16-04-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम्हें सतोप्रधान बनना है तो बाप को प्यार से याद करो, पारसनाथ शिवबाबा तुम्हें पारसपुरी का मालिक बनाने आये हैं''

प्रश्नः-

तुम बच्चे किस एक बात की धारणा से ही महिमा योग्य बन जायेंगे?

उत्तर:-

बहुत-बहुत निर्माण-चित बनो। किसी भी बात का अहंकार नहीं होना चाहिए। बहुत मीठा बनना है। अहंकार आया तो दुश्मन बन जाते हैं। ऊंच अथवा नींच, पवित्रता की बात पर बनते हैं। जब पवित्र हैं तो मान है, अपवित्र हैं तो सबको माथा टेकते हैं।



  1. ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं।
    1. बाप भी समझते हैं कि हम इन बच्चों को समझाते हैं।
    2. यह भी बच्चों को समझाया गया है कि भक्ति मार्ग में भिन्न-भिन्न नाम से अनेकानेक चित्र बना देते हैं।
      1. जैसे कि नेपाल में पारसनाथ को मानते हैं।
      2. उनका बहुत बड़ा मन्दिर है।
        1. परन्तु है कुछ भी नहीं।
        2. 4 दरवाजे हैं, 4 मूर्तियाँ हैं।
        3. चौथे में श्रीकृष्ण को रखा है।
        4. अब शायद कुछ बदली कर दिया हो।
      3. अब पारसनाथ तो जरूर शिवबाबा को ही कहेंगे।
        1. मनुष्यों को पारसबुद्धि भी वही बनाते हैं।
        2. तो पहले-पहले उनको यह समझाना है - ऊंच ते ऊंच है भगवान्, पीछे है सारी दुनिया।
        3. सूक्ष्मवतन की सृष्टि तो है नहीं।
        4. पीछे होते हैं लक्ष्मी-नारायण वा विष्णु।
  2. वास्तव में विष्णु का मन्दिर भी रांग है।
    1. विष्णु चतुर्भुज, चार भुजाओं वाला कोई मनुष्य तो होता नहीं।
    2. बाप समझाते हैं यह लक्ष्मी-नारायण हैं, जिनको इकट्ठा विष्णु के रूप में दिखाया है।
    3. लक्ष्मी-नारायण तो दोनों अलग-अलग हैं।
    4. सूक्ष्मवतन में विष्णु को 4 भुजायें दे दी हैं अर्थात् दोनों को मिलाकर चतुर्भुज कर दिया है, बाकी ऐसा कोई होता नहीं है।
    5. मन्दिर में जो चतुर्भुज दिखाते हैं - वह है सूक्ष्मवतन का। चतुर्भुज को शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि देते हैं।
      1. ऐसा कुछ है नहीं।
      2. चक्र भी तुम बच्चों को है।
      3. नेपाल में विष्णु का बड़ा चित्र क्षीर सागर में दिखाते हैं।
        1. पूजा के दिनों में थोड़ा दूध डाल देते हैं।
        2. बाप एक-एक बात अच्छी तरह समझाते हैं।
        3. ऐसे कोई भी विष्णु का अर्थ समझा न सके।
          1. जानते ही नहीं।
          2. यह तो भगवान् खुद समझाते हैं।
  3. भगवान् कहा जाता है शिवबाबा को।
    1. है तो एक ही परन्तु भक्ति मार्ग वालों ने नाम अनेक रख दिये हैं।
    2. तुम अभी अनेक नाम नहीं लेंगे।
    3. भक्ति मार्ग में बहुत धक्के खाते हैं।
      1. तुमने भी खाये।
    4. अभी अगर तुम मन्दिर आदि देखेंगे तो उस पर समझायेंगे कि ऊंचे ते ऊंच है भगवान्, सुप्रीम सोल, निराकार परमपिता परमात्मा।
    5. आत्मा शरीर द्वारा कहती है - ओ परमपिता।
    6. उनकी फिर महिमा भी है ज्ञान का सागर, सुख का सागर।
    7. भक्ति मार्ग में एक के अनेक चित्र हैं।
      1. ज्ञान मार्ग में तो ज्ञान सागर एक ही है।
      2. वही पतित-पावन, सर्व के सद्गति दाता हैं।
      3. तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है।
