29-10-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 27.02.96 "बापदादा" मधुबन


“सत्यता का फाउण्डेशन है पवित्रता और निशानी है - चलन वा चेहरे में दिव्यता''

  • आज सत-बाप, सत-शिक्षक, सतगुरू अपने चारों ओर के सत्यता के शक्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। सत्यता का फाउण्डेशन पवित्रता है। और सत्यता का प्रैक्टिकल प्रमाण चेहरे पर और चलन में दिव्यता होगी। दुनिया में भी अनेक आत्मायें अपने को सत्यवादी कहते हैं वा समझते हैं लेकिन सम्पूर्ण सत्यता पवित्रता के आधार पर होती है। पवित्रता नहीं तो सदा सत्यता रह नहीं सकती है। तो आप सबका फाउण्डेशन क्या है? पवित्रता। तो पवित्रता के आधार पर सत्यता का स्वरूप स्वत: और सहज सदा होता है। सत्यता सिर्फ सच बोलना, सच करना इसको नहीं कहा जाता लेकिन सबसे पहला सत्य जिससे आपको पवित्रता की वा सत्यता की शक्ति आई, तो पहली बात है अपने सत्य स्वरूप को जाना, मैं आत्मा हूँ - ये सत्य स्वरूप पहले नहीं जानते थे। लेकिन पहला सत्य अपने स्वरूप को जाना। मैं फलानी हूँ या फलाना हूँ, बॉडी के हिसाब से वह सत्य स्वरूप था? सत्य स्वरूप है पहले स्व स्वरूप और फिर बाप के सत्य परिचय को जाना। अच्छी तरह से अपना सत्य स्वरूप और बाप का सत्य परिचय जान लिया है? तीसरी बात - इस सृष्टि चक्र को भी सत्य स्वरूप से जाना। यह चक्र क्या है और इसमें मेरा पार्ट क्या है! तो अपना पार्ट अच्छी तरह से स्पष्ट रूप से जान लिया? आपका पार्ट अच्छा है ना? सबसे अच्छा पार्ट संगमयुग का कहेंगे। लेकिन आपका देव आत्मा का पार्ट भी विश्व में सारे चक्र की आत्माओं से श्रेष्ठ है। चाहे धर्म आत्मायें, महान आत्मायें भी पार्ट बजाती हैं लेकिन वो आत्मा और शरीर दोनों से पवित्र नहीं हैं और आप देव आत्मायें शरीर और आत्मा दोनों से पवित्र हैं, जो सारे कल्प में और कोई आत्मा ऐसी नहीं। तो पवित्रता का फाउण्डेशन सिवाए आपके और कोई भी आत्मा का श्रेष्ठ नहीं है। आपको देव आत्मा का पार्ट याद है? पाण्डवों को याद है? देव आत्मा की पवित्रता नेचुरल रूप में रही है। महान आत्मायें, आत्माओं को पवित्र बनाती हैं लेकिन बहुत पुरुषार्थ से, नेचुरल नहीं। न नेचुरल है न नेचर रूप में है। और आपकी आधा कल्प पवित्रता की जीवन नेचुरल भी है और नेचर भी है। कोई पुरुषार्थ वहाँ नहीं है। यहाँ का पुरुषार्थ वहाँ नेचुरल हो जाता है क्योंकि वहाँ अपवित्रता का नाम-निशान नहीं, मालूम ही नहीं कि अपवित्रता भी होती हैइसलिए आपके पवित्रता का प्रैक्टिकल स्वरूप देवता अर्थात् दिव्यता का है। इस समय दुनिया वाले कितना भी अपने को सत्यवान समझें लेकिन स्व स्वरूप की सत्यता ही नहीं जानते। बाप के सत्य परिचय को ही नहीं जानते। तो सम्पूर्ण सत्य स्वरूप नहीं कहेंगे। आपमें भी सत्यता की शक्ति सदा तब रहेगी जब अपने और बाप के सत्य स्वरूप की स्मृति रहेगी, तो स्वत: ही हर संकल्प भी आपका सत्य होगा। अभी कभी भूल भी जाते हो, बॉडी-कॉन्सेस में आ जाते हो तो संकल्प सदा सत्यता के शक्तिशाली हो, पवित्रता के शक्तिशाली हो, वह सदा नहीं रहता। सदा रहता है कि व्यर्थ भी होता है? तो व्यर्थ को सत्य कहेंगे? झूठ तो बोला ही नहीं तो क्यों नहीं सत्य है? अगर कोई यह समझकर बैठे कि मैं कभी भी झूठ नहीं बोलती, सदा सच बोलती लेकिन सत्यता की परख है कि संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें दिव्यता अनुभव हो। बोल सच रहे हैं लेकिन दिव्यता नहीं है, देखते