“मीठे बच्चे - इस पाठशाला में आने से तुम्हें प्रत्यक्षफल की प्राप्ति होती है, एक-एक ज्ञान रत्न लाखों की मिलकियत है, जो बाप देते हैं''
प्रश्नः-
बाबा जो नशा चढ़ाते हैं, वह हल्का क्यों हो जाता है? नशा सदा चढ़ा रहे उसकी युक्ति क्या है?
उत्तर:-
नशा हल्का तब होता है जब बाहर जाकर कुटुम्ब परिवार वालों का मुख देखते हो।
नष्टोमोहा नहीं बने हो।
नशा सदा चढ़ा रहे उसके लिए बाप से रूहरिहान करना सीखो।
बाबा, हम आपके थे, आपने हमें स्वर्ग में भेजा, हमने 21 जन्म सुख भोगा फिर दु:खी हुए।
अब हम फिर से सुख का वर्सा लेने आये हैं।
नष्टोमोहा बनो तो नशा चढ़ा रहे।
गीत:-मरना तेरी गली में...
ओम् शान्ति।
यह किसके बोल सुने?
गोप गोपियों के।
किसके लिए कहते हैं?
परमपिता परमात्मा शिवबाबा के लिए।
नाम तो जरूर चाहिए ना।
कहते हैं - बाबा, आपके गले का हार बनने के लिये जीते जी हम आपका बनते हैं।
आपको ही याद करने से हम आपके गले का हार बनेंगे।
रुद्र माला तो प्रसिद्ध है।
बाप ने समझाया है सब आत्मायें रुद्र की माला है।
यह रूहानी झाड़ है।
वह है जीनालॉजिकल मनुष्यों का झाड़,
यह है आत्माओं का झाड़।
झाड़ में सेक्शन भी हैं।
देवी-देवताओं का सेक्शन, इस्लामियों का सेक्शन, बौद्धियों का सेक्शन।
यह बातें और कोई समझा नहीं सकते।
गीता का भगवान् ही सुनाते हैं।
वही जन्म-मरण रहित है।
उनको अजन्मा नहीं कह सकते।
सिर्फ जन्म-मरण में आने वाला नहीं है।
उनका स्थूल वा सूक्ष्म शरीर नहीं है।
मन्दिरों में भी शिवलिंग को ही पूजते हैं,
उनको ही परमात्मा कहते हैं।
देवताओं के आगे ही जाकर महिमा गाते हैं।
ब्रह्मा परमात्माए नम: कभी नहीं कहेंगे।
शिव को ही हमेशा परमात्मा समझते हैं।
शिव परमात्मा नम: कहेंगे।
वह है मूलवतन, वह सूक्ष्मवतन और यह है स्थूल वतन।
अभी तुम बच्चे जानते हो कि यहाँ वह ज्ञान नहीं कि परमात्मा सर्वव्यापी है।
यदि इनमें भी परमात्मा हो तो फिर इनको परमात्मा नम: कहा जाए।
शरीर में होते परमात्मा नम: नहीं कहते।
वास्तव में अक्षर ही है महान् आत्मा, पुण्य आत्मा, पाप आत्मा....।
महान् परमात्मा नहीं कहा जाता।
पुण्य परमात्मा वा पाप परमात्मा अक्षर भी नहीं है।
यह तो समझने की बातें है ना।
सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो कि इस पाठशाला में आने से प्रत्यक्षफल देने वाली प्राप्ति होती है।
इस पढ़ाई से हम भविष्य में देवी-देवता बनेंगे और कोई ऐसा कह नहीं सकते।
मनुष्य से देवता तो तुम बनते हो।
देवताओं में प्रसिद्ध हैं लक्ष्मी-नारायण इसलिए सत्य नारायण की कथा कहते हैं।
नारायण के साथ लक्ष्मी तो जरूर होगी।
सत राम की कथा नहीं कहते।
सत नारायण की कथा कहते हैं।
अच्छा, उससे क्या होगा?