      4. ऊंच ते ऊंच परमात्मा है, उनके लिए ही गायन है सिमर-सिमर सुख पाओ अर्थात् एक बाप को ही याद करो अथवा सिमरण करते रहो, तो कलह क्लेष मिटे सब तन के, फिर जीवनमुक्ति पद पाओ।
  4. यह जीवन-मुक्ति है ना।
    1. बाप से यह सुख का वर्सा मिलता है।
    2. अकेले यह तो नहीं पायेंगे।
    3. जरूर राजधानी होगी ना।
      1. गोया बाप राजधानी स्थापन कर रहे हैं।
      2. सतयुग में राजा, रानी, प्रजा सब होते हैं।
  5. तुम ज्ञान प्राप्त कर रहे हो, तो जाकर बड़े कुल में जन्म लेंगे।
    1. बहुत सुख मिलता है।
    2. जब वह स्थापना हो जाती है तो छी-छी आत्मायें सजायें खाकर वापिस चली जाती हैं।
      1. अपने-अपने सेक्शन में जाकर ठहरेंगी।
      2. इतनी सब आत्मायें आयेंगी फिर वृद्धि को पाती रहेंगी।
      3. यह बुद्धि में रहना चाहिए कि ऊपर से कैसे आते हैं।
      4. ऐसे तो नहीं दो पत्ते के बदले 10 पत्ते इकट्ठे आना चाहिए।
        1. नहीं, कायदेसिर पत्ते निकलते हैं।
        2. यह बहुत बड़ा झाड़ है।
        3. दिखाते हैं एक दिन में लाखों की वृद्धि हो जाती है।
  6. पहले समझाना है - ऊंच ते ऊंच है भगवान्, पतित-पावन, दु:ख हर्ता सुख कर्ता भी वही है।
    1. जो भी पार्टधारी दु:खी होते हैं, उन सबको आकर सुख देते हैं।
      1. दु:ख देने वाला है रावण।
      2. मनुष्यों को यह मालूम ही नहीं कि बाप आये हैं जो आकर समझें।
      3. बहुत तो समझते-समझते फिर थिरक जाते हैं।
      4. (बाहर निकल जाते हैं) जैसे स्नान करते-करते पांव फिसल जाता है तो पानी अन्दर घुस जाता है।
        1. बाबा तो अनुभवी है ना।
  7. यह तो विषय सागर है।
    1. बाबा तुमको क्षीर सागर तरफ ले जाते हैं।
    2. परन्तु माया रूपी ग्राह अच्छे-अच्छे महारथियों को भी हप कर लेती है
    3. जीते जी बाप की गोद से मरकर रावण की गोद में चले जाते हैं अर्थात् मर पड़ते हैं।
    4. तुम बच्चों की बुद्धि में है ऊंचे ते ऊंच बाप फिर रचना रचते हैं।
  8. हिस्ट्री-जॉग्राफी सूक्ष्मवतन की तो है नहीं।
    1. भल तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो, साक्षात्कार करते हो।
      1. वहाँ चतुर्भुज देखते हो।
        1. चित्रों में है ना।
        2. तो वह बुद्धि में बैठा हुआ है तो जरूर साक्षात्कार होगा।
        3. परन्तु ऐसी कोई चीज़ है नहीं।
        4. यह भक्ति मार्ग के चित्र हैं।
  9. अभी तक भक्ति मार्ग चल रहा है।
    1. भक्ति मार्ग पूरा होगा तो फिर यह चित्र रहेंगे नहीं।
    2. स्वर्ग में यह सब बातें भूल जायेंगी।
    3. अब बुद्धि में है कि यह लक्ष्मी-नारायण दो रूप हैं चतुर्भुज के।
    4. लक्ष्मी-नारायण की पूजा सो चतुर्भुज की पूजा।
    5. लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर या चतुर्भुज का मन्दिर, बात एक ही है।
      1. इन दोनों का ज्ञान और किसको भी नहीं है।
      2. तुम जानते हो इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य है।
        1. विष्णु का राज्य तो नहीं कहेंगे।
        2. यह पालना भी करते हैं।
        3. सारे विश्व के मालिक हैं तो विश्व की पालना करते हैं।
  10. शिव भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ।
    1. अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे।
    2. डिटेल में समझाना पड़े।
      1. बोलो, यह भी है गीता।