हो ना - कई बार-बार कहेंगे मैं सच बोलती, मैं सच बोलती। मैं सदा सच्ची हूँ लेकिन बोल में, कर्म में अगर दिव्यता नहीं है तो दूसरे को आपका सच, सच नहीं लगेगा। यही समझेंगे कि यह अपने को सिद्ध कर रही है लेकिन समझ में नहीं आता कि यह सत्य है। सत्य को सिद्ध करने के लिए सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। अगर अपने सत्य को जिद से सिद्ध करते हैं तो वह दिव्यता दिखाई नहीं देती है। ये साधारणता है, जो दुनिया में भी करते हैं। और बापदादा सत्य की निशानी एक स्लोगन में कहते हैं, साकार द्वारा भी सुना जो सच्चा होगा वह कैसे दिखाई देगा! सच तो नच। सदा खुशी में नाचता रहेगा। जब जिद करके सिद्ध करते तो आप अपना या दूसरे का चेहरा नोट करेंगे तो वह खुशी का नहीं होगा। थोड़ा सोचने का और थोड़ा उदासी का होगा। नाचने का नहीं होगा। सच तो बिठो नच, सच्चा खुशी में नाचता है। तो खुशी में जीवन के दिन या रात बहुत अच्छी लगती है। और थोड़ा भी सत्य में असत्य मिक्स है तो उस समय की जीवन इतनी अच्छी नहीं लगेगी। तो सत्यता का अर्थ ही है सत्य स्वरूप में स्थित होके चाहे संकल्प, चाहे बोल, चाहे कर्म करना। आजकल दुनिया वाले तो स्पष्ट कहते हैं कि आजकल सच्चे लोगों का चलना ही मुश्किल है, झूठ बोलना ही पड़ेगा। लेकिन कई समय पर, कई परिस्थितियों में ब्राह्मण आत्मायें भी मुख से नहीं बोलती लेकिन अन्दर समझती हैं कि कहाँ-कहाँ चतुराई से तो चलना ही पड़ता है। उसको झूठ नहीं कहते लेकिन चतुराई कहते हैं। तो चतुराई क्या है? यह तो करना ही पड़ता है! तो वह स्पष्ट बोलते हैं और ब्राह्मण रॉयल भाषा में बोलते हैं। फिर कहते हैं मेरा भाव नहीं था, न भावना थी न भाव था लेकिन करना ही पड़ता है, चलना ही पड़ता है। लेकिन ब्रह्मा बाप को देखा, साकार है ना, निराकार के लिए तो आप भी सोचते हो कि शिव बाप तो निराकार है, ऊपर मजे में बैठा है, नीचे आवे तो पता पड़े क्या है! लेकिन ब्रह्मा बाप तो साकार स्वरूप में आप सबके साथ ही रहे, स्टूडेन्ट भी रहे और सत्यता व पवित्रता के लिए कितनी आपोजीशन हुई तो चालाकी से चला? लोगों ने कितना राय दी कि आप सीधा ऐसे नहीं कहो कि पवित्र रहना ही है, यह कहो कि थोड़ा-थोड़ा रहो। लेकिन ब्रह्मा बाप घबराया? सत्यता की शक्ति धारण करने में सहनशक्ति की भी आवश्यकता है। सहन करना पड़ता है, झुकना पड़ता है, हार माननी पड़ती है लेकिन वह हार नहीं है, उस समय के लिए हार लगती है लेकिन है सदा की विजय। सत्यता की शक्ति से आज डायमण्ड जुबली मना रहे हैं। अगर पवित्रता और सत्यता नहीं होती तो आज आपके चेहरों से, चलन से आने वालों को जो दिव्यता अनुभव होती है वह नहीं होती। चाहे प्यादा भी है, नम्बरवार तो है ही ना। महारथी भी हैं, नाम के महारथी नहीं, लेकिन जो सच्चे महारथी हैं अर्थात् सत्यता की शक्ति से चलने वाले महारथी हैं। जो परिस्थिति को देखकर सत्यता से ज़रा भी किनारा कर लेते, कहते हैं और कुछ नहीं किया एक दो शब्द ऐसे बोल दिये, दिल से नहीं बोले ऐसे बाहर से थोड़ा बोल दिये तो यह सम्पूर्ण सत्यता नहीं है। सत्यता के पीछे अगर सहन भी करना पड़ता तो वह सहन नहीं है भल बाहर से लगता है कि हम सहन कर रहे हैं लेकिन आपके खाते में वह सहन शक्ति के रूप में जमा होता है। नहीं तो क्या होता कि अगर कोई थोड़ा सा भी सहन करने में कमजोर हो जाता है तो उसे असत्य का सहारा जरूर लेना पड़ता है। तो उस समय ऐसे लगता है जैसे सहारा मिल गया, ठीक हो गया