नर से नारायण बनेंगे।
बैरिस्टर द्वारा बैरिस्टर की कथा सुन बैरिस्टर बनेंगे।
यहाँ तुम आते ही हो भविष्य 21 जन्मों की प्राप्ति के लिए।
भविष्य 21 जन्मों की प्राप्ति भी तब होती है जब संगमयुग होता है।
तुम जानते हो हम आये हैं बाप से सतयुगी राजधानी का वर्सा लेने।
लेकिन पहले तो यह पक्का निश्चय चाहिए कि शिवबाबा हमारा बाबा है।
इस ब्रह्मा का भी वह बाबा है।
तो बी.के. का दादा हुआ।
यह बाप कहते हैं यह मेरी प्रापर्टी नहीं है।
दादा की प्रापर्टी तुमको मिलती है।
शिव-बाबा के पास ज्ञान रत्नों का धन है।
एक-एक रत्न लाखों की मिलकियत है।
इसकी कीमत इतनी भारी है जो 21 जन्म के लिए राज्य भाग्य कोई के स्वप्न में भी नहीं होगा।
लक्ष्मी-नारायण आदि की पूजा तो भल करते आये हैं परन्तु यह किसको पता नहीं कि इन्होंने यह पद कैसे पाया?
सतयुग की आयु लाखों वर्ष कह दी है इसलिए कुछ समझ नहीं सकते हैं।
अभी तुम जानते हो उन्हों को राज्य किये 5 हजार वर्ष हुए।
फिर एक संवत से शुरू हुई कहानी कही जाती है।
लांग-लांग एगो........ इस भारत में ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
भारत को बहिश्त, स्वर्ग कहा जाता है।
यह किसकी बुद्धि में नहीं है।
अभी तुम बच्चे जानते हो कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है।
इन शास्त्रों में जो लिखा है यह सब भी ड्रामा में नूंध है।
इन्हें सुनने से परिणाम कुछ भी नहीं निकला।
कितने शादमाने करते हैं।
जगत अम्बा है तो एक ही परन्तु उनकी मूर्तियां कितनी बनाते हैं।
तो जगत अम्बा सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है।
बाकी 8-10 भुजायें तो हैं नहीं।
बाप कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग की बड़ी सामग्री है।
ज्ञान में तो यह कुछ नहीं है, चुप रहना है।
बाप को याद करना है।
ऐसी बहुत बच्चियां हैं जिन्होंने कभी देखा भी नहीं।
लिखती हैं बाबा आप हमको पहचानते नहीं हो लेकिन मैं अच्छी रीति जानती हूँ।
आप वही बाबा हो, हम आपसे वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे।
घर बैठे भी बहुतों को साक्षात्कार होते हैं।
भल साक्षात्कार न भी हो तो भी लिखती रहती हैं।
याद में एकदम लवलीन हो जाती हैं।
बाप ही सद्गति दाता है, उनको कितना प्यार करना चाहिए।
माँ-बाप से बच्चे एकदम लिपट जाते हैं क्योंकि माँ-बाप बच्चों को सुख देते हैं।
लेकिन आजकल के माँ-बाप कोई सुख नहीं देते हैं और ही विकारों में फंसा देते हैं।
बाप कहते हैं - पास्ट इज़ पास्ट।
अब तुमको शिक्षा मिलती है - बच्चे, काम कटारी की बातें छोड़ पवित्र बनो क्योंकि अभी तुम्हें कृष्णपुरी में चलना है।
श्रीकृष्ण का राज्य है ही सतयुग में।
मनुष्यों ने श्रीकृष्ण को द्वापर में दिखा दिया है।
ऐसे थोड़ेही सतयुग का प्रिन्स द्वापर में आकर गीता सुनायेंगे।
उनको तो श्री नारायण बन सतयुग में राज्य करना है।
भगवानुवाच - इस समय सभी मनुष्यमात्र आसुरी स्वभाव वाले हैं।
उनको दैवी स्वभाव वाला बनाने गीता का भगवान् आते हैं।
उस बाप के बदले बच्चे का नाम लिख दिया है जिस बच्चे को फिर द्वापर में ले आये हैं।
यह भी बड़ी भूल है।
फिर तो यादव और पाण्डव सिद्ध न हों।
तो बाप कहते हैं - बच्चे, तुम तो ऊंच दैवी कुल के थे फिर तुम्हारा यह हाल क्यों हुआ है?