      2. सिर्फ गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है।
      3. यह तो रांग है, सबकी ग्लानि कर दी है इसलिए भारत तमोप्रधान बन पड़ा है।
  11. अब है कलियुगी दुनिया का अन्त, इनको कहा जाता है तमोप्रधान आइरन एज।
    1. जो सतोप्रधान थे, उन्होंने ही 84 जन्म लिए हैं।
    2. जन्म-मरण में तो जरूर आना है।
    3. जब पूरे 84 जन्म लेते हैं तब फिर बाप को आना पड़ता है - पहले नम्बर में।
    4. एक की बात नहीं है।
    5. इनकी तो सारी राजधानी थी ना, फिर जरूर होनी चाहिए।
    6. बाप सबके लिए कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो तो योग अग्नि से पाप कट जायेंगे।
    7. काम चिता पर बैठ सब सांवरे हो गये हैं।
    8. अब सांवरे से गोरा कैसे बनें?
    9. सो तो बाप ही सिखलाते हैं।
    10. श्रीकृष्ण की आत्मा जरूर भिन्न-भिन्न नाम रूप लेकर आती होगी।
      1. जो लक्ष्मी-नारायण थे, उनको ही 84 जन्मों के बाद फिर वह बनना है।
      2. तो उनके बहुत जन्मों के अन्त में बाप आकर प्रवेश करते हैं।
      3. फिर वह सतोप्रधान विश्व के मालिक बनते हैं।
      4. तुम्हारे में पारसनाथ को पूजते हैं, शिव को भी पूजते हैं।
      5. जरूर उन्हों को शिव ने ही ऐसा पारसनाथ बनाया होगा।
      6. टीचर तो चाहिए ना।
      7. वह है ज्ञान सागर।
    11. अब सतोप्रधान पारसनाथ बनना है तो बाप को बहुत प्यार से याद करो।
      1. वही सबके दु:ख हरने वाला है।
      2. बाप तो सुख देने वाला है।
      3. यह है कांटों का जंगल।
      4. बाप आये हैं फूलों का बगीचा बनाने।
      5. बाप अपना परिचय देते हैं।
      6. मैं इस साधारण बुढ़े तन में प्रवेश करता हूँ, जो अपने जन्मों को नहीं जानते हैं।
  12. भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ।
    1. तो यह ईश्वरीय युनिवर्सिटी ठहरी।
    2. एम ऑब्जेक्ट है ही राजा-रानी बनने की तो जरूर प्रजा भी बनेगी।
    3. मनुष्य योग-योग बहुत करते हैं।
    4. निवृत्ति मार्ग वाले तो अनेक हठयोग करते हैं।
    5. वह राजयोग सिखला न सकें।
    6. बाप का है ही एक प्रकार का योग।
    7. सिर्फ कहते हैं अपने को आत्मा समझकर मुझ बाप को याद करो।
  13. 84 जन्म पूरे हुए, अब वापिस घर जाना है।
    1. अब पावन बनना है।
    2. एक बाप को याद करो, बाकी सबको छोड़ो।
    3. भक्ति मार्ग में तुम गाते थे कि आप आयेंगे तो हम एक संग जोड़ेंगे।
    4. तो जरूर उनसे वर्सा मिला था ना।
    5. आधाकल्प है स्वर्ग, फिर है नर्क।
    6. रावण राज्य शुरू होता है।
    7. ऐसे-ऐसे समझाना है।
  14. अपने को देह न समझो।
    1. आत्मा अविनाशी है।
    2. आत्मा में ही सारा पार्ट नूँधा हुआ है, जो तुम बजाते हो।
    3. अब शिवबाबा को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा।
    4. संन्यासी पवित्र बनते हैं तो उनका कितना मान होता है।
      1. सब माथा झुकाते हैं।
      2. पवित्रता की बात पर ही ऊंच-नींच बनते हैं।
      3. देवतायें हैं बिल्कुल ऊंच।
      4. संन्यासी फिर एक जन्म पवित्र बनते हैं, फिर दूसरा जन्म तो विकार से ही लेते हैं।
      5. देवतायें होते ही हैं सतयुग में।
  15. अब तुम पढ़ते हो फिर पढ़ाते भी हो।
    1. कोई पढ़ते हैं लेकिन दूसरों को समझा नहीं सकते हैं क्योंकि धारणा नहीं होती है।
    2. बाबा कहेंगे तुम्हारी तकदीर में नहीं है तो बाप क्या करे।
    3. बाप यदि सबको आशीर्वाद बैठ करें तो सब स्कॉलरशिप ले लेवें।
    4. वह तो भक्ति मार्ग में आशीर्वाद करते हैं।
    5. संन्यासी भी ऐसे करते हैं।
      1. उनको जाकर कहेंगे मुझे बच्चा हो, आशीर्वाद करो।
      2. अच्छा, तुमको बच्चा होगा।
      3. बच्ची हुई तो कहेंगे भावी।
      4. बच्चा हुआ तो वाह-वाह कर चरणों पर गिरते रहेंगे।
      5. अच्छा, अगर फिर मरा तो रोने-पीटने, गुरू को गाली देने लग पड़ेंगे।
      6. गुरू कहेगा यह भावी थी।
        1. कहेंगे, पहले क्यों नहीं बताया।
        2. कोई मरे हुए से जिंदा हो जाता है तो यह भी भावी ही कहेंगे।
        3. वह भी ड्रामा में नूँध है।
        4. आत्मा कहाँ छिप जाती है।
        5. डॉक्टर लोग भी समझते हैं यह मरा पड़ा है, फिर जिंदा हो जाता है।
        6. चिता पर चढ़े हुए भी उठ पड़ते हैं।
        7. कोई एक ने किसको माना तो उनके पीछ ढ़ेर पड़ जाते हैं।
  16. तुम बच्चों को तो बहुत निर्माणचित होकर चलना है।
    1. अहंकार जरा भी न रहे।
    2. आजकल किसको जरा भी अहंकार दिखाया तो दुश्मनी बढ़ी।
    3. बहुत मीठा होकर चलना है।
    4. नेपाल में भी आवाज़ निकलेगा।
  17. अभी तुम बच्चों की महिमा का समय है नहीं।
    1. नहीं तो उनके अखाड़े उड़ जायें।
    2. बड़े-बड़े जग जायें और सभा में बैठ सुनायें, तो उनके पिछाड़ी ढेर आ जायें।
    3. कोई भी एम.पी. बैठ तुम्हारी महिमा करे कि भारत का राजयोग इन ब्रह्माकुमार-कुमारियों के सिवाए कोई सिखला नहीं सकते, ऐसा अभी तक कोई निकला नहीं है।
  18. बच्चों को बहुत होशियार, चमत्कारी बनना है।
    1. फलाने-फलाने भाषण कैसे करते हैं, सीखना चाहिए।
    2. सर्विस करने की युक्ति बाप सिखलाते हैं।
    3. बाबा ने मुरली जो चलाई, एक्यूरेट कल्प-कल्प ऐसे चलाई होगी।
    4. ड्रामा में नूँध है।
      1. प्रश्न नहीं उठ सकता है - ऐसे क्यों?
      2. ड्रामा अनुसार जो समझाना था वह समझाया।
      3. समझाता रहता हूँ।
      4. बाकी लोग तो अथाह प्रश्न करेंगे।
      5. बोलो, पहले मनमनाभव हो जाओ।
      6. बाप को जानने से तुम सब कुछ जान जायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सर्विस की युक्ति सीखकर बहुत-बहुत होशियार और चमत्कारी बनना है। धारणा कर फिर दूसरों को करानी है। पढ़ाई से अपनी तकदीर आपेही बनानी है।

2) किसी भी बात में जरा भी अहंकार नहीं दिखाना है, बहुत-बहुत मीठा और निर्माणचित बनना है। माया रूपी ग्राह से अपनी सम्भाल करनी है।

( All Blessings of 2021-22)

बीती को श्रेष्ठ विधि से बीती कर यादगार स्वरूप बनाने वाले पास विद आनर भव

“पास्ट इज़ पास्ट'' तो होना ही है। समय और दृश्य सब पास हो जायेंगे लेकिन पास विद आनर बनकर हर संकल्प वा समय को पास करो अर्थात् बीती को ऐसी श्रेष्ठ विधि से बीती करो, जो बीती को स्मृति में लाते ही वाह, वाह के बोल दिल से निकलें। अन्य आत्मायें आपकी बीती हुई स्टोरी से पाठ पढ़ें। आपकी बीती, यादगार-स्वरूप बन जाए तो कीर्तन अर्थात् कीर्ति गाते रहेंगे।

    (All Slogans of 2021-22)

    स्व कल्याण का श्रेष्ठ प्लैन बनाओ तब विश्व सेवा में सकाश मिलेगी।

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