लेकिन उसके खाते में सहनशक्ति जमा नहीं होती है। तो बाहर से ऐसे समझेंगे कि हम बहुत अच्छे चलते हैं, हमको चलने की चतुराई आ गई है, लेकिन अगर अपना खाता देखेंगे तो जमा का खाता बहुत कम होगा इसलिए चतुराई से नहीं चलो, एक दो को देखकर भी कॉपी करते हैं, यह ऐसे चलती है ना तो इसका नाम बहुत अच्छा हो गया है, यह बहुत आगे हो गई है और हम सच्चे चलते हैं ना तो हम पीछे के पीछे ही रह गये। लेकिन वह पीछे रहना नहीं है, वह आगे बढ़ना है। बाप के आगे, आगे बढ़ते हो और दूसरों के आगे चाहे पीछे दिखाई भी दो लेकिन काम किससे है! बाप से या आत्माओं से? (बाप से) तो बाप के दिल में आगे बढ़ना अर्थात् सारे कल्प के प्रालब्ध में आगे बढ़ना। और अगर यहाँ आगे बढ़ने में आत्माओं को कॉपी करते हो, तो उस समय के लिए आपका नाम होता है, शान मिलता है, भाषण करने वाली लिस्ट में आते हो, सेन्टर सम्भालने की लिस्ट में आते हो लेकिन सारे कल्प की प्रालब्ध नहीं बनती। जिसको बापदादा कहते हैं मेहनत की, बीज डाला, वृक्ष बड़ा किया, फल भी निकला लेकिन कच्चा फल खा गये, हमेशा के लिए प्रालब्ध का फल खत्म हो जाता है। तो अल्पकाल के शान, मान, नाम के लिए कॉपी नहीं करो। यहाँ नाम नहीं है लेकिन बाप के दिल में नम्बर आगे नाम है इसलिए डायमण्ड बनना है तो यह सब चेकिंग करो। ज़रा भी रॉयल रूप का दाग डायमण्ड में छिपा हुआ तो नहीं है? तो सत्यता की शक्ति से दिव्यता को धारण करो। कुछ भी सहन करना पड़े, घबराओ नहीं। सत्य समय प्रमाण स्वयं सिद्ध होगा। कहते भी हो ना कि सत्य की नाव डोलती है लेकिन डूबती नहीं, तो किनारा तो ले लेंगे ना। निर्भय बनो। अगर कहाँ भी सामना करना पड़ता है तो ब्रह्मा बाप के जीवन को आगे रखो। ब्रह्मा बाप के आगे दुनिया की परिस्थितियां तो थी लेकिन वैराइटी बच्चों की भी परिस्थितियां रहीं लेकिन संगठन में होते, जिम्मेवारी होते सत्यता की शक्ति से विजयी हो गये। बच्चों की खिटखिट ब्रह्मा बाप ने नहीं देखी क्या? ब्रह्मा बाप के आगे भी वैराइटी संस्कार वाली आत्मायें रही, लेकिन इतनी सब परिस्थितियां होते हुए सत्यता की स्व स्थिति ने सम्पूर्ण बना दिया। तो आप सबको क्या बनना है? चतुराई तो नहीं है ना! बहुत अच्छा बोलते हैं - मैंने कुछ नहीं किया थोड़ा चतुराई से तो चलना ही पड़ता है। लेकिन कब तक? तो सहनशक्ति धारण कर असत्य का सामना करो। प्रभाव में नहीं आ जाओ। कई समझते हैं कि हमने महारथियों में भी ऐसे देखा ना तो फॉलो तो महारथियों को करना है ना, अभी ब्रह्मा बाबा तो सामने हैं नहीं, महारथी हैं उसको फॉलो किया। लेकिन अगर महारथी भी मिक्स करता है, चतुराई से चलता है तो उस समय महारथी, महारथी नहीं है। उस समय ग्रहचारी में है न कि महारथी है, इसीलिए बाप ने क्या स्लोगन दिया - फॉलो फादर या सिस्टर ब्रदर? तो साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को आगे रखो, फॉलो करो और अशरीरी बनने में निराकार बाप को फॉलो करो। चाहे अच्छे-अच्छे बच्चे भी हैं लेकिन वह भी फॉलो फादर करते हैं। तो आपको क्या करना है? फॉलो फादर। पक्का या थोड़ा-थोड़ा एडॅवान्टेज मिलता है तो ले लो भविष्य में देखा जायेगा? कई ऐसे भी सोचते हैं कि सतयुग में चाहे कम पद पायेंगे लेकिन सुखी तो होंगे ही। दु:ख तो होगा ही नहीं। सब प्राप्तियां तो होंगी। चाहे प्रजा की भी प्रजा होगी तो भी अप्राप्ति तो होगी नहीं, तो अभी तो मज़ा ले लें, पीछे देखा जायेगा। लेकिन यह अल्पकाल का मज़ा, सज़ा के भागी बना