प्रश्नः-
बाबा बच्चों की उन्नति के लिए सदा कौन-सी एक राय देते हैं?
उत्तर:-
मीठे बच्चे, कभी भी आपस में संसारी झरमुई झगमुई की बातें नहीं करो।
कोई सुनाता है तो सुनी-अनसुनी कर दो।
अच्छे बच्चे अपने सर्विस की ड्युटी पूरी कर बाबा की याद में मस्त रहते हैं।
परन्तु कई बच्चे फालतू व्यर्थ बातें बहुत खुशी से सुनते-सुनाते हैं,
इसमें बहुत समय बरबाद जाता है, फिर उन्नति नहीं होती।
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- ओम् शान्ति। डबल ओम् शान्ति कहें तो भी राइट है।
- बच्चों को अर्थ तो समझा दिया है।
- मैं हूँ आत्मा शान्त स्वरूप।
- जब मेरा धर्म है ही शान्त तो फिर जंगलों आदि में भटकने से शान्ति नहीं मिल सकती है।
- बाप कहते हैं मैं भी शान्त स्वरूप हूँ।
- यह तो बहुत सहज है परन्तु माया की लड़ाई होने के कारण थोड़ी डिफीकल्टी होती है।
- यह सब बच्चे जानते हैं कि सिवाए बेहद के बाप के यह ज्ञान कोई दे न सके।
- ज्ञान सागर एक ही बाप है।
- देहधारियों को ज्ञान का सागर कभी नहीं कहा जा सकता।
- रचयिता ही रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं।
- वह तुम बच्चों को मिल रहा है।
- कई अच्छे अनन्य बच्चे भी भूल जाते हैं क्योंकि बाप की याद पारे मिसल है।
- स्कूल में तो जरूर नम्बरवार होंगे ना।
- नम्बर हमेशा स्कूल के गिने जाते हैं।
- सतयुग में कभी नम्बर नहीं गिना जाता।
- यह स्कूल है, इसे समझने में भी बड़ी बुद्धि चाहिए।
- आधा-कल्प होती है भक्ति, फिर भक्ति के बाद ज्ञान सागर आते हैं ज्ञान देने।
- भक्ति मार्ग वाले कब ज्ञान दे न सकें क्योंकि सब देहधारी हैं।
- ऐसे नहीं कहेंगे - शिवबाबा भक्ति करते हैं।
- वह किसकी भक्ति करेंगे!
- एक ही बाप है, जिसको देह नहीं है।
- वह किसकी भक्ति नहीं करते।
- बाकी जो देहधारी हैं, वह सब भक्ति करते हैं क्योंकि रचना है ना।
- रचयिता है एक बाप।
- बाकी इन आंखों से जो भी देखा जाता है, चित्र आदि, वह सब हैं रचना।
- यह बातें घड़ी-घड़ी भूल जाती हैं।
- बाप समझाते हैं तुमको बेहद का वर्सा बाप बिगर तो मिल न सके।
- बैकुण्ठ की बादशाही तो तुमको मिलती है।
- 5 हज़ार वर्ष पहले भारत में इन्हों का राज्य था।
- 2500 वर्ष सूर्यवंशी-चन्द्रवंशियों की राजधानी चली।
- तुम बच्चे ही जानते हो यह तो कल की बात है।
- सिवाए बाप के और कोई बता न सके।
- पतित-पावन वह बाप ही है।
- समझाने में भी बड़ी मेहनत लगती है।
- बाप खुद कहते हैं कोटों में कोई समझेंगे।
- यह चक्र भी समझाया गया है।
- यह सारी दुनिया के लिए नॉलेज है।
- सीढ़ी भी बहुत अच्छी है, फिर भी कोई गुर्र-गुर्र करते हैं।
- बाबा ने समझाया है शादी के लिए हाल बनाते हैं, उनको भी समझाकर दृष्टि दो।
- आगे चलकर सबको यह बातें पसन्द आयेंगी।
- तुम बच्चों को समझाना है।
- बाबा तो किसके पास नहीं जायेंगे।
- भगवानुवाच - जो पुजारी हैं उनको कभी पूज्य नहीं कह सकते।
- कलियुग में एक भी कोई पवित्र हो न सके।
- पूज्य देवी-देवता धर्म की स्थापना भी सबसे ऊंच ते ऊंच जो पूज्य हैं वही करते हैं।
- आधाकल्प है पूज्य फिर आधाकल्प पुजारी होते हैं।
- इस बाबा ने ढेर गुरू किये, अभी समझते हैं गुरू करना तो भक्ति मार्ग था।
- अभी सतगुरू मिला है, जो पूज्य बनाते हैं।
- सिर्फ एक को नहीं, सबको बनाते हैं।
- आत्मायें सबकी पूज्य सतोप्रधान बन जाती हैं।
- अब तो तमोप्रधान, पुजारी हैं।
- यह प्वाइंट्स समझने की हैं।
- बाबा कहते हैं कलियुग में एक भी पवित्र पूज्य नहीं हो सकता है।
- सब विकार से जन्म लेते हैं।
- रावण राज्य है।
- यह लक्ष्मी-नारायण भी पुनर्जन्म लेते हैं परन्तु वह हैं पूज्य क्योंकि वहाँ रावण ही नहीं।
- अक्षर कहते हैं परन्तु रामराज्य कब और रावण राज्य कब होता है, यह कुछ भी पता नहीं है।
- इस समय देखो कितनी सभायें है।
- फलानी सभा, फलानी सभा।
- कहाँ से कुछ मिला तो एक को छोड़ दूसरे तरफ चले जाते हैं।
- तुम इस समय पारसबुद्धि बन रहे हो।
- फिर उसमें भी कोई 20 परसेन्ट बने हैं, कोई 50 परसेन्ट बने हैं।
- बाप ने समझाया है यह राजधानी स्थापन हो रही है।
- अभी ऊपर से भी बची हुई आत्मायें आ रही हैं।
- सर्कस में कोई अच्छे-अच्छे एक्टर्स भी होते हैं तो कोई हल्के भी होते हैं।
- यह है बेहद की बात।
- बच्चों को कितना अच्छी रीति समझाया जाता है।
- यहाँ तुम बच्चे आते हो रिफ्रेश होने के लिए, न कि हवा खाने के लिए।
- कोई पत्थरबुद्धि को ले आते हैं, तो वह दुनियावी वायब्रेशन में रहते हैं।
- अभी तुम बच्चे बाप की श्रीमत से माया पर विजय प्राप्त करते हो।
- माया घड़ी-घड़ी तुम्हारी बुद्धि को भगा देती है।
- यहाँ तो बाबा कशिश करते हैं।
- बाबा कभी भी कोई उल्टी बात नहीं करेंगे।
- बाप तो सत्य है ना।
- तुम यहाँ सत के संग में बैठे हो।
- दूसरे सब असत संग में हैं।
- उनको सतसंग कहना भी बड़ी भूल है।
- तुम जानते हो सत एक ही बाप है।
- मनुष्य सत परमात्मा की पूजा करते हैं लेकिन यह पता नहीं कि हम किसकी पूजा करते हैं।
- तो उनको कहेंगे अन्धश्रधा।
- आगाखां के देखो कितने फालोअर्स हैं।
- वे जब कहाँ जाते हैं तो उनको बहुत भेंटा मिलती है।
- हीरों में वज़न करते हैं।
- नहीं तो हीरों में वज़न कभी किया नहीं जा सकता।
- सतयुग में हीरे जवाहर तो तुम्हारे लिए जैसे पत्थर हैं जो मकानों में लगाते हैं।
- यहाँ कोई ऐसा नहीं है, जिसको हीरों का दान मिले।
- मनुष्यों के पास बहुत पैसे हैं इसलिए दान करते हैं।
- परन्तु वह दान पाप आत्माओं को करने कारण देने वाले पर भी चढ़ता है।
- अजामिल जैसी पाप आत्मायें बन पड़ते हैं।
- यह भगवान् बैठ समझाते हैं, न कि मनुष्य इसलिए बाबा ने कहा था तुम्हारे जो चित्र हैं उन पर हमेशा लिखा हुआ हो - भगवानुवाच।
- हमेशा लिखो त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच।
- सिर्फ भगवान् कहने से भी मनुष्य मूँझेंगे।
- भगवान् तो है निराकार, इसलिए त्रिमूर्ति जरूर लिखना है।
- उसमें सिर्फ शिवबाबा नहीं है।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तीनों ही नाम हैं।
- ब्रह्मा देवता नम:, फिर उनको गुरू भी कहते हैं।
- शिव-शंकर एक कह देते हैं।
- अब शंकर कैसे ज्ञान देंगे।
- अमरकथा भी है।
- तुम सब पार्वतियाँ हों।
- बाप तुम सब बच्चों को आत्मा समझ ज्ञान देते हैं।
- भक्ति का फल भगवान् ही देते हैं।
- एक शिवबाबा है, ईश्वर भगवान् आदि भी नहीं।
- शिवबाबा अक्षर बहुत मीठा है।
- बाप खुद कहते हैं मीठे बच्चों, तो बाबा हुआ ना।
- बाप समझाते हैं - आत्माओं में ही संस्कार भरे जाते हैं।
- आत्मा निर्लेप नहीं है।
- निर्लेंप होती तो पतित क्यों बनती!
- जरूर लेप-छेप लगता है तब तो पतित बनती है।
- कहते भी हैं भ्रष्टाचारी।
- देवतायें हैं श्रेष्ठाचारी।
- उन्हों की महिमा गाते हैं आप सर्वगुण सम्पन्न हो, हम नींच पापी हैं इसलिए अपने को देवता कह नहीं सकते हैं।
- अब बाप बैठ मनुष्यों को देवता बनाते हैं।
- गुरूनानक के भी ग्रंथ में महिमा है।
- सिक्ख लोग कहते हैं सत् श्री अकाल।
- जो अकाल मूर्त है, वही सच्चा सतगुरू है।
- तो उस एक को ही मानना चाहिए।
- कहते एक हैं, करते फिर दूसरा हैं।
- अर्थ कुछ भी जानते नहीं हैं।
- अब बाप जो सतगुरू है, अकाल है, वह खुद बैठ समझाते हैं।
- तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं।
- सम्मुख बैठे हैं तो भी कुछ नहीं समझते हैं।
- कई यहाँ से निकले और खलास।
- बाबा मना करते हैं - बच्चे, कभी भी संसारी झरमुई झगमुई की बातें नहीं सुनो।
- कई तो बहुत खुशी से ऐसी बातें सुनते और सुनाते हैं।
- बाप के महावाक्य भूल जाते हैं।
- वास्तव में जो अच्छे बच्चे हैं, वह अपनी सर्विस की ड्युटी बजाकर फिर अपनी मस्ती में रहते हैं।
- बाबा ने समझाया है श्रीकृष्ण और क्रिश्चियन का बड़ा अच्छा सम्बन्ध है।
- श्रीकृष्ण की राजाई होती है ना।
- लक्ष्मी-नारायण बाद में नाम पड़ता है।
- बैकुण्ठ कहने से झट श्रीकृष्ण याद आयेगा।
- लक्ष्मी-नारायण भी याद नहीं आते हैं क्योंकि छोटा बच्चा श्रीकृष्ण है।
- छोटा बच्चा पवित्र होता है।
- तुमने यह भी साक्षात्कार किया है - बच्चे कैसे जन्म लेते हैं, नर्स खड़ी रहती है, झट उठाया, सम्भाला।
- बचपन, युवा, वृद्ध अलग-अलग पार्ट बजता है, जो हुआ सो ड्रामा।
- उनमें कुछ भी संकल्प नहीं चलते।
- यह तो ड्रामा बना हुआ है ना।
- हमारा भी पार्ट बज रहा है ड्रामा के प्लैन अनुसार।
- माया की भी प्रवेशता होती है और बाप की भी प्रवेशता होती है।
- कोई बाप की मत पर चलते हैं, कोई रावण की मत पर।
- रावण क्या चीज़ है?
- कभी देखा है क्या?
- सिर्फ चित्र देखते हो।
- शिवबाबा का तो फिर यह रूप है।
- रावण का क्या रूप है!
- 5 विकार रूपी भूत जब आकर प्रवेश करते हैं तब रावण कहा जाता है।
- यह है भूतों की दुनिया, असुरों की दुनिया।
- तुम जानते हो हमारी आत्मा अब सुधरती जा रही है।
- यहाँ तो शरीर भी आसुरी हैं।
- आत्मा सुधरते-सुधरते पावन हो जायेगी।
- फिर यह खल उतार देंगे।
- फिर तुमको सतोप्रधान खल (शरीर) मिल जायेगी।
- कंचन काया मिलेगी।
- सो तब जब आत्मा भी कंचन हो।
- सोना कंचन हो तो जेवर भी कंचन बनेगा।
- सोने में खाद भी डालते हैं।
- अब तुम बच्चों की बुद्धि में आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज चक्कर लगाती रहती है।
- मनुष्य कुछ भी नहीं जानते हैं।
- कहते हैं ऋषि-मुनि सब नेती-नेती कर चले गये।
- हम कहते हैं इन लक्ष्मी-नारायण से पूछो तो यह भी नेती-नेती करेंगे।
- परन्तु इनसे पूछा ही नहीं जाता है।
- पूछेंगे कौन?
- पूछा जाता है गुरू लोगों से।
- तुम उनसे यह प्रश्न पूछ सकते हो।
- तुम समझाने के लिए कितना माथा मारते हो।
- गला खराब हो जाता है।
- बाप तो बच्चों को ही सुनायेंगे ना, जिन्होंने समझा है।
- बाकी औरों के साथ फालतू थोड़ेही माथा लगायेंगे। अच्छा!
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धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सर्विस की ड्युटी पूरी कर फिर अपनी मस्ती में रहना है। व्यर्थ की बातें सुननी वा सुनानी नहीं है। एक बाप के महावाक्य ही स्मृति में रखने हैं। उन्हें भूलना नहीं है।
2) सदा खुशी में रहने के लिए रचता और रचना की नॉलेज बुद्धि में चक्कर लगाती रहे अर्थात् उसका ही सिमरण होता रहे। किसी भी बात में संकल्प न चले, उसके लिए ड्रामा को अच्छी रीति समझकर पार्ट बजाना है।
( All Blessings of 2021-22)
मैं पन को “बाबा'' में समा देने वाले निरन्तर योगी, सहजयोगी भव
जिन बच्चों का बाप से हर श्वांस में प्यार है, हर श्वांस में बाबा-बाबा है। उन्हें योग की मेहनत नहीं करनी पड़ती है। याद का प्रूफ है - कभी मुख से “मैं'' शब्द नहीं निकल सकता। बाबा-बाबा ही निकलेगा। “मैं पन'' बाबा में समा जाए। बाबा बैंकबोन है, बाबा ने कराया, बाबा सदा साथ है, तुम्हीं साथ रहना, खाना, चलना, फिरना...यह इमर्ज रूप में स्मृति रहे तब कहेंगे सहजयोगी।
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