अब फिर तुमको देवता बनाता हूँ।
मनुष्य, मनुष्य को स्वर्ग का राजा नहीं बना सकते।
मनुष्य थोड़ेही स्वर्ग की स्थापना करेंगे।
आत्मा को परमात्मा कहना कितनी बड़ी भूल है।
संन्यासी तो मनुष्य से देवता बना न सके।
यह तो बाप का ही काम है।
आर्य समाजी, आर्य समाजी बनायेंगे।
क्रिश्चियन, क्रिश्चियन बनायेंगे।
ऐसे जिसके पास तुम जायेंगे वह वैसा ही बनायेंगे।
देवता धर्म है ही सतयुग में, तो बाप को संगम पर आना पड़े।
यह महाभारत युद्ध है, इस लड़ाई द्वारा ही तुम्हारी विजय होती है।
विनाश के बाद फिर जय-जयकार होगी।
तुम तो जानते हो विनाश भी जरूर होने वाला है।
आज कोई तख्त पर बैठा तो उनको उतारने में देरी थोड़ेही करते हैं।
क्या इसको स्वर्ग कहेंगे?
यह तो पूरा नर्क है।
इसको स्वर्ग कहना तो भूल है।
मनुष्य कितने दु:खी हैं।
आज कोई जन्मा तो खुशी-सुख और मरा तो दु:ख।
यहाँ तो सबसे नष्टोमोहा होना पड़े।
नहीं तो बाबा सर्विस पर जाने के लिए कभी नहीं कहेंगे।
बाबा कहते मैं तो नष्टोमोहा हूँ।
किसी चीज़ में मोह क्यों रखूँ।
मैं कोई गृहस्थी थोड़ेही हूँ।
तुम बच्चे जानते हो बरोबर इस भंभोर को आग लगनी है, विनाश में देरी थोड़ेही लगती है।
तुम कहाँ भाषण करते हो तो समझाते हो कि आकर बेहद के बाप से वर्सा लो।
हद के बाप से हद का वर्सा मिलता है।
तुमने 63 जन्म इस नर्क में लिये हैं।
मैं 21 जन्म लिए तुमको स्वर्ग का वर्सा देने आया हूँ।
अब रावण का वर्सा अच्छा या राम का?
अगर रावण का अच्छा है तो उनको जलाते क्यों हो?
शिवबाबा को कभी जलाते हो क्या?
श्रीकृष्ण को थोड़ेही जलाते हैं।
वे तो हैं ही रावण सम्प्रदाय, विकार से पैदा होते हैं।
यह है वेश्यालय, विषय सागर।
वह है वाइसलेस, शिवालय, अमृत सागर।
क्षीर सागर में विष्णु को दिखाते हैं ना।
अब क्षीर का सागर थोड़ेही होता है।
दूध तो गऊ से निकलता है।
अब देखो कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है फिर अपने को शिवोहम् कहते क्योंकि खुद पवित्र रहते, दूसरे को ऐसे थोड़ेही कहते - तुम्हारे में ईश्वर है, तुम्हारे में नहीं है क्योंकि तुम पतित हो।
आत्मा कहती है मैं अभी परमपिता परमात्मा द्वारा पावन बन रही हूँ, फिर पावन बन राज्य करेंगे।
तुमने अनेक बार वर्सा लिया और गंवाया है।
यह ड्रामा का चक्र बुद्धि में बैठ गया है।
बाप समझाते हैं तुम सब पार्वतियां हो, मैं शिव हूँ।
कथा आदि यहाँ की बात है, सूक्ष्मवतन में तो कथा आदि होती नहीं।
अमरकथा तुमको सुनाते हैं अमरपुरी का मालिक बनाने।
वह है अमरलोक, वहाँ तो सुख ही सुख है, मृत्युलोक में आदि-मध्य-अन्त दु:ख है।
कितना अच्छी रीति समझाते हैं।
जिन्होंने कल्प पहले बाप से वर्सा लिया था, उन्हों का ही अब पुरुषार्थ चलता है।
इस समय तक जो मिशनरी चलती है, पहले भी इतनी चली थी।
भल बाबा कहते हैं तुम सर्विस ठण्डी करते हो, परन्तु यह भी समझाते हैं कि कल्प पहले जो तुमने सर्विस की थी वही करते हो।
पुरुषार्थ फिर भी करते रहना है।
छोटे-छोटे दीपकों को तूफान हिला देंगे।
खिवैया तो सबका एक बाप ही है।
कहावत भी है - नईया मेरी पार लगाओ..... ड्रामा की भावी ऐसी बनी हुई है।
सब उस पुरानी दुनिया तरफ जा रहे हैं।
यहाँ हैं थोड़े।
तुम कितने थोड़े हो।
भल पिछाड़ी में बहुत होंगे तो भी रात-दिन का फ़र्क है।
वह सारी रावण सम्प्रदाय है।
बाप नशा तो बहुत चढ़ाते हैं फिर बाहर कुटुम्ब परिवार का मुँह देखा तो नशा हल्का हो जाता है।
ऐसा होना नहीं चाहिए।
आत्माओं को कहा जाता है तुम बाप से रूहरिहान करो - बाबा, हम आपके थे, आपने स्वर्ग में भेजा था।
21 जन्म राज्य किया फिर 63 जन्म दु:ख पाया।
अब हम आपसे वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे।
बाबा, आप कितने अच्छे हो।
हम आपको आधाकल्प भूल गये थे।
बाबा कहते यह तो आनादि बना-बनाया ड्रामा है।
मेरी भी यह ड्युटी है।
मैं कल्प-कल्प आकर तुम बच्चों को माया से लिबरेट कर ब्राह्मण बनाए सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ सुनाता हूँ।
मैं आता ही तब हूँ जब स्वर्ग बनाना है।
तुम अब फरिश्ते बन रहे हो।
प्योरिटी का भी साक्षात्कर कराते हैं।
तुमको नष्टोमोहा भी बनना है।
बाबा को अगर कोई कहते हैं - बाबा, हम सर्विस पर जायें?
तो बाबा कहेंगे - अगर तुम नष्टोमोहा हो तो मालिक हो, जहाँ चाहे जाओ।
मूंझते क्यों हो।
मालिक हो, अन्धों को राह बतानी है।
नष्टोमोहा नहीं हैं तब पूछते हैं।
नष्टोमोहा हो तो यह भागे, वह ठहर न सकें।
बड़ी मंज़िल है।
बाप सर्विसएबुल बच्चों पर कुर्बान जाते हैं।
पहले नम्बर में तो यह बाबा था ना।
त्याग तो सब करते हैं परन्तु फिर भी इनका फर्स्ट नम्बर है।
बाबा कहते हैं देही-अभिमानी बनो अर्थात् अपने को अशरीरी समझो।
बेहद का बाप तुमको 21 जन्मों का वर्सा देते हैं।
अच्छा, वह आये कैसे?
लिखा भी हुआ है - ब्रह्मा के मुख से रचना रचते हैं तो जरूर ब्रह्मा में ही आयेंगे।
ब्रह्मा को ही प्रजापिता कहा जाता है तो उस बेहद के बाप से आकर वर्सा लो।
यह बातें समझाने में लज्जा की तो कोई बात नहीं है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ब्रह्मा बाप समान त्याग में नम्बर आगे जाना है। रुद्र के गले का हार बनने के लिए जीते जी बलिहार जाना है।
2) सर्विसएबुल बनने के लिए नष्टोमोहा बनना है। अन्धों को राह बतानी है।
मन की खुशी द्वारा बीमारियों को दूर भगाने वाले एवरहेल्दी भव
कहा जाता - मन खुश तो जहान खुश, मन की बीमारी से शरीर भी पीला हो जाता है। मन ठीक होगा तो शरीर का रोग भी महसूस नहीं होगा। चाहे शरीर बीमार भी हो तो भी मनदुरूस्त है क्योंकि आपके पास खुशी की खुराक बहुत बढ़िया है। यह खुराक बीमारी को भगा देती है, भुला देती है। तो मन खुश, जहान खुश, जीवन खुश, इसलिए एवरहेल्दी हो।
समय के महत्व को जान लो तो सर्व खजानों से सम्पन्न बन जायेंगे।
इस मास की सभी मुरलियाँ (ईश्वरीय महावाक्य) निराकार परमात्मा शिव ने ब्रह्मा मुखकमल से अपने ब्रह्मावत्सों अर्थात् ब्रह्माकुमार एवं ब्रह्माकुमारियों के सम्मुख 18-1-1969 से पहले उच्चारण की थी। यह केवल ब्रह्माकुमारीज़ की अधिकृत टीचर बहनों द्वारा नियमित बीके विद्यार्थियों को सुनाने के लिए हैं।