देगा। तो वह मंजूर है, सजा खायेंगे थोड़ी! वह भी मज़ा ले लो? नहीं! तो तीनों बातें याद रखो - पवित्रता, सत्यता और दिव्यता। ऐसे साधारण बोल नहीं, साधारण संकल्प नहीं, साधारण कर्म नहीं, दिव्यता। दिव्यता का अर्थ ही है दिव्य गुण द्वारा कर्म करना, संकल्प करना, वही दिव्यता है। जैसे लोग पूछते हैं ना कि पाप कर्म क्या होता है? तो आप कहते हो कि कोई भी विकार के वश कर्म करना यह पाप है। ऐसे समझाते हो ना! तो दिव्यता अर्थात् दिव्य गुण के आधार पर मन-वचन और कर्म करना। तो सत्यता का महत्व जाना! (ड्रिल) एक सेकेण्ड में अपने को अशरीरी बना सकते हो? क्यों? संकल्प किया मैं अशरीरी आत्मा हूँ, तो कितना टाइम लगा? सेकेण्ड लगा ना! तो सेकेण्ड में अशरीरी, न्यारे और बाप के प्यारे - ये ड्रिल सारे दिन में बीच-बीच में करते रहो। करने तो आती है ना? तो अभी सब एक सेकेण्ड में सब भूलकर एकदम अशरीरी बन जाओ। (बापदादा ने 5 मिनट ड्रिल कराई) अच्छा। चारों ओर के सर्व पवित्रता के फाउण्डेशन को सदा मजबूत रखने वाले, सदा सत्यता की शक्ति से विश्व में भी सत युग अर्थात् सत्यता की शक्ति के वायब्रेशन फैलाने वाले सदा हर समय मन-वाणी-कर्म तीनों में दिव्यता धारण करने वाले, सदा फॉलो फादर करने के नेचुरल अभ्यास वाली आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। इस ड्रिल को दिन में जितना बार ज्यादा कर सको उतना करते रहना। चाहे एक मिनट करो। तीन मिनट, दो मिनट का टाइम न भी हो एक मिनट, आधा मिनट यह अभ्यास करने से लास्ट समय अशरीरी बनने में बहुत मदद मिलेगी। बन सकते हैं? अभी सभी अशरीरी हुए या युद्ध में, मेहनत करते-करते टाइम पूरा हो गया? सेकेण्ड में बन सकते हो! बहुत काम है फिर भी बन सकते हो? मुश्किल नहीं है? यू.एन. में बहुत भाग दौड़ कर रही हो और अशरीरी बनने की कोशिश करो, होगा? अगर यह अभ्यास समय प्रति समय करेंगे तो ऐसे ही नेचुरल हो जायेगा जैसे शरीर भान में आना, मेहनत करते हो क्या? मैं फलानी हूँ, यह मेहनत करते हो? नेचुरल है। तो यह भी नेचुरल हो जायेगा। जब चाहो अशरीरी बनो, जब चाहो शरीर में आओ। अच्छा काम है आओ इस शरीर का आधार लो लेकिन आधार लेने वाली मैं आत्मा हूँ, वह नहीं भूले। करने वाली नहीं हूँ, कराने वाली हूँ। जैसे दूसरों से काम कराते हो ना। उस समय अपने को अलग समझते हो ना! वैसे शरीर से काम कराते हुए भी कराने वाली मैं अलग हूँ, यह प्रैक्टिस करो तो कभी भी बॉडी-कॉन्सेस की बातों में नीचे ऊपर नहीं होंगे। समझा।

  • ( All Blessings of 2021-22)
  • स्नेह के सागर में समाकर मेरे पन की मैल को समाप्त करने वाले पवित्र आत्मा भव

    जो सदा स्नेह के सागर में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती। स्नेह में समाये होने के कारण वे सब बातों से सहज ही परे हो जाते हैं। भक्तों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन बच्चे सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं। उन्हें दुनिया की स्मृति नहीं, मेरा-मेरा सब खत्म। अनेक मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता और आत्मा पवित्र बन जाती है।


  • (All Slogans of 2021-22)
    • बुद्धि में ज्ञान रत्नों को ग्रहण करना और कराना ही होलीहंस बनना है।

    How many countries watching the Channel of BK Naresh Bhai?

    Click to Know Brahma Kumaris Centre Near You

    BK Naresh Bhai's present residence cum workplace