.1971


"...वातावरण को बदलने के लिए

अपने को सदैव यह समझना चाहिए कि

मैं मास्टर सूर्य हूँ।

 

सूर्य का कर्त्तव्य क्या होता है?

एक तो रोशनी देना,

दूसरा किचड़े को खत्म करना।

तो सदैव यह समझना चाहिए कि

मेरी चलन रूपी किरणों से

यह दोनों कर्त्तव्य होते हैं।

 

सर्व आत्माओं को रोशनी भी मिले,

किचड़ा भी खत्म हो।

मानो, रोशनी मिलते किचड़ा खत्म न हो

तो समझो कि मेरी किरणों में पावर नहीं।

जैसे धूप तेज़ नहीं तो कीटाणु खत्म नहीं होंगे।

मेरे में पावर कम तो

ज्ञान रोशनी देगा

परन्तु पुराने संस्कारों रूपी कीटाणु

खत्म नहीं होंगे।

 

जितनी पावरफुल चीज

उतनी जल्दी खत्म।

पावर कम तो

समय बहुत लगेगा।

 

तो पावरफुल बनना है।

ऐसे नहीं समझो कि

पढ़ी-लिखी नहीं हूँ।

सृष्टि की नॉलेज पढ़ ली तो

उसमें सब आ जाता